सारांश -: प्रस्तुत ग़ज़ल कवि दुष्यंत कुमार द्वारा रचित है जिसमें वर्तमान राजनीतिक और सामजिक व्यवस्था में जो कुछ चल रहा है उसे खारिज करने और विकल्प की तलाश को मान्यता देने की कोशिश की गई है|
कवि राजनीतिज्ञों द्वारा निर्मित सामाजिक व्यवस्था की वास्तविकता पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि स्वतंत्र भारत का जो सपना उन्होंने देखा था वह पूरा ही नहीं हुआ| नेताओं ने प्रत्येक घर में खुशियों के दीये जलने के सपने दिखाए थे जबकि पूरा समाज ही इन सुख-सुविधाओं से वंचित है| जिन्होंने जनकल्याण का दायित्व लिया, वही भ्रष्टाचार में लिप्त हैं| यहाँ के लोग कर्म पर नहीं, भाग्य पर विश्वास करते हैं| उन्हें जितना मिल जाए उसी में संतोष कर लेते हैं| ऐसे लोग अभावों में रहकर भी खुश हैं और किसी से शिकायत नहीं करते| संघर्ष और परिवर्तन की भावना उनके मन में कभी नहीं आती| इन्हीं लोगों के कारण कुशासकों को प्रोत्साहन मिलता है, जिसके कारण समाज में परिवर्तन की कल्पना भी नहीं की जा सकती| शोषित वर्ग इस बात से आश्वस्त हैं कि समाज में कभी परिवर्तन नहीं लाया जा सकता| वे पत्थर दिल बने नेताओं के शोषण में पूरी जिंदगी गुजारने के लिए तैयार है| कवि इन जैसे लोगों के मन में क्रांति की आग सुलगाना चाहते हैं ताकि ये अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के प्रति जागरूक हो सकें| शासक तो यही चाहते हैं कि उनके विरूद्ध कोई आवाज न उठाए| लेकिन कवि के जीवन का एकमात्र लक्ष्य है कि वे अपने सपनों के भारत के निर्माण के लिए ही जिएँ| वे ऐसे सुखी और समृद्ध भारत का निर्माण चाहते हैं जहाँ प्रत्येक के लिए न्याय और सभी के मन में जनकल्याण की भावना हो|
कवि परिचय-: दुष्यंत कुमार
जन्म - सन् 1933, राजपुर, नवादा गाँव (उ.प्र.) में|
प्रमुख रचनाएँ- सूर्य का स्वागत, आवाजों के घेरे, साये में धूप, जलते हुए वन का वसंत (काव्य); एक कंठ विषपायी (गीति-नाट्य); छोटे-छोटे सवाल, आँगन में एक वृक्ष और दोहरी जिंदगी (उपन्यास)|
मृत्यु - सन् 1975 में हुई|
दुष्यंत कुमार का जन्म साहित्यिक जीवन इलाहाबाद में आरंभ हुआ| वहाँ की साहित्यिक संस्था ‘परिमल’ की गोष्ठियों में वे सक्रिय रूप से भाग लेते रहे और ‘नये पत्ते’ जैसे महत्वपूर्ण पत्र के साथ भी जुड़े रहे| आजीविका के लिए आकाशवाणी और बाद में मध्यप्रदेश के राजभाषा विभाग में काम किया| अल्पायु में ही उनका देहावसान हो गया, किंतु इस छोटे जीवन की साहित्यिक उपलब्धियाँ कुछ छोटी नहीं है| ग़ज़ल की विधा को हिंदी में प्रतिष्ठित करने का श्रेय अकेले दुष्यंत को ही जाता है| उनके कई शेर साहित्यिक एवं राजनीतिक जमावड़ों में लोकोक्तियों की तरह दुहराए जाते हैं|
कठिन शब्दों के अर्थ -:
• मयस्सर- उपलब्ध
• दरख्त- पेड़
• मुतमइन- इतमीनान से, आश्वस्त
• बेकरार- बेचैन, आतुर
• निज़ाम- राज, शासन
• एहतियात- सावधानी
• बहर- छंद
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1. पठन सामग्री में कौन-कौन सी जानकारी शामिल होती है? |
2. गज़ल की परिभाषा क्या होती है? |
3. गज़ल की प्रमुखता क्या होती है? |
4. गज़ल किस पारंपरिक शैली से संबंधित है? |
5. गज़लों का उद्देश्य क्या है? |
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