सारांश-: मियाँ नसीरूद्दीन’ शब्द चित्र हम-हशमत नामक संग्रह से लिया गया है जिसकी लेखिका कृष्णा सोबती हैं| इसमें खानदानी नानबाई मियाँ नसीरूदीन के व्यक्तित्व, रूचियों और स्वभाव का शब्द चित्र खींचा गया है| इसमें मियाँ नसीरूद्दीन अपनी मसीहाई अंदाज से रोटी पकाने की कला और और उसमें खानदानी महारत को बताते हैं| वे अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और करके सीखने को असली हुनर मानते हैं|
एक दोपहर जब लेखिका घूमते-घूमते अचानक जामा मस्जिद के निकट मुहल्ले के एक अँधेरी दुकान के पास आती हैं तो पता चलता है कि वो खानदानी नानबाई मियाँ नसीरूद्दीन की दुकान है| उन्हें यह भी पता चला कि मियाँ छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं|
लेखिका के प्रश्न पूछने पर मियाँ नसीरूद्दीन समझ जाते हैं कि वो एक पत्रकार हैं| फिर भी वो उनके प्रश्नों का उत्तर बड़े ही आत्मविश्वास के साथ देते हैं| लेखिका को यह भी बताते हैं कि यह उनका खानदानी पेशा है| बादशाह के दरबार में भी उनके पूर्वजों ने काम किया है| लेखिका के यह पूछने पर कि दिल्ली के किस बादशाह के यहाँ उनके बुजुर्गों ने काम किया था, मियाँ थोड़े खिसिया उठे| लेखिका उनके बेटे-बेटियों के बारे में भी पूछना चाहती थीं, लेकिन मियाँ के चेहरे के भाव देखकर उन्होंने इस विषय को न छेड़ना ही उचित समझा|
बातों-बातों में यह भी पता चला कि मियाँ अपने शागिर्दों का भी बहुत सम्मान करते हैं| वे उन्हें समय पर उचित वेतन देते हैं| इस प्रकार, मियाँ नसीरूद्दीन के रोटियाँ बनाने की कला तथा उनके पेशे के प्रति समर्पण देखकर लेखिका बहुत प्रभावित हुईं|
कथाकार परिचय-: कृष्णा सोबती
जन्म: सन् 1925, गुजरात (पश्चिमी पंजाब-वर्तमान में पाकिस्तान)
प्रमुख रचनाएँ- इनकी प्रमुख रचनाएँ जिंदगीनामा, दिलोदानिश, ऐ लड़की, समय सरगम (उपन्यास); डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, बादलों के घेरे, सूरजमुखी अँधेरे के, (कहानी संग्रह); हम-हशमत, शब्दों के आलोक में (शब्दचित्र, संस्मरण) हैं|
प्रमुख सम्मान- इन्हें साहित्य अकादमी सम्मान, हिंदी अकादमी का शलाका सम्मान, साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता सहित अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए गए|
हिंदी कथा साहित्य में कृष्णा सोबती की विशिष्ट पहचान है| उनके अनुसार कम लिखना विशिष्ट लिखना है| यही कारण है कि उनके संयमित लेखन और साफ़-सुथरी रचनात्मकता ने अपना एक नित नया पाठक वर्ग बनाया है| उनके कई उपन्यासों, लंबी कहानियों और संस्मरणों ने हिंदी के साहित्यिक संसार में अपनी दीर्घजीवी उपस्थिति सुनिश्चित की है| उन्होंने हिंदी साहित्य को कई ऐसे यादगार चरित्र दिए हैं, जिन्हें अमर कहा जा सकता है; जैसे- मित्रो, शाहनी, हशमत आदि| भारत पकिस्तान पर जिन लेखकों ने हिंदी में कालजयी रचनाएँ लिखीं, उनमें कृष्णा सोबती का नाम पहली कतार में रखा जाएगा|
कठिन शब्दों के अर्थ-:
• काइयाँ- चतुर
• लुत्फ़- आनंद, स्वाद
• अखबारनवीस- पत्रकार
• खुराफात- शरारत, उपद्रव
• निठल्ला- बेरोजगार
• इल्म- जानकारी
• नसीहत- सलाह
• शागिर्द- चेला, नौकरी करने वाला
• जमात- कक्षा, श्रेणी
• तालीम- शिक्षा
• बावर्चीखाना- रसोईघर
• मजमून- वह विषय जिस पर कुछ कहा जाए
• खिल्ली- मजाक
• रूखाई- अनमने ढंग से
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1. मियाँ नसीरुद्दीन कौन थे? |
2. मियाँ नसीरुद्दीन के द्वारा लिखित कौन-कौन से नाटक हैं? |
3. मियाँ नसीरुद्दीन के किस विषय पर लिखे नाटक अधिक मशहूर हैं? |
4. मियाँ नसीरुद्दीन की लेखनी की क्या विशेषताएं थीं? |
5. मियाँ नसीरुद्दीन के नाटक किस भाषा में लिखे गए हैं? |
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