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अपू के साथ ढाई साल - पठन सामग्री और सार | Hindi Class 11 - Humanities/Arts PDF Download

सारांश-: ‘अपू के साथ ढाई साल’ नामक संस्मरण पथेर पांचाली फिल्म के अनुभवों से संबंधित है, जिसका निर्माण भारतीय फिल्म के इतिहास में एक बहुत बड़ी घटना के रूप में दर्ज है| इसके लेखक सत्यजीत राय हैं जो फिल्म ‘पथेर पांचाली’ के निर्देशक भी हैं| इस संस्मरण में फिल्म के सृजन तथा उसके व्याकरण से संबंधित कई बारीकियों का पता चलता है|

फिल्म ‘पथेर पांचाली’ के बनने में पूरे ढाई साल लगे थे| फिल्म में अपू और दुर्गा की मुख्य भूमिका थी| अपू की भूमिका के लिए छह साल के लड़के की जरूरत थी, जिसके लिए लेखक ने अखबार में विज्ञापन दिया था| आखिरकार उन्हें अपने ही पड़ोस के घर में रहने वाला लड़का सुबीर बनर्जी ही अपू की भूमिका के लिए उपयुक्त लगा| 

लेखक को इस बात का डर था कि समय बीतने के साथ-साथ अपू और दुर्गा की भूमिका निभाने वाले बच्चे ज्यादा बड़े न दिखने लगें| खुशकिस्मती से ऐसा नहीं हुआ| शूटिंग की शुरुआत कलकत्ता से सत्तर मील दूर पालसिट नाम के गाँव में हुई| वहाँ रेल-लाइन के पास काशफूलों से भरा एक मैदान था| सीन बहुत बड़ा था, जिसकी शूटिंग एक दिन में होनी नामुमकिन थी| सात दिन बाद जब बाकी के आधे सीन की शूटिंग करने वहाँ आए तो पता चला कि सारे काशफूल गायब हैं| सारे काशफूल जानवार खा गए| इस कारण लेखक को बाकी अंश की शूटिंग अगले साल शरद ऋतु में करनी पड़ी जब वह मैदान काशफूलों से भर गया| इस सीन की शूटिंग में पहली बार लेखक ने तीन रेलगाड़ियों का इस्तेमाल किया|

चूँकि लेखक स्वयं एक विज्ञापन कंपनी में काम करते थे, इसलिए जब उन्हें समय मिलता था तो शूटिंग कर लेते थे| उनके पास पर्याप्त पैसों का भी अभाव रहता था| इस कारण उन्हें कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ा था| पैसे के अभाव के कारण फिल्म में भूलो कुत्ते के आधे सीन को चित्रित कर बीच में छोड़ दिया गया| छह महीने बाद पैसे जमा होने के बाद जब शूटिंग दोबारा शुरू की गई तो पता चला कि भूलो अब इस दुनिया में नहीं रहा| आखिर बहुत कोशिशों के बाद उसी गाँव में एक कुत्ता मिला जो हुबहू भूलो के जैसा दीखता था| बाकी सीन की शूटिंग उसी कुत्ते के साथ की गई| 

फिल्म में श्रीनिवास की भूमिका निभाने वाले कलाकार की भी बीच में ही अचानक मौत हो गई| लेखक को उन्हीं के चेहरे से मिलता-जुलता एक व्यक्ति मिला, जिसके साथ बाकी अंश चित्रित किया गया| पैसों की कमी के कारण बारिश का दृश्य भी चित्रित करने में बहुत मुश्किल आई थी, जिसके कारण बरसात के दिनों में शूटिंग बंद कर दी गई| आखिरकार, अक्टूबर में शूटिंग शुरू की गई, जब बारिश कम हुआ|

शूटिंग की दृष्टि में गोपाल ग्राम की अपेक्षा बोडाल गाँव अधिक उपयुक्त था क्योंकि वहाँ का माहौल शूटिंग के अनुकूल था| गाँव में शूटिंग करते समय लेखक का अनेक लोगों से परिचय हुआ, जो अलग-अलग व्यक्तित्व के थे| जिस घर में फिल्म की शूटिंग चल रही थी, उसका मालिक कलकत्ता में रहता था| उस घर में एक ऐसा भी कमरा था जहाँ बैठकर साउंड रिकार्डिंग का काम किया जाता था| वहीं साउंड रिकार्डिस्ट भूपेन बाबू का सामना एक बड़े साँप से हुआ, जो स्थानीय लोगों के अनुसार वास्तुसर्प था| लेखक उसे मारना चाहते थे, लेकिन लोगों के मना करने पर उन्होंने ऐसा नहीं किया|

इस प्रकार, फिल्म की शूटिंग पूरा होने के दौरान कई ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हुईं, जो लेखक के लिए परेशानी का कारण बनीं| लेकिन, इन सब के बावजूद भी लेखक ने इसकी शूटिंग ढाई साल में पूरी की| परिणामतः, इसमें फिल्माए गए दृश्य बहुत अच्छी तरह चित्रित हुए तथा यह फिल्म लोगों को बहुत पसंद आई| 


कथाकार परिचय-: सत्यजीत राय

जन्म: सन् 1921, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)

प्रमुख फ़िल्में: अपराजिता, अपू का संसार, जलसाघर, देवी चारुलता, महानगर आदि|

प्रमुख रचनाएँ: प्रो. शंकु के कारनामे, सोने का किला, जहाँगीर की स्वर्ण मुद्रा, बादशाही अँगूठी आदि|

प्रमुख सम्मान: फ्रांस का लेजन डी ऑनर, पूरे जीवन की उपलब्धियों पर ऑस्कर और भारतरत्न आदि|

मृत्यु: सन् 1992

सत्यजीत राय उन व्यक्तियों में से हैं जिन्होनें भारतीय सिनेमा कलात्मक ऊँचाई प्रदान की है| उनके द्वारा निर्देशित पहली फ़िल्म 'पथेर पांचाली' (बांग्ला) 1955 में प्रदर्शित हुई जिसने राय को विश्व ख्याति दिलायी| इनके फ़ीचर फ़िल्मों की कुल संख्या तीस के लगभग है| इनकी ज़्यादातर फ़िल्में साहित्यिक कृतियों पर आधारित हैं| इनकी लिखी कहानियों में जासूसी रोमांच के साथ-साथ पेड़-पौधे तथा पशु-पक्षी का सहज संसार भी है|


कठिन शब्दों के अर्थ-: 

• कालखंड- समय का एक हिस्सा

• स्थगित - रोकना

• इश्तहार - विज्ञापन

• भाड़े पर - किराए पर

• कंटिन्यूइटी - निरंतरता

• शॉट्स - दृश्यों को शूट करना

• साउंड रिकॉर्डिस्ट - आवाज़ की रिकॉर्डिंग करने वाला

• पुकुर - पोखर

• नवागत होना - नए विषय को जानना

• नदारद - गायब

• भात -पके हुए चावल

• बॉयलर - रेलगाड़ी के इंजन का वह हिस्सा जिसमें कोयला डाला जाता है

• वास्तुसर्प - वह सर्प जो घर में अवसर दिखाई देता है|

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FAQs on अपू के साथ ढाई साल - पठन सामग्री और सार - Hindi Class 11 - Humanities/Arts

1. अपू के साथ ढाई साल से क्या मतलब है?
उत्तर: "अपू के साथ ढाई साल" एक हिंदी फिल्म का शीर्षक है, जिसका मतलब होता है "दो साल अपू के साथ". इसका अर्थ हो सकता है कि यह फिल्म अपू के साथ दो साल की कहानी को दर्शाती है।
2. यह फिल्म किस विषय पर आधारित है?
उत्तर: "अपू के साथ ढाई साल" एक ह्यूमनिटीज/कला फिल्म है, जिसमें शायद कोई विशेष विषय नहीं है। इसमें विभिन्न विषयों और सामग्रियों का उपयोग करके एक कहानी को दर्शाया गया है।
3. क्या यह फिल्म संबंधित विषयों पर आधारित है?
उत्तर: फिल्म "अपू के साथ ढाई साल" में कई संबंधित विषयों पर आधारित है सकती है, जैसे कि प्रेम, परिवार, दोस्ती, सामाजिक मुद्दे आदि। यह फिल्म एक व्यक्ति या समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर सकती है।
4. क्या यह फिल्म किसी विशेष कलाकार के बारे में है?
उत्तर: "अपू के साथ ढाई साल" फिल्म किसी विशेष कलाकार के बारे में नहीं है। इसमें अलग-अलग कलाकारों की भूमिका हो सकती है, लेकिन कोई विशेषता नहीं होती है जिसके बारे में फिल्म बनाई गई हो।
5. इस फिल्म का विमोचन कब हुआ था?
उत्तर: "अपू के साथ ढाई साल" फिल्म का विमोचन उस समय हुआ था जब वह रिलीज़ हुई थी। यह फिल्म किसी विशेष दिन या वर्ष में विमोचित नहीं हुई है, इसलिए इसका विमोचन दिन किसी विशेषता के आधार पर नहीं होता है।
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