1. पाँवों में केनवस के जूते हैं जिनके बंद बेतरतीब बँधे हैं। लापरवाही से उपयोग करने पर बंद के सिरों पर की लोहे की पतरी निकल जाती है और छेदों में बंद डालने में परेशानी होती है। तब बंद कैसे भी कस लिए जाते हैं।
दाहिने पाँव का जूता ठीक है, मगर बाएँ जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अंगुली बाहर निकल आई है।
मेरी दृष्टि इस जूते पर अटक गई है। सोचता हूँ फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है, तो पहनने की कैसी होगी ? नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं है।
प्रश्न 1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक किसके जूते के बारे में बात कर रहा है ? उसके जूते के बंद कैसे बँधे हुए हैं?
उत्तर. प्रस्तुक गद्यांश में लेखक प्रेमचंद के जूतों के बारे में बात कर रहा है। उसके जूते के बंद बेतरतीब बँधे हुए हैं।प्रश्न 2. लेखक ने पोशाक न बदलने के माध्यम से प्रेमचंद की किस विशेषता की ओर इशारा किया है?
उत्तर. लेखक ने पोशाक न बदलने के माध्यम से प्रेमचंद की दिखावे की भावना से दूर रहने की विशेषता की ओर इशारा किया है।प्रश्न 3. फोटो में किस पैर की अंगुली निकली हुई है ?
उत्तर. फोटो में बाएँ पैर की अंगुली निकली हुई है।
2. मैं चेहरे की तरफ देखता हूँ। क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरखे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अंगुली बाहर दिख रही है ? क्या तुम्हें इसका जरा भी अहसास नहीं है? ज़रा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है ? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अंगुली ढक सकती है ? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है। फोटोग्राफर ने जब ‘रेडी-प्लीज़’ कहा होगा, तब परम्परा के अनुसार तुमने मुस्कान लाने की कोशिश की होगी।
प्रश्न 1. लेखक किसके चेहरे की ओर देखता है ? वह उसके लिए किस विशेषण का प्रयोग कर रहा है?
उत्तर. लेखक प्रेमचंद के चेहरे की ओर देखता है। वह उसके लिए ‘साहित्यिक पुरखे’ विशेषण का प्रयोग कर रहा है।प्रश्न 2. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक किस परंपरा की ओर संकेत कर रहा है ?
उत्तर. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक फोटो खिंचवाते समय चेहरे पर मुस्कान लाने की परंपरा की ओर संकेत कर रहा है।प्रश्न 3. फोटो खींचने से पहले फोटोग्राफर क्या कहता है ?
उत्तर. फोटो खींचने से पहले फोटोग्राफर ‘रेडी-प्लीज’ कहता है।
3. यह कैसा आदमी है, जो खुद तो फटे जूते पहने फोटो खिंचा रहा है, पर किसी पर हँस भी रहा है। फोटो ही ञखचाना था, तो ठीक जूते पहन लेते, या न खिंचवाते। फोटो न ञखचाने से क्या बिगड़ता था। शायद पत्नी का आग्रह रहा हो और तुम, ‘अच्छा, चल भई’ कहकर बैठ गए होंगे। मगर यह कितनी बड़ी ‘ट्रेजडी’ है कि आदमी के पास फोटो ञखचाने को भी जूता न हो। मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते, तुम्हारे क्लेश को अपने भीतर महसूस करके जैसे रो पड़ना चाहता हूँ, मगर तुम्हारी आँखों का यह तीखा दर्द भरा व्यंग्य मुझे एकदम रोक देता है।
प्रश्न (क) गद्यांश में लेखक द्वारा प्रेमचंद को क्या सलाह दी जा रही है ?
उत्तर. गद्यांश में लेखक द्वारा प्रेमचंद को फोटो ञखचाने के लिए ठीक जूते पहनने या फोटो न ञखचाने की सलाह दी जा रही है।प्रश्न (ख) प्रस्तुत गद्यांश में किस ‘ट्रेजेडी’ की बात की जा रही है ?
उत्तर. प्रेमचंद जैसे महान् साहित्यकार के पास अच्छे जूते नहीं थे, इस ट्रेजेडी की बात की जा रही है।प्रश्न (ग) लेखक किसका क्लेश अपने भीतर महसूस करके रोना चाहता है ?
उत्तर. लेखक प्रेमचंद के क्लेश को महसूस करके रोना चाहता है।
4. तुम फोटो का महत्त्व नहीं समझते। समझते होते, तो किसी से फोटो खिचाने के लिए जूते माँग लेते। लोग तो माँगे के कोट से वर-दिखाई करते हैं और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। फोटो ञखचाने के लिए बीवी तक माँग ली जाती है, तुमसे जूते ही माँगते नहीं बने! तुम फोटो का महत्त्व नहीं जानते। लोग तो इत्र चुपड़ कर फोटो खीचते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए! गंदे से गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है।
प्रश्न 1. प्रेमचंद जी द्वारा फोटो का महत्त्व न समझने का लेखक को क्या कारण लगा ?
उत्तर. प्रेमचंद एक सादे, सरल तथा आडम्बरहीन व्यक्ति थे, उनके इसी व्यक्तित्व के कारण लेखक को लगा कि वे फोटो का महत्व नहीं समझते हैं।प्रश्न 2. लेखक के अनुसार लोग जूते क्यों माँगते हैं ?
उत्तर. लेखक के अनुसार लोग अपनी वास्तविक स्थिति छिपाने के लिए जूते माँगकर पहनते हैं।प्रश्न 3. यहाँ ‘तुम’ शब्द से किसे सम्बोधित किया गया है ?
उत्तर. यहाँ ‘तुम’ शब्द से प्रेमचंद को संबोधित किया गया है।
5. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस ज़माने में भी पाँच रुपये से कम से क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के अनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। यह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है, जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ। तुम महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है।
प्रश्न 1. लेखक ने ऐसा क्यों कहा कि प्रेमचंद जूते और टोपी के अनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे ?
उत्तर. लेखक के अनुसार प्रेमचंद को मान-सम्मान तो बहुत मिलता था पर वे धनहीन थे, इसलिए लेखक ने यह कहा, प्रेमचंद जूते और टोपी के अनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे।प्रश्न 2. लेखक को प्रेमचंद की कौन-सी विडम्बना चुभ रही है ?
उत्तर. लेखक को प्रेमचंद जैसे उच्च कोटि के साहित्यकार के धनहीन होने की विडम्वना चुभ रही है।प्रश्न 3. टोपी और जूते के मूल्य में क्या सम्बन्ध रहा है ?
उत्तर. टोपी का मूल्य जूते से सदैव कम रहा है।
6. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। ये ऊपर से अच्छा दिखता है। अंगुली बाहर नहीं निकलती, पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अँगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अँगुली ढकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम परदे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं! तुम फटा जूता बड़े ठाठ से पहने हो! मैं ऐसे नहीं पहन सकता। फोटो तो जिंदगी भर इस तरह नहीं खिचाऊँ, चाहे कोई जीवनी बिना फोटो के छाप दे।
प्रश्न 1. उपर्युक्त गद्यांश में लेखक जीवन भर क्या न करने को कहता है ?
उत्तर. लेखक जीवन भर के फटे हुए जूते पहनकर फोटो न खिंचाने के लिए कहता है।प्रश्न 2. ‘तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते’ का अभिप्राय लिखिए।
उत्तर. इस पंक्ति का अभिप्राय है-सच्चाई या कमी को छिपाकर दूसरों के सामने दिखावा करने का महत्त्व न जानना।प्रश्न 3. लेखक के जूते का कौन-सा भाग फटा हुआ है ?
उत्तर. लेखक के जूते के अंगूठे के नीचे तले वाला भाग फटा हुआ है।
7. तुम्हारी यह व्यंग्य-मुस्कान मेरे हौसले पस्त कर देती है। क्या मतलब है इसका ? कौन सी मुस्कान है यह ?
नहीं, मुझे लगता है माधो औरत के कफन के चंदे की शराब पी गया। यही मुस्कान मालूम होती है। मैं तुम्हारा जूता फिर देखता हूँ। कैसे फट गया यह, मेरी जनता के लेखक ?
प्रश्न 1.व्यंग्य-मुस्कान से लेखक के हौंसले पस्त होने का क्या कारण रहा होगा ?
उत्तर. प्रेमचंद की तरह लेखक सादे और विद्रोही नहीं थे। अतः प्रेमचन्द की व्यंग्य भरी मुस्कान को देखकर उनके हौंसले पस्त होगें ।प्रश्न 2.होरी, हलकू, सुजान भगत, माधो- का प्रेमचंद से क्या सम्बन्ध था और वे किसका प्रतिनिधित्व करते दिखाई देते हैं ?
उत्तर. ये सभी प्रेमचंद की कहानियों के पात्र थे। ये सभी निर्धन और मजदूर वर्ग का प्रतिनिधित्व करते दिखाई देते हैं।प्रश्न 3. ‘मेरी जनता के लेखक’ का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर. ‘मेरी जनता के लेखक’ से तात्पर्य जनता की समस्याओं पर लिखने वाले लेखक से है।
8. तुम समझौता कर नहीं सके। क्या तुम्हारी भी वही कमजोरी थी, जो होरी को ले डूबी, वहीं ‘नेम’धरम’ वाली कमजोरी ? ‘नेम-धरम’ उसकी भी जंजीर थी। मगर तुम जिस तरह मुस्करा रहे हो, उससे लगता है कि शायद ‘नेम-धरम’ तुम्हारा बंधन नहीं था, तुम्हारी मुक्ति थी।
प्रश्न 1. लेखक ने यहाँ किस जंजीर का उल्लेख किया है ? उसका क्या आशय है ?
उत्तर. लेखक ने यहाँ ‘नेम-धरम’ की जंजीर का उल्लेख किया है। इसका आशय है-नियम और धर्म के अनुसार जीवन जीना फिर चाहे उसके लिए अपना सर्वस्व लुट जाए।प्रश्न 2. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने प्रेमचंद के किस पात्र का उल्लेख किया है ? उसे उसकी कौन-सी कमजोरी ले डूबी ?
उत्तर. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने प्रेमचंद के प्रसि( उपन्यास गोदान के ‘होरी’ नामक पात्र का उल्लेख किया है। उसे उसकी ‘नेम-धरम’ (नियम और धर्म की) की कमजोरी ले डूबी।प्रश्न 3. यहाँ कौन समझौता नहीं कर सका ?
उत्तर. यहाँ ‘प्रेमचंद’ समझौता नहीं कर सके।
9. मैं समझता हूँ। तुम्हारी अंगुली का इशारा भी समझता हूँ और व्यंग्य-मुस्कान भी समझता हूँ। तुम मुझ पर या हम सभी पर हँस रहे हो उन पर जो अंगुली छिपाए और तलुआ घिसाए चल रहे हैं, उन पर जो टीले को बरकाकर बाजू से निकल रहे हैं। तुम कह रहे हो-मैंने तो ठोकर मार-मारकर जूता फाड़ लिया, अंगुली बाहर निकल आई, पर पाँव बचा रहा और मैं चलता रहा, मगर तुम अंगुली को ढाकने की चिन्ता में तलुए का नाश कर रहे हो। तुम चलोगे कैसे ? मैं समझता हूँ। तुम्हारे जूते की बात समझता हूँ, अंगुली का इशारा समझता हूँ, तुम्हारी व्यंग्य-मुस्कान समझता हूँ।
प्रश्न 1. लेखक प्रेमचंद की किन-किन बातों को समझने का दावा करता है ?
उत्तर. लेखक प्रेमचंद के अंगुली के इशारे, व्यंग्य मुस्कान और फटे जूते का रहस्य आदि बातों को समझने का दावा करता है।प्रश्न 2. प्रेमचंद के फटे जूते आज के लोगों को कौन-सा संदेश देते हैं ?
उत्तर. प्रेमचंद के फटे जूते आज के लोगों को दिखावा छोड़कर समझदारी तथा सादगी से जीवन जीने का संदेश देते हैं।प्रश्न 3. लेखक के अनुसार प्रेमचंद किन लोगों पर हँस रहे हैं ?
उत्तर. लेखक के अनुसार प्रेमचंद दिखावा पसंद लोगों पर हँस रहे हैं।
10. मुझे लगता है, तुम किसी सख्त चीज को ठोकर मारते रहे हो। कोई चीज जो परत-पर-परत सदियों से जम गई है, उसे शायद तुमने ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया। कोई टीला जो रास्ते पर खड़ा हो गया था, उस पर तुमने अपना जूता आजमाया। तुम उसे बचाकर, उसके बगल से भी तो निकल सकते थे। टीलों से समझौता भी तो हो जाता है। सभी नदियाँ पहाड़ थोड़े ही फोड़ती हैं, कोई रास्ता बदलकर, घूमकर भी तो चली जाती है।
प्रश्न 1. प्रेमचंद के साहित्य के विषय क्या-क्या हैं ?
उत्तर. समाज की रूढ़ियों और कुप्रथाओं का पर्दाफाश करना तथा उन पर लगातार प्रहार करना प्रेमचंद के साहित्य के विषय हैं।प्रश्न 2. ‘टीलों से समझौता भी तो हो सकता है’ यहाँ टीलों का अर्थ क्या है ?
उत्तर. यहाँ टीलों का अर्थ है μ समाज को खोखला करने वाली सदियों पुरानी कुरीतियाँ।प्रश्न 3. ‘मुझे लगता है’ वाक्य में ‘मुझे’ शब्द किसके लिए आया है ?
उत्तर. यहाँ ‘मुझे’ शब्द लेखक हरिशंकर परसाई के लिए आया है।
प्रेमचंद के फटे जूते पाठ को इस वीडियो की मदद से समझें।
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