प्रश्न 1. ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।उत्तर: मुअन-जो-दड़ो नगर मानव निर्मित छोटे-मोटे टीलों पर आबाद था। यह सिंधु घाटी सभ्यता के परिपक्व दौर का सबसे उत्वृळष्ट नगर है। यह नगर अपने दौर में सभ्यता का वेळन्द्र था।
सम्भवः यह इस क्षेत्र की राजधानी था। यह नगर भले ही आज खंडहरों में बदल गया है किन्तु इसके स्वरूप का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। सिंधु घाटी की वास्तु कला एवं नगर नियोजन, धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मिट्टी के बने बर्तन और उन पर चित्रित मनुष्य, पशु, पक्षी और वनस्पतियों बेजोड़ हैं। इसी प्रकार नाना प्रकार के खिलौने, केश विन्यास, आभूषण, सुघड़ अक्षरों वाली लिपि भी उनवेळ सौन्दर्य बोध को व्यक्त करती है।
प्रश्न 2. महाकुण्ड में अशुद्ध जल को रोकने की क्या व्यवस्था थी? ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर:
• महाकुण्ड के तल में पक्की ईंटों का जमाव।
• ईंटों की चिनाई।
• नाली द्वारा दूषित जल की निकासी की व्यस्था।
व्याख्यात्मक हल- महाकुण्ड में अशुद्ध जल को रोकने हेतु महाकुण्ड के तल में पक्की ईंटों की चिनाई कराई गई थी तथा दूषित जल की निकासी की व्यवस्था नाली द्वारा की गई थी।
प्रश्न 3. मुअन-जो-दड़ो का शाब्दिक अर्थ क्या है? यह कहाँ स्थित है?
उत्तर: मुअन-जो-दड़ो का शाब्दिक अर्थ है- मुर्दों का टीला। यह वर्तमान में पाकिस्तान के सिन्धु प्रान्त में स्थित है और पुरातत्व की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। हड़प्पा और मोहन-जो-दड़ो सिन्धु घाटी सभ्यता के दो सबसे पुराने नियोजित शहर माने जाते हैं।
प्रश्न 4. मुअन-जो-दड़ो की सभ्यता को लो-प्रोफाइल सभ्यता क्यों कहा जाता है?
उत्तर: लेखक ने ‘मुअन-जो-दड़ो’ की सभ्यता को लो-प्रोफाइल सभ्यता इसलिए कहा है क्योंकि संसार के अन्य पुरातात्त्विक महत्त्व के स्थलों की खुदाई करने पर राजतंत्र को प्रदर्शित करने वाले महल, धर्म की ताकत दिखने वाले पूज्य स्थल, मूर्तियाँ तथा पिरामिड मिले हैं किन्तु ‘मुअन-जो-दड़ो’ की खुदाई में कोई चीज इस प्रकार की नहीं मिली जो किसी राजसत्ता या धर्म के प्रभाव को दर्शाती हो। यहाँ जो चीजें मिली हैं उनका आकार भी छोटा है।
प्रश्न 5. सिन्धु घाटी सभ्यता में किन-किन ड्डषि उपजों के उत्पादन के प्रमाण प्राप्त होते हैं? ‘अतीत के दबे पाँव’ के आधार पर लिखिए।
उत्तर: सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग खेती भी करते थे।प्रसिद्ध इतिहासकार इरफान हबीव के अनुसार यहा के लोग कपास, गेहूँ, जौ, सरसो और चने की खेती करते थे।इसके साथ ही यहाँ ज्वार, बाजरा और रागी की उपज भी होती थी। यही नहीं अपितु खजूर, खरबूजा, अंगूर भी यहाँ उगाया जाता था। झाड़ियों से बेर जमा करते थे। कपास को छोड़कर अन्य सबके बीज यहाँ मिले हैं।
प्रश्न 6. कैसे कहा जा सकता है कि मुअन-जो-दड़ो की सभ्यता में आडम्बर नहीं था ? उदाहरण भी दीजिए
उत्तर: मुअन-जो-दड़ो की सभ्यता में खुदाई में जो चीजें मिली हैं वे किसी राजसत्ता या धर्म के प्रभाव को नहीं दर्शातीं। मिट्टी के बर्तन, सामान्य घर यहाँ मिले हैं, राजमहल तथा भव्य मंदिर नहीं। तलवारें, मुकुट भी यहाँ नहीं मिले जो इस बात का प्रमाण है कि यह सभ्यता आडम्बर विहीन थी।
प्रश्न 7. ‘सिन्धु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का महत्त्व ज्यादा था’-टिप्पणी कीजिए
उत्तर: सिंधु घाटी की सभ्यता का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि उस काल के लोगों में कला या सुरुचि का महत्त्व अधिक था। सिंधु घाटी की वास्तु कला एवं नगर नियोजन, धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मिट्टी के बने बर्तन और उन पर चित्रित मनुष्य, पशु, पक्षी और वनस्पतियाँ बेजोड़ हैं। इसी प्रकार नाना प्रकार के खिलौने, केश विन्यास, आभूषण, सुघड़ अक्षरों वाली लिपि भी उनके सौन्दर्य बोध को व्यक्त करती है। आम जनता के प्रयोग की सुन्दर वस्तुओं में जनता की सुरुचि सम्पन्नता, कलाप्रियता एवं सौन्दर्य बोध व्यक्त होता है।
प्रश्न 8. ‘सिंधु घाटी सभ्यता महान किन्तु आडम्बर विहीन थी’ इस कथन पर सोदाहरण प्रकाश डालिए
उत्तर: सिंधु घाटी सभ्यता साधन सम्पन्न थी किन्तु उसमें आडम्बर नहीं था। स्नान घर, पूजा स्थल, सामुदायिक भवन मुअन-जो-दड़ो नगर की सभ्यता को साधन सम्पन्न बनाते थे। यहाँ खेती, पशुपालन, व्यापार, उद्योग-धंधे सब कुछ होता था किन्तु यहाँ न तो भव्य राजप्रासाद थे, न संत महात्माओं की समाधियाँ और न भव्य राजमुकुट या हथियार। इससे पता चलता है कि मुअन-जो-दड़ो की सभ्यता महान होते हुए भी आडम्बर विहीन थी।
प्रश्न 9. ‘कला की दृिष्ट से हडप़्पा सभ्यता सम्पन्न थी’ पाठ के आधार पर सादेाहरण स्पष्ट कीजिए
उत्तर: कला की दृष्टि से हड़प्पा सभ्यता समृ( थी। यहाँ के लोग कलापूर्ण एवं सुरुचि सम्पन्न थे। धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मृदभांड और उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पतियाँ, पशु-पक्षी, सुनिर्मित मोहरें, खिलौने, केश विन्यास, आभूषण, सुन्दर अक्षरों वाली लिपि उनके कला प्रेम को प्रकट करती हैं। नगर नियोजन एवं गृह निर्माण कला का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था।यहाँ के अजायबघर में ताँबे, काँसे, सोने की बनी सुइयां भी हैं जो कशीदाकारी के काम आती होंगी। नर्तक और नरेश की मूर्ति पर जो आकर्षक ‘गुलकारी’ ;कपड़ों पर फूल बनानाद्ध वाला दुशाला है, वह उनकी कलाप्रियता का प्रमाण है। खुदाई में हाथी दाँत और तांबे के ‘सुए’ (बड़ी सुइयां या सूजे भी मिले हैं जो संभवतः दरियाँ बुनने के काम आते होंगे। यद्यपि ‘दरी’ का कोई साक्ष्य नहीं मिला है।
प्रश्न 10. मुअन-जो-दड़ो की नगर योजना आज के सेक्टर मार्का काॅलोनियो के नीरस नियोजन की अपेक्षा ज्यादा रचनात्मक है कृटिप्पणी कीजिए अथवा मुअन-जो-दड़ो का अनूठा नगर नियोजन आधुनिक नगर-नियोजन के प्रतिमान नगरों में बेहतर क्यों है ? उदाहरण के आधार पर स्पष्ट कीजिए
उत्तर: मुअन-जो-दड़ो की नगर योजना बेमिसाल है। यहाँ की सड़कों और गलियों के विस्तार को, यहाँ के खण्डहरों को देखकर जाना जा सकता है। यहाँ की हर सड़क सीधी है या फिर आड़ी। इसके शहर से जुड़ी हर चीज अपने सही स्थान पर है। इसके लिए हम चबूतरे के पीछे गढ़ उच्च वर्ग की बस्ती, महाकुंड स्नानागार, ढकी नालियाँ, अन्न कोठार, सभा भवन, घरों की बनावट, भव्य राज प्रासादों का, समाधियों का न होना आदि चीजें इस प्रकार व्यवस्थित हैं कि यह कहा जा सकता है कि यहाँ के शहर नियोजन को लेकर सामाजिक सम्बन्धों तक में ये सभ्यता बेजोड़ थी। आजके सेक्टर-मार्का कालोनियों के नीरस नियोजन इसके सामने कुछ भी नहीं हैं।
प्रश्न 11. मुअन-जो-दड़ों ताम्रकाल के शहरों में सबसे उत्कृष्ट क्यों था? ‘अतीत के दबें पाँव’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
कैसे कहा जा सकता है कि मुअन-जो-दड़ो शहर ताम्रकाल के शहरों में सबसे बड़ा और उत्ड्डष्ट है ?
उत्तर: यह सच है कि मुअन-जो-दड़ो शहर ताम्रकाल के शहरों में सबसे बड़ा और उत्ड्डष्ट शहर था। मुअन-जो-दड़ो पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में था। यह सुनियोजित शहर था। इस शहर की सड़कों और गलियों में आज भी घूमा जा सकता है। यहाँ की सभ्यता व संस्ड्डति विकसित थी। यहाँ चैड़ी सड़कें, जल निकासी की उचित व्यवस्था, सर्फाइ का प्रबन्ध, अन्नागार, महाकुण्ड आदि अनेक ऐसी चीजें हैं जो किसी आधुनिक शहर में नहीं पाई जातीं। वहाँ सबसे ऊँचे चबूतरे पर बौ( स्तूप हैं। इसका चबूतरा 25 फुट ऊँचा है। चबूतरे पर भिक्षुओं के कमरे हैं। यह बौ( स्तूप भारत का सबसे पुराना लैण्ड स्केप है।
प्रश्न 12. सिन्धु सभ्यता साधन-सम्पन्न थी, पर उसमें भव्यता का आडम्बर नहीं था, कैसे ? अथवा ‘अतीत में दबे पाँव’ के आधार पर प्रतिपादित कीजिए कि सिन्धु सभ्यता में भव्यता का आडम्बर नहीं था।
उत्तर: सिंधु सभ्यता का शहर मोहनजोदड़ों बड़ा नगर नहीं था, परन्तु साधनों और व्यवस्थाओं के आधार पर पुरातत्ववेत्ताओं ने उसे सबसे समृद्धि सम्पन्न भी माना। सिंधु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का महत्त्व ज्यादा था। वास्तु कला या नगर नियोजन ही नहीं धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मृद-भाँड़ आदि कला सिद्ध तकनीक सिद्ध जाहिर करता है। एक पुरातत्ववेत्ता के मुताबिक सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौन्दर्य-बोध है, जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था इसलिए सिंध ुसभ्यता साधन सम्पन्न होने पर भी उसमें भव्यता का आडम्बर नहीं था।
प्रश्न 13. मुअन-जो-दड़ो कहाँ है ? यह क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर: मुअन-जो-दड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में है। यह एक सुनियोजित शहर था। इस शहर की सड़कों और गलियों में आज भी घूमा जा सकता है। यहाँ की सभ्यता व संस्ड्डति विकसित थी। यहाँ चैड़ी सड़कें, निकासी की उचित व्यवस्था, सफाई का प्रबन्ध, अन्नागार, महाकुंड आदि अनेक ऐसी चीजें हैं जो किसी आधुनिक शहर में भी नहीं पाई जातीं।
प्रश्न 14. ‘अतीत के दबे पाँव’ के आधार पर ‘महाकुण्ड’ की रचनागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए
उत्तर: लेखक ने मुअन-जो-दड़ों की यात्रा की है। उसने वहां एक महाकुंड देखा जो स्तूप के टीले के पास था। इसके दाईं तरफ एक लम्बी गली है। इस महाकुण्ड की गली का नाम दैव मार्ग रखा गया है। लेखक के अनुसार यह संयोग भी हो सकता है कि इस पवित्र कुण्ड का दैवीय नाम रखा जाए। महाकुण्ड के बारे में यह भी माना जाता है कि सिन्धु घाटी के लोग इसी कुंड में सामूहिक स्नान भी किया करते थे।
प्रश्न 15. मुअन-जो-दड़ो की बड़ी बस्ती के बारे में बताइए
उत्तर: लेखक ने मुअन-जो-दड़ों की बड़ी बस्ती के बारे में बताया है। यहाँ घरों का आकार बड़ा होता था। इन घरों के आँगन भी खुले होते थे। इन घरों की दीवारें ऊँची और मोटी होती थीं। जिन घरों की दीवारें मोटी थीं, वे शायद दो मंजिले होते थे। कुछ दीवारों में छेद भी हैं जो यह दर्शाते हैं कि दूसरी मंजिलों को उठाने के लिए शायद शहतीरों के लिए जगह छोड़ी जाती होगी। सभी घर पक्की ईंटों के हैं। लगभग एक आकार की ईंटें इन घरों में लगाई गई हैं। यहाँ पत्थर का प्रयोग अधिक नहीं हुआ है। कहीं-कहीं नालियों को अनगढ़ पत्थर से ढँका गया है।
प्रश्न 16. सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है जो राजपोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था। ऐसा क्यों कहा गया ?
उत्तर: सिन्धु-सभ्यता के अन्तर्गत सिन्धु घाटी के लोगों में कला या सुरुचि का महत्त्व अधिक था। वास्तु कला या नगर-नियोजन ही नहीं, धातु और पत्थर की मूर्तियाँ, मृद्-भाँड़ पर चित्रित आड्डतियाँ, नर-नारी, वनस्पति, पशु-पक्षी की छवियाँ, निर्मित मुहरें, उन पर बारीकी से उत्कीर्ण आड्डतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सबसे ऊपर सुघड़ अक्षरों का लिपि रूप सिंधु-सभ्यता को तकनीक सिद्ध से ज्यादा कला सिद्ध प्रकट करता है। जो धर्म पोषित न होकर समाज पोषित था। इसलिए सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है जो धर्म पोषित नहीं थी ऐसा इसीलिए कहा गया, क्योंकि पुरात्तत्व वेत्ताओं ने खुदाई में प्राप्त सामग्रियों, अभिलेखों के आधार पर समाज के लोगों की रुचियों को देखकर उपर्युक्त वाक्य कहा था।