प्रश्न (क); भक्तिन को पिता की मृत्यु का समाचार देर से क्यों मिला?
(ख) सास द्ववारा भक्तिन को विदा करने को अप्रत्याशित अनुग्रह क्यों कहा गया है?
(ग) पंख लगाने आरै झड़ने के भाव को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्रश्न (क) विमाता ने भक्तिन को उसके पिता की मृत्यु का समाचार देर से क्यों भेजा?
(ख) भक्तिन की सास ने पिता की मृत्युछिपाने के लिए क्या किया?
(ग) गाँव पहुँचते ही भक्ति को क्या पता चला जो पहले नहीं पता चल पाया था?
अथवा
प्रश्न (क) विमाता ने कौन-सा समाचार देर से भेजा और क्यों?
(ख) सास ने लक्ष्मी को क्या कहकर मायके भजेा आरै क्यों?
(ग) लक्ष्मी का मायका आने का उत्साह कब और कैसे ठण्डा पड़ा?
उत्तर; (क) सौतेली माता को संपत्ति विभाजन का भय।
पिता का भक्तिन पर प्रेम की वजह से विमाता को भक्तिन से द्वेष।
व्याख्यात्मक हल- अपने ईष्र्यालु स्वभाव के कारण भक्तिन की विमाता ने भक्तिन के पिता की गम्भीर बीमारी और रोग का समाचार भक्तिन की ससुराल तब भेजा जब उसके पिता की मृत्यु हो चुकी थी। वह नहीं चाहती थी कि भक्तिन अपने पिता की सम्पत्ति में हिस्सा माँगे।
उत्तर-(ख) सास द्वारा प्यार से नैहर भेजना। हर बात पर लड़ने वाली सास प्यार से तैयार कर के भेजने के लिए तैयार थी।
व्याख्यात्मक हल- भक्तिन की सास दिन रात उसे ताने और गालियां देती थी जब वह भक्तिन को प्यार से पहना, ओढ़ाकर अच्छी तरह तैयार कर मायके भेजने को कहती है तो यह अप्रत्याशित अनुग्रह ही था।
उत्तर-(ग) पंख लगाने से भक्तिन के मन को उत्साह मिलता है। पिता की मृत्यु की सूचना से उत्साह का शोक में बदलना-पंख झड़ने के समान।
व्याख्यात्मक हल- ‘पंख लगाने’ से तात्पर्य भक्तिन के मन को उत्साह मिलना अर्थात् वह बड़े उत्साह से अपने मायके पहुँचती है पर जैसे ही उसे पिता की मृत्यु का समाचार मिलता है उसके पंख झड (उत्साह ठंडा होना) जाते हैं।
अथवा
उत्तर- (क)
उत्तर- (ख)
उत्तर- (ग)
अथवा
उत्तर- (क) भक्तिन की विमाता स्वभाव से ईष्र्यालु और लालची थी इसलिए जानबूझ कर उसने भक्तिन के पिता की गम्भीर बीमारी और रोग का समाचार उसकी ससुराल में तब भेजा जब उनकी ;पिताजीद्ध मृत्यु हो चुकी थी क्योंकि विमाता नहीं चाहती थी कि वह अपने पिता की सम्पत्ति में हिस्सा माँगे।
(ख) भक्तिन (लक्ष्मी) की सास ने अपनी बहु (लक्ष्मी) को यह कहकर मायके भेजा कि बहुत दिन से वह अपने मायके(नैहर) नहीं गई है तो जाकर देख आवे। सास ने यह समाचार उसे नहीं दिया कि उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है। उसे डर था कि यह रोना-पीटना करके अपशकुन करेगी।
(ग) लक्ष्मी (लछमिन, भक्तिन) बड़े उत्साह के साथ गाँव (मायके) में पहुँची पर गाँव की सीमा में पहुँचते ही उसका उत्साह ठण्डा पड गया जब उसे यह बात बार-बार सुनने को मिली- ‘हाय लछमिन अब आई’ और जो भी उसे देखता सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देखता क्योंकि उसके पिता मर चुके थे।
भक्तिन और मेरे बीच सेवक-स्वामी संबंध है, यह कहना कठिन हैऋ क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता जो इच्छा होने पर भी सेवक को अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक नहीं सुना गया जो स्वामी से चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हँस दे। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अँधेरे-उजाले और आँगन में फूलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना। वे जिस प्रकार एक अस्तित्व रखते हैं, जिसे सार्थकता देने के लिये ही हमें सुख-दुःख देते हैं, उसी प्रकार भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के लिये परिचय के लिये ही मेरे जीवन को घेरे हुए है।
प्रश्न- (क) भक्तिन और लेखिका के पारस्परिक संबंधों को सेवक-स्वामी संबंध क्यों नहीं कहा जा सकता?
(ख) प्रकाश-अंधकार का उदाहरण क्यों दिया गया है? भाव स्पष्ट कीजिए।
(ग) गद्यांश के आधार पर महादेवी और भक्तिन के स्वभाव की एक-एक विशेषता सोदाहरण लिखिए।
उत्तर: (क) महादेवी चाह कर भी उसे नहीं निकाल पातीं, और निकाले जाने का आदेश पा कर भी भक्तिन नहीं जाती थी। दोनों के बीच भावनात्मक संबंध।
व्याख्यात्मक हल- भक्तिन और महादेवी का संबंध सेविका और स्वामिनी का नहीं है। भक्तिन ने स्वयं को महादेवी की संरक्षिका मान लिया है। इसलिए वह उसे छोड़ने की सोच भी नहीं पाती। महादेवी ने भी उसे इस रूप में स्वीकार कर लिया है। अतः दोनों में र्कोइ और ही अधिकार पूर्ण आत्मीयता का संबंध विकसित हो चुका हैं।
उत्तर: (ख)
व्याख्यात्मक हल- प्रकाश-अंधकार का उदाहरण भक्तिन के लिए दिया गया है। जिस प्रकाश अँधरे-उजाले का अपना अलग स्थान और महत्व होता है, उसी प्रकार भक्तिन का भी घर में एक अलग स्थान है। वह घर को सुख देने वाली सेविका ही नहीं है, अपितु अपने सुख-दुःख दोनों के साथ जीवित रहने की अधिकारिणी है
उत्तर: (ग)
व्याख्यात्मक हल- महादेवी वर्मा ने भक्तिन को स्वयं की सेविका के स्थान पर अपनी अभिभाविका बनाया। वही भक्तिन के भी मन में महादेवी के प्रति विशेष आदर, समर्पण और विनय है। उसका सेवाभाव अनुकरणीय है
सेवक धर्म में हनुमानजी से स्पर्धा करने वाली भक्तिन अंजना की पुत्री न होकर एक अनामधन्य गोपालिका की कन्या है- नाम है लछमिन अर्थात लक्ष्मी। पर जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बंध सकी। वैसे तो जीवन में प्रायः सभी कोअपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है, पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योकि वह अपना समृद्धि सूचक नाम किसी को बताती नहीं।
प्रश्न- (क) भक्तिन के संदर्भ में हनुमान जी का उल्लेख क्यों हुआ है?
(ख) भक्तिन के नाम और उसके जीवन में क्या विरोधाभास था।
(ग) वैसे तो जीवन में प्रायः सभी को अपने- अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है... कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- (क) जिस प्रकार हनुमान जी स्वामी भक्त थे, वैसे ही लक्ष्मी ‘भक्तिन’ भी स्वामी भक्त थी।
व्याख्यात्मक हल- हनुमान जी को सेवकधर्म को सर्वाधिक निष्ठा से निभाने वाला राम भक्त माना जाता है। महादेवी जी भक्तिन के सेवा भाव से इतनी प्रभावित थी कि उन्होंने इसी सद्गुण के कारण भक्तिन की तुलना हनुमान जी से करते हुए उसे हनुमान जी की प्रतिस्पर्धी माना है।
उत्तर- (ख) भक्तिन का नाम-लक्ष्मी था।
लेकिन जीवन घोर अभाव में बीता। विरोधाभास उसके नाम का था।
व्याख्यात्मक हल- भक्तिन का असली नाम लछमिन था। वह इस नाम को सबसे छिपाती थी, क्योंकि इस समृद्धि-सूचक नाम जैसा उसके जीवन में कुछ था ही नहीं। अतः उसे नाम पर शर्म महसूस होती होगी। इसीलिए वह किसी को अपना नाम नहीं बताती थी।
उत्तर- (ग) जीवन में नाम के साथ विरोधाभास देखने को मिलता है। सेठ-गरीब का नाम, अमीरचंद- गरीब, गरीबदास अमीर, इसी प्रकार लक्ष्मी भी।
व्याख्यात्मक हल- सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है। नाम और गुणो में काफी अंतर देखा जाता है। नाम शांति पर झगड़ालू। इसी प्रकार नाम लक्ष्मी पर घोर दरिद्रता का जीवन जीने वाली।
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1. क्या महादेवी वर्मा की कविताएं पुरूषों के बारे में हैं? |
2. महादेवी वर्मा की कविताओं में कौन-कौन से सामाजिक मुद्दे उठाए गए हैं? |
3. क्या महादेवी वर्मा ने कभी नाटक लिखा है? |
4. महादेवी वर्मा का जन्म कब हुआ था? |
5. महादेवी वर्मा को किस साहित्यिक सम्मान से नवाजा गया था? |
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