1. वह रूप का जादू है, पर जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू को भी मर्यादा है। जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। कहीं हुई उस वक्त जेब भरी तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है।
प्रश्न- (क) किस जादू की चर्चा हो रही है? उसे जादू क्यों कहा गया है?
(ख) चुंबक और लोहे का उदाहरण क्यों दिया गया है? स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस जादू के असर में मन की भूमिका क्या है?
उत्तर- (क) प्रस्तुत गद्यांश में बाजार के जादू की चर्चा हो रही है। बाजार के जादू में रूप और आकर्षण का बोलबाला होता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को बाजार में उपस्थित सभी वस्तुएँ आवश्यक लगने लगती है इसीलिए इसे जादू कहा गया है।
(ख) लेखक ने बाजार के आकर्षण की तुलना चुंबक से की है उन्होंने चुंबक और लोहे का उदाहरण देते हुए कहा है कि जिस प्रकार चुंबक के पास लोहा खिंचा चला आता है उसी प्रकार सजे-धजे बाजार को देखकर ग्राहक उसकी ओर आकर्षित होते है और बाजार की ओर खींचे चले आते हैं।
(ग) बाजार के जादू के असर में ‘मन’ की अहम् भूमिका होती है। यह जादू व्यक्ति के मन-मस्तिष्क पर उसी प्रकार प्रभाव डालता है, जिस प्रकार चुंबक का जादू लोहे पर चलता है। जब व्यक्ति की जेब भरी हो और मन खाली हो, तो जादू का असर खूब चलता है। जेब खाली और मन भरा न होने पर भी उसका जादू चल जाता है।
अथवा
प्रश्न- (क) बाजार का जादू ‘आँख की राह’ किस प्रकार काम करता है?
(ख) क्या आप भी ‘बाजार के जादू’ में फंसे हैं? अपना अनुभव लिखिए जब आप न चाहने पर भी सामान खरीद लेते हैं?
(ग) बाजार का जादू किन लोगों पर अधिक असर करता है और क्यों?
उत्तर- (क) (i) जादू हमेशा आँखों के माध्यम से काम करता है।
(ii) बाजार में सुंदर-सुंदर वस्तुओं को देखकर उन्हें खरीदने के लिए आकृषित/लालायित हो जाते हैं।
(ख) विद्यार्थी द्वारा दिया मुक्त उत्तर जिसमे उसकेअनुभव और प्रस्तुति आदि पर अंक दिए जाएँ।
(ग) कमजोर इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति पर जादू असर अधिक करता है क्योंकि दृढ निश्चय न होने के कारण वह बाजार से ज्यादा प्रभावित हो जाते हैं।
अथवा
प्रश्न- (क) बाजार के जादू से क्या तात्पर्य है?
(ख) बाजार का जादू कब अधिक प्रभावी होता हैआरै क्यों?
(ग)जादू का प्रभाव समाप्त हाने पर क्या अनुभव होता है?
उत्तर- (क) बाजार के जादू का तात्पर्य है- बाजार का आकर्षण एवं सम्मोहन। बाजार में सभी वस्तुएँ हमें अपनी ओर खींचती हैं-उसी तरह जैसे चुम्बक लोहे कोअपनी ओर खींचता है।
(ख) बाजार का जादू तब अधिक प्रभावी होता है जब जेब भरी हो और मन खाली हो।
(ग) बाजार के जादू का प्रभाव समाप्त हो जाने पर व्यक्ति को यह पता चलता है कि बाजार से र्लाइ र्गइ चीजे आराम में मददगार नहीं हैं, बल्कि खलल (बाधा) ही डालती हैं।
2. इस सद्भाव के ह्नास पर आदमी आपस में भाई-भाई और सुह्नद और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं और आपस में कोरे ग्राहक और बेचक की तरह व्यवहार करते हैं। मानो दोनों एक-दूसरे को ठगने की घात में हों। एक की हानि में दूसरे को अपना लाभ दीखता हैं और यह बाज़ार का, बल्कि इतिहास का सत्य माना जाता है। ऐसे बाज़ार को बीच में लेकर लोगों में आवश्यकताओं का आदान-प्रदान नहीं होता बल्कि शोषण होने लगता है, तब कपट सफल होता है, निष्कपट शिकार होता है। ऐसे बाज़ार मानवता के लिए विडंबना हैं।
प्रश्न- (क) सद्भाव का ह्नास कब होता है? उसके क्या परिणाम होते हैं?
(ख) स्वभाव में ग्राहक-विव्रेळता व्यवहार क्यों आ जाता है? इसके लक्षण क्या हैं?
(ग) ‘ऐसे बाज़ार को’ कथन से लेखक का क्या तात्पर्य है? वे मानवता वेळ लिए विडंबना क्यों हैं?
उत्तर- (क) बाज़ार के बाज़ारूपन के बढ़ने से कपट भाव बढ़ता है और कपट भाव के बढ़ने से सद्भाव का ह्नास होता है। सद्भाव में ह्नास होने से ग्राहक और विकेता के संबंध व्यावसायिक रह जाते हैं, और वे दोनों एक की हानि में दूसरा अपना लाभ देखने लगता है।
(ख) बाज़ार से बाज़ारूपन बढ़ता है और कपट भाव से आपस में उचित व्यवहार में कमी आ जाती है और ग्राहक और विकेता के संबंध केवल व्यावसायिक रह जाते हैं। वे दोनों एक-दुसरे को ठगने की घात में होते हैं। एक की हानि में दुसरे को अपना लाभ दिर्खाइ देने लगता है, ऐसे में मनुष्य न तो बाज़ार का स्वयं लाभ उठा पाता है और न ही बाजार को सच्चा लाभ दे सकता है।
(ग) ‘ऐसे बाज़ार को’ कथन से लेखक का तात्पर्य कपट बाज़ार से है। कपट बाज़ार में बाज़ार की सार्थकता समाप्त हो जाती है। लोगों में आवश्यकताओं का आदान प्रदान नहीं होता, बालक शोषण होने लगता है
3. बाजार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं, अपनी ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति-शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाजार को देते हैं। न तो वे बाजार से लाभ उठा सकते हैं, न उस बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं।
प्रश्न- (क) बाजार को सार्थकता कौन देता है? कैसे?
प्रश्न- (ख) धखरीदने की शक्ति का घमडं बाजार को क्या पद्रान करता है
प्रश्न- (ग) ‘बाजार की सार्थकता’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: (क)
उत्तर- (ख)
उत्तर: (ग)
4. उस बल को नाम जो दोऋ पर वह निश्चय उस तल की वस्तु नहीं है जहाँ पर संसारी वैभव फलता-फूलता है। वह कुछ अपर जाति का तत्त्व है। लोग स्पिरिचुअल कहते हैं आत्मिक, धार्मिक, नैतिक कहते हैं मुझे योग्यता नहीं कि मैं उन शब्दों में अंतर देखूँ और प्रतिपादन करूँ। मुझमें शब्द से सरोकार नहीं। मै विद्वान नही कि शब्दो पर अटकूँ। लेकिन इतना तो है कि जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नही है। बल्कि यदि उस बल को सच्चा बल मानकर बात की जाए, तो कहना होगा कि संचय की तृष्णा और वैभव की चाह में व्यक्ति की निर्बलता ही प्रभावित होती है। निर्बल ही धन की ओर झुकता है। वह अबलता है। वह मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय है।
प्रश्न- (क) ‘अपर जाति का तत्त्व’ किसे कहा गया है और क्यों?
प्रश्न- (ख) लेखक ने अबलता किसे माना है?
प्रश्न- (ग) ‘निर्बल ही धन की ओर झुकता है।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: (क)
(ख)
(ग)
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