1. हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं, पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बाते करते हैं, पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर, अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति?
प्रश्न- (क) लेखक को क्यों लगता है कि आज हम देश के लिये कुछ नहीं कर सकते?
प्रश्न- (ख) भ्रष्टाचार को लेकर हमारे देश में क्या विसंगति है?
प्रश्न- (ग) सुविधाओं की बरसात से भी गरीब को कोई लाभ नहीं मिलता, इस बात को लेखक ने कैसे कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: (क) समाज में स्वार्थपरता की अधिकता। त्याग, समर्पण, सहानभूति जैसे मूल्यों का अभाव। व्याख्यात्मक हल: (क) कत्र्तव्यबोध का अभाव, केवल अधिकारी के प्रति सजगता, स्वार्थ सिद्धि की प्रमुखता, त्याग का अभाव लेखक के मन को कचोटता है। लेखक कहता है कि हम दुसरो के भ्रष्टाचार की बातें तो करते हैं पर अपने पर विचार नहीं करते कि हमने देश के लिए क्या किया। इसी स्थिति के कारण लेखक को लगता है कि आज हम देश के लिए कुछ नहीं करते सिवाय बात करने के।
उत्तर: (ख)
व्याख्यात्मक हल:- (ख) हम दूसरों के भ्रष्टाचार की बातें मजे से करते हैं पर कभी यह नहीं सोचते कि हम भी कहीं-न-कहीं भ्रष्टाचार में फँसे हैं।
उत्तर: (ग)
व्याख्यात्मक हल: (ग) इस बात को लेखक ने ‘पानी झमाझम बरसता है पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे रह जाते हैं?’ के माध्यम से कहा है, क्योंकि बहुत बड़ी धनराशि गरीबों के लिए योजनाओं में निर्धारित की जाती है। देश-विदेश से खूब पैसा आता है। पर गरीब जनता गरीब ही रह जाती है। उन योजनाओं का धन गरीबों तक नहीं पहुँचता है।
2. कुछ देर.......... फल मिलता है।
प्रश्न
(क) जीजी कुछ देर क्यों चुप रह गई?
(ख) जीजी के अनुसार त्याग स्वरूप क्या है?
(ग) ‘बिना त्याग के दान नहीं होता।’ जीजी के इस कथन का उदाहरण देकर आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: (क)
व्याख्यात्मक हल- लेखक का यह तर्क सुनने के उपरान्त कि हमारे ऋषि-मुनियों ने दान का महत्त्व तो बताया है पर पानी की बूँद-बूँद के लिए तरसने के क्षणों में पानी की बरबादी के लिए नहीं कहा। जीजी कुछ देर चुप रह गई।
(ख)
व्याख्यात्मक हल- जीजी के अनुसार दान त्याग से ही किया जाता है परन्तु पर्याप्त धन-सम्पत्ति में से कुछ देना त्याग नहीं, अपनी जरूरत को पीछे रखकर पर हितार्थ कुछ देना त्याग है।
(ग)
व्याख्यात्मक हल- इस कथन का आशय यह है कि अपनी जरूरतों को कम करके दूसरों की भलाई के लिए विभिन्न कष्ट स्वयं उठाकर कुछ देना।
3. कभी-कभी कैसे-कैसे संदर्भों में ये बातें मन को कचोट जाती हैं, हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें कहते है पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नही बन रहे हैं? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति?
प्रश्न: (क) लेखक के मन को क्या बातें कचोटती हैं और क्यों?
प्रश्न: (ख) गगरी तथा बैल के उल्लेख से लेखक क्या कहना चाहता है?
प्रश्न: (ग) भ्रष्टाचार की चर्चा करते समय क्या आवश्यक है और क्यों?
उत्तर: (क) कर्तव्यबोध का अभाव, केवल अधिकारों के प्रति सजगता, स्वार्थ की प्रमुखता के कारण।
व्याख्यात्मक हल- आजादी मिलने के पचास वर्ष के पश्चात् लेखक सोचता है कि हम देश के लिए क्या कर रहे हैं? राजनीतिक स्वतंत्रता मिलने के बाद भी हमे अपने देश के संस्कारो की समझ अभी तक नहीं आई है। हमारी स्थिति माँगने की तो हर समय बनी रहती है, किन्तु त्याग करने से हम पीछे हट जाते है। लेखक कहता है कि आज आदमी अधिक स्वार्थी हो गया है। ये बातें लेखक के मन को कचोटती हैं। क्योंकि हम चारों ओर फैल रहे भ्रष्टाचार को लेकर बातें तो करते हैं ,लेकिन कभी यह नहीं देखते कि कहीं हम भी तो भ्रष्टाचार के शिकार नहीं बन रहे हैं? यदि हम सोचें तो एक स्तर पर हम सभी स्वयं को उसी भ्रष्टाचार का अंग बना हुआ पाते हैं।
उत्तर: (ख) कल्याणकारी सरकारी योजनाएँ एवं सहायताएँ, सुपात्रों को उनका लाभ न मिलना, व्यवस्था पक्ष तथा सामान्य लोग।
व्याख्यात्मक हल- गगरी यहाँ प्रतीक है- कल्याणकारी सरकारी योजनाओं एवं सरकारी सहायताओं की। ‘बैल पियासे रह जाते है ’ का तात्पर्य है कि सरकारी योजनाओ एवं सहायताओ का लाभ सुपात्रों को नहीं मिल पाता। इस प्रकार गगरी-सरकारी व्यवस्था की और बैल-सुपात्रों का प्रतीक है।
उत्तर: (ग) स्वयं के बारे में चिंतन क्योंकि शुरुआत व्यक्ति विशेष से ही होती है।
व्याख्यात्मक हल- भ्रष्टाचार की चर्चा करते समय स्वयं के बारे में चिंतन करना आवश्यक है कि कहीं हम अपने दायरे में भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे, क्योंकि शुरुआत व्यक्ति विशेष से ही होती है।
4. मैं कुछ नहीं बोला। फिर जीजी बोलीं। ‘‘तू इसे पानी की बरबादी समझता है पर यह बरबादी नही है। यह पानी का अघ्र्य चढ़ाते हैं, जो चीज मनुष्य पाना चाहता है उसे पहले देगा नही तो पाएगा कैसे? इसीलिए ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है।’’
‘‘ऋषि-मुनियों को काहे बदनाम करती हो जीजी? क्या उन्होंने कहा था कि जब आदमी बूँद-बूँद पानी को तरसे तब पानी कीचड़ में बहाओ।’’
कुछ देर चुप रही जीजी, फिर मठरी मेरे मुँह में डालती र्हुइ बोली, ‘‘देख बिना त्याग के दान नहीं होता। अगर तेरे पास लाखों करोड़ों रुपये है और उसमे से तू दो-चार रुपये किसी दे दे तो यह क्या त्याग हुआ। ........ वह होता है।
प्रश्न: (क) लेखक किन पर पानी फेंखने को पानी की बरबादी कह रहा है और क्यों?
(ख) ‘अघ्र्य’ क्या होता है? लेखक की जीजी पानी के फेंखने को अघ्र्य क्यों समझती है?
(ग) लेखक किस तर्क के आधार पर अध्र्य की निरर्थकता सिद्ध करता है?
उत्तर: (क) लेखक बच्चो की इन्दर सेना पर स्त्रियो द्वारा पानी फेंकने को पानी की बरबादी कह रहा है, क्योंकि वह सोचता था कि जब चारो आरे पानी की इतनी कमी है तब लागे घर में इतनी कठिर्नाइ से इकट्ठा करके रखा हुआ पानी बाल्टी भर-भर कर इन बच्चो पर क्यों फंकेते है? यह तो पानी की बरबादी है
(ख) देवताओं को जल चढ़ाना ही अध्र्य होता है। इससे देवता प्रसन्न हाकेर जल देते है मनुष्य को कछु पाने के लिए, पहले देना पडत़ा है ऐसा लेखक की जीजी का विश्वास था।
(ग) लेखक कहता है कि यह तो पानी की बरबादी है और अंधविश्वास है, पानी को इस प्रकार नष्ट करने से कभी देवता खुश नहीं हो सकते।
5. पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति?
प्रश्न: (क) गद्यांश के पहले प्रश्न के उत्तर में बताइए कि निजी तौर पर आप अपने देश के लिए क्या करते हैं?
(ख) क्या आप लेखक के विचारों से सहमत हैं? आपके विचार से यह स्थिति कब और कैसे बदल सकती हैं?
अथवा
आपके विचार में यह स्थिति कब बदलेगी और कैसे बदलेगी?
(ग) देश की वर्तमान स्थिति के बारे में लेखक के विचारों को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘आखिर कब बदलेगी यह स्थिति’ वाक्यांश में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: (क) लेखक सोचता हैं कि हम सब देश के लिए क्या करते हैं? देश से अपेक्षा तो रखते हैं परन्तु उसके लिए त्याग करने को तैयार नहीं हैं। हमें बस अपने स्वार्थ की चिन्ता रहती है, ये सभी बातें लेखक के मन को कचोटती हैं।
(ख) हम लेखक के विचारों से पूर्णतया सहमत हैं। आज हर प्राणी का एकमात्र लक्ष्य अपना स्वार्थ ही है। जब सभी प्राणी त्याग की भावना से देश-सेवा एवं प्राणी मात्र की सेवा करें तो यह स्थिति बदल सकती है और देश की प्रगति हो सकती है।
(ग) आज देश की हालत यह है कि अरबों-खरबों की राशि न जाने कहाँ गुम हो रही है? योजनाएँ तो बनती हैं, पैसे की व्यवस्था भी की जाती है, पर भ्रष्टाचार सारी राशि को निगल जाता है। गाँवों की हालत वहीं की वहीं रह जाती है। क्या इस स्थिति में कभी कोई परिवर्तन आयेगा, लेखक की चिन्ता यही है।
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1. धर्मवीर भारती कौन थे? |
2. धर्मवीर भारती की रचनाएं कौन-कौन सी हैं? |
3. धर्मवीर भारती के द्वारा लिखी गई "गुनाहों का देवता" कहानी की कहानी क्या है? |
4. "विरासत की जंग" नाटक किस विषय पर आधारित है? |
5. धर्मवीर भारती की रचनाओं का महत्व क्या है? |
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