1. सियारों का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज कभी- कभी निस्तब्धता को अवश्य भंग कर देती थी। गाँव की झोंपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज़ ‘हरे राम! हे भगवान!’ की टेर अवश्य सुनाई पड़ती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकारकर रो पड़ते थे। पर इससे रात्रि की निःस्तब्धता में विशेष बाधा नहीं पड़ती थी।
कुत्तों में परिस्थिति को ताड़ने की एक विशेष बुद्धि होती है। वे दिन-भर राख के घूरों पर गठरी की तरह सिकुड़कर, मन मारकर पड़े रहते थे। संध्या या गंभीर रात्रि को सब मिलकर रोते थे।
रात्रि अपनी भीषणताओ के साथ चलती रहती और उसकी सारी भीषणता को, ताल ठोककर, ललकारती रहती थी-सिर्फ पहलवान की ढोलक।
प्रश्न: (क) रात्रि की निःस्तब्धता का क्या कारण था? निःस्तब्धता की भयानकता किन कारणों से और भयानक बन रही थी?
(ख) बच्चो की ‘माँ-माँ’ की पुकार से रात्रि की निःस्तब्धता में बाधा क्यों नहीं पड़ती थी?
(ग) ‘कुत्तो में परिस्थिति को ताड़नेकी एक विशेष बुद्धि थी।
उत्तर: (क) गाँव में महामारी फैली हुई थी। रात का सन्नाटा था महामारी की विभीषिका ने उसे और डरावना बना दिया था। गाँव की झोपड़ियों से कराहने की आवाज और कै करने की आवाज, सियारों के क्रन्दन तथा पेचक की डरावनी आवाजें रात की निःस्तब्धता को और अधिक भयानक बना रही थीं।
(ख) बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकार कर रो रहे थे, परन्तु उनकी करुण पुकार से रात्रि की निःस्तब्धता में कोई विशेष बाधा नहीं पड़ रही थी, क्योंकि उनकी पुकार में जोश नही था करुणा थी, दुःख भरा दर्द था, जिसे सुनकर दिल पसीजता था।
(ग) कुत्तों में परिस्थिति को ताड़ने की एक विशेष बुद्धि होती है। वे दिन भर राख के घूरों पर गठरी की तरह सिकुड़कर, मन मारकर पड़े रहते थे। संध्या या गंभीर रात्रि को सब मिलकर रोते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि कुत्तों और बिल्लियों को पहले ही अनहोनी की आशंका हो जाती है, अतः वे लोगों को सचेत करने के लिए रोते हैं।
2. लुट्टन के माता-पिता उसे नौ वर्ष की उम्र में ही अनाथ बनाकर चल बसे थे। सौभाग्यवश शादी हो चुकी थी, वरना वह भी माँ-बाप का अनुसरण करता। विधवा सास ने पाल-पोस कर बड़ा किया। बचपन में वह गाय चराता, धारोष्ण दूध पीता और कसरत किया करता था। गाँव के लोग उसकी सास को तरह-तरह की तकलीफ़ दिया करते थे लुट्टन के सिर पर कसरत की धुन लोगों से बदला लेने के लिए ही सवार र्हुइ थी। नियमित कसरत ने किशोरावस्था में ही उसके सीने और बाँहों को सुडौल तथा मासल बना दिया था जवानी में कदम रखते ही वह गाँव में सबसे अच्छा पहलवान समझा जाने लगा। लोग उससे डरने लगे और वह दोनों हाथों को दोनों ओर 45 डिग्री की दूरी पर फैलाकर, पहलवानों की भाँति चलने लगा। वह कुश्ती भी लड़ता था।
एक बार वह ‘दंगल देखने श्यामनगर मेला गया। पहलवानों की कुश्ती और दाँव-पेंच देखकर उससे नहीं रहा गया। जवानी की मस्ती और ढोल की ललकारती र्हुइ आवाज ने उसकी नसो में बिजली उत्पन्न कर दी। उसने बिना कुछ सोचे समझे दंगल में ‘शेर के बच्चे’ को चुनौती दे दी।
प्रश्न:(क) लुट्टन सिंह पहलवान का बचपन किस प्रकार व्यतीत हुआ?
(ख) लुट्टन सिंह की शारीरिक बनावट किस प्रकार की थी?
(ग) लुट्टन सिंह ने श्यामनगर के मेले में किसे चुनौती दी और क्यों ?
उत्तर: (क)लुट्टन सिंह पहलवान के माता-पिता का उसके बचपन में ही देहान्त हो गया। अल्पायु में शादी कर देने के कारण उसकी विधवा सास ने ही पाल-पोसकर कर बड़ा किया। वह बचपन में गाय चराता, ताजा दूध पीता और नियमित व्यायाम करता था।
(ख) लुट्टन सिंह बचपन से ही नियमित व्यायाम करता था। फलस्वरूप किशोरावस्था में ही उसके सीने और बाँहें सुडौल और माँसल बन र्गइ थीं। वह अपने दोनों हाथो को पैंतालीस डिग्री की दूरी पर फैलाकर पहलवानों की तरह चलता था।
(ग) लुट्टन सिंह बचपन से ही पहलवानी प्रड्डति का था। श्यामनगर के मेले में जवानी की मस्ती और ढोल की ललकारती आवाज ने उसकी नसों में जोश भर दिया। फलस्वरूप उसने पंजाब के पहलवान ‘शेर के बच्चे’ के नाम से मशहूर चाँदसिंह पहलवान को चुनौती दे डाली।
3. विजयी लुट्टन कूदता-फाँदता, ताल-ठोंकता सबसे पहले बाजे वालों की ओर दौड़ा और ढोलों को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। फिर दौड़कर उसने राजा साहब को गोद मेंउठा लिया। राजा साहब के कीमती कपडे मिट्टी में सन गए। मैनेजर साहब ने आपत्ति की-‘‘हें-हें.अरे-रे!’’ किंतु राजा साहब ने स्वयं उसे छाती से लगाकर गद्गद् होकर कहा-‘‘जीते रहो, बहादुर! तुमने मिट्टी की लाज रख ली।’’
पंजाबी पहलवानों की जमायत चाँद सिंह की आँखें पोंछ रही थी। लुट्टन को राजा साहब ने पुरस्कृत ही नहीं किया अपने दरबार में सदा के लिए रख लिया। तब से लुट्टन राज-पहलवान हो गया और राजा साहब उसे लुट्टन सिंह कहकर पुकारने लगे। राज-पंडितों ने मुँह बिचकाया- ‘‘हुजूर! जाति का...सिंह..!’’
प्रश्न: (क) कुश्ती में विजयी होकर लुट्टन ने क्या किया?
(ख) उसके व्यवहार पर किसने आपत्ति की और क्यों?
(ग) राजा ने लुट्टन के साथ क्या व्यवहार किया?
उत्तर: (क) कुश्ती में विजयी होकर लुट्टन ने ताल-ठोंककर, ढोलवालो को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया और फिर दौड़कर उसने राजा साहब को गोद में उठा लिया।
(ख) उसके इस प्रकार के व्यवहार पर मैनेजर साहब ने आपत्ति की, क्योंकि इससे राजा साहब के कीमती कपड़े मिट्टी में सन गए थे।
(ग) राजा ने लुट्टन को छाती से लगा लिया और उसे आशीर्वाद देते हुए कहा था- ‘‘जीते रहो, बहादुर! तुमने मिट्टी की लाज रख ली।’’
4. दोनों ही लड़के राज-दरबार के भावी पहलवान घोषित हो चुके थे। अतः दोनों का भरण-पोषण दरबार से ही हो रहा था। प्रतिदिन प्रातःकाल पहलवान स्वयं ढोलक बजा-बजाकर दोनों से कसरत करवाता। दोपहर में, लेटे-लेटे दोनों को सांसारिक ज्ञान की भी शिक्षा देता- ‘‘समझे! ढोलक की आवाज पर पूरा ध्यान देना। हाँ, मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है, समझे! ढोल की आवाज के प्रताप से ही मैं पहलवान हुआ। दंगल में उतरकर सबसे पहले ढोलों को प्रणाम करना, समझे!’’ ........... ऐसी ही बहुत-सी बातें वह कहा करता। फिर मालिक को कैसे खुश रखा जाता है, कब कैसा व्यवहार करना चाहिए, आदि की शिक्षा वह नित्य दिया करता था।
प्रश्न: (क) पहलवान के बेटों का भरण-पोषण राज-दरबार से क्यों होता था?
(ख) पहलवान अपने पुत्रों को क्या शिक्षा दिया करता था?
(ग) आज गाँवों में अखाड़े समाप्त हो रहे हैं, इसके क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर: (क) पहलवान के बेटो का भरण-पोषण राज दरबार से इसलिए होता था क्योंकि उसके दोनों बेटे राज दरबार के भावी पहलवान घोषित हो चुके थे।
(ख) पहलवान अपने पुत्रों को यह शिक्षा दिया करता था कि ‘‘ढोल की आवाज पर पूरा ध्यान देना। मेरा गुरु कोई पहलवान नही यही ढोल है। दंगल में उतरकर सबसे पहले इस ढोल को प्रणाम करना।’’ मालिक को कैसे खुश रखा जाता है उसके साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए आदि।
(ग) आज गाँवो में अखाडे इसलिए समाप्त हो रहे है क्योंकि पहलवानों को संरक्षण देकर उनका भरण-पोषण करने वाले सामंत, जमींदार समाप्त हो गए हैं। साथ ही अब टी.वी., वीडियो, मोबाइल के युग में पहलवानी का शौक रखने वाले युवक नहीं रहे हैं।
5. रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस ख्याल में ढोलक बजाता हो, किन्तु गाँव के अर्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बूढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पन्दन-शक्ति शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज में न तो बुखार हटाने का र्कोइ गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूँदते समय कोई तकलीफ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे।
प्रश्न: (क) रात्रि की विभीषिका कैसी थी? ढोलक किस रूप में उसको चुनौती देती थी?
(ख) दंगल का दृश्य किस-किसमें किन रूपों में उपयोगी होता था और क्यों?
(ग) ‘औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन’ तथा ‘स्पन्दन-शक्ति- शून्य स्नायुओं’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए
उत्तर: (क) गाँव मेमहामारी फैल चुकी थी। गाँव के लोग एक-दूसरे को दिलासा देते हुए मुर्दों को उठाकर बिना कफन केही नदी में डाल आते। रात अत्यंत भीषण डरावनी हो उठती, किन्तु पहलवान संध्या से सुबह तक ढोलक बजाता रहता। ढोलक की वह आवाज गाँव के अर्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में ऐसी संजीवनी भरती कि उन्हें लगता कि दंगल का दृश्य उनके सामने साकार हो गया हो। भले ही ढोलक की आवाज में कोई औषधि नही थी किन्तु वह मरते हुए प्राणियों की पीड़ा को अवश्य कम कर देती।
(ग) (i) ‘औषधि-उपचार-पथ्य विहीन’ का अर्थ है कि गाँव में फैली महामारी से ग्रस्त लोगो को न तो कोई औषधि मिल पा रही थी, न उनका र्काइे उपचार हो रहा था आरै न ही उन्हें र्काइे पथ्य (रागेी का भाजेन) ही मिल पा रहा था।
(ii) स्पन्दन शक्ति शून्य स्नायुऔ का अर्थ है कि महामारी से ग्रस्त ग्रामीणों की रोगों से लड़ने की क्षमता शून्य हो चुकी थी। ऐसा लगता था कि उनके स्नायुओं (नाड़ियों) में स्पन्दन (हिलना-डुलना या कम्पन) भी शेष नहीं है।
6. रात्रि की विभीषिका को सिर्फ़ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो, किंतु गाँव के अर्धमृत, औषधि-उपचार पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बूढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य, नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाश शक्ति को रोकने की शक्ति ही, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूँदते समय कोई तकलीफ़ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे।
प्रश्न: (क) गद्यांश में रात्रि की किस विभीषिका की चर्चा की गई है? ढोलक उसको किस प्रकार की चुनौती देती थी?
(ख) किस प्रकार के व्यक्तियो को ढोलक से राहत मिलती थी? यह राहत कैसे थी?
(ग) ‘दंगल के दृश्य से लेखक का क्या अभिप्राय है? यह दृश्य लोगों पर किस तरह का प्रभाव डालता था ?
उत्तर: (क) गद्यांश में लेखक ने हैजा और मलेरिया को रात्रि की विभीषिका कहा है, क्योंकि उन दिनों गाँव में प्रतिदिन दो-तीन लाशें उठने लग गई थीं। रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकार कर चुनौती देती रहती थी।
(ख) गाँव र्के अमृत, औषधि-उपचार, पथ्य विहीन लोगों में ढोलक संजीवनी शक्ति भरती थी। बूढ़े-बच्चों-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन शक्ति शून्य स्नायु में भी बिजली दौड़ जाती थी।
(ग) ‘दंगल के दृश्य’ से लेखक का अभिप्राय है कि दंगल में जैसे दर्शक पहलवानों के दांव-पेंच देखकर उत्साहित होते हैं, उसी प्रकार मरते हुए प्राणियों में मृत्यु से न डरने का साहस पैदा होता था।
अथवा
प्रश्न: (क) गाँव की रात्रि की भीषणताओं को स्पष्ट कीजिए।
(ख) पहलवान की ढोलक किस तरह रात्रि की भीषणता को ललकारती थी ?
(ग) समूचे गाँव को मृत क्यों कहा गया है ?
उत्तर: (क) यहाँ गाँव की रात्रि की विभीषिका का वर्णन किया गया है जिसमें रोज कितने ही लोग महामारी की चपेट में आकर मर जाते थे। कितने ही लोग हैजे और मलेरिया से ग्रस्त होकर खाँसते-कूँखते हुए दम तोड़ देते थे।
(ख) पहलवान की ढोलक रात्रि की भीषणता को ललकारती र्हुइ सबकी आँखों के सामने दंगल का उत्साहपूर्ण दृश्य ला देती थी।इससे चाहे रोगियो को दवा न मिलती हो, परन्तु उत्साह अवश्य मिलता था।
(ग) गाँव में मलेरिया और हैजा फैला हुआ था। महामारी की चपेट में आकर लोग रोज मर रहे थे। चारों ओर मौत का सन्नाटा था। इसी कारण अँधेरी रात भी आँसू बहाती प्रतीत होती थी। यही कारण था कि समूचे गाँव को मृत कहा गया है।
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1. कौन हैं फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ और उनका काम क्या है? |
2. कौन-कौन से शौक रेणु के छात्रों के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं? |
3. रेणु किस विषय पर अपनी रचनाएँ लिखते हैं? |
4. रेणु के लेखन का महत्व क्या है? |
5. रेणु के लेखन के कुछ प्रमुख कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? |
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