1. भारतीय परंपरा में व्यक्ति के अपने पर हँसने, स्वयं को जानते-बूझते हास्यास्पद बना डालने की परंपरा नहीं के बराबर है। गाँव या लोक संस्ड्डति में तब भी वह शायद हो, नगर-सभ्यता में तो वह थी ही नहीं। चैप्लिन का भारत में महत्व यह है कि वह ‘अंग्रेज जैसे’ व्यक्तियों पर हँसने का अवसर देते हैं। चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्मत्त, आत्मविश्वास से लबरेज, सफलता, सभ्यता, संस्ड्डति तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ अपने वज्रादपि कठोराणि ‘अथवा’ ‘मृदूनि कुसुमादपि’ क्षण में दिखलाता है।
प्रश्न. (क) अनुच्छेद में किसकी चर्चा है? वह क्यों प्रसिद्ध है?
प्रश्न. (ख) ‘‘अपने आप को जानते-बूझते हास्यास्पद बना डालन ेकी परम्परा नही ंक ेबराबर है।’’ इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न. (ग) चार्ली अपने पर कब हँसता है?
उत्तर: (क)
उत्तर: (ख)
उत्तर: (ग)
व्याख्यात्मक हल- चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब स्वयं को गर्वोन्मत, आत्मविश्वास से भरा-पूरा, सफलता, सभ्यता, संस्ड्डति तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्शिाली क्षण में दिखलाता है।
2.भारतीय कला और सौन्दर्य शास्त्र को कई रसों का पता है, उनमें से कुछ रसों का किसी कलाकृति में साथ-साथ पाया जाना श्रेयस्कर भी माना गया है, जीवन में हर्ष और विषाद आते-जाते हैं। यह संसार की सारी सांस्कृति परम्पराओं को मालूम है, लेकिन करुणा का हास्य में बदल जाना एक ऐसे रस सिद्धांत की मांग करता है जो भारतीय परंपराओं में नहीं मिलता। ‘रामायण’ तथा ‘महाभारत’ में जो हास्य है वह ‘दूसरों’ पर है और अधिकांशतः वह पर-संताप से प्रेरित है। जो करुणा है वह अक्सर सद्व्यक्तियों के लिये और कभी-कभार दुष्टों के लिए है।
प्रश्न: (क) कलाकृति में रसों के होने से क्या अभिप्राय है?
प्रश्न: (ख) ‘जीवन में हर्ष और विषाद आते-जाते रहते हैं’-पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न: (ग)पर-संताप से प्रेरित होने का क्या अर्थ है?
उत्तर: (क)
उत्तर: (ख)
3. यदि यह वर्ष चैप्लिन की जन्मशती का न होता तो भी चैप्लिन के जीवन का एक महत्वपूर्ण वर्ष होता क्योंकि आज उनकी पहली फ़िल्म ‘मेकिंग ए लिविंग’ के 75वर्ष पूरे होते हैं। पौन शताब्दी से चैप्लिन की कला दुनिया के सामने है और पाँच पीढ़ियों को मुग्ध कर चुकी है। समय भूगोल और संस्कृतियों की सीमाओं से खिलवाड करता हुआ चार्ली आज भारत के लाखों बच्चों को हँसा रहा है जो उसे अपने बुढ़ापे तक याद रखेंगे। पश्चिम में तो बार-बार चार्ली का पुनर्जीवन होता ही है, विकासशील दुनिया में जैसे-जैसे टेलीविजन और वीडियो का प्रसार हो रहा है, एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग नए सिरे से चार्ली को घड़ी ‘खाने’ की कोशिश करते हुए देख रहा है। चैप्लिन की ऐसी कुछ फिल्में या इस्तेमाल न की गई रीलें भी मिली हैं जिनके बारे में कोई जानता न था। अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी़ कुछ कहा जाएगा।
प्रश्न: (क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) चैप्लिन के जन्मशती का वर्ष महत्त्वपूर्ण क्योें है?
(ग) चार्ली को लोग कब तक याद रखेंगे?
उत्तर: (क)
(ख) चैप्लिन के लिए जन्मशती का यह वर्ष महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन उनकी पहली फिल्म ‘मेकिंग ए लिविंग’ के 75 वर्ष पूरे हुए हैं वे पाँच पीढ़ियों को मुग्ध कर चुके हैं।
(ग) चार्ली समय, भूगोल तथा संस्ड्डतियों को पार करते हुए लाखों बच्चों को हँसा रहे हैं और वे उसे बुढ़ापे तक याद रखेंगे।
4. चैप्लिन भीड का वह बच्चा है जो इशारे से बतला देता है कि राजा भी उतना ही नंगा है जितना मै हूँ और भीड हँस देती है। र्कोइ भी शासक या तंत्र जनता का अपने ऊपर हँसना पसंद नहीं करता। एक परित्यक्ता, दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा होना, बाद में भयावह गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना, साम्राज्य, औद्योगिक क्रांति, पूँजीवाद तथा सामंतशाही से मगरूर एक समाज द्वारा दुत्कारा जाना-इन सबसे चैप्लिन को वे जीवन-मूल्य मिले जो करोड़पति हो जाने के बावजूद अंत तक उनमें रहे।
प्रश्न: (क) लोगों को हँसाने के लिए चार्ली किस प्रकार की भूमिका निभाता है?
(ख) चार्ली को अपने जीवन में किन-किन विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा?
(ग) लेखक ने चार्ली को किस प्रकार की विशिष्टता के कारण श्रेष्ठ कलाकार सिद्ध करने की कोशिश की है?
उत्तर: (क) लोगों को हँसाने के लिए चार्ली इस प्रकार का अभिनय करता है कि समाज के सभी वर्गों के लोग उसे देखकर हॅसने लग जाते हैं। वह राजा के दोषो का भी उसी प्रकार अभिनय करता है, जिस प्रकार स्वयं के बारे में। उसका उद्देश्य केवल स्वस्थ मनोरंजन करना है।
(ख) चार्ली की माँ एक तलाकशुदा और दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री थी, उन्हें गरीबी के दिन व्यतीत करने पड़े। समाज से भी उन्हें तिरस्ड्डत होना पड़ा। इस प्रकार उन्हें अपने जीवन में अनेक विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।
(ग) लेखक के अनसुार चार्ली सिनमेा जगत के एक श्रेष्ठ हास्य कलाकार थे उन्होंने जीवन में आई प्रतिकूल परिस्थितिओ को अपनी अमीरी के दिनों में भी नहीं भुलाया। उन्होंने सभी प्रकार के हास्य अभिनय किए।
5. भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र को कई रसों का पता है, उनमें से कुछ रसों का किसी कलाकृति में साथ-साथ पाया जाना श्रेयस्कर भी माना गया है, जीवन में हर्ष और विषाद आते रहते हैं यह संसार की सारी सांस्कृतिक परंपराओं को मालूम है, लेकिन करुणा का हास्य में बदल जाना एक ऐसे रस-सिद्धांत की माँग करता है जो भारतीय परंपराओं में नहीं मिलता। ‘रामायण’ तथा ‘महाभारत’ में जो हास्य है वह ‘दूसरों’ पर है और अधिकांशतः वह परसंताप से प्रेरित है। जो करुणा है वह अकसर सद्व्यक्त्यिों के लिए और कभी-कभार दुष्टो के लिए है। संस्कृत नाटको में जो विदूषक है वह राजव्यक्त्यिों से कुछ बदतमीजियाँ अवश्य करता है, किंतु करुणा और हास्य का सामंजस्य उसमे भी नही है। अपने ऊपर हॅसने और दुसरो में भी वैसा ही माद्वा पैदा करने की शक्ति भारतीय विदूषक में कुछ कम ही नजर आती है।
प्रश्न: (क) भारतीय साहित्यशास्त्र में वर्णित नौ रसों के नाम लिखिए।
(ख) लेखक के अनुसार चार्ली का हास्य एवं करुणा, रामायण तथा महाभारत से किस प्रकार भिन्न है?
(ग) लेखक ने रामायण और महाभारतकालीन करुणा के विषय में क्या कहा है?
उत्तर: (क) भारतीय साहित्यशास्त्र में वर्णित नौ रस निम्नलिखित हैं- शृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, अद्भुत, वीभत्स और शांत।
(ख) लेखक के अनुसार चार्ली का हास्य और करुणा स्वयं पर निर्भर है किंतु रामायण तथा महाभारत में हास्य दूसरों पर हैं और करुणा अधिकतर दुसरो की पीड़ा से ही प्रेरित है।
(ग) लेखक ने रामायण और महाभारतकालीन करुणा के विषय में कहा है कि वह प्रायः सद्व्यक्तियों के लिए ही है किन्तु दुष्टों के लिए कभी-कभी ही है।
6. चार्ली पर कई.....................................बनी हुई है।
प्रश्न: (क) चार्ली के विषय में फिल्म समीक्षको की क्या राय है?
(ख) लेखक के अनुसार सिांत और कला के बीच क्या सम्बन्ध है?
(ग) चार्ली के अभिनय और समीक्षा के विषय मे दर्शक क्या विचार करते हैं?
उत्तर: (क) चार्ली के विषय में फिल्म समीक्षकों की राय थी कि उसके बारे में कुछ नया लिखा जाना बहुत कठिन है। वे अपना सिर धुन कर रह जाते है।
(ख) लेखक के अनुसार सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते अपितु कला स्वयं अपने सिद्धांत लेकर आती है बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है।
(ग) चार्ली के हास्य अभिनय को देखकर दर्शक हँस-हँसकर अपना पेट दुखा लेते हैं। उन्हें मैल ओटिंगर या जेम्स एजी की समीक्षाओं से कोई मतलब नही है
7. एक होली का त्योहार छोड़ दें तो भारतीय परंपरा में व्यक्ति के अपने पर हँसने, स्वयं को जानते-बूझते हास्यास्पद बना डालने की परंपरा नहीं के बराबर है। गाँवों और लोक-संस्कृति में तब भी वह शायद हो, नागर-सभ्यता में तो वह थी नहीं। चैप्लिन का भारत में महत्त्व यह है कि वह ‘अंग्रेजों जैसे’ व्यक्तियों पर हँसने का अवसर देते हैं। चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्बेन्मत्त, आत्म-आत्म-विश्वास से लबरेज़, सफलता, सभ्यता, संस्कृति तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ, अपने ‘वज्रादपि कठोराणि’ अथवा ‘मृदूनि कुसुमादपि’ क्षण में दिखलाता है।
प्रश्न: (क) होली का त्योहार किस रूप में क्या अवसर प्रदान करता है?
(ख) अपने पर हँसने के सन्दर्भ में लोक-संस्ड्डति एवं नगर-सभ्यता में मूल अन्तर क्या था और क्यों?
(ग) ‘अंगे्रजों जैसे व्यक्तियों’ वाक्यांश में निहित व्यंग्यार्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: (क) होली का त्योहार ही एक ऐसा अपवाद है, जहाँ व्यक्ति स्वयं पर हँसता है, अपने को हास्यास्पद बना लेता है। अन्यथा भारत में अपने पर हँसने की परम्परा नहीं के बराबर है।
(ख) लेखक कहता है कि गावों और लोक सांस्कृति में तब भी अपने पर हॅसने की कुछ परंपरा है किन्तु नगर-सभ्यता में तो अपने पर हॅसने का लेशमात्र भी अवसर नही रहता है
(ग) ‘अंग्रेजों जैसे व्यक्तियों’ वाक्यांश में निहित व्यंग्यार्थ श्रीमती, शासकों अथवा उन अधिकारियों से है अर्थात्
चार्ली बड़ों का अभिनय करते समय भी अपने पर हँसता है, अपने को हास्यास्पद स्थिति में डालता है।
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1. कला और मानविकी विषय के बारे में आप किस तरह से अध्ययन कर सकते हैं? |
2. कला और मानविकी के अध्ययन क्यों महत्वपूर्ण हैं? |
3. कला और मानविकी में कौन-कौन से उपयोगी कौशल प्राप्त किए जा सकते हैं? |
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