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प्रत्यभिग्यानम् NCERT Solutions | संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9) PDF Download

Q.1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(क) भटः कस्य ग्रहणम् अकरोत् ? -
(ख) अभिमन्युः कथं गृहीतः आसीत् ?
(ग) भीमसेनेन बृहन्नलया च पृष्टः अभिमन्युः किमर्थम् उत्तरं न ददाति?
(घ) अभिमन्युः स्वग्रहणे किमर्थम् वञ्चितः इव अनुभवति?
(ङ) कस्मात् कारणात् अभिमन्युः गोग्रहणं सुखान्तं मन्यते?
उत्तरम्-

(क) भटः अभिमन्योः ग्रहणम् अकरोत्।
(ख) अभिमन्युः बाहुभ्यां गृहीतः आसीत्।
(ग) अभिमन्युः कोपवशात् उत्तरं न ददाति।
(घ) यतः सः अशस्त्रे जने न प्रहरति।
(ङ) यतः गोग्रहणेन तस्य पितरः दर्शिताः।

Q.2. अधोलिखित वाक्येषु प्रकटितभावं चिनुत-
(क) भोः को नु खल्वेषः? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न पीड़ितः अस्मि। (विस्मयः, भयम, जिज्ञासा)
(ख) कथं कथं! अभिमन्यु माहम्। (आत्मप्रशंसा, स्वाभिमानः, दैन्यम्)
(ग) कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छसे? (लज्जा, क्रोधः, प्रसन्नता)
(घ) धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते मम तु भुजौ एव प्रहरणम्। (अन्धविश्वासः, शौर्यम, उत्साहः)
(ङ) बाहुभ्यामाहृतं भीमः बाहुभ्यामेव नेष्यति। (आत्मविश्वासः, निराशा, वाक्संयमः)
(च) दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दर्शिताः। (क्षमा, हर्षः, धैर्यम)।
उत्तरम्-

(क) विस्मयः।
(ख) स्वाभिमानः।
(ग) क्रोधः।
(घ)  शौर्यम्।
(ङ) आत्मविश्वासः।
(च)  हर्षः।

Q.3. यथास्थानं रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत-
(क) खलु + एष:    = _______
(ख) बल + _______ + अपि    =  बलाधिकेनापि।
(ग) विभाति + _______     = बिभात्युमावेषम्।
(घ) _______ + एनम्     = वाचालयत्वेनम्।
(ङ) रुष्यति + _______     = रुष्यत्येष।
(च) त्वमेव + एनम्    =
(छ) यातु + _______    = यात्विति
(ज) _______ + इति।    = धनञ्जयायेति
उत्तरम्-

(क) खलु + एष:    = खल्वेषः।
(ख) बल + अधिकेन + अपि    =  बलाधिकेनापि।
(ग) विभाति + उमावेशम्    = बिभात्युमावेषम्।
(घ) वाचालयतु + एनम्    = वाचालयत्वेनम्।
(ङ) रुष्यति + एष:    = रुष्यत्येष।
(च) त्वमेव + एनम्    = त्वमेवैनम्। 
(छ) यातु + इति    = यात्विति
(ज) धनञ्जयाय + इति।    = धनञ्जयायेति

Q.4. अधोलिखितानि बचनानि कः कं प्रति कथयति-
कः              कं प्रति

हन्नला    भीमसेनम्
यथा- आर्य, अभिभाषणकौतूहलं मे महत्बृ
(क) कथमिदानीं सावज्ञमिव मा हस्यते
(ख) अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम्
(ग) पूज्यतमस्य क्रियतां पूजा
(घ) पुत्र! कोऽयं मध्यमो नाम
(ङ) शान्तं पापम्! धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते

उत्तरम्-

 (क) अभिमन्युः बृहन्नलाम्।
 (ख) अभिमन्युः भीमसेनम्। 
 (ग) उत्तरः  राजानम्।
 (घ) भगवान्  अभिमन्युम्।
 (ङ) भीमसेनः अभिमन्युम्। 


Q.5. अधोलिखितानि स्यूलानि सर्वनामपदानि कस्मै प्रयुक्तानि-
(क) वाचलयतु एनम् आर्यः ।।
(ख) किमर्थ तेन पदातिना गृहीतः।
(ग) कथं न माम् अभिवादयसि।
(घ) मम तु भुजौ एव प्रहरणम्।
(ङ) अपूर्व इव ते हर्षो ब्रूहि केन विस्मितः?
उत्तरम्-

(क) अभिमन्युम्।
(ख). भीमसेनेन।
(ग) राजानम्।
(घ) भीमसेनस्य।
(ङ) भटस्य।

Q.6. श्लोकानाम् अपूर्णः अन्वयः अधोदत्तः। पाठमाधृत्यं रिक्तस्थानानि पूरयत-
(क) पार्थ पितरम् मातलं ________ च उद्दिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य  ________ युक्तः ।
(ख) कण्ठश्लिष्टेन ________ जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असा  कृत्वा (भीमेन) कृष्णः अतदहतां नीतः।
(ग) रुष्यता ________ रमे। ते क्षेपेण न रुष्यामि, किं. ________ अहं नापराद्धः, कथं (भवान तिष्ठति, यातु इति।
(घ) पादयोः निग्रहोचितः समुदाचारः ..बाहुभ्याम् आहृतम् (माम) ________ बाहुभ्याम् एव नेष्यति।
उत्तरम्-

(क) जनार्दनम्, युद्धपराजयः ।
(ख) बाहुना, कर्म।
(ग) भवता, उक्त्वा ।
(घ) क्रियताम्, भीमः।

Q.7. (क) अधोलिखितेभ्यः पदेभ्यः उपसर्गान् विचित्य लिखत-
पदानि                               उपसर्गः
यथा-आसाद्य                    

(i) अवतारितः                    _______
(ii) विभाति                        _______
(iii) अभिभाषय                  _______
(iv) उद्भूताः                         _______
(v) तिरस्क्रियते                  _______
(vi) प्रहरन्ति                      _______
(vii) उपसर्पतु                     _______
(viii) परिरक्षिताः              _______
(ix) प्रणमति                    _______
उत्तरम्-

पदानि                             उपसर्गाः
(i) अवतारितः                    अव
(ii) विभाति                       वि
(iii) अभिभाषय                 अभि
(iv) उद्भूताः                        उद्
(v) तिरस्क्रियते                  तिरस्
(vi) प्रहरन्ति                       प्र
(vii) उपसर्पतु                      उप
(viii) परिरक्षिताः                परि
(xi) प्रणमति                         प्र

Q.8. उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकदत्तपदेषु पञ्चमीविभक्तिं प्रयुज्य वाक्यानि पूरयत-
यथा-श्मशानाद् धनुरादाय अर्जुनः आगतः । (श्मशान)
(i) पाठान् पठित्वा सः __________ आगतः। (विद्यालय)
(ii) __________ पत्राणि पतन्ति। (वृक्ष)
(iii) गङ्गा __________ निर्गच्छति। (हिमालय)
(iv) क्षमा __________ फलानि आनयति। (आपण)
(v) __________ बुद्धिमाशा माता मानाशा
उत्तर-

(i) पाठान् पठित्वा सः विद्यालयत् आगतः ।
(ii) वृक्षात् पत्राणि पतन्ति।
(iii) गङ्गा हिमालयात् निर्गच्छति।
(iv) क्षमा आपणात् फलानि आनयति।
(v) स्मृतिनाशात् बुद्धिनाशो भवति।

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FAQs on प्रत्यभिग्यानम् NCERT Solutions - संस्कृत कक्षा 9 (Sanskrit Class 9)

1. प्रत्यभिग्यानम् क्या है?
उत्तर: प्रत्यभिग्यानम् एक भारतीय गणितीय शास्त्र है जिसमें संख्याओं के गुणनखण्डों को खोजने के लिए एक विशेष तकनीक का उपयोग किया जाता है। इसमें एक तालिका में दिए गए गुणनखण्डों को दो या अधिक संख्याओं में विभाजित किया जाता है। यह तकनीक गणितीय संबंधों को सुलझाने के लिए उपयोगी हो सकती है।
2. प्रत्यभिग्यानम् की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर: प्रत्यभिग्यानम् की प्रक्रिया में, हम पहले दो संख्याओं को चुनते हैं और उनका गुणनखण्ड निकालते हैं। फिर हम इस गुणनखण्ड को दो या अधिक संख्याओं में विभाजित करते हैं ताकि हमें अधिक संख्याएं मिलें। इस प्रक्रिया को हम चारों दिशाओं में प्रत्येक के लिए अलग-अलग बार दोहराते हैं ताकि हम सभी संभावित गुणनखण्डों को खोज सकें।
3. प्रत्यभिग्यानम् क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: प्रत्यभिग्यानम् एक महत्वपूर्ण गणितीय शास्त्र है क्योंकि इसका उपयोग गणितीय समस्याओं को हल करने के लिए किया जा सकता है। यह एक तकनीक है जो हमें गुणनखण्डों को अलग-अलग संख्याओं में विभाजित करने की स्थिति में उपयोगी हो सकती है। इसका उपयोग अलग-अलग गणितीय संबंधों को सुलझाने के लिए किया जा सकता है।
4. प्रत्यभिग्यानम् का उपयोग किन-किन क्षेत्रों में किया जा सकता है?
उत्तर: प्रत्यभिग्यानम् का उपयोग विज्ञान, इंजीनियरिंग, औद्योगिक डिजाइन, और आंतरराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी में किया जा सकता है। इसका उपयोग गणितीय समस्याओं को हल करने के लिए किया जा सकता है और यह बहुत सारे क्षेत्रों में आवेदन किया जा सकता है जहां संख्याओं के गुणनखण्डों को विभाजित करने की आवश्यकता हो सकती है।
5. प्रत्यभिग्यानम् का आविष्कार किसने किया था?
उत्तर: प्रत्यभिग्यानम् का आविष्कार भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट द्वारा किया गया था। आर्यभट्ट ने इस तकनीक को 'बीजगणित' के रूप में भी जाना जाता है। यह तकनीक उनकी ग्रंथ 'आर्यभट्टीयम्' में विस्तार से वर्णित है।
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