खण्ड-‘अ’ वस्तुपरक प्रश्न
अपठित गद्यांश(10 अंक)
Q.1. नीचे दो गद्यांश दिए गए हैं। किसी एक गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए: 5 × 1 = 5
गद्यांश-1
यदि आप इस गद्यांश का चयन करते हैं तो कृपया उत्तर-पुस्तिका में लिखें कि आप प्रश्न संख्या 1 में दिए गए गद्यांश-1 पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिख रहें हैं।
एक स्वस्थ व्यक्ति की परिभाषा कुछ शब्दों में बताना कठिन है। किसी को क्षणिक देखने भर से नहीं कहा जा सकता है कि वह नितांत स्वस्थ है या रुग्ण है। कोई व्यक्ति देखने में मोटा-ताजा, रूप-सौन्दर्य से युक्त भले ही हो सकता है लेकिन यह जरूरी नहीं कि वह शारीरिक तौर पर हर तरह से स्वस्थ होगा। वास्तव में व्यक्ति का बाह्य रूप उसकी अन्तः शक्ति को एक झलक में प्रदर्शित नहीं कर पाता। यद्यपि कभी-कभी विषाद और अन्तर्द्वन्द्व का भाव व्यक्ति के मुख पर छलक जाता है, उसी तरह हृदय की प्रसन्नता की छाप भी मुख पर दिखाई दे जाती है। ये दोनों प्रसन्नता और वेदना के भाव परिवर्तनशील होते हैं। इन स्थितियों में भी अधिकता-न्यूनता का परिवर्तन होता रहता है। वास्तव में ये वे हृदय-आवेग हैं, जो हमें हमारे बाह्य प्रभाव से प्राप्त होते हैं। इन दोनों प्रभावों का संबंध मनुष्य के स्वास्थ्य से होता है। विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ आदमी के शरीर को क्षति तो पहुँचाती ही हैं, उसके मनोबल को भी कमजोर कर देती हैं। व्यक्ति का अच्छा स्वास्थ्य एक लम्बी प्रक्रिया के फलस्वरूप प्राप्त होता है। अच्छे स्वास्थ्य वाला व्यक्ति अपने दैनन्दिन कार्य बड़ी कुशलता के साथ कर लेता है। कृश तन वाला व्यक्ति भी स्वस्थ हो सकता है और स्थूलकाय व्यक्ति भी रोगी हो सकता है। शारीरिक संरचना से किसी के अच्छे या खराब स्वास्थ्य का पता नहीं चलता। अच्छे स्वास्थ्य वाला व्यक्ति वही होता है जिसमें अपने कार्य करने की क्षमता हो, स्फूर्ति हो, ऊर्जा हो और वह आलस्य रहित हो। ऐसा व्यक्ति अपनी कार्यक्षमता के बल पर अपने कार्य यथासमय निपटा लेता है, उसका चिंतन सकारात्मक होता है और किसी भी काम के लिए अन्य के भरोसे नहीं रहता। इसीलिए कहा जाता है कि- ”स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है।”
निम्नलिखित में से निर्देशानुसार सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन कीजिए-
(i) अच्छे स्वास्थ्य के क्या-क्या लाभ हैं?
(क) आलस्य नहीं करना
(ख) शरीर में ऊर्जा रहना
(ग) चिंतन सकारात्मक रहना
(घ) ये सभी
उत्तरः (घ)
(ii) व्यक्ति की मुख छवि किन आवेगों के कारण बदलती रहती है?
(क) विषाद एवं अन्तर्द्वन्द के द्वारा
(ख) प्रसन्नता और वेदना के भाव द्वारा
(ग) हृदय के आवेगों का परिवर्तन होना
(घ) ये सभी
उत्तरः (घ)
(iii) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक क्या है?
(क) स्वस्थ जीवन
(ख) स्वास्थ्य का महत्व
(ग) स्वस्थ मन
(घ) स्वस्थ शरीर
उत्तरः (ख)
(iv) लेखक के अनुसार स्वस्थ शरीर में ही______का निवास होता है।
(क) स्वस्थ मन
(ख) आलस
(ग) स्वस्थ आत्मा
(घ) ये सभी
उत्तरः (क)
(v) ______व्यक्ति भी रोगी हो सकता है।
(क) कृशकाय
(ख) स्थूलकाय
(ग) नकारात्मक
(घ) विषादी
उत्तरः (क)
अथवा
गद्यांश-2
यदि आप इस गद्यांश का चयन करते हैं तो कृपया उत्तर-पुस्तिका में लिखें कि आप प्रश्न संख्या 1 में दिए गए गद्यांश-2 पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिख रहें हैं।
पता नहीं क्यों, उनकी कोई नौकरी लंबी नहीं चलती थी। मगर इससे वह न तो परेशान होते, न आतंकित, और न ही कभी निराशा उनके दिमाग में आती। यह बात उनके दिमाग में आई कि उन्हें अब नौकरी के चक्कर में रहने की बजाय अपना काम शुरू करना चाहिए। नई ऊँचाई तक पहुँचने का उन्हें यही रास्ता दिखाई दिया। सत्य है, जो बड़ा सोचता है, वही एक दिन बड़ा करके भी दिखाता है और आज इसी सोच के कारण उनकी गिनती बड़े व्यक्तियों में होती है। हम अक्सर इंसान के छोटे-बड़े होने की बातें करते हैं, पर दरअसल इंसान की सोच ही उसे छोटा या बड़ा बनाती है। स्वेट मार्डेन अपनी पुस्तक ‘बड़ी सोच का बड़ा कमाल’ में लिखते हैं कि यदि आप दरिद्रता की सोच को ही अपने मन में स्थान दिए रहेंगे, तो आप कभी धनी नहीं बन सकते, लेकिन यदि आप अपने मन में अच्छे विचारों को ही स्थान देंगे और दरिद्रता, नीचता आदि कुविचारों की ओर से मुँह मोड़े रहेंगे और उनको अपने मन में कोई स्थान नहीं देंगे, तो आपकी उन्नति होती जाएगी और समृद्धि के भवन में आप आसानी से प्रवेश कर सवेंळगे। ‘भारतीय चिंतन में ऋषियों ने ईश्वर के संकल्प मात्र से सृष्टि रचना को स्वीकार किया है और यह संकेत दिया है कि व्यक्ति जैसा बनना चाहता है, वैसा बार-बार सोचे। व्यक्ति जैसा सोचता है, वह वैसा ही बन जाता है।’ सफलता की ऊँचाइयों को छूने वाले व्यक्तियों का मानना है कि सफलता उनके मस्तिष्क से नहीं, अपितु उनकी सोच से निकलती है। व्यक्ति में सोच की एक ऐसी जादुई शक्ति है कि यदि वह उसका उचित प्रयोग करे, तो कहाँ से कहाँ पहुँच सकता है। इसलिए सदैव बड़ा सोचें, बड़ा सोचने से बड़ी उपलब्धियाँ हासिल होंगी, फायदे बड़े होंगे और देखते-देखते आप अपनी बड़ी सोच द्वारा बड़े आदमी बन जाएँगे। इसके लिए हैजलिट कहते हैं- महान सोच जब कार्यरूप में परिणत हो जाती है, तब वह महान कृति बन जाती है।
निम्नलिखित में से निर्देशानुसार सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन कीजिए-
(i) गद्यांश में किस प्रकार के व्यक्ति के बारे में चर्चा की गई है?
(क) आशावादी व साहसी व्यक्ति
(ख) स्वस्थ व्यक्ति
(ग) संन्यासी व्यक्ति
(घ) नौकरी पेशा व्यक्ति
उत्तरः (क)
(ii) भारतीय विचारधारा में______मनुष्य जैसा बनना चाहता है, वैसा बन जाता है-
(क) संकल्प और चिन्तन के द्वारा
(ख) बार-बार सोचने के द्वारा
(ग) महान् रचना द्वारा
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तरः (क)
(iii) उपर्युक्त गद्यांश में से मुहावरे छाँटकर लिखिए-
(क) ऊँचाइयों को छूना
(ख) ऊँची सोच रखना
(ग) बड़ी सोच का बड़ा कमाल
(घ) ‘क’ एवं ‘ख’ दोनों
उत्तरः (घ)
(iv) ‘महान सोच जब कार्यरूप में परिणत हो जाती है, तब वह महान् कृति बन जाती है नामक कथन किसका है?
(क) स्वेटमार्डेन
(ख) हैजलिट
(ग) भारतीय चिन्तन
(घ) ऋषियों द्वारा
उत्तरः (ख)
(v) व्यक्ति को अपने मन में किन चीजों को स्थान नहीं देना चाहिए-
(क) दरिद्रता
(ख) नीचता
(ग) कुविचार
(घ) ये सभी
उत्तरः (घ)
Q.2. नीचे दो गद्यांश दिए गए हैं। किसी एक गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए: 5 × 1 = 5
गद्यांश-1
यदि आप इस गद्यांश का चयन करते हैं तो कृपया उत्तर-पुस्तिका में लिखें कि आप प्रश्न संख्या 2 में दिए गए गद्यांश-1 पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिख रहें हैं।
मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी सिद्धि अपने अहं के सम्पूर्ण त्याग में है। जहाँ वह शु( समर्पण के उदात्त भाव से प्रेरित होकर अपने ‘स्व’ का त्याग करने को प्रस्तुत होता है वहीं उसके व्यक्तित्व की महानता परिलक्षित होती है। साहित्यानुरागी जब उच्च साहित्य का रसास्वादन करते समय स्वयं की सत्ता को भुलाकर पात्रों के मनोभावों के साथ एकत्व स्थापित कर लेता है तभी उसे साहित्यानंद की दुर्लभ मुक्तामणि प्राप्त होती है। भक्त जब अपने आराध्य देव के चरणों में अपने ‘आप’ को अ£पत कर देता है और पूर्णतः प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा को लय कर देता है तभी उसे प्रभु-भक्ति की अलभ्य पूँजी मिलती है। यह विचित्र विरोधाभास है कि कुछ और प्राप्त करने के लिए स्वयं को भूल जाना ही एकमात्र सरल और सुनिश्चित उपाय है। यह अत्यंत सरल दिखने वाला उपाय अत्यंत कठिन भी है। भौतिक जगत में अपनी क्षुद्रता को समझते हुए भी मानव-हृदय अपने अस्तित्व के झूठे अहंकार में डूबा रहता है उसका त्याग कर पाना उसकी सबसे कठिन परीक्षा है। किंतु यही उसके व्यक्तित्व की चरम उपलब्धि भी है। दूसरे का निःस्वार्थ प्रेम प्राप्त करने के लिए अपनी इच्छा-आकांक्षाओं और लाभ-हानि को भूल कर उसके प्रति सर्वस्व समर्पण ही एकमात्र माध्यम है। इस प्राप्ति का अनिवर्चनीय सुख वही चख सकता है जिसने स्वयं को देना-लुटाना जाना हो। इस सर्वस्व समर्पण से उपजी नैतिक और चारित्रिक दृढ़ता, अपूर्व समृद्धि और परमानंद का सुख वह अनुरागी चित्त ही समझ सकता है जो -
‘ज्यों-ज्यों बूड़े श्याम रंग, त्यों-त्यों उज्ज्वल होय’
निम्नलिखित में से निर्देशानुसार सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन कीजिए-
(i) मनुष्य जीवन की महानता किसमें है?
(क) अहं
(ख) अहं के सम्पूर्ण त्याग में
(ग) नैतिक और चारित्रिक दृढ़ता में
(घ) लाभ में
उत्तरः (ख)
(ii) प्रभु भक्त की पूँजी कैसी बताई गई है?
(क) अलभ
(ख) अलभ्य
(ग) आराध्य
(घ) निःस्वार्थ
उत्तरः (ख)
(iii) निःस्वार्थ प्रेम की प्राप्ति के लिए लेखपक ने किसका त्याग करने को कहा है?
(क) इच्छाओं का
(ख) आकांक्षाओं का
(ग) लाभ-हानि का
(घ) ये सभी
उत्तरः (घ)
(iv) ‘साहित्यानुरागी’ शब्द का अर्थ लिखिए।
(क) साहित्य के प्रति प्रेम रखने वाला
(ख) साहित्य प्रेम
(ग) साहित्य रव
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तरः (क)
(v) ‘महानता’ शब्द में से मूल शब्द और प्रत्यय अलग कीजिए।
(क) महा + नता
(ख) महान + ता
(ग) मह + नता
(घ) महान् + ता
उत्तरः (ख)
अथवा
गद्यांश-2
यदि आप इस गद्यांश का चयन करते हैं तो कृपया उत्तर-पुस्तिका में लिखें कि आप प्रश्न संख्या 1 में दिए गए गद्यांश-2 पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिख रहें हैं।
‘तेते पाँव पसारिए जेती लाँबी सौर’ वाली कहावत बड़ी सार्थक है। भविष्य को सुखमय बनाने के लिए यह आवश्यक है कि आय का एक अंश नियमित रूप से बचाया जाए जिससे आगे आने वाली आवश्यकताओं की पूर्ति सरलता से हो सके। इस तरह सीमित खर्च करने वाला व्यक्ति मितव्ययी कहलाता है। अनावश्यक व्यय करके जो व्यक्ति धन का दुरुपयोग करता है वह फिजूलखर्च माना जाता है। वास्तव में मितव्ययिता ही बचत और संचय की कुंजी है। मनुष्य के जीवन में जो आदतें बचपन में पड़ जाती हैं वे किसी न किसी रूप में जीवन भर बनी रहती हैं। इसलिए बचपन में ही मितव्ययिता और बचत की आदतों का विकास आवश्यक है। कुछ बालक जेब खर्च के लिए मिले धन से भी बचत करते हैं। पैसा बचाकर अपनी-अपनी गुल्लक जल्दी-जल्दी भरने की उनमें होड़ लगी रहती है। कहा भी गया है कि एक-एक बूँद से सागर भरता है और एक-एक पैसा एकत्र करने से धन संचय होता है। देश के आर्थिक, सामाजिक और औद्योगिक विकास के लिए शासन को धन चाहिए। धन प्राप्त करने के साधनों में जनता पर लगाए गए कर, सरकारी उद्योगों का उत्पादन, निर्यात आदि मुख्य हैं। एक अन्य महत्तवपूर्ण साधन बैंकों तथा डाकघरों में संचित वह धनराशि है, जिसे नागरिक राष्ट्रीय बचत योजनाओं के अंतर्गत जमा करते हैं। राष्ट्रीय विकास के कार्यक्रमों में शासन इस संचित धनराशि का उपयोग सरलता से करता है। शासन की ओर से नगरों और गाँवों में बैंकों और डाकघरों की शाखाएँ खोली गई हैं। इनमें बालक-बालिकाओं और बड़ी उम्र के लोगों को बचत का धन जमा करने की सुविधा दी जाती है। इस दिशा में डाकघरों की सेवाएँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित में से निर्देशानुसार सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन कीजिए-
(i) भविष्य को सुखमय बनाने के लिए क्या आवश्यक है?
(क) आय का एक अंश नियमित रूप से बचाना
(ख) डाकघरों की सेवाएँ
(ग) अनावश्यक व्यय
(घ) अत्यधिक धनसंचय
उत्तरः (क)
(ii) प्रस्तुत गद्यांश में लोकोक्ति को छाँटिए-
(क) ‘तेते पाँव पसारिए जेती लाँबी सौर’
(ख) संचय की कुंजी
(ग) बचत की आदतें
(घ) एक-एक बूँद से सागर भरना
उत्तरः (क)
(iii) _____ही मितव्ययिता और बचत की आदतों का विकास आवश्यक है।
(क) बचपन में
(ख) राष्ट्रीय कार्यक्रमों में
(ग) गुल्लक में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तरः (क)
(iv) ‘नगर’ शब्द से ‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए-
(क) नागरिक
(ख) नागीरिकी
(ग) नगरी
(घ) नागरिन
उत्तरः (क)
(v) सीमित खर्च करने वाला व्यक्ति______कहलाता है।
(क) फिजूल खर्ची
(ख) अल्पव्ययी
(ग) मितव्ययी
(घ) ये सभी
उत्तरः (ग)
Q.3. निम्नलिखित पाँच भागों में से किन्हीं चार के उत्तर दीजिए-
(i) ‘तताँरा बहुत बलशाली भी था।’ रेखांकित में पद है।
(क) संज्ञा पद
(ख) सर्वनाम पद
(ग) विशेषण पद
(घ) क्रिया पद
उत्तर: (ग)
(ii) ‘वे माँ से कहानी सुनते रहते हैं।’ वाक्य में क्रिया-पदबंध है-
(क) वे माँ से
(ख) माँ से कहानी
(ग) सुनते रहते हैं
(घ) कहानी सुनते
उत्तर: (ग)
(iii) बँगले के पीछे लगा पेड़ गिर गया। वाक्य में रेखांकित पदबंध है-
(क) संज्ञा पदबंध
(ख) क्रिया पदबंध
(ग) विशेषण पदबंध
(घ) क्रियाविशेषण पदबंध
उत्तर: (ग)
(iv) वाक्य______से बनता है।
(क) स्वर
(ख) व्यंजन
(ग) शब्द
(घ) पद
उत्तर: (घ)
(v) मैं तेज़ी से दौड़ता हुआ घर पहुँचा। रेखांकित में कौन-सा पदबंध है।
(क) क्रियाविशेषण पदबंध
(ख) विशेषण पदबंध
(ग) संज्ञा पदबंध
(घ) क्रिया पदबंध
उत्तर: (क)
Q.4. निम्नलिखित पांच भागों में से किन्हीं चार भागों के उत्तर दीजिये -
(i) चाय तैयार हुई, उसने वह प्यालों में भरी। (संयुक्त वाक्य में बदलिए) 1 अंक
(क) चाय तैयार होने पर प्यालों में भरी गई।
(ख) चाय तैयार हुई और उसने प्यालें में भरी।
(ग) तैयार चाय को प्यालों में भरा गया।
(घ) चाय प्यालों में भरी गई।
उत्तरः (क)
(ii) बाहर बेढब - सा एक मिट्टी का बर्तन था। उसमें पानी भरा हुआ था। मिश्र वाक्य में बदलिए- 1 अंक
(क) बाहर बेढब - सा एक मिट्टी का बर्तन था, जिसमें पानी भरा हुआ था।
(ख) बाहर बेढब एक मिट्टी के बर्तन में पानी भरा हुआ था।
(ग) बेढब तरीके के बाहर रखे हुए मिट्टी के बर्तन में पानी भरा हुआ था।
(घ) बेढब मिट्टी के बर्तन में पानी भरा हुआ था।
उत्तरः (क)
(iii) अँगीठी सुलगाई और उस पर चायदानी रखी। सरल वाक्य में बदलिए- 1 अंक
(क) अँगीठी सुलगा दी फिर उस पर चायदानी रख दी।
(ख) अँगीठी सुलगाने के बाद उस पर चाय बनाने को रख दी।
(ग) अँगीठी सुलगाकर उस पर चायदानी रख दी।
(घ) पहले अँगीठी सुलगाई फिर उसके ऊपर चायदानी रख दी गई।
उत्तरः (ग)
(iv) ‘वह रोज व्यायाम करता है, इसलिए स्वस्थ रहता है।’ वाक्य रचना की दृष्टि से वाक्य है- 1 अंक
(क) सरल
(ख) मिश्र
(ग) संयुक्त
(घ) सामान्य
उत्तरः (ख)
(v) निम्नलिखित में मिश्र वाक्य है- 1 अंक
(क) परिश्रम करने वाला कभी खाली नहीं बैठता।
(ख) जो व्यक्ति परिश्रमी होता है, वह कभी खाली नहीं बैठता।
(ग) परिश्रमी व्यक्ति खाली नहीं बैठता है।
(घ) परिश्रमी व्यक्ति खाली बैठना पसंद नहीं करता।
उत्तरः (घ)
Q.5. निम्नलिखित पाँच भागों में से किन्हीं चार भागों के उत्तर दीजिये
(i) गंगाजल-
(क) गंगा का जल-तत्पुरुष
(ख) गंगा में जल-तत्पुरुष
(ग) गंगा और जल-द्वन्द्व
(घ) गंगा है वह जल-बहुव्रीहि समास
उत्तरः (क)
(ii) नीला है जो गगन-
(क) नीलगगन-कर्मधारय समास
(ख) नीला गगन-तत्पुरुष समास
(ग) नील है गगन में-बहुव्रीहि समास
(घ) नीलागन-अव्ययीभाव
उत्तरः (क)
(iii) पीताम्बर-
(क) पीत है वस्त्र-बहुव्रीहि समास
(ख) पीला है जो वस्त्र-बहुव्रीहि समास
(ग) पीला है अम्बर जिसका (विष्णु) - बहुव्रीहि समास
(घ) पीला अम्बर-बहुव्रीहि समास
उत्तरः (ग)
(iv) हाथी-घोड़े-
(क) हाथी है घोड़े-द्वन्द्व समास
(ख) हाथी और घोड़े-कर्मधारय
(ग) हाथी और घोड़े-द्वन्द्व समास
(घ) हाथी-घोड़े-द्वन्द्व समास
उत्तरः (ग)
(v) घन के समान श्याम-
(क) घनश्याम-कर्मधारय समास
(ख) घन इव श्याम-कर्मधारय समास
(ग) श्याम है घन जो-अव्ययीभाव
(घ) घनश्याम-तत्पुरुष
उत्तरः (क)
Q.6. निम्नलिखित चारों भागों के उत्तर दीजिये-
(i) उसने जरूर कुछ गलत काम किया है, नहीं तो मुझसे इस तरह______।
(क) आँखें नहीं चुराता
(ख) जी नहीं चुराता
(ग) तिल का ताड़ नहीं चुराता
(घ) जान पर नहीं खेलता
उत्तरः (क)
(ii) मैंने उससे______माँगी, फिर भी वह नहीं पिघला।
(क) नाक रगड़कर माफी
(ख) टका-सा जवाब देना
(ग) टाँग अड़ाना
(घ) तूती बोलना
उत्तरः (क)
(iii) नेता हो या अभिनेता,______का मौका नहीं छोड़ते।
(क) अपने पैरों पर खड़ा होना
(ख) अपना उल्लू सीधा करने
(ग) दाल में कुछ काला होना
(घ) देर हो जाना
उत्तरः (ख)
(iv) भारत सरकार का नोटबंदी का आदेश______है।
(क) कलेजा छलनी होना
(ख) पत्थर की लकीर
(ग) धोखा देना
(घ) आँखों का तारा होना।
उत्तरः (ख)
Q.7. निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन कीजिए-
कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो,
साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम के न रुकने दिया,
कट गए सर हमारे तो कुछ कम नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया,
मरते-मरते रहा बाँकपन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो......।
जिंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने की रुत रोज़ आती नहीं,
हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे
वो जवानी जो खूँ में नहाती नहीं,
आज धरती बनी है दुल्हन साथियो
अब तुमहारे हवाले वतन साथियो..........।
(i) ‘सर हिमालय का हमने न झुकने दिया’ पंक्ति में ‘सर’ किसका प्रतीक है?
(क) स्वाभिमान
(ख) सिर
(ग) घमंड
(घ) पराक्रम
उत्तर: (क)
(ii) पद्यांश में ‘बांकपन’ शब्द प्रतीक है-
(क) वक्रता
(ख) अद्भुत
(ग) छवि
(घ) बेमिसालपन
उत्तर: (घ)
(iii) धरती के दुल्हन बनने से तात्पर्य है-
(क) दुल्हन की भांति शर्मा रही है
(ख) सैनिकों के खून से नहा गई है
(ग) बलिदान से गौरवान्वित हुई है
(घ) दुल्हन की भांति अपने प्रियतम की आस देख रही है
उत्तर: (ग)
(iv) सर पर कप़न बांधने का अर्थ है-
(क) बलिदान के लिए तैयार होना
(ख) मरने की कोशिश करना
(ग) अपने लिए जान की बाजी लगाना
(घ) लोगों को दिखाना कि हम मरने से नहीं डरते
उत्तर: (क)
Q.8. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन कीजिए -
वह स्वभाव से बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी काॅपी पर, किताब के हाशियों पर चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी - कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस - बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार - बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द - रचना करते, जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। मसलन एक बार उनकी कॉपी पर मैंने यह इबारत देखी स्पेशल, अमीना, भाइयों - भाइयों, दरअसल, भाई - भाई। राधेश्याम, श्रीयुत राधेश्याम, एक घंटे तक इसके बाद एक आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई अर्थ निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वह नौवीं जमात में थे, मैं पाँचवी में। उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटी मुँह बड़ी बात थी।
(i) ‘बड़े भाई साहब’ कहानी में भाईसाहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे?
(क) जानवरों की तस्वीरें बनाना
(ख) एक शब्द को दस - बीस बार लिखना
(ग) शेर को सुंदर - सुंदर अक्षरों में लिखना
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तरः (घ)
(ii) बड़े भाई साहब किस जमात ;कक्षाद्ध में थे?
(क) आठवीं
(ख) नौवीं
(ग) पाँचवीं
(घ) दसवीं
उत्तरः (ख)
(iii) ‘उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह बड़ी बात थी’ प्रस्तुत पंक्ति में रेखांप्रित क्या है -
(क) मुहावरा
(ख) लोकोक्ति
(ग) रचना ;पुस्तकद्ध
(घ) सूक्ति
उत्तरः (क)
(iv) प्रस्तुत गद्यांश में बड़े भाईसाहब की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं?
(क) अध्ययनशील
(ख) परिश्रमी
(ग) मौलिक रचना करना
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तरः (घ)
(v) ‘लेकिन असफल रहा’ वाक्य में प्रयुक्त ‘असफल’ शब्द में उपसर्ग और मूल शब्द अलग कीजिए -
(क) अस + फल
(ख) अ + सफल
(ग) असफ + ल
(घ) आ + सफल।
उत्तरः (ख)
Q.9. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन कीजिए - 5 × 1 = 5
कुछ समय बाद पासा गाँवा में ‘पशु-पर्व’ का आयोजन हुआ। पशु-पर्व में हृष्ट-पुष्ट पशुओं के प्रदर्शन के अतिरिक्त पशुओं से युवकों की शक्ति परीक्षा प्रतियोगिता भी होती है। वर्ष में एक बार सभी गाँव के लोग हिस्सा लेते हैं। बाद में नृत्य-संगीत और भोजन का भी आयोजन होता है। शाम से सभी लोग पासा में एकत्रित होने लगे। धीरे-धीरे विभिन्न कार्यक्रम शुरू हुए। तताँरा का मन इन कार्यक्रमों में तनिक न था। उसकी व्याकुल आँखें वामीरो को ढूँढ़ने में व्यस्त थीं। नारियल के झुंड के एक पेड़ के पीछे से उसे जैसे कोई झाँकता दिखा। उसने थोड़ा और करीब जाकर पहचानने की चेष्टा की। वह वामीरो थी जो भयवश सामने आने में झिझक रही थी। उसकी आँखें तरल थीं। होंठ काँप रहे थे। तताँरा को देखते ही वह फूटकर रोने लगी। तताँरा विह्नल हुआ। उससे कुछ बोलते ही नहीं बन रहा था। रोने की आवाज़ लगातार ऊँची होती जा रही थी। तताँरा किंकर्तव्यविमूढ़ था। वामीरो के रुदन स्वरों को सुनकर उसकी माँ वहाँ पहुँची और दोनों को देखकर आग-बबूला हो उठी। सारे गाँव वालों की उपस्थिति में यह दृश्य उसे अपमानजनक लगा। इस बीच गाँव के कुछ लोग भी वहाँ पहुँच गए। वामीरो की माँ क्रोध में उफन उठी। उसने तताँरा को तरह-तरह से अपमानित किया। गाँव के लोग भी तताँरा के विरोध में आवाज़ें उठाने लगे। यह तताँरा के लिए असहनीय था। वामीरो अब भी रोए जा रही थी। तताँरा भी गुस्से से भर उठा। उसे जहाँ विवाह की निषेध परंपरा पर क्षोभ था वहीं अपनी असहायता पर खीझ। वामीरो का दुख उसे और गहरा कर रहा था।
निम्नलिखित में से निर्देशानुसार सर्वाधिक उपयुक्त विकल्पों का चयन कीजिए-
(i) पशु-पर्व का आयोजन कहाँ हुआ?
(क) पासा गाँव में
(ख) बाँस गाँव में
(ग) भोपाल में
(घ) रायपुर में
उत्तरः (क)
(ii) तताँरा का मन किसमें व्यस्त था?
(क) वामीरो को ढँूढ़ने में
(ख) नृत्य संगीत में
(ग) पशुओं से युवकों की शक्ति परीक्षा में
(घ) कार्यक्रमों में
उत्तरः (क)
(iii) नारियल के झुंड के एक पेड़ के पीछे उसे कौन झाँकता हुआ दिखाई दिया?
(क) वामीरो
(ख) माँ
(ग) गाँव के कुछ लोग
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तरः (क)
(iv) वामीरो को रोता देख तताँरा.....................था।
(क) अपमानित
(ख) किंकर्तव्य विमूढ़
(ग) असहाय
(घ) घबराया हुआ
उत्तरः (ख)
(v) ‘उपर्युक्त गद्यांश के लेखक हैं-
(क) प्रेमचन्द
(ख) सीताराम से कसरिया
(ग) लीलाधर मंडलोई
(घ) निदाफाज़ली
उत्तरः (ग)
खण्ड-‘ब’ वर्णनात्मक प्रश्न
पाठ्य-पुस्तक एवं पूरक पाठ्य-पुस्तक (14 अंक)
Q.10. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 25-30 शब्दों में लिखिए- 2 × 2 = 4
(i) तताँरा को निकोबारी लोग उसके किन गुणों के कारण बेहद प्यार करते थे?
उत्तरः तताँरा को निकोबारी लोग निम्न गुणों के कारण बेहद प्यार करते थे-
वह सुंदर, शक्तिशाली, नेक व मददगार व्यक्ति था।
वह सदैव दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहता था।
वह अपने गाँव की ही नहीं अपितु सम्पूर्ण द्वीपवासियों की सेवा करना अपना परम कर्तव्य समझता था।
(ii) बड़ा भाई लेखक को उम्र भर एक दरजे में पड़े रहने का डर क्यों दिखाता था? बड़े भाई साहब पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तरः बड़ा भाई अपने अज्ञान और अयोग्यता के कारण पढ़ाई से डरा हुआ है। उसे लगता है कि इतनी मेहनत के बाद भी मैं फेल हो गया तो जरूर यह पढ़ाई बहुत कठिन है।
व्याख्यात्मक हल:
लेखक का बड़ा भाई अपने अज्ञान और अयोग्यता के कारण पढ़ाई से डरा हुआ है। उसे लगता है कि इतनी मेहनत के बाद भी जब वह फेल हो गया तो जरूर यह पढ़ाई बहुत कठिन है। लेखक के मन लगाकर पढ़ाई न करने व सदा खेल-कूद के बारे में सोचते रहने से वे चिंतित रहते थे। इसी कारण वह लेखक को उम्र भर एक दरजे में पड़े रहने का डर दिखाता है।
(iii) कबीर के अनुसार, इस संसार में कौन दुःखी है, कौन सुखी?
उत्तरः कबीर के अनुसार, इस संसार में सुखी वह है, जो अज्ञानी है। इसलिए वह संसार को ही अन्तिम सत्य मानकर उसे भोगता है और सुख अनुभव करता है। दूसरी ओर जो प्रभु के रहस्य को जान लेता है, वह विरह के कारण दिन-रात तड़पता है। इसलिए वह संसार की दृष्टि से दुःखी है।
Q.11. निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर लगभग 60-70 शब्दों में लिखिए-
‘मनुष्यता’ कविता और ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ का केंद्रीय भाव एक ही है। सिद्धि कीजिए।
उत्तर: (क) मनुष्यता कविता मानव के त्याग, बलिदान, मानवीय एकता, सहानुभूति, सद्भाव, उदारता, करुणा आदि पर बल देती है।
(ख) ‘अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ का प्रतिपाद्य मानव और प्रकृति के सामंजस्य, मानव और प्रकृति के अन्य जीवधारियों के मध्य सामंजस्य जिस के अंतर्गत सहानुभूति, सद्भाव, उदारता, प्रेम, त्याग और करुणा पर बल दिया गया है।
(ग) ऊपर दिए गए सभी गुण मनुष्य के गुण हैं।
(घ) उदारता, करुणा, सद्भाव, सहानुभूति गुणों पर दोनों पाठ आधारित हैं।
व्याख्यात्मक हल:
‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने मनुष्य में मानवीय गुणों यथा प्रेम, दया, करुणा, परोपकार, सहानुभूति, उदारता, त्याग आदि को मनुष्य के आवश्यक बताया है। उसने दधीचि, कर्ण, रंतिदेव आदि लोगों के उदाहरण द्वारा दूसरों के लिए जीने की उनकी सहायता करने की प्रेरणा दी है वहीं ‘अब कहाँ दूसरों के दुख से दुखी होने वाले’ पाठ में भी लेखक ने प्रकृति, जीवों, मनुष्यों के दुखों के प्रति दुखी होने, उनकी सहायता करने, उनके साथ सामंजस्य बनाने पर जोर दिया है तथा अपनी बात की पुष्टि के लिए तथा लोगों को प्रेरित करने हेतु सुलेमान, नूह, अपने पिता, माँ आदि के उदाहरण दिए। अतः दोनों ही पाठों में मानवीय गुणों को अपनाने पर जोर दिया गया है। इससे सिद्ध होता है कि दोनों पाठ का केन्द्रीय भाव एक है तथा उदारता, करुणा, सद्भाव, सहानुभूति जैसे गुणों पर आधारित है।
Q.12. निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 40 - 50 शब्दों में लिखिए -
(i) ‘हरिहर काका’ पाठ के आधार पर बताइए कि धर्म के नाम पर किस तरह साधारण जन की भावनाओं से खेला जाता है?
उत्तरः ‘हरिहर काका’ पाठ में धर्म के नाम पर सीधे - सादे गाँव के लोगों को ठाकुरवारी के नाम पर बेवकूफ बनाना, धर्म के ठेकेदारों द्वारा जैसे महंत इत्यादि के द्वारा केवल आराम से ठाठ - बाट का जीवन व्यतीत करना, लोगों से पैसा, जमीन हड़पना, समय आने पर गुंडागर्दी मारपीट या हिंसा पर उतर आना जैसे काका से जमीन हथियाने के लिए पहले बहलाना - फुसलाना फिर न मानने उन्हें बंधक बनाकर जबरदस्ती अँगूठा लगवाना इत्यादि।
व्याख्यात्मक हल:
‘हरिहर काका’ पाठ में धर्म के नाम पर सीधे - सादे गाँव के लोगों को ठाकुरवारी के नाम पर बेवकूफ बनाते हैं। आज के नेता व महंत दोनों ही बहुत स्वार्थी हैं। वे कार्य पूरा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं तथा धर्म के ठेकेदारों द्वारा जैसे महंत इत्यादि केवल अपने आराम के लिए ठाठ - बाट का जीवन व्यतीत करते हैं तथा लोगों से पैसा, जमीन हड़पकर तथा समय आने पर गुंडागर्दी मारपीट या दबंगपने से हिंसा पर उतर आते हैं। जिस तरह से हरिहर काका से बहलाफुसला कर जमीन हथिया ली। फिर उन्हें बंधक बनाकर कागजों पर जबरदस्ती अँगूठा लगवा लिया।
(ii) विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ ‘सपनो के से दिन’ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के सम्बन्ध में विचार प्रकट कीजिए।
उत्तरः पाठ ‘सपनों के से दिन’ में विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए उन्हें कई प्रकार से शारीरिक दंड दिए जाते थे। पिटाई भी इतनी अधिक कि चमड़ी उधेड़ने वाली कहावत चरितार्थ, दंड ऐसा कि बच्चे चक्कर खा जाएँ, बच्चों का कोमल मन ऐसे बर्बरतापूर्ण व्यवहार से अधिक उद्दंड या फिर दब्बू बना देता है, पढ़ाई - लिखाई में अरुचि आ सकती है, इन्हीं कारणों को समझकर मनोचिकित्सों के अनुसार शारीरिक दंड उचित नहीं, आज की शिक्षा प्रणाली में प्यार, समझ, सूझ - बूझ व समस्या की जड़ पर पहुँच कर उसका निदान करने में विश्वास। शारीरिक दंड का आज की शिक्षा नीति में कोई स्थान नहीं।
व्याख्यात्मक हल:
विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पहले उन्हें कठोर यातनाएँ दी जाती थीं। उन्हें ठुड्डों से, बल्लों से खूब पीटा जाता था। नन्हें बच्चों को मुर्गा बनाकर थकाया जाता था। वर्तमान काल में बच्चों को शारीरिक दण्ड नहीं दिया जा सकता। मेरे विचार से, शारीरिक दंड पर रोक लगाना बहुत आवश्यक कदम है। बच्चों को विद्यालय में शारीरिक दंड से नहीं अपितु मानसिक संस्कार द्वारा अनुशासित करना चाहिए। इसके लिए पुरस्कार, प्रशंसा, निंदा आदि उपाय अधिक ठीक रहते हैं क्योंकि शारीरिक दण्ड के भय से बच्चा कभी भी अपनी समस्या अपने शिक्षक के समक्ष नहीं रख पाता है। उसे सदैव यही भय सताता रहता है कि यदि वह अपने अध्यापक को अपनी समस्या बताएगा तो उसके अध्यापक उसकी कहीं पिटाई न कर दें जिसके कारण वह बच्चा दब्बू किस्म का बन जाता है। इसके स्थान पर यदि उसे स्नेह से समझाया जाएगा तो वह सदैव अनुशासित रहेगा और ठीक से पढ़ाई भी करेगा।
(iii) ‘टोपी शुक्ला’ पाठ में इफ़्फ़न और टोपी की मैत्री के द्वारा क्या संदेश दिया गया है? वर्तमान संदर्भों में उसकी उपयोगिता समझाइए।
उत्तरः ‘टोपी शुक्ला’ पाठ में इफ़्प़ळन और टोपी की मैत्री के द्वारा यह संदेश दिया गया है कि मित्रता में कभी भी जाति व धर्म का बंधन नहीं होना चाहिए। सभी को प्रेम व सौहार्द से मिलकर सभी त्योहारों व उत्सव में भाग लेना चाहिए। मित्रता का सम्बन्ध पारिवारिक व सामाजिक स्तर भेद से परे होना चाहिए। मित्रता सामाजिक सौहार्द में सहायक होती है। मित्रता में धर्म, जात - पाँत, रहन - सहन, हैसियत व रीति - रिवाज को नहीं आने देना चाहिए। इससे यह भी पता चलता है कि प्रेम किसी बात का पाबंद नहीं होता तथा मित्रता में जाति, धर्म बाधा उत्पन्न नहीं कर सकते। हमेशा सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए। न ही जाति - पाँति का विचार मानना चाहिए।
लेखन
Q.13. निम्नलिखित में से किसी 1 विषय पर दिए गए संके त-बिन्दुओं के आधार पर लगभग 80-100 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखिए - 1 × 6 = 6
(i) दैव-दैव आलसी पुकारा
संकेत बिन्दु-
1. आलसी व्यक्ति ही भाग्य का सहारा लेता है।
2. भाग्यवादी निकम्मा होता है।
3. आलसी व्यक्ति निराश उदासीन और पराश्रित रहता है।
उत्तरः दैव-दैव आलसी पुकारा अथवा पुरुषार्थ
1. आलसी व्यक्ति ही भाग्य का सहारा लेता है- आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्गुण है। आलसी व्यक्ति भाग्य पर निर्भर होता है। वह परिश्रम न करके अपने भाग्य के ही सहारे प्रत्येक कार्य करना चाहता है। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए एक बोझ के समान होते हैं। ऐसे लोग परिश्रम से सदैव दूर भागते हैं तथा कर्म करने में बिल्कुल विश्वास नहीं करते। वस्तुतः ऐसे लोगों का समाज में कोई भी सम्मान नहीं करता।
2. भाग्यवादी निकम्मा होता है - हमारे समाज में बहुत से लोग भाग्यवादी हैं और सब कुछ भाग्य पर छोड़कर कर्म से विरत हो बैठ जाते हैं। समाज और राष्ट्र की प्रगति में ये लोग ही मुख्य बाधा हैं। सच तो यह है कि संसार में किसी भाग्यवादी समाज अथवा व्यक्ति विशेष ने कभी उन्नति नहीं की। यहाँ तक कि अपनी दीन-हीन स्थिति, अपनी निरक्षरता और पराधीनता तक को भाग्यवादी अपने भाग्य का खेल मानकर बैठ जाते हैं।
3. आलसी व्यक्ति निराश उदासीन और पराश्रित रहता है - व्यक्ति को कदापि परिश्रम से पीछे नहीं हटना चाहिए। इतिहास इस बात का साक्षी है कि कर्म पर विश्वास करने वाले हमारे देशभक्तों ने ब्रिटिश साम्राज्य की ईंट से ईंट बजा दी थी जिसके फलस्वरूप आज हम स्वाधीन हैं। अन्यथा हम भाग्य के भरोसे बैठे रहते तथा पराधीनता को ही अपना भाग्य मान लेते।
(ii) परिश्रम का महत्व-
संकेत बिन्दु-
1. प्रस्तावना
2. परिश्रम: अभिप्राय और आवश्यकता
3. परिश्रम उन्नति एवं विकास का साधन
4. परिश्रमी भाग्यवाद का विरोधी
उत्तरः परिश्रम का महत्त्व
1. प्रस्तावना - परिश्रम सफलता की कुंजी है। विश्व के जो देश बुद्धि, धन, बल तथा तकनीक में शीर्ष पर हैं वह कोई जादुई चमत्कार के बल पर नहीं वरन् परिश्रम के माध्यम से हैं। जापान जो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान लगभग समाप्त-सा हो गया था वह आज परिश्रम के बल से विश्व के औद्योगिक क्षेत्र में प्रकाश-स्तंभ के रूप में उभर कर आया है। जिस चीन को एक समय पिछड़ा कहा जाता था वो आज एक शक्ति है, उसकी आवाज का अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व है। सैकड़ों वर्षों की गुलामी झेलने वाला भारत आज एक स्वावलम्बी राष्ट्र है। आधुनिक मानव ने पृथ्वी, आकाश और पाताल के सभी रहस्यों पर से पर्दा उठा दिया है। परिश्रम के बल पर ही यह सब संभव हो पाया है।
2. परिश्रम - अभिप्राय और आवश्यकता - किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जो शारीरिक एवं मानसिक प्रयास किया जाता है, उसे परिश्रम कहते हैं। परिश्रम ही जीवन को गति प्रदान करता है। परिश्रम का वास्तविक रूप तो संपूर्ण प्रकृति में देखने को मिलता है। पशु-पक्षी, जीव-जंतु सभी निरंतर परिश्रम में लगे रहते हैं। भोजन की थाली चाहे सामने ही क्यों न सजी हो, लेकिन भोजन को मुँह में पहुँचाने के लिए श्रम तो करना ही होगा। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अस्तित्व की रक्षा के लिए और सुख के साधन प्राप्त करने के लिए श्रम की आवश्यकता होती है।
3. परिश्रम उन्नति एवं विकास का साधन - परिश्रम ही जीवन की उन्नति एवं विकास का एकमात्र साधन है। जो व्यक्ति जितना अधिक परिश्रम करता है वह उन्नति की उतनी ही सीढ़ियाँ चढ़ जाता है। उन्नत राष्ट्र की उन्नति का रहस्य उसके कठोर श्रम में ही छिपा हुआ है। जापान, जर्मनी, अमेरिका, चीन, इंग्लैण्ड आदि देश परिश्रम की राह पर चलकर ही आज विश्व शक्ति के रूप में जाने जाते हैं।
4. परिश्रमी व्यक्ति भाग्यवाद का विरोधी - परिश्रमी व्यक्ति केवल कर्म में विश्वास करता है, भाग्य में नहीं। परिश्रम करने पर भी यदि उसे सफलता प्राप्त नहीं होती तो वह भाग्य को दोष नहीं देता, बल्कि वह अपनी असफलता के कारणों पर विचार करता है। परिश्रमी व्यक्ति अपने मार्ग में आने वाली विघ्न-बाधाओं से भयभीत नहीं होता।
उपसंहार - जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता पाने का मूलमंत्र परिश्रम ही है। परिश्रम के द्वारा पर्वतों को काटकर मार्ग और रेगिस्तानों में नदियाँ बहाई जा सकती हैं। पीसा की मीनारें, चीन की दीवार व ताजमहल परिश्रम के द्वारा ही बनाए जा सके हैं।
(iii) मीडिया का सामाजिक उत्तरदायित्व-
संकेत बिन्दु
1. जागरूकता
2. निजी जीवन में दखल देना
3. वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना
उत्तरः मीडिया का सामाजिक उत्तरदायित्व
1. जागरूकता - मीडिया समाज का महत्त्वपूर्ण स्तंभ होता है। चाहे वह प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्राॅनिक मीडिया। इसका उद्देश्य समाज में जागरूकता स्थापित कर लोगों को जागरूक बनाकर उनमे जन-जागरण का कार्य करना होता है। वर्तमान समय में समाज के अंदर जन-साधारण में चेतना आ रही है। किसी भी समस्या के लिए समाचार-पत्रों को माध्यम बनाकर अपनी बात पहुँचाने के लिए धरना, प्रदर्शन, जाम आदि कार्य करते हैं। इन सबके पीछे मीडिया के द्वारा नागरिकों को जागरूकता प्रदान की गई है।
2. निजी जीवन में दखल देना - मीडिया की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है कि ये किसी के निजी जीवन में हस्तक्षेप न करे। इसका परिणाम आज यह दिखाई देता है कि मीडिया समाचार-पत्रों या खबर ;समाचारद्ध चैनलों व सोशल मीडिया में काल्पनिक नाम द्वारा पहचान को गुप्त रखकर समाचारों को प्रसारित करता है।
3. वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना - मीडिया का सामाजिक दायित्व यह है कि वह जन साधारण में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दे। यह देखने में आता है कि इस दायित्व का भी निर्वाह करने में मीडिया सफल रहा है।
Q.14. विद्यालय में पीने के स्वच्छ पानी की समुचित व्यवस्था हेतु प्रधानाचार्य को एक पत्र लिखिए।
उत्तरः
सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय
दिल्ली पब्लिक स्कूल मेरठ
दिनांक: 10 मार्च, 2021
विषय - पीने के पानी की समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करने हेतु
महोदय,
सविनय निवेदन है कि हमारे विद्यालय में पिछले कुछ दिनों से पीने का पानी स्वच्छ नहीं आ रहा है। पानी में छोटे-छोटे कीड़े भी आ रहे हैं व पानी में बदबू भी आती है। गंदा तथा दुर्गंध-युक्त पानी पीने के कारण छात्रों का स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है। अतः आपसे अनुरोध है कि आप कर्मचारियों से कहकर पानी की टंकी की सफाई हर सप्ताह करवाने की कृपा करें, जिससे छात्रों को पीने योग्य स्वच्छ पानी मिल सके।
धन्यवाद।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
दीपांशु यादव
कक्षा-दसवीं ‘ब’
अथवा
आपके बचत खाते का ए.टी.एम. कार्ड खो गया है। इस संबंध में तत्काल उचित कार्यवाही करने हेतु बैंक प्रबंधक को पत्र लिखिए।
उत्तरः
सेवा में,
प्रबंधक
पंजाब नेशनल बैंक
बरहन, आगरा
विषय - ए. टी. एम. कार्ड खोने की सूचना हेतु
महोदय,
निवेदन है कि मेरा बचत खाता 6918 आपकी शाखा में है। जिसमें लगभग रू75,000 जमा हैं। मैंने कुछ दिन पहले ही आपके बैंक से ए. टी. एम. कार्ड प्राप्त किया है, जिसका क्रमांक 0523105301 है। वह कहीं रास्ते में पर्स से गिर गया है तथा काफी प्रयास के बाद भी नहीं मिला है। अतः आपसे प्रार्थना है कि आप शीघ्रातिशीघ्र मेरे ए. टी. एम. कार्ड का नंबर बंद कराने की कृपा करें। सूचनार्थ एवं आवश्यक कार्यवाही हेतु पत्र आपकी शाखा में प्रस्तुत है।
भवदीय
महेश यादव पंचायत अधिकारी
बरहन, आगरा
दिनांक ______
Q.15. विद्यालय के वार्षिकोत्सव समारोह के आयोजन के लिए आपको संयोजक बनाया गया है। विद्यालय की ओर से सभी विद्यार्थियों के लिए लगभग 30-40 शब्दों में एक सूचना तेयार कीजिए।
उत्तरः देवकी नंदन शर्मा के प्रसिद्ध नाटक ताजमहल
अथवा
विद्यालय में छुट्टी के उपरांत फुटबाॅल खेलना सीखने की विशेष कक्षाएँ आयोजित की जाएँगी। इच्छुक विद्यार्थियों द्वारा अपना नाम देने हेतु सूचना-पट्ट के लिए लगभग 30.40 शब्दों में एक सूचना लिखिए।
उत्तरः
बिकाऊ है बिकाऊ है बिकाऊ है 16 × 18 गज की पूर्व मुखी एक दो मंजिला मुख्य बाजारराजामंडी में, प्राइम लोकेशन पा²कग सुविधा उपलब्ध।वाजिब दाम वास्तविक खरीदार ही सम्पर्वळ करें।सुरेश शर्मा, मो. नं. 9258XXXX |
Q.16. सड़क पर टहलते हुए आपको एक बैग मिला, जिसमें कुछ रुपये, मोबाइल फोन तथा अन्य कई महत्त्वपूर्ण कागजात थे। लगभग 25 से 50 शब्दों में एक विज्ञापन तैयार कीजिए जिससे कि उचित व्यक्ति आपसे संपर्क कर अपना बैग ले जाए।
उत्तरः
विज्ञापन लेखन
प्रारूप - 2 अंक
विषय - वस्तु - 2 अंक
भाषा - 1 अंक
व्याख्यात्मक हल -
विज्ञापन नेशनल हाईवे पर टहलते समय मुझे सड़क पर एक काले रंग का बैग मिला है। जिसमें कुछ रुपये, मोबाइल फोन तथा अन्य कई महत्त्वपूर्ण कागज़ात हैं। जिस किसी व्यक्ति का हो वह पहचान बताकर निम्न पते से प्राप्त कर लें। 45, एम. आई. जी. नेहरू एन्क्लेव आगरा मो. न. 96246597XX |
अथवा
‘किसी भी कक्षा की पाठ्यपुस्तकें खरीदने पर कॉपियों की कीमतों में 20 प्रतिशत की छूट मिलेगी’ इस आशय का एक विज्ञापन श्याम पुस्तक भंडार के लिए लगभग 25 से 50 शब्दों में तैयार कीजिए।
उत्तरः
श्याम पुस्तक भंडार छत्ता बाजार, मथुरा - 281001 खुशखबरी खुशखबरी खुशखबरी सी.बी.एस.ई., आई.सी.एस.सी., एन.ओ.एस., यू.पी. बोर्ड, एन.सी.ई.आर.टी. तथा विश्वविद्यालयों से संबंधित सभी पाठ्य - पुस्तकों के मिलने का एकमात्र स्थान। विशेष ऑफर - किसी भी कक्षा की पाठ्यपुस्तकों के साथ कापियाँ खरीदने पर कॉपियों की कीमतों में 20ः की छूट। शीघ्र करें स्टाॅक सीमित है। मो नं. ______ |
परीक्षक की टिप्पणी
सुझाव
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Q.17. ‘सब दिन होत न एक समाना’ विषय पर लगभग 100-120 शब्दों में एक लघुकथा लिखिए।
उत्तरः लघुकथा - सब दिन होत न एक समाना
किसी नगर में एक सेठ रहा करता था। वह बड़ा ही उदार और परोपकारी था। उसके दरवाजे पर जो भी आता था, वह उसे खाली हाथ नहीं जाने देता और दिल खोलकर उसकी मदद करता था। एक दिन उसके यहाँ एक आदमी आया उसके हाथ में एक पर्चा था, जिसे वह बेचना चाहता था। उसके पर्चे पर लिखा था - ‘सब दिन होत न एक समाना।’
इस परचे को कौन खरीदता, लेकिन सेठ ने उसे तत्काल ले लिया और अपनी पगड़ी के एक छोर में बाँध लिया। नगर के वुळछ लोग सेठ से ईष्र्या करते थे। उन्होंने एक दिन राजा के पास जाकर उसकी शिकायत की जिससे राजा ने सेठ को पकड़वाकर जेल में डलवा दिया। जेल में काफी दिन निकल गए। सेठ बहुत दुखी था। क्या करें? उसकी समझ में कुछ नहीं आता था।
एक दिन अकस्मात् सेठ का हाथ पगड़ी की गाँठ पर पड़ गया। उसने गाँठ को खोलकर पर्चा निकाला और पर्चा पढ़ा। पढ़ते ही उसकी आँखें खुल गईं। उसने मन-ही-मन कहाµ‘अरे, तो दुख किस बात का? जब सुख के दिन सदा न रहे तो दुःख के दिन भी सदा न रहेंगे।’ इस विचार के आते ही वह जोर से हँस पड़ा, और बहुत देर तक हंसता रहा। जब चैकीदार ने उसकी हंसी सुनी तो उसे लगा, सेठ मारे दुःख के पागल हो गया है। उसने राजा को खबर दी। राजा आया और उसने सेठ से पूछा - क्या बात है?
सेठ ने राजा को सारी बात बता दी। उसने कहा - राजन आदमी दुःखी क्यों होता है? सुख-दुःख के दिन तो सदा बदलते रहते हैं। सुख और दुःख तो जीवन के दो पहलू हैं। यदि आज सुख है तो हो सकता है कि कल हमें दुःख का मुँह भी देखना पड़े। यह सुनकर राजा को अपनी गलती का अहसास हो गया। उसने सेठ को जेल से निकलवाकर उसके घर भिजवा दिया। सेठ आनन्द से रहने लगा, क्योंकि उसे ज्ञात हो गया था कि सुख के साथ-साथ दुःख के दिन भी सदा नहीं रहते।
अथवा
‘कर्तव्य’ विषय पर लगभग 100-120 शब्दों में एक लघुकथा लिखिए।
उत्तरः कर्तव्य
एक बार स्वामी विवेकानन्द रेल में यात्रा कर रहे थे। वह जिस कोच में बैठे थे, उसी कोच में एक महिला भी अपने बच्चे के साथ यात्रा कर रही थी। एक स्टेशन पर दो अंग्रेज अफसर उस कोच में चढ़े और महिला के सामने वाली सीट पर आकर बैठ गए। कुछ देर बाद दोनों अंग्रेज अफसर उस महिला पर अभद्र टिप्पणियाँ करने लगे। वह महिला अंग्रेजी नहीं समझती थी तो चुप रही। उन दिनों भारत अंग्रेजों का गुलाम था। अंग्रेजों का भारतीयों के प्रति दुर्व्यवहार आम बात थी।
धीरे-धीरे दोनों अंग्रेज महिला को परेशान करने पर उतर आए। कभी उसके बच्चे का कान उमेठ देते, तो कभी उसके गाल पर चुटकी काट लेते। परेशान होकर उस महिला ने अगला स्टेशन आने पर एक दूसरे कोच में बैठे पुलिस के भारतीय सिपाही से शिकायत की। शिकायत पर वह सिपाही उस कोच में आया तो सही लेकिन अंग्रेजों को देखकर वह बिना कुछ कहे ही वापस चला। रेल के फिर से चलने पर दोनों अँग्रेज अफसरों ने अपनी हरकतें फिर से शुरू कर दीं। विवेकानंद काफी देर से यह सब देख-सुन रहे थे। वह समझ गए थे कि ये अंग्रेज इस तरह नहीं मानेंगे। वह अपने स्थान से उठे और जाकर उन अंग्रेजों के सामने खड़े हो गए। उनकी सुगठित काया देखकर अंग्रेज सहम गए। पहले तो विवेकानंद ने उन दोनों की आँखों में घूरकर देखा। फिर अपने दाँयें हाथ की कुरते की आस्तीन ऊपर चढ़ा ली और हाथ मोड़कर उन्हें अपनी बाजुओं की सुडौल और कसी हुई माँसपेशियाँ दिखाईं। विवेकानंद के रवैये से दोनों अंग्रेज अफसर डर गए और अगले स्टेशन पर वह दूसरे कोच में जाकर बैठ गए। विवेकानन्द ने अपने एक प्रवचन में यही घटना सुनाते हुए कहा कि जुल्म को जितना सहेंगे, वह उतना ही मजबूत होगा। अत्याचार के खिलाफ तुरंत आवाज उठानी चाहिए।
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Ans. 1. प्रश्न 1: नमूना प्रश्न पत्र क्या है और इसका महत्व क्या है? |
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