Class 7 Exam  >  Class 7 Notes  >  संस्कृत कक्षा 7 (Sanskrit Class 7)  >  अनुवाद - दुर्बुद्धिः विनश्यति | Chapter Explanation

अनुवाद - दुर्बुद्धिः विनश्यति | Chapter Explanation | संस्कृत कक्षा 7 (Sanskrit Class 7) PDF Download

(क) अस्ति मगधदेशे फुल्लोत्पलनाम सर: ‍। तत्र संकटविकटौ हंसैौ निवसत: । कम्बुग्रवनामक: तयो: मित्रम् एक: कूर्म: अपि तत्रैव प्रतिवसति स्म ।
अथ एकदा धीवरा: तत्र आगच्छन् । ते अकथयन् । ते अकथयन् - "वयं श्व: मत्स्यकूर्मादीन् मारयिष्याम: ।" एतत् श्रुत्वा कूर्म: अवदत् - "मित्रो! किं युवाभ्यां धीवराणां वार्ता श्रुता ? अधुना किम् अहं करोमि?

सरलार्थ: मगध देश में फुल्लोत्यल नामक तालाब है । वहाँ संकट तथा विकट नामक दो हंस रहते थे । उन दोनो का मित्र कम्बुग्रीव नामक एक कछुआ भी वहॉं पर ही रहता था । तत्पश्चात् एक बार मछुआरे वहॉं आए । वे कहने लगे हमलोग कल मछलियो और कछुए आदि को मार डालेंगे । यह सुनकर कछुआ बोला- "हे मित्रो ! कया तुम दोनों ने मछुआरों की बात सुनी ? अब मैं क्या करुँ ?"

(ख) " हंसौ अवदताम् - "प्रात: यद् उचितं तत्कर्त्तव्यम्।" कूर्म: अवदत्-"अावां किं करवाव ? " कूर्म: अवदत्- "मैवम। तद् यथा हम् अन्यं ह्रदं गच्छामि तथा कुरूतम्।" हंसौ अवदताम्-"अावां किं करवाव?" कूर्म: अवदत्- "अहं युवाभ्यां सह अाकाशमार्गण अन्यत्र गन्तुम् इच्छामि ।"

सरलार्थ: 
दोनों हंस कहे-"सुबह जो उचित होगा वह करेंगे" । कछुआ कहा-"ऐसा (उचित) नहीं है । वैसा (उपाय) करो जिस प्रकार मैं दूसरे तालाब में चला जाऊँ ।" दोनो हंस बोले - "हम दोनो क्या करे ?" कछुआ बोला - मै तुम दोनों के साथ आकाशमार्ग से दूसरे स्थान पर जाने की इच्छा करता हूँ ।

(ग) हंसौ अवदताम्- "अत्र क: उपाय: ?" कच्छप: वदति-"युवां काष्ठदण्डमध्ये अवलम्ब्य युवयो: पक्षबलेन सुखेन गमिष्यामि ।" हंसौ अकथयताम् । "सम्भवति एष: उपाय: । किन्तु अत्र एक: अपायो पि वर्तते ।
अावाभ्यां नीयमानं त्वामवलोक्य जना: किञ्चिद् वदिष्यन्ति एव । यदि त्वुत्तरं दास्यसि तदा तव मरणं निश्चितम् । अत: त्वम् अत्रैव वस ।"

सरलार्थ:
दोनों हंस कहने लगे-"उपाय है ? " कछुआ बोला - "तुम दोनों एक लकडी के टुकड़े को चोंच से पकड़ लेना । मैं उस लकडी के दण्डे का मध्य भाग का सहारा लेकर तुम दोनों के पंख के बल से आराम से चला जाऊँगा ।" दोनों हंस कहने लगे-"यह उपाय संभव है , परंतु यहॉं एक खतरा भी है । " हमारे द्वारा ले जाए जाते हुए तुम्हें देखकर लोग कुछ कहेंगे ही । यदि तुम उत्तर दोगे तब तुम्हारी मृत्यु निशि्चत् है । इसलिए तुम यहॉं ही रहो ।

(घ) तत् श्रुत्तवा क्रुद्ध: कूर्म: अवदत्- "किमह मूर्ख: ? उत्तर न दास्यामि । किञ्चिदपि न वदिष्यामि ।" अत: अह यथा वदामि तथा युवां कुरूतम् ।
एवं काष्ठदण्डे लम्बमानं कूर्मं गोपालका: अपश्यन् । पश्चाद् अधावन् अवदन् च- "हंहो ! महदाश्चर्यम् । हंसाभ्यां सह कूर्मो पि उड्डीयते ।" कश्चिद् वदति- "यधयं कूर्म: कथमपि निपतति तदा अत्रैव पक्त्वा खादिष्यामि ।" अन्य: अकथयत्- "गृहं नीत्वा भक्षयिष्यमि" इति ।

सरलार्थ: यह सुनकर क्ररोधित कछुआ कहने लगा-" क्या मैं मूर्ख हूँ ? मै उत्तर नही दूंगा । कुछ भी नहीं बोलूंगा । " इसलिए जैसा मैं कहता हूँ वैसा तुम दोनों करो । इस प्रकार लकड़ी के दण्डे पर लटकते हुए कछुए को देखकर ग्वाले पीछे दौडे़ और बोले-"अरे-रे , महान् आश्चर्य है । दो हंस के साथ कछुआ भी उड़ रहा है । " कोई कहने लगा-"यदि यह कछुआ किसी प्रकार भी गिर जाता है तब यहां पर ही पकाकर खा लूंगा । " दूसरा कहने लगा - "तालाब के किनारे पकाकर खाऊँगा "। अन्य कहा-"घर ले जाकर खाऊँगा ।"

(ङ) तेषां तद् वचनं श्रुत्वा कूर्म: क्रद्ध: जात: । मित्राभ्यां दत्तं वचनं विस्मृत्य स: अवदत्- "यूयं भस्म खादत ।" तत्क्षणमेव कूर्म: दण्डात् भूमौ पतित: । गोपालकै: स: मारित: । अत एवोक्तम्-

सरलार्थ: उन (ग्वालों) के उस वचन को सुनकर कछुआ क्रोधित हो जाता है । दोनों मित्रों को दिए गए वचन को भूलकर वह बोला-"तुम सभी राख खा लो । " उसी पल ही कछुआ डण्डे से पृथ्वी पर गिर पड़ा । ग्वालों के द्वारा उसे मार डाला गया । अथवा कहा गया है -

(च) सुहृदां हितकामानां वाक्यं यो नाभिनन्दति ।
स कूर्म इव दुर्बुद्धि: काष्ठाद् भ्रष्टो विनश्यति ।।

सरलार्थ: 
भलाई चाहने वाले मित्र लोगों के वचन को जो प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार नहीं करता है , वह लकड़ी से गिरे हुए मूर्ख कछुए के समान नष्ट हो जाता है 

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FAQs on अनुवाद - दुर्बुद्धिः विनश्यति - Chapter Explanation - संस्कृत कक्षा 7 (Sanskrit Class 7)

1. दुर्बुद्धिः किं विनश्यति?
उत्तरः दुर्बुद्धिः प्रतिभाशाली व्यक्तिः न बन्धुः, न धनम्, न सुखं, न सम्पदः, न बुद्धिः, न विद्या, न निपुणता स्वीकरोति इति अर्थः। अतः दुर्बुद्धिः विनश्यति अर्थात्, विद्या, निपुणता इत्यादिकं प्राप्नोति न च सुखम्, न बन्धुः, न धनम्, न सम्पदः प्राप्नोति।
2. दुर्बुद्धिः कथं विनश्यति?
उत्तरः दुर्बुद्धिः विनश्यति यथा यथा अज्ञानं ग्रसति। अज्ञानप्रभवं कामं ग्रसति; ततः कामः क्रोधं जायते; तस्मात् क्रोधात् भयं जायते; तस्मात् भयात् स्मृतिः विनश्यति; तस्मात् स्मृतेः बुद्धिः नष्टा इति अर्थः।
3. दुर्बुद्धिः किं न प्राप्नोति?
उत्तरः दुर्बुद्धिः विद्यां, निपुणतां, सुखं, बन्धुत्वं, धनं, सम्पदं, बुद्धिं इत्यादिकं न प्राप्नोति।
4. दुर्बुद्धिः किं प्राप्नोति?
उत्तरः दुर्बुद्धिः अज्ञानं, कामं, क्रोधं, भयं, स्मृतिं प्राप्नोति।
5. दुर्बुद्धिः विनश्यति इत्यादि वाक्यस्य अर्थः किं होति?
उत्तरः "दुर्बुद्धिः विनश्यति" इत्यादि वाक्यस्य अर्थः यह बताने के लिए होता है कि दुर्बुद्धिः विद्यां, निपुणतां, सुखं, बन्धुत्वं, धनं, सम्पदं, बुद्धिं इत्यादिकं प्राप्नोति नहीं।
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