Class 7 Exam  >  Class 7 Notes  >  संस्कृत कक्षा 7 (Sanskrit Class 7)  >  अनुवाद - सदाचारः | Chapter Explanation

अनुवाद - सदाचारः | Chapter Explanation | संस्कृत कक्षा 7 (Sanskrit Class 7) PDF Download

(क) आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः ।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ।।1।।

अन्वयः हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः आलस्यं (अस्ति)। उद्यम समो बन्धुः न अस्ति, यं कृत्वा न अवसीदति।
सरलार्थ: निश्चित रूप से मनुष्य के शरीर में उपस्थित सबसे बड़ा शत्रु (दुश्मन) आलस्य (सुस्ती) है। परिश्रम (मेहनत) के समान (दूसरा कोई) दोस्त/मित्र नहीं है जिसे करके (कोई भी मनुष्य) दुखी नहीं होता है।

(ख) श्वः कार्यमघ कुर्वीत पूर्वाह्ण चापराह्णिकम् ।
नहि प्रतीक्षते मृत्युः कृतमस्य न वा कृतम्‌ ।।2।।
अन्वयः 
श्वः कार्यम् अद्य कुर्वीत, आपराह्णिकम् च पूर्वाह्ने (कुर्वीत)। मृत्युः न हि प्रतीक्षते। अस्य कृतं न वा कृतम् ।।
सरलार्थ: 
आने वाले कल का कार्य आज करना चाहिए तथा दोपहर का कार्य सुबह में करना चाहिए। मृत्यु निश्चित रुप से प्रतीक्षा नहीं करती है चाहे इसका कार्य किया गया है या नहीं।

(ग) सत्य॑ ब्रूयात्‌ प्रियं ब्रूयात्‌ न ब्रूयात्‌ सत्यमप्रियम्‌ ।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात्‌ एष धर्म: सनातन: ।॥|3॥।
अन्वयः 
सत्यं ब्रूयात्। प्रियं ब्रूयात्। अप्रिय सत्यं न ब्रूयात्। प्रियं च अनृतं न ब्रूयात्। एष: धर्म: सनातन:।
सरलार्थ: 
सत्य बोलना चाहिए , प्रिय (मधुर) बोलना चाहिए । अप्रिय (कठोर) सत्य नहीं बोलना चाहिए। और प्रिय असत्य (भी) नहीं बोलना चाहिए । यह (हीं ) सनातन (सार्वकालिक) धर्म है।

(घ) सर्वदा व्यवहारे स्यात्‌ औदार्य सत्यता तथा ।
ऋजुता मृदुता चापि कौटिल्यं न कदाचन ॥॥4॥।
अन्वयः
व्यवहारे सर्वदा औदार्यं सत्यता तथा ऋजुता मृदुता च अपि स्यात् , कदाचन कौटिल्यं न स्यात्।
सरलार्थ: व्यवहार में हमेशा उदारता, सत्यता तथा सरलता और कोमलता भी होना चाहिए। किसी भी समय (व्यवहार में) कुटिलता नहीं होना चाहिए।

(च) श्रेष्ठ जन॑ गुरु चापि मातरं पितरं तथा ।
मनसा कर्मणा वाचा सेवेत सततं सदा ॥5॥।
अन्वयः 
मातरं-पितरं, गुरुं, श्रेष्ठं जनं च सदा मनसा कर्मणा तथा वाचा अपि सततं सेवेत।
सरलार्थ: माता-पिता, गुरु-जन और श्रेष्ठ लोग की हमेशा मन से, कर्म से तथा वाणी से भी निरंतर सेवा करनी चाहिए।

(छ) मित्रेण कलहं कृत्वा न कदापि सुखी जनः।
इति ज्ञात्वा प्रयासेन तदेव परिवर्जयेत्‌ ॥॥6।।
अन्वयः
मत्रेण (सह) कलहं कृत्वा जनः कदापि सुखी न भवति। इति ज्ञात्वा प्रयासेन तदेव परिवर्जयेत्।
सरलार्थ: मित्र के साथ झगड़ा करके, व्यक्ति कभी भी सुखी नहीं होता है। यह जानकर कोशिश के द्वारा उससे (झगड़े से) बचना चाहिए।

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FAQs on अनुवाद - सदाचारः - Chapter Explanation - संस्कृत कक्षा 7 (Sanskrit Class 7)

1. सदाचार का अर्थ क्या है?
उत्तर: सदाचार एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है "धार्मिक और नैतिक मूल्यों का पालन करना"। सदाचार मनुष्य के आचार, व्यवहार, और व्यक्तित्व को सुशोभित और समर्थ बनाने में मदद करता है।
2. सदाचार क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: सदाचार महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें सही और नैतिक रास्ते पर चलने में मदद करता है। यह हमारे व्यक्तित्व को सुशोभित और समर्थ बनाता है और हमें समाज में स्वीकृति प्राप्त करने में मदद करता है।
3. सदाचार कैसे विकसित किया जा सकता है?
उत्तर: सदाचार को विकसित करने के लिए हमें नैतिक मूल्यों को अपनाने और उन्हें अपनी दैनिक जीवन शैली में शामिल करने की आवश्यकता होती है। हमें अपनी आदतों और व्यवहारों को सुधार करने का प्रयास करना चाहिए और दूसरों के साथ धैर्यपूर्वक और समझदारी से व्यवहार करना चाहिए।
4. सदाचार की प्राथमिकता क्या है?
उत्तर: सदाचार की प्राथमिकता है अपनी इंटीग्रिटी और ईमानदारी को संभालना। यह अर्थपूर्ण है कि हमें हमारे व्यवहार में सत्यता और न्याय को बनाए रखना चाहिए। सदाचार अपने आप के साथ और दूसरों के साथ सही और संवेदनशील तरीके से बर्ताव करने का भी मतलब है।
5. सदाचार क्यों एक महत्वपूर्ण कौशल है?
उत्तर: सदाचार एक महत्वपूर्ण कौशल है क्योंकि यह हमें सफलता के मार्ग में मदद करता है। यह हमारे व्यक्तित्व को सुशोभित और समर्थ बनाता है और हमें अच्छे संबंध बनाने, न्यायपूर्वक निर्णय लेने और समस्याओं को सुलझाने में मदद करता है।
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