उत्तर: 'दुर्बल पद बल' देवसेना के बल की सीमा का ज्ञान कराता है। अर्थात देवसेना अपने बल की सीमा को बहुत भली प्रकार से जानती है। उसे पता है कि वह बहुत दुर्बल है। इसके बाद भी वह अपने भाग्य से लड़ रही है।
'होड़ लगाई' पंक्ति में निहित व्यंजना देवसेना की लगन को दर्शाता है। देवसेना भली प्रकार से जानती है कि प्रेम में उसे हार ही प्राप्त होगी परन्तु इसके बाद भी पूरी लगन के साथ प्रलय (हार) का सामना करती है। वह हार नहीं मानती।
प्रश्न 4: काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) श्रमित स्वप्न की मधुमाया ______ तान उठाई।
(ख) लौटा लो ______ लाज गँवाई।
उत्तर: (क) इस काव्यांश की विशेषता है कि इसमें स्मृति बिंब बिखरा पड़ा है। देवसेना स्मृति में डूबी हुई है। उसे वे दिन स्मरण हो आते हैं, जब उसने प्रेम को पाने के लिए अथक प्रयास किए थे परन्तु वह असफल रही। अब उसे अचानक उसी प्रेम का स्वर सुनाई पड़ रहा है। यह उसे चौंका देता है। विहाग राग का उल्लेख किया गया है। इसे आधी राती में गाया जाता है। स्वप्न को कवि ने श्रम रूप में कहकर गहरी व्यंजना व्यक्त की है। स्वप्न को मानवी रूप में दर्शाया है। गहन-विपिन एवं तरु-छाया में समास शब्द हैं। इन पंक्तियों के मध्य देवसेना की असीम वेदना स्पष्ट रूप से दिखती है।
(ख) इस काव्यांश की विशेषता है कि इसमें देवसेना की निराशा से युक्त हतोत्साहित मनोस्थिति का पता चलता है। स्कंदगुप्त का प्रेम वेदना बनकर उसे प्रताड़ित कर रहा है। 'हा-हा' शब्द पुनरुक्ति प्रकाश अंलकार का उदाहरण हैं।
प्रश्न 5: देवसेना की हार या निराशा के क्या कारण हैं?
उत्तर: सम्राट स्कंदगुप्त से राजकुमारी देवसेना प्रेम करती थी। उसने अपने प्रेम को पाने के लिए बहुत प्रयास किए। परन्तु उसे पाने में उसके सारे प्रयास असफल सिद्ध हुए। यह उसके लिए घोर निराशा का कारण था। वह इस संसार में बंधु-बांधवों रहित हो गई थी। पिता पहले ही मृत्यु की गोद में समा चुके थे तथा भाई भी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ था। वह दर-दर भिक्षा माँगकर गुजरा कर रही थी। उसे प्रेम का ही सहारा था। परन्तु उसने भी उसे स्वीकार नहीं किया था।
प्रश्न 1: कार्नेलिया का गीत कविता में प्रसाद ने भारत की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर: प्रसाद जी ने भारत की इन विशेषताओं की ओर संकेत किया है-
प्रश्न 2: 'उड़ते खग' और 'बरसाती आँखों के बादल' में क्या विशेष अर्थ व्यंजित होता है?
उत्तर: 'उड़ते खग' में अप्रवासी लोगों का विशेष अर्थ व्यंजित होता है। कवि के अनुसार जिस देश में बाहर से पक्षी आकर आश्रय लेते हैं, वह हमारा देश भारत है। अर्थात भारत बाहर से आने वाले लोगों को आश्रय देता है। भारत लोगों को आश्रय ही नहीं देता बल्कि यहाँ आकर उन्हें सुख और शांति भी प्राप्त होती है। यह भारत की विशेषता है।
'बरसाती आँखों के बादल' पंक्ति से विशेष अर्थ यह व्यंजित होता है कि भारतीय अनजान लोगों के दुख में भी दुखी हो जाते हैं। वह दुख आँखों में आँसू के रूप में निकल पड़ता है।
प्रश्न 3: काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
हेम कुंभ ले उषा सवेरे-भरती ढुलकाती सुख मेरे
मदिर ऊँघते रहते सब-जगकर रजनी भर तारा।
उत्तर: प्रस्तुत काव्यांश में उषा का मानवीकरण कर उसे पानी भरने वाली स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है। इन पंक्तियों में भोर का सौंदर्य सर्वत्र दिखाई देता है। कवि के अनुसार भोर रूपी स्त्री अपने सूर्य रूपी सुनहरे घड़े से आकाश रूपी कुएँ से मंगल पानी भरकर लोगों के जीवन में सुख के रूप में लुढ़का जाती है। तारें ऊँघने लगते हैं। भाव यह है कि चारों तरफ भोर हो चुकी है और सूर्य की सुनहरी किरणें लोगों को उठा रही हैं। तारे भी छुप गए हैं।
(क) उषा तथा तारे का मानवीकरण करने के कारण मानवीय अंलकार है।
(ख) काव्यांश में गेयता का गुण विद्यमान है। अर्थात इसे गाया जा सकता है।
(ग) जब-जगकर में अनुप्रास अलंकार है।
(घ) हेम कुंभ में रूपक अलंकार है।
प्रश्न 4: 'जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा'- पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इसका तात्पर्य है कि भारत जैसे देश में अजनबी लोगों को भी आश्रय मिल जाता है, जिनका कोई आश्रय नहीं होता है। कवि ने भारत की विशालता का वर्णन किया है। उसके अनुसार भारत की संस्कृति और यहाँ के लोग बहुत विशाल हृदय के हैं। यहाँ पर पक्षियों को ही आश्रय नहीं दिया जाता बल्कि बाहर से आए अजनबी लोगों को भी सहारा दिया जाता है।
प्रश्न 5: प्रसाद शब्दों के सटीक प्रयोग से भावाभिव्यक्ति को मार्मिक बनाने में कैसे कुशल हैं? कविता से उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।
उत्तर: प्रसाद जी शब्दों के माध्यम से अपने भावों की अभिव्यक्ति को भी बड़े मार्मिक बना देते हैं। वह शब्दों के साथ इस तरह खेलते हैं मानो कोई कठपुतली को धागों में पिरोकर नचा रहो हो। उनकी भावाभिव्यक्ति इतनी मार्मिक होती है कि हृदय द्रवित हो उठता है। उदाहरण के लिए देखें-
(क) आह! वेदना मिली विदाई!
मैंने भ्रम-वश जीवन संचित,
मधुकिरयों की भीख लुटाई।
(ख) लगी सतृष्णा दीठ थी सबकी,
रही बचाए फिरती कबकी।
मेरी आशा आह! बावली,
तूने खो दी सकल कमाई।
इसी तरह तीसरी पंक्ति में देखिए-
(ग) लौटा लो यह अपनी थाती
मेरी करुणा हा-हा खाती
विश्व!न सँभलेगी यह मुझसे
इससे मन की लाज गँवाई।
कवि ने इन पंक्तियों में देवसेना के हृदय के भावों को बड़ी मार्मिकता से उभारा है। इससे देवसेना के अंदर व्याप्त वेदना और दुख का पता चलता है।
प्रश्न 6: कविता में व्यक्त प्रकृति-चित्रों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: प्रसाद जी के अनुसार भारत देश बहुत सुंदर और प्यारा है। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है। यहाँ सूर्योदय का दृश्य बड़ा मनोहारी होता है। सूर्य के प्रकाश में सरोवर में खिले कमल तथा वृक्षों का सौंदर्य मन को हर लेता है। ऐसा लगता है मानो यह प्रकाश कमल पत्तों पर तथा वृक्षों की चोटियों पर क्रीड़ा कर रहा हो। भोर के समय सूर्य के उदित होने के कारण चारों ओर फैली लालिमा बहुत मंगलकारी होती है। मलय पर्वत की शीतल वायु का सहारा पाकर अपने छोटे पंखों से उड़ने वाले पक्षी आकाश में सुंदर इंद्रधनुष का सा जादू उत्पन्न करते हैं। सूर्य सोने के कुंभ के समान आकाश में सुशोभित होता है। उसकी किरणें लोगों में आलस्य निकालकर सुख बिखेर देती है।
प्रश्न 1: कविता में आए प्रकृति-चित्रों वाले अंश छाँटिए और उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: (क) सरस तामरस गर्भ विभा पर-नाच रही तरुशिखा मनोहर।
तालाब में स्थित कमलों पर तथा वृक्षों की चोटियों पर पढ़ने वाली सूर्य की किरणें ऐसी प्रतीत हो रही हैं मानो नाच रही हों।
(ख) लघु सुरधनु से पंख पसारे-शीतल मलय समीर सहारे।
मलय पर्वत पर बहने वाली हवा के सहारे छोटे पखों द्वारा उड़ते पक्षी ऐसे प्रतीत होते हैं मानो आकाश में इंद्रधनुष उभर आया हो।
प्रश्न 2: भोर के दृश्य को देखकर अपने अनुभव काव्यात्मक शैली में लिखिए।
उत्तर: भोर का उजियारा फैला मटमैले आकाश में,
सिंदूरी आँचल फैला मटमैले आकाश में,
लगता जैसे चाय चढ़ गई मटमैले आकाश में,
दूधिया से बादल फैले भोर के आकाश में,
मन हर्षित होकर नाच उठा देख भोर का रूप अनोखा।
मंदमंद-सी हवा चल रही, भोर के राज में।
प्रश्न 3: जयशंकर प्रसाद की काव्य रचना 'आँसू' पढ़िए।
उत्तर: ‘आँसू’ कविता पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।
‘जो घनीभूत पीड़ा थी
मस्तक में स्मृति-सी छाई
दुर्दिन में आँसू बनकर
वह आज बरसने आई।
प्रश्न 4: जयशंकर प्रसाद की कविता 'हमारा प्यारा भारतवर्ष' तथा रामधारी सिंह दिनकर की कविता 'हिमालय के प्रति' का कक्षा में वाचन कीजिए।
उत्तर: रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘हिमालय के प्रति’
मेरे नगपति मेरे विशाल।
तू मौन त्याग, कर सिंहनाद,
रे तपी! आज तप का न काल।
कितनी मणियाँ लुट गई ? मिटा
कितना मेरा वैभव अशेष!
तू ध्यान-मग ही रहा, इधर
वीर हुआ प्यारा स्वदेश।
किन द्रैपदियों के बाल खुले ?
किन-किन कलियों का अंत हुआ ?
कह हृदय खोल चित्तोर! यहाँ
कितने दिल ज्वाल वसंत हुआ ?
पूछे सिकताकण से हिमपति!
तेरा वह राजस्थान कहाँ ?
वन-वन स्वतंत्रता दीप लिए
फिरने वाला बलवान कहाँ ?
तू पूछ अवध से, राम कहाँ ?
वंदा! बोलो, घनश्याम कहाँ ?
औ मगध! कहाँ मेरे अशोक ?
वह चंद्रगुप्त बलधाम कहाँ ?
हमारा प्यारा भारतवर्ष (जयशंकर प्रसाद)
हिमालय के आंगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार। उषा ने हँस अभिनन्दन किया और पहनाया हीरक हार। जगे हम, लगे जगाने विश्व लोक में फैला फिर आलोक। व्योम, तम-पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो विमल वाणीं ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत। सप्तस्वर सप्तसिन्धु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत। बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत। अरुण केतन लेकर निज हाथ वरुण पथ में हम बढ़े सुना है दधीचि का वह त्याग हमारी जातीयता विकास। पुरन्दर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरे इतिहास।
सिन्धु-सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साह। दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकर में वह राह।। धर्म का ले-लेकर जो नाम हुआ करती बलि, कर दी बन्द हमीं ने दिया शांति सन्देश, सुखी होते देकर आनन्द। विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम। भिक्षु होकर रहते सम्राट् दया दिखलाते घर-घर घूम। जातियों का उत्थान पतन, आँधियाँ, झड़ी प्रचंड समीर। खड़े देखा, फैला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर। चरित के पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा सम्पन्न। हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न।
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1. जयशंकर प्रसाद कौन थे? |
2. जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं कौन-कौन सी थीं? |
3. जयशंकर प्रसाद की कविताएं किस विषय पर आधारित थीं? |
4. जयशंकर प्रसाद का जन्म कितने समय पहले हुआ था? |
5. जयशंकर प्रसाद के काम का क्या महत्व था उनके समकालीन काव्यिक साहित्य में? |
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