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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra - घनानंद

प्रश्न 1: कवि ने 'चाहत चलन ये संदेसो ले सुजान को' क्यों कहा है?
उत्तर: इस पंक्ति में कवि की अपनी प्रेमिका से मिलने की व्यग्रता दिखाई देती है। वह रह-रहकर अपनी प्रेमिका से मिलने की प्रार्थना कर रहा है। परन्तु उसकी प्रार्थना तथा संताप का प्रेमिका पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। वे इस कारण दुखी हो जाते हैं। बस वे उससे मिलना चाहते हैं। उन्हें प्रतीत हो रहा है कि उनका अंत समय आ गया है। अतः वे कह उठते हैं कि बहुत लंबे समय से मैं तुम्हारे आने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ परन्तु तुम्हारा कुछ पता नहीं है। तुमसे मिलने की आस में मेरे प्राण अटक रखे हैं। यदि एक बार तुम्हारा संदेश आ जाए, तो मैं उन्हें लेकर ही मृत्यु को प्राप्त हो जाऊँ। कवि इन पंक्तियों में अपने जीवन का आधार प्रेमिका का संदेश बताते हैं, जिसे पाने के लिए वे व्यग्र हैं। यदि एक बार उन्हें संदेशा मिल जाए, तो वह आराम से प्राण त्याग दे।

प्रश्न 2: कवि मौन होकर प्रेमिका के कौन से प्रण पालन को देखना चाहता है?
उत्तर: कवि के अनुसार उसकी प्रेमिका उसकी ओर से कठोर बनी हुई है। वह न उससे मिलने आती है और न उसे कोई संदेशा भेजती है। कवि कहता है कि वह मौन होकर देखना चाहता है कि उसकी प्रेमिका कब तक उसकी ओर कठोर रहती है। वह बार-बार उसे पुकार रहा है। उसकी पुकार को कब उसकी प्रेमिका अनसुना करती है, कवि यही देखना चाहता है।

प्रश्न 3: कवि ने किस प्रकार की पुकार से 'कान खोलि है' की बात कही है?
उत्तर: कान खोलि से कवि ने अपनी प्रेमिका के कानों को खोलने की बात कही है। कवि कहता है कि वह कब तक कानों में रुई डाले रहेगी। कब तक यह दिखाएगी कि वह बहरी बनी बैठी है। एक दिन ऐसा अवश्य आएगा कि मेरे हृदय की पुकार उसके कानों तक अवश्य पहुँचेगी। भाव यह है कि कवि को विश्वास है कि एक दिन उसकी प्रेमिका अवश्य उसके प्रति बैरुखा रवैया छोड़कर उसे अपना लेगी। कवि की करुण पुकार उसे अवश्य पिघला देगी।

प्रश्न 4: घनानंद की रचनाओं की भाषिक विशेषताओं को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: घनानंद की रचनाओं की भाषिक विशेषताएँ हैं:

  • घनानंद की रचनाओं में अलंकारों का बड़ा सुंदर वर्णन मिलता है। वे अलंकारों का प्रयोग बड़ी प्रवीणता से करते थे। उनकी दक्षता का परिचय उनकी रचनाओं का पठन करते ही पता चल जाता है।
  • घनानंद ब्रजभाषा के प्रवीण कवि थे। इनका भाषा साहित्यिक तथा परिष्कृत है।
  • लाक्षणिकता का गुण इनकी भाषा में देखने को मिलता है।
  • काव्य भाषा में सर्जनात्मक के जनक भी थे।
प्रश्न 5: निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों की पहचान कीजिए।

(क) कहि कहि आवन छबीले मनभावन को, गहि गहि राखति ही दैं दैं सनमान को।
(ख) कूक भरी मूकता बुलाए आप बोलि है।
(ग) अब न घिरत घन आनंद निदान को।
उत्तर: (क) प्रस्तुत पंक्ति में 'कहि' 'कहि', 'गहि' 'गहि' तथा 'दैं' 'दैं' शब्दों की उसी रूप में दोबारा आवृत्ति पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार की ओर संकेत करती है। इस पंक्ति में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार की छटा बिखरी हुई है।
(ख) प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने अपनी चुप्पी को कोयल की कूक के समान बताया है। इसके माध्यम से कवि अपनी प्रेमिका पर कटाक्ष करता है। उसके अनुसार वह कुछ नहीं कहेगा परन्तु फिर भी वह उसके कारण चली आएगी। हम यह जानते हैं कि चुप्पी कोई सुन नहीं सकता है। परन्तु फिर भी कवि मानता है कि उसे सुनकर चली आएगी इसलिए यह विरोधाभास अलंकार का उदाहरण है।
(ग) प्रस्तुत पंक्ति में 'घन आनंद' शब्द में दो अर्थ चिपके हुए हैं। इसमें एक का अर्थ प्रसन्नता है, तो दूसरे का अर्थ घनानंद के नाम से है। इसके साथ ही 'घ' शब्द की दो बार आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न 6: निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) बहुत दिनान को अवधि आसपास परे/खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को
(ख) मौन हू सौं देखिहौं कितेक पन पालिहौ जू/कूकभरी मूकता बुलाय आप बोलिहै।
उत्तर: (क) बहुत दिनान को अवधि आसपास परे/खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान को- प्रस्तुत पंक्ति का आशय है कि तुम्हारे इंतज़ार में बहुत दिन का समय इसी आस में व्यतीत हो गया कि तुम आओगी। मेरे प्राण अब तो निकल जाने को व्यग्र हैं। अर्थात निकलने वाले हैं। भाव यह है कि कवि इस आस में था कि उसकी प्रेमिका अवश्य आएगी परन्तु वह नहीं आयी। अब उसके जीवन के कुछ ही दिन शेष बचे हैं और वह उसे अपने अंतिम दिनों में देखना चाहता है।
(ख) मौन हू सौं देखिहौं कितेक पन पालिहौ जू/कूकभरी मूकता बुलाय आप बोलिहै।– कवि कहते हैं कि वह चुप है और देखना चाहता है कि कब तक उसकी प्रेमिका अपने प्रण का पालन करती है। कवि कहते है कि मेरी कूकभरी चुप्पी तुम्हें बोलने पर विवश कर देगी। भाव यह है कि कवि की प्रेमिका उससे बोल नहीं रही है। कवि कहता है कि वह भी चुप रहकर उसे स्वयं ही बोलने पर विवश कर देगा।

प्रश्न 7: संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए-
(क) झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास है, कै ...... चाहत चलन ये संदेशो लै सुजान को।
(ख) जान घनआनंद यों मोहिं तुम्है पैज परी ....... कबहूँ तौ मेरियै पुकार कान खोलि है।
उत्तर: (क) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ अंतरा भाग-2 नामक पुस्तक में संकलित कवित्त से ली गई हैं। इसके रचयिता रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि घनानंद है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि प्रेमिका से वियोग के कारण अपनी दुःखद स्थिति का वर्णन करता है। वह प्रेमिका से मिलने की आस लगाए बैठा है परन्तु प्रेमिका उसकी ओर से विमुख बनी बैठी है।
व्याख्या- कवि कहता है कि मैंने तुम्हारे द्वारा कही गई झूठी बातों पर विश्वास किया था लेकिन उन पर विश्वास करके आज मैं उदास हूँ। ये बातें मुझे उबाऊ लगती हैं। अब मेरे संताप हृदय को आनंद देने वाले बादल भी घिरते नहीं दिखाई दे रहे हैं। वरना यही मेरे हृदय को कुछ सुख दे पाते। मेरी स्थिति अब ऐसी हो गई है कि मेरे प्राण कंठ तक पहुँच गए हैं अर्थात मैं मरने वाला हूँ। मेरे प्राण इसलिए अटके हैं कि तुम्हारा संदेश आए और मैं उसे लेकर ही मरूँ। भाव यह है कि कवि अपनी प्रेमिका के संदेश की राह देख रहा है। उसके प्राण बस उसके संदेशा पाने के लिए अटके पड़े हैं।
(ख) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ अंतरा भाग-2 नामक पुस्तक में संकलित कवित्त से ली गई हैं। इसके रचयिता रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि घनानंद है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि प्रेमिका के वियोग के कारण अपनी दुःखद स्थिति का वर्णन करता है। वह प्रेमिका के निष्ठुर व्यवहार से दुखी है और कहता है कि तुम इस प्रकार का व्यवहार मेरी ओर से कब तक रखोगी। मैं तुम्हें इसे छोड़ने पर विवश कर दूँगा।
व्याख्या- घनानंद कहते हैं कि हे सुजान! मेरी तुमसे इस विषय बहस हो ही गई है। तुम्हें ही अपनी जिद्द छोड़कर बोलना ही पड़ेगा। सुजान तुम्हें यह जानना ही होगा कि पहले कौन बोलता है। लगता है तुमने अपने कानों में रूई डाली हुई है। इस तरह तुम कब तक मेरी बात नहीं सुनने का बहाना बनाओगी। आखिर कभी तो ऐसा दिन आएगा, जब तुम्हारे कानों में मेरी पुकार पहुँचेगी। उस दिन तुम्हें मेरी बात सुननी ही पड़ेगी। भाव यह है कि सुजान की अनदेखी पर कवि चित्कार उठते हैं और उसके सम्मुख यह कहने पर विवश हो उठते हैं कि एक दिन सुजान स्वयं कवि के प्रेम निवेदन को स्वीकार करेगी।  

योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1: पठित अंश में से अनुप्रास अलंकार की पहचान कर एक सूची तैयार कीजिए।
उत्तर: अनुप्रास अलंकार की सूची इस प्रकार है-
दोनों कवित्त में प्रयोग किए गए अनुप्रास अलंकार के उदाहरण-

  • अवधि आसपास
  • घिरत घन
  • कारि कै
  • चाहत चलन
  • नाकानी रसी निहारिबो रौगे कौलौं
  • पन पालिहौ
  • पैज परी
  • टेक टरें

दोनों सवैये में प्रयोग किए गए अनुप्रास अलंकार के उदाहरण-

  • तौ छबि पीवत जीवत है, अब सोचन लोचन जारे।
  • प्रान पले
  • ब ही सुख-साज-माज टरे।
  • अब आनि
  • पूरन प्रेम को मंत्र हा पन जा धि सोधि सुधारि है लेख्यौ।
  • ताही के चारु रित्र बिचित्रनि यों पचिकै चि राखि बिसेख्यौ।
  • हियो हितपत्र
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FAQs on NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra - घनानंद

1. What is the significance of Ghannand in Indian classical music?
Ans. Ghannand is a raga that holds a special place in Indian classical music as it is considered to be a powerful and meditative raga. It is believed to have the ability to evoke deep emotions and create a sense of tranquility in the listener.
2. How is Ghannand different from other ragas in Indian classical music?
Ans. Ghannand stands out from other ragas in Indian classical music due to its unique combination of notes and intricate melodic patterns. It is known for its soothing and calming effect on the listener, making it a popular choice among musicians and music enthusiasts.
3. Can Ghannand be performed on different musical instruments apart from the traditional ones used in Indian classical music?
Ans. Yes, Ghannand can be performed on a variety of musical instruments apart from the traditional ones used in Indian classical music. Instruments such as the piano, guitar, and flute can all be used to play Ghannand, showcasing the versatility of this raga.
4. Are there any specific occasions or festivals where Ghannand is commonly performed in Indian classical music?
Ans. Ghannand is often performed during meditation sessions, yoga classes, and spiritual gatherings due to its calming and meditative qualities. It is also commonly played during the monsoon season in India, as it is believed to evoke the essence of rain and nature.
5. How can one learn to perform Ghannand in Indian classical music?
Ans. To learn how to perform Ghannand in Indian classical music, one can seek guidance from a trained music teacher or attend music workshops and classes that focus on this raga. Practicing regularly and listening to recordings of expert musicians playing Ghannand can also help in mastering this raga.
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