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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antral - II - आरोहण

Page No. - 31

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1: यूँ तो प्रायः लोग घर छोड़कर कहीं न कहीं जाते हैं, परदेश जाते हैं किंतु घर लौटते समय रूप सिंह को एक अजीब किस्म की लाज, अपनत्व और झिझक क्यों घेरने लगी?

रूप सिंह घर छोड़कर नहीं गया था बल्कि चुपचाप बिना बताए घर से चला गया था। प्रायः लोग नौकरी की तालाश में घर छोड़कर जाते हैं। वे यह कार्य सर्वसम्मति से करते हैं। रूप सिंह जब छोटा था, तो उसने अपने पिता-भाई को कुछ नहीं बताया और एक साहब के साथ चला गया। आज वह बहुत वर्षों के बाद घर को लौट रहा था। यहाँ आने पर जहाँ उसमें अपनत्व की भावना थी, वहीं उसे अपने इस कार्य के कारण शर्म आ रही थी। वह समझ नहीं पा रहा था कि वह घरवालों को क्या बोलेगा। अतः उसके मन में झिझक की भावना भी विद्यमान थी।


प्रश्न 2: पत्थर की जाति से लेखक का क्या आशय है? उसके विभिन्न प्रकारों के बारे में लिखिए।

पत्थर की जाति से लेखक का आशय पत्थर के प्रकार से है। बहुत किस्म के पत्थर पाए जाते हैं। वे इस प्रकार हैं-

(क) ग्रेनाइट- यह बहुत सख्त पत्थर होता है। इसकी चट्टान भूरी होती है लेकिन उसमें गुलाबी आभा होती है।
(ख) बसाल्ट- इस पत्थर का निर्माण ज्वालामुखी के लावा से होता है।
(ग) बलुआ पत्थर- यह बालू से बना होता है। लालकिला आदि इमारतें इसी से बनी हैं।
(घ) संगमरमर- यह चूना पत्थर के बदलने से बनता है। यह मुलायम होता है।
(ङ) परतदार पत्थर- यह बारीक कणों के रूपान्तरित शैलों से बनता है।


प्रश्न 3: महीप अपने विषय में बात पूछे जाने पर उसे टाल क्यों देता था?

महीप जान गया था कि रूप सिंह रिश्ते में उसका चाचा है। रूप ने रास्ते में कई बार भूपसिंह और शैला के बारे में बात की थी। वह कुछ-कुछ समझ गया था कि रूप सिंह कौन है? वह उसे अपने विषय में बताना नहीं चाहता था और न ही अपने विषय में कोई बात करना चाहता था। अतः जब भी रूप सिंह महीप से उसके विषय में कुछ पूछता था, तो वह बात को टाल देता था। वह अपने माँ के साथ हुए अन्याय को बताना नहीं चाहता था। उसकी माँ ने अपने पति द्वारा दूसरी स्त्री घर में लाने के कारण आत्महत्या कर ली थी। इससे वह दुखी था। उसने इसी कारण अपना घर छोड़ दिया था।


प्रश्न 4: बूढ़े तिरलोक सिंह को पहाड़ पर चढ़ना जैसी नौकरी की बात सुनकर अजीब क्यों लगा?

पर्वतीय क्षेत्रों में पहाड़ पर चढ़ना आम बात है। यह उनके दैनिक जीवन का भाग है। उसके लिए उन्हें किसी तरह की नौकरी आज तक मिलते नहीं देखा था। जब बूढ़े तिरलोक को रूप सिंह ने बताया कि वह शहर में पहाड़ पर चढ़ना सिखाता है, तो वह हैरान रह गया। उसे इस बात की हैरानी थी कि रूप सिंह जिस नौकरी की इतनी तारीफ़ कर रहा है, वह बस पहाड़ पर चढ़ना सिखाना है। इतनी सी बात के लिए उसे चार हज़ार महीना मिलते हैं। उसे लगा कि सरकार मूर्खता भरा काम कर रही है। इतने छोटे से काम के लिए चार हज़ार महीना वेतन के रूप में मिलने वाली बात उसे हैरान करने लगी।


प्रश्न 5: रूप सिंह पहाड़ पर चढ़ना सीखने के बावजूद भूप सिंह के सामने बौना क्यों पड़ गया था?

रूप सिंह ने पहाड़ पर अवश्य चढ़ना सीखा था परन्तु उसका चढ़ना भूप सिंह के समान नहीं था। वह रस्सियों तथा अन्य सामान के साथ पहाड़ों पर चढ़ना सीखा था। उनके बिना तो वह चढ़ाई कर ही नहीं सकता था। भूप सिंह एक पहाड़ी व्यक्ति था। पहाड़ों पर रोज़ कई-कई बार चढ़ना-उतरना पड़ता था। इसके लिए वह रस्सी या अन्य किसी सामान का सहारा नहीं लेता था। वह दुर्गम चढ़ाई भी सरलता से कर जाता था। इसके विपरीत रूप सिंह के लिए यह कार्य असाध्य था। अपने भाई के घर जाने के लिए उनके भाई भूप सिंह ने उनकी सहायता की। भाई द्वारा पहाड़ों पर बिना किसी सहारे के चढ़ाई देखकर वह स्वयं को उसके आगे बौना महसूस करने लगा। उसका स्वयं पर गर्व समाप्त हो गया।


प्रश्न 6: शैला और भूप ने मिलकर किस तरह पहाड़ पर अपनी मेहनत से नयी ज़िंदगी की कहानी लिखी?

भूप ने सबसे पहले वह मलबा हटाया, जो भूखलन के कारण आया था। शैला और भूप दोनों ने मिलकर खेतों को ढलवा बनाया ताकि बर्फ उसमें अधिक समय तक जम न पाए। जब खेत तैयार हो गए, तो उनके सामने पानी की समस्या आई। अतः उन्होंने झरने का रुख मोड़ने की सोची। इस तरह से उनके खेतों में पानी की समस्या हल हो सकती थी। फिर समस्या आई कि गिरते पानी से पहाड़ को कैसे काटा जाए। यह बहते पानी में संभव नहीं था। क्वार के मौसम में उन्होंने अपनी समस्या का हल पाया और उन्होंने पहाड़ को काटना आरंभ किया। इस मौसम में झरना जम जाता था और सुबह धूप के कारण धीरे-धीरे पिघता था। इस स्थिति में सरलतापूर्वक काम किया जा सकता था। अंत में सफलता पा ही ली और झरने का रुख खेतों की ओर किया जा सका। सर्दियों के समय में झरना जम जाता था, तो वे उसे आग की गर्मी से पिघला देते और खेतों में पानी का इतंज़ाम करते। इस तरह उन्होंने अपनी मेहनत से नयी ज़िंदगी की कहानी लिखी।


प्रश्न 7: सैलानी (शेखर और रूप सिंह) घोड़े पर चलते हुए उस लड़के रोज़गार के बारे में सोच रहे थे जिसने उनको घोड़े पर सवार कर रखा था और स्वयं पैदल चल रहा था। क्या आप भी बाल मज़दूरों के बारे में सोचते हैं?

हाँ, मैं भी बाल मज़दूरों के बारे में सोचता हूँ। हमारी कालोनी में बहुत से बच्चे सब्जी बेचने का काम करते हैं। एक बच्चा तो चायवाले के पास बर्तन धोने का काम करता है। उसको देखकर मुझे दया आती है। मैं नहीं चाहता हूँ कि मेरी उम्र का बच्चा पढ़ने के स्थान पर नौकरी करे। यह नौकरी उनको जीवनभर कुछ नहीं दे पाएगी। इस उम्र में तो नौकरी करके अपना जीवन ही बरबाद कर रहे हैं। उन्हें अभी पढ़ना चाहिए तभी वह उज्जवल भविष्य पाएँगे।


प्रश्न 8: पहाड़ों की चढ़ाई में भूप दादा का कोई जवाब नहीं! उनके चरित्र की विशेषताएँ बताइए।

उनके चरित्र की विशेषताएँ इस प्रकार हैं।-

(क) वह एक मेनहती व्यक्ति है। पहाड़ों पर रहते हुए उन्होंने कभी बाहर काम करने की नहीं सोची। उन्होंने अपने निवास-स्थान पर ही मेहनत की। इसका परिणाम है कि उन्होंने भूकंप में सब समाप्त होने के बाद भी फिर खड़ा कर दिया।
(ख) वह दृढ़ निश्चय के मालिक है। उन्होंने सरल जिंदगी के स्थान पर मुश्किल जिंदगी जी और उससे कभी हार नहीं मानी।  
(ग) वह एक स्वाभिमानी व्यक्ति है। अपने मुश्किल दिनों में उन्होंने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया बल्कि कठिन परिश्रम किया।


प्रश्न 9: इस कहानी को पढ़कर आपके मन में पहाड़ों पर स्त्री की स्थिति की क्या छवि बनती है? उस पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

इस कहानी को पढ़कर मेरे मन में पहाड़ों की स्त्रियों के लिए दयनीय छवि बनती है। यहाँ की स्त्री मेहनती तथा ईमानदार है। वे अपनी मेहनत से पहाड़ों का रुख मोड़ने की भी हिम्मत रखती हैं। लेकिन पुरुष के हाथों हार जाती है। शैला भूप सिंह के साथ मिलकर असंभव को संभव बना देती है। अंत में अपने पति के धोखे से हार जाती है। वह सबकुछ करने में सक्षम है लेकिन पुरुष से उसे इसके बदले धोखा ही मिलता है। ऐसा जीवन किस काम का जिसमें उसके व्यक्तित्व का उदय होने के स्थान पर नरकीय जीवन मिले। मानसिक और शारीरिक कष्ट मिले। वह अपने पति से ईमानदारी की आशा नहीं रख सकती है। जब मजबूर हो जाती है, तो आत्महत्या कर लेती है।


योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1: 'पहाड़ों में जीवन अत्यंत कठिन होता है।' पाठ के आधार पर उक्त विषय पर एक निबंध लिखिए।

पहाड़ी जीवन की कठिनाई इसी बात से लगाई जा सकती है कि यहाँ पर पहाड़ स्थित हैं। जहाँ पर पहाड़ होगें, वहाँ पर यातायात के साधन लोगों को उपलब्ध करवाना कठिन हो जाता है। जहाँ मैदानी इलाकों में सड़कें बनाने में कुछ महीने का समय लगता है, वहीं पहाड़ों में इसी काम को करने में दो से पाँच साल लग जाते हैं। सड़क बनाने में यहाँ आधुनिक साधनों से सहायता नहीं ली जा सकती है। लोगों द्वारा ही यहाँ पर कार्य करवाया जाता है। संकरों रास्तों को बड़ा बनाने में ही कई महीने लग जाते हैं। यही कारण है कि यहाँ विकास की दर कम होती है। यातायात की व्यवस्था जहाँ स्थापित हो गई, तो समझ लीजिए कि विकास रफ़्तार पकड़ लेता है। फिर उसके विकास को कोई रोक नहीं सकता है।

पहाड़ी लोगों का जीवन भी इन कारणों से बहुत कष्टप्रद होता है। सीढ़ीनुमा खेतों के कारण खेती अधिक नहीं होती। यदि बारिश आवश्यकता से अधिक हो गई, तो पानी उनकी मेहनत को भी बहा ले जाता है और यदि नहीं हुई, तो फसल सूख जाती है। वहाँ पर गाय तथा भैसें भी अधिक दुधारू नहीं होती है। कारण लोगों को मज़दूरी करके जीवनयापन करना पड़ता है। खेतों में होने वाली मेहनत कमर तोड़ होती है। जानवरों के रख-रखाव के लिए औरतों को पूरे-पूरे दिन जंगलों में भटकना पड़ता है, तब जाकर वे गाय-भैसों के लिए चारे का इंतज़ाम कर पाती हैं।

गाँव में लोग मात्र जानवरों के चारे के लिए सप्ताह में दो से तीन बार जंगलों में जाते हैं। इस तरह घर की रखवाली के लिए कोई नहीं होता। बच्चों को चारपाई से बाँधकर अकेले ही छोड़ जाते हैं।

बरसात के मौसम में तो यहाँ मृत्यु दर बढ़ जाती है। पानी के कारण पहाड़ों तथा जंगलों में जाना कठिन हो जाता है लेकिन विवश्ता उन्हें जाने पर मज़बूर करती है, जिसके कारण उन्हें जान से हाथ धोना पड़ता है। बरसातों में चट्टानें खिसकना आम बात है। इससे भी उनके प्राण संकट में पड़े होते हैं। सर्दियों में बर्फ के अधिक होने से उनका कामकाज ठप्प पड़ जाता है। जानवरों के चारे के लिए यदि उन्होंने पिछले महीनों में चारा इकट्ठा नहीं किया हो, तो जानवरों को बचाए रखना कठिन हो जाता है।

उनके लिए जीवन मात्र कठिन परिश्रम रह जाता है। नौकरी, चिकित्सा तथा शिक्षा का अभाव होता है। आज इनके अभाव के कारण ही बहुत से लोग पहाड़ों से पलायन कर रहे हैं। पहाड़ों पर जीवन अभावग्रस्त है। अतः इनके जीवन की कठिनाई का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।


प्रश्न 2: पर्वतारोहण की प्रासंगिता पर प्रकाश डालिए।

आज के समय में पर्वतारोहण को बढ़ावा मिल रहा है। युवक तथा युवतियों में इसके प्रति रूझान देखा गया है। पर्वतारोहण अपने में एक अनोखा लक्ष्य है। यही कारण है कि आज कई पर्वतारोहन संस्थाओं का उदय हुआ है। ये संस्थाएँ पर्वतारोहण का प्रशिक्षण देती हैं। इस तरह हम हिमाचल के आसपास के क्षेत्रों को जानते और समझते हैं। इस प्रशिक्षण द्वारा युवा में आत्मविश्वास को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। आगे चलकर सेना में भविष्य बनाने वाले युवकों के लिए यह प्रशिक्षण बहुत फायदा देता है।


प्रश्न 3: पर्वतारोहण पर्वतीय प्रदेशों की दिनचर्या है, वही दिनचर्या आज जीविका का माध्यम बन गई है। उसके गुण-दोष का विवेचन कीजिए।

पर्वतीय प्रदेशों में रहने वाले लोगों को सामान लाने-ले-जाने के लिए चढ़ाई करनी पड़ती है। बस पकड़ना, बाज़ार से सामान लाना, जानवरों को चराना, जंगलों से पत्ते लाना, चिकित्सक के पास जाना, स्कूल जाना, खेतों में जाना इत्यादि करने के लिए उन्हें दिन में कई-कई बार चढ़ाई-उतराई करनी पड़ती है। यह उनकी दिनचर्या का भाग है। आज यह पर्वतारोहण जीविका का साधन बन गई है। इसके यदि कुछ गुण हैं, तो दोष भी हैं। वे इस प्रकार हैं-

गुण-

(क) लोगों को जीविका के लिए अन्य स्थान में नहीं जाना पड़ता है। इससे उनका खर्चा निकल आता है।
(ख) इसके लिए उन्होंने किसी प्रकार का कोर्स करने की आवश्यकता नहीं है।
(ग) इसमें खर्चा भी नहीं आता है।
(घ) शिक्षित होने की आवश्यकता नहीं है।

दोष-
(क) इससे लोगों को अधिक लाभ नहीं मिलता है। कभी बहुत कमाई हो जाती है और कभी कुछ भी प्राप्त नहीं होता है।
(ख) जीविका का यह साधन होने के कारण लोग अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते हैं और छोटी उम्र में ही काम पर लग जाते हैं।
(ग) खर्चा न आने के कारण लोग छोटे बच्चों को भी काम पर लगा देते हैं।
(घ) अशिक्षित और गरीब ही रहते हैं।
(ङ) अपने परिवार से कटकर रहना पड़ता है।
(च) अपनी जीवन को जोखिम में डाल देते हैं।

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