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Class 9 Hindi A: Sample Question Paper Term II- 2 (With Solutions) | Sample Papers For Class 9 PDF Download

कक्षा 09
समय: 2 घंटे
पूर्णांक: 40

सामान्य निर्देश:
(i) इस प्रश्न पत्र में दो खंड हैं- खंड 'क' और खंड 'ख'
(ii) सभी प्रश्न अनिवार्य हैं। यथासंभव सभी प्रश्नों के उत्तर क्रमानुसार ही लिखिए।
(iii) लेखन कार्य में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखिए।
(iv) खंड-'क' में कुल 3 प्रश्न हैं। दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए इनके उपप्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(v) खंड-'ख' में कुल 4 प्रश्न हैं। सभी प्रश्नों के साथ विकल्प दिए गए हैं। निर्देशानुसार विकल्प का ध्यान रखते हुए चारों प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

खण्ड-'क'

प्रश्न.1: निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 25-30 शब्दों में लिखिए।
(क) 'पंखों पर सवार साँवले सपनों का हुजूम' किसे और क्यों कहा गया है? 'साँवले सपनों की याद' पाठ के आधार पर समझाकर बताइए।
(ख) सालिम अली के अनुसार लोगों का प्रकृति के प्रति क्या नजरिया है ? हमें प्रकृति को किस नजरिए से देखना चाहिए?
(ग) प्रेमचंद की फोटो से उनके व्यक्तित्व के विषय में क्या बोध होता है? कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
(घ) कुंभनदास कौन थे ? उनका प्रसंग किस संदर्भ में दिया गया है ? समझाकर लिखिए।

(क) 'पंखों पर सवार साँवले सपनों का हुजूम' पक्षी विज्ञानी सालिम अली के जनाजे को कहा गया है। उनका मृत शरीर मौत की खामोश वादी की ओर अग्रसर है। वे प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी थे और अब इस दुनिया से विदा ले रहे थे। अतः पक्षियों से सम्बन्धित सपने अब वे नहीं देख सकेंगे।
(ख) लोगों का प्रकृति के प्रति उदासीन रवैया देखकर वे द्रवित हो गए। प्रकृति व हरियाली की रक्षा प्राणिमात्र के लिए अत्यंत आवश्यक है, अतः हमें अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए प्रकृति का ध्यान रखने का प्रयास करना ही होगा। हमें प्रकृति को मनुष्य के नजरिए से न देखकर प्रकृति के नजरिए से ही देखना चाहिए।
(ग) लेखक के अनुसार प्रेमचंद के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(i) लापरवाह व्यक्ति-प्रेमचंद पोशाकों के शौकीन नहीं थे। मोटे कपड़े की धोती, कुर्ता तथा टोपी पहनते थे। उनकी फोटो में वे पैरों में केनवस के जूते पहने हैं परन्तु फीते बेढंगे हैं तथा एक पाँव के जूते में छेद है।
(ii) कष्टपूर्ण जीवन-प्रेमचंद ने जीवन में अनेक कष्ट सहे। फोटो खिंचवाते समय भी मुस्कान बड़ी मुश्किल से आती थी।

(iii) महान् व्यक्तित्व-प्रेमचंद ने अपनी कथा तथा उपन्यासों से एक नये युग की शुरुआत की। उनको युग-प्रवर्तक कहा जाता
(iv) अन्धविश्वासों के विरोधी-प्रेमचंद सामाजिक विकास में बाधक परम्पराओं के विरोधी थे। वे कुरीतियों और रूढ़िवादी परम्पराओं रूपी टीलों को ठोकर मार कर उनका विरोध करते थे।

(घ) कुंभनदास कृष्णभक्त कवि थे। एक बार सम्राट अकबर ने उन्हें फतेहपुर सीकरी बुलाकर पुरस्कार देने की बात की, तब उन्होंने इस पद की रचना की
संतन कौं कहा सीकरी सौ काम। आवत जात पन्हइयाँ घिस गईं बिसरि गयौ हरिनाम।
प्रेमचंद के फटे जूते के संदर्भ में कुंभनदास के प्रसंग का उल्लेख किया गया है। प्रेमचंद रूढ़िवादी परम्पराओं को ठोकर मारते थे। इसलिए उनके जूते फट गए, परन्तु समाज नहीं बदला।

प्रश्न.2: निम्नलिखित में से किन्ही तीन प्रश्नों के उत्तर 25-30 शब्दों में दीजिए।
(क) 'कैदी और कोकिला' कविता के अनुसार लिखिए कि तत्कालीन शासक स्वतन्त्रता सेनानियों के साथ कैसा व्यवहार करते थे?
(ख) 'कैदी और कोकिला' कविता में कवि ने शासन की करनी को काली क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।
(ग) बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान क्यों है ?
(घ) बच्चे काम पर किस समय जाते हुए दिखाई देते हैं ? क्या कवि की पीड़ा यही है कि वे उस समय काम पर जा रहे हैं या कुछ और भी ? लिखिए।

(क) तत्कालीन अंग्रेज़ी शासक स्वतन्त्रता सेनानियों के साथ अत्याचार एवं दमनपूर्ण व्यवहार करते थे। उन्हें डाकू, बदमाशों के साथ जंजीरों में जकड़कर रखा जाता था, भरपेट भोजन नहीं दिया जाता था तथा कोल्हू में बैल की तरह जोता जाता था।
(ख) 'कैदी और कोकिला' कविता में कवि ने अंग्रेजी शासन की करनी को काली इसलिए कहा है क्योंकि वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के प्रति अच्छा व्यवहार नहीं करते थे। उनके अन्याय, अत्याचार, दमन के कारण कवि ने शासन की करनी को काली कहा है।
(ग) बच्चों को काम पर भेजना उनके साथ घोर अन्याय है। बचपन भविष्य की नींव होता है। इस पर ही देश का भविष्य निर्भर करता है। जिस समाज में बच्चों के विकास को कुचला जाता है वह समाज अन्यायी तथा अविकसित है तथा पिछड़ेपन का जीता-जागता उदाहरण है जो किसी बड़े हादसे के ही समान है।
(घ) कोहरे से ढकी सड़क पर एकदम भोर के समय बच्चे काम पर जा रहे हैं, यह देखकर कवि चिंतित एवं व्यग्र है। उसकी चिन्ता उनके अच्छे पालन-पोषण, शिक्षण तथा शारीरिक-मानसिक विकास की भी है जिस हेतु वह सरकार एवं समाज को सचेत करता है।

प्रश्न.3: निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर लगभग 60 शब्दों में दीजिए।
(क) लेखिका मृदुला गर्ग के बागलकोट में स्कूल खोलने के प्रयास का वर्णन कीजिए तथा बताइए कि आपको इससे क्या शिक्षा मिलती है?
(ख) एकांकी रीढ़ की हड्डी' पाठ के आधार पर रामस्वरूप एवं गोपाल प्रसाद में से आप किसे ज्यादा दोषी मानते हैं ? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
(ग) माटी वाली के पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में ज्यादा सोचने का समय क्यों नहीं था?

(क) कर्नाटक जाने पर लेखिका मृदुला गर्ग ने बागलकोट कस्बे में एक प्राइमरी स्कूल खोलने की कैथोलिक बिशप से प्रार्थना की, परन्तु क्रिश्चियन जनसंख्या कम होने के कारण वे स्कूल खोलने में असमर्थ थे। लेखिका ने अनेक परिश्रमी और समृद्ध लोगों की मदद से वहाँ अंग्रेज़ी, कन्नड़ तथा हिंदी तीन भाषाएँ पढ़ाने वाला स्कूल खोलकर उसे कर्नाटक सरकार से मान्यता भी दिलाई। लेखिका के इस कार्य से हमें यह शिक्षा मिलती है कि कठिन परिश्रम व दृढ़ इच्छा शक्ति से कोई भी कार्य सम्पन्न किया जा सकता है।

(ख) गोपाल प्रसाद विवाह को 'बिजनेस' मानते हैं। जिस प्रकार व्यक्ति लाभ-हानि का विचार कर व्यापार करता है, उसी प्रकार वे भी अपने लड़के की शादी किसी अच्छी हैसियत वाले व्यक्ति की कम पढ़ी-लिखी लड़की से करना चाहते हैं। इसके पीछे उनकी यह सोच है कि लड़की बिना किसी नाज-नखरे के उनके घरेलू कामों में लगी रहे। इस प्रकार वे नारी को सम्मान नहीं देना चाहते, अतः वे अपराधी हैं। रामस्वरूप द्वारा अपनी बेटी की उच्च शिक्षा को छिपाने का कारण यह है कि अधिक पढ़ी-लिखी होने के कारण उसके विवाह में कठिनाई आ रही है। पुरुष प्रधान समाज नारी की गरिमापूर्ण स्थिति को स्वीकार नहीं कर पा रहा है। अतः रामस्वरूप विवश होकर ऐसा कदम उठाते हैं। इस कारण गोपाल प्रसाद की तुलना में उनका अपराध हल्का है।

(ग) जब जीवन पेट की समस्या से ग्रसित हो, रोटी की चिंता में रात-दिन एक समान लगे तब भाग्य की बात बहुत दूर चली जाती है। माटी वाली भी अपनी आर्थिक और पारिवारिक उलझनों में उलझी, निम्न स्तर का जीवन जीने वाली सामान्य-सी महिला थी। अपना तथा अपने पति का पेट पालना ही उसकी सबसे बड़ी समस्या थी। सुबह उठकर माटाखाना जाना और दिनभर उस मिट्टी को बेचना। इसी में उसका सारा समय बीत जाता था। अपनी इसी दिनचर्या को वह नियति मानकर चले जा रही थी। इस विषम परिस्थिति में माटी वाली के पास अच्छे और बरे भाग्य के बारे में ज्यादा सोचने का समय नहीं रहता था।

रचनात्मक लेखन:

प्रश्न.4: निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत बिन्दुओं के आधार पर लगभग 150 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए
(क) नर हो, न निराश करो मन को
संकेत-बिन्दु-(i) सूक्ति का अर्थ, (ii) निराशा में डूबना शोभनीय नहीं, (iii) उपसंहार।
(ख) देश में बढ़ता भ्रष्टाचार
संकेत-बिन्दु-(i) भ्रष्टाचार व्यवस्था का अर्थ, (ii) भ्रष्टाचार का कारण और स्वरूप, (iii) समाधान।
(ग) एक सैनिक की आत्मकथा
संकेत-बिन्दु-(i) सैनिक की दिनचर्या, (ii) संघर्ष, (iii) चुनौतियाँ।

(क) नर हो, न निराश करो मन को

'नर हो, न निराश करो मन को' सूक्ति का अर्थ है कि मनुष्य को कभी निराश नहीं होना चाहिए। विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। यदि मनुष्य ठान ले तो इस संसार में कुछ भी असम्भव नहीं है। हमें हमेशा अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। मनुष्य की समस्त इन्द्रियों का संचालक मन ही है। मन के द्वारा ही मनुष्य साधनहीन होने पर भी हार को जीत में बदल सकता है, जबकि यदि मन में दुर्बलता हो तो सभी साधनों के होते हुए भी मनुष्य पराजय का मुख देखता है। इसलिए कभी भी निराशा को अपने पास नहीं फटकने देना चाहिए। सभी विद्वानों एवं ऋषि-मुनियों ने मन को संयमित एवं बलवान बनाने पर बल दिया है। संयमित मन ही दृढ़ संकल्प ले सकता है। निराशा में डूबा मनुष्य कोई भी निर्णय नहीं ले सकता। यदि एक बार मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका तो उसे अपना प्रयत्न जारी रखना चाहिए। जीवन सफलता-असफलता, लाभ-हानि, जय-पराजय का ही दूसरा रूप है। इतिहास यह सिद्ध करता है कि जब-जब मनुष्य ने निराशा का दामन थामा है तब-तब प्रगति एवं विकास का रथ थम गया है। इसलिए हमेशा अपने लक्ष्य के प्रति आशावान होना चाहिए। मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।
(ख) देश में बढ़ता भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार का तात्पर्य है- भ्रष्ट व्यवहार या अनैतिक व्यवहार । दुर्भाग्य से आज सारे भारतवर्ष में भ्रष्टाचार व्याप्त है। सरकारी कार्यालयों में तो काम तभी हो पाता है जब उन्हें घूस मिल जाती है। न्याय प्रणाली भी भ्रष्टाचार की लपेट में आ गयी है। यदि हम भ्रष्टाचार के मूल में जाएँ तो उसका मूल कारण मानव का स्वार्थ, उसकी लिप्सा तथा धन लोलुपता दिखाई देती है। आज प्रत्येक व्यक्ति उचित तथा अनुचित साधनों द्वारा धन प्राप्त करने में लगा दिखाई देता है। मनुष्य की बढ़ती हुई आवश्यकताएँ तथा उन्हें पूरा करने के लिए अपनाए जा रहे साधन, अनियंत्रित होती महँगाई तथा अमीर-गरीब के बीच का बढ़ता अंतर ही भ्रष्टाचार को जन्म देता है। यदि हम भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहते हैं तो हमें प्रत्येक व्यक्ति के मनोबल को ऊँचा उठाना होगा। यदि भ्रष्ट राजनेता अपने आचरण को सुधार लें तो भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त किया जा सकता है। साथ ही हमें न्यायिक व्यवस्था को मजबूत बनाना होगा। नई तकनीक भी भ्रष्टाचार को समाप्त करने में अपना योगदान दे सकती है।
(ग) एक सैनिक की आत्मकथा

मैं भारतीय सेना का एक सैनिक हूँ। मेरा नाम करतार सिंह है। मैं मथुरा जनपद के बल्देव कस्बे का रहने वाला हूँ तथा मधुबन (करनाल) के सैनिक स्कूल में पढ़ा हूँ। स्कूल के समय से ही मैंने सैनिक अनुशासन व कठोर दिनचर्या का पालन किया है। देश की पर्वतीय सीमा पर हमें बड़ी विषम परिस्थितियों में जीवन बिताना पड़ता है। सर्दी में जब तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है तब भी हम पूरी सजगता और निष्ठा से देश की सीमा की सुरक्षा में लगे रहते हैं। देशवासी चैन की नींद सो सकें, इसके लिए हम रातों में जागकर पहरा देते हैं। घुसपैठियों व आतंकवादियों से जूझते हुए हम हमेशा अपने प्राण न्योछावर करने को तैयार रहते हैं। इस प्रकार से ड्यूटी के दौरान मैंने लेह के बर्फीले इलाकों का आनन्द भी लिया और जैसलमेर की तपती बालू का भी। हम सैनिकों की जिन्दगी में प्रतिदिन कोई न कोई नई चुनौती हमारे सामने होती हैं। हमारी किसी साँस का कोई भरोसा नहीं होता। मौत हर दम हमारे सामने नाचती रहती है किन्तु मस्ती हमारा साथ नहीं छोड़ती।

प्रश्न.5: आपको छात्रावास में रहकर पढ़ते हुए कुछ परेशानी हो रही है अतः आप अलग रहकर पढ़ाई करना चाहते हैं। इस तथ्य से अपने भाई साहब को अवगत कराते हुए उनसे निवेदन कीजिए कि वे आपके लिए विद्यालय के आसपास ही एक कमरे की व्यवस्था करने का कष्ट करें।

अथवा

आपके क्षेत्र में अनाधिकृत मकान बनाए जा रहे हैं। इसकी रोकथाम के लिए जिलाधिकारी को पत्र लिखिए।

23ए, गोरखराय छात्रावास
आगरा
दिनांक 15.9.xx
आदरणीय भाई साहब,
सादर चरण स्पर्श।
मैं आपकी कृपा पाकर कृतार्थ हूँ। आपने अपनी सुविधाओं में कटौती कर मुझे छात्रावास में रहकर अपनी आगे की पढ़ाई करने की सुविधा प्रदान की है, किन्तु यहाँ छात्रावास में मेरा अध्ययन सुचारु रूप से नहीं चल पा रहा है क्योंकि आसपास रहने वाले कई छात्र सिनेमा आदि के गीत बजाते रहते हैं तथा दिन भर हो-हल्ला करते रहते हैं।
अच्छा हो, यदि आप कॉलेज के पास ही एक कमरे की व्यवस्था मेरे लिए कर दें जिससे मैं अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर केन्द्रित कर सकूँ और उन अवांछनीय तत्वों से दूर भी रह सकूँ।
मुझे पूरा विश्वास है कि आप यह प्रबंध अवश्य कर देंगे। पढ़ाई में विघ्न न आता तो आपसे यह कहने का साहस भी न कर सकता। आदरणीय माताजी व पिताजी को चरण स्पर्श एवं चिन्टू को स्नेह दें। आपके पत्र की प्रतीक्षा रहेगी।
आपका अनुज,
कुशाग्र

अथवा

सेवा में,

जिलाधिकारी महोदय,

अ.ब.स. जिला,

अ.ब.स. नगर।

दिनांक : 03/04/20XX

विषय : अनाधिकृत बनाए गए मकानों की रोकथाम के सम्बन्ध में।

मान्यवर,

विवश होकर कहना पड़ रहा है कि इन दिनों महानगर की प्रमुख गलियों से होकर जाना असहज तथा असहनीय हो गया है। कारण यह है कि गलियों पर जहाँ-तहाँ लोगों द्वारा कब्जा कर लिया गया है और उस पर अनाधिकृत मकान बनाए जा रहे हैं। कहीं सड़कों पर रेत की ढेर पड़ी हुई है तो कहीं ईंट की पंक्तियाँ सजी हुई हैं। कई जगह सड़कों पर पान-तम्बाकू बेचने वालों ने ईंट की दीवारें उठाकर दकानें बना रखी हैं। इन सब कारणों से सड़क से गुजरने वाले यात्रियों को दुर्घटना का शिकार भी होना पड़ता है।

अतः आपसे नम्र निवेदन है कि नगर में अनाधिकृत बने मकानों को हटाने के लिए जल्द से जल्द आदेश दें ताकि महानगर की खूबसूरती बनी रहे।

इसके लिए हम सब आभारी रहेंगे।

धन्यवाद।

भवदीय,

अ.ब.स.

अ.ब.स. मोहल्ला

अ.ब.स. नगर।

प्रश्न.6: (क) सचिन के रिटायरमेन्ट को लेकर आपके और आपके दोस्त के मध्य हुए संवाद को लिखिए।

अथवा

'शिक्षक दिवस' पर आयोजित कार्यक्रम को देखकर विद्यार्थी प्रसन्न होते हैं। ऐसे ही किन्हीं दो विद्यार्थियों के मध्य हुए वार्तालाप को संवाद शैली में लिखिए।
(ख) बिजली की बार-बार कटौती से उत्पन्न स्थिति से परेशान महिलाओं की बातचीत का संवाद लेखन कीजिए।

अथवा

नए विद्यालय में अपने पुत्र का दाखिला दिलाने गए अभिभावक और प्रधानाचार्य के मध्य हुए वार्तालाप का संवाद लेखन कीजिए।

शरद : अरे अमित ! तू इस समय यहाँ, मुझे तो आश्चर्य हो रहा है?
अमित : क्यों मैं यहाँ आ नहीं सकता क्या ?
शरद : आ क्यों नहीं सकता, आ सकता है पर इस समय तो भारत-पाकिस्तान का क्रिकेट मैच चल रहा है। उसे छोड़कर तू यहाँ ? तू तो क्रिकेट मैच का दीवाना है।
अमित : सही कहा पर अब तो मजा नहीं आता क्योंकि टीम में सचिन तेंदलकर नहीं है न।
शरद : हाँ मित्र ठीक कहा, सचिन आखिर सचिन है। कल की-ही बात है कपिल देव कप्तान था और 15-16 साल का स्कूल का छात्र सचिन पाकिस्तान के खिलाफ खेलने आया था।
अमित : हाँ और उसने क्रिकेट के लिए अपनी दसवीं की परीक्षा भी छोड़ दी थी, समय जाते देर नहीं लगती।
शरद : सही कहा। उसके रिटायर होने की घोषणा पर तू कितना रोया था।
अमित : हाँ मित्र! मुझे बहुत दुःख हुआ था उसके जैसा महान क्रिकेटर सदियों में आता है। उसके रिटायरमेंट के बाद मेरा मन भी क्रिकेट से हट गया है इसलिए मैं अब मैच नहीं देखता।

अथवा

कमल : अरे मित्र नमन! कल तुम कहाँ थे, जानते हो न शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में कल विद्यालय में कितने सुन्दर-सुन्दर कार्यक्रमों का आयोजन हुआ था?
नमन : हाँ मित्र! जानता हूँ, किन्तु देरी से आने के कारण मैं पीछे बैठा था और तुम आगे।
कमल : अच्छा, मुझे लगा कि तुम नहीं आए। मित्र मुझे तो उन कार्यक्रमों में सबसे अधिक कक्षा आठ के छात्रों द्वारा देशभक्ति के गीत पर किया गया नृत्य बहुत पसंद आया।
नमन : हाँ मित्र! वह भी अच्छा था किन्तु मुझे तो कक्षा दस के विद्यार्थी मोहन द्वारा डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन पर दी गई जानकारी और लघु भाषण बहुत अच्छा लगा।
कमल : सही कहा, मित्र ! तब वास्तव में उन्होंने हमें शिक्षक दिवस मनाने का सही कारण बताया और हमें अपने शिक्षकों का सम्मान करने का संदेश भी दिया।
नमन : हाँ मित्र! मैं प्रण लेता हूँ कि मैं सदैव अपने गुरुओं की आज्ञा का पालन करूँगा और उनका सम्मान करूँगा।

कमल : सत्य कहा मित्र! मैं भी।
(ख)

माया : क्या बात है सुधा? कुछ परेशान-सी दिख रही हो?
सुधा : क्या कहूँ माया, बिजली की कटौती से परेशान हूँ।
माया : ठीक कह रही हो बहन, बिजली कब कट जाए, कुछ कह ही नहीं सकते हैं।
सुधा : माया, बिजली न होने से आज तो घर में बूँदभर भी पानी नहीं है। समझ में नहीं आता अब बिना पानी के सारा काम कैसे होगा!
माया : आज सवेरे बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजने में बड़ी परेशानी हुई।
सुधा : यह तो रोज का नियम बन गया है। सुबह-शाम बिजली कट जाने से घरेलू कामों में बड़ी परेशानी होने लगी है।
माया : दिनभर ऑफिस से थककर आओ कि घर कुछ आराम मिलेगा, पर हमारा चैन बिजली ने छीन लिया है।
सुधा : अगले सप्ताह से बच्चों की परीक्षाएँ हैं। मैं तो परेशान हूँ कि उनकी तैयारी कैसे कराऊँगी?
माया : चलो आज बिजली विभाग को शिकायत करते हुए ऑफिस चलेंगे
सुधा :  यह बिल्कुल ठीक रहेगा।

अथवा

अभिभावक : महोदय ! क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ।
प्रधानाचार्य : 'हाँ-हाँ' अवश्य आइए और काम बताइए।
अभिभावक : मैं अपने बेटे का दाखिला इस विद्यालय में कराना चाहता हूँ।
प्रधानाचार्य : कौन-सी कक्षा में?
अभिभावक : नवीं कक्षा में।
प्रधानाचार्य : उसने आठवीं कौन-से विद्यालय से उत्तीर्ण की है?
अभिभावक : ............नवकार विद्यालय अशोक गार्डन से।
प्रधानाचार्य : तुम अपने बच्चे को नवकार विद्यालय से यहाँ सरकारी स्कूल में पढ़ाना चाहते हो, ऐसा क्यों?
अभिभावक : मैंने इस विद्यालय का नाम सुना है। यहाँ पढ़ाई की उत्तम व्यवस्था है और खर्च नाम मात्र का भी नहीं है। यह नवकार विद्यालय वाले तो हमें लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।.

प्रश्न.7: निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 120 शब्दों में लघु कथा लिखिए
(क) महान कौन
(ख) सही बँटवारा

(क) महान कौन

एक बार विक्रम सेन नाम के एक महाप्रतापी राजा थे। वह सदैव अपनी प्रजा के कल्याण के कार्यों में लगे रहते थे। एक बार उन्हें पता चला कि पास के जंगल में एक ऋषि अनेक वर्षों से लोहे का एक डंडा ज़मीन में गाड़कर तपस्या कर रहे हैं और उनके तप के प्रभाव से डंडे में कुछ अंकुर फूट गए हैं व फूल-पत्ते निकल रहे हैं। जब वह अपनी तपस्या पूर्ण कर लेंगे तो उनका डंडा फूल-पत्तों से भर जाएगा। राजा विक्रमसेन ने सोचा कि मैं भी तप करूँ और अपना जीवन सार्थक बनाऊँ। यह निश्चय कर वे जंगल गए और ऋषि के पास लोहे का डंडा गाड़कर तपस्या करने लगे। संयोगवश उसी रात जोर का तूफान आया। मूसलाधार बारिश होने लगी। राजा और ऋषि मौसम की परवाह न करके तपस्या में लगे रहे। तभी एक व्यक्ति बुरी तरह भीगा हुआ तथा ठंड से कांपता हुआ आया। उसने ऋषि से कहीं ठहरने की जगह के बारे में पूछा लेकिन ऋषि ने आँखें खोलकर भी नहीं देखा। निराश होकर वह लड़खडाता हुआ राजा विक्रमसेन के पास पहुँचा और बेहोश होकर गिर पड़ा। राजा उस व्यक्ति की ऐसी खराब हालत देख तुरन्त उठ खड़े हुए और उसे गोद में उठाकर चल दिए। थोड़ी ही दूरी पर उन्हें एक कुटिया दिखाई दी। राजा ने कुटिया में उस व्यक्ति को लिटाया और उसके पास आग जलाकर गर्माहट पैदा की। राजा उसके हाथ-पैरों की मालिश करते रहे। सुबह तक उस आदमी की हालत में काफी सुधार आ गया। जब राजा और व्यक्ति वापस आए तो राजा यह देखकर हैरान रह गया कि उसके द्वारा गाड़ा गया लोहे का डंडा ताजे फूल-पत्तों से भरकर झुक गया है वहीं ऋषि के डंडे में जो थोड़े-बहुत फूल-पत्ते निकले थे वे भी मुरझा गए हैं। तब राजा समझ गया कि मानव सेवा से बड़ी तपस्या कोई नहीं है। वह अपने राज्य वापस आकर प्रजा की देखभाल करने लगा।
(ख) सही बँटवारा
एक बार एक औरत थी- मीरा। उसके दो बेटे थे। दोनों बेटों की उम्र में एक साल का ही अंतर था। कद-काठी में देखने से दोनों जुडवाँ लगते थे। उन दोनों को सुबह के नाश्ते में ब्रेड खाना पसंद था इसलिए मीरा एक दिन पहले शाम को ही ब्रेड मँगा लेती थी। चूँकि ब्रेड की दुकान घर से कुछ दूर थी अतः उन्हें लाने की जिम्मेदारी उसके दोनों बेटों की थी। लेकिन ब्रेड लेने कौन जाए-इस बात पर दोनों बेटों में झगड़ा होता था क्योंकि मीरा दोनों को बराबर ब्रेड देती थी इसलिए ब्रेड़ लाने वाले को कोई फायदा न होने से उनमें विवाद होता। रोज के विवाद से तंग आकर मीरा ने कहा कि जो ब्रेड का पैकेट दुकान से लाएगा उसे एक ब्रेड अधिक मिलेगी। अब दोनों भाइयों में ब्रेड अधिक पाने के लालच के कारण फिर विवाद होने लगा। वे दोनों ही बाज़ार से ब्रेड़ लाना चाहते थे। मीरा ने अपनी परेशानी अपनी सहेली को बताई तो वह बोली कि गलत बँटवारा ही विवाद की जड़ है। बँटवारा फायदे का नहीं ज़िम्मेदारियों का होना चाहिए। अधिक लाभ पाने के इरादे से ज्यादा ज़िम्मेदारी निभाने की इच्छा परिवार के लिए ही नहीं, देश के लिए भी घातक है। लोग बड़े पद की चाह भी ज्यादा लाभ के लिए करते हैं अधिक जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए नहीं। सहेली की बात मीरा समझ गई। उसने दोनों बेटों को बारी-बारी से ब्रेड लाने की ज़िम्मेदारी दी और दोनों को बराबर ब्रेड देना तय किया। इस तरह विवाद समाप्त हो गया।

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