वह काव्यांश जिसका अध्ययन हिंदी की पाठ्यपुस्तक में नहीं किया गया है. अपठित काव्यांश कहलाता है। परीक्षा में इन काव्यांशों से विद्यार्थी के भावग्रहण क्षमता का मूल्यांकन किया जाता है।
प्रश्न हल करने की विधि
अपठित काव्यांश का प्रश्न हल करते समय निम्नलिखित बिंदु ध्यातव्य हैं:
1. निम्नलिखित काव्यांश तथा उन पर आधारित प्रश्नोत्तर ध्यानपूर्वक पढ़िए।
हँस लो दो क्षण खुशी मिली गर
वरना जीवन-भर क्रदन है।
किसका जीवन हँसी-खुशी में
इस दुनिया में रहकर बीता?
सदा सर्वदा संघर्षों को
इस दुनिया में किसने जीता?
खिलता फूल म्लान हो जाता
हँसता-रोता चमन-चमन है।
कितने रोज चमकते तारे
दूर तलक धरती की गाथा
मौन मुखर कहता कण-कण है।
यदि तुमको सामध्य मिला तो
मुसकाओं सबके संग जाकर।
कितने रह-रह गिर जाते हैं,
हँसता शशि भी छिप जाता है,
जब सावन घन घिर आते हैं।
उगता-ढलता रहता सूरज
जिसका साक्षी नील गगन है।
आसमान को छुने वाली,
वे ऊँची-ऊँची मीनारें।
मिट्टी में मिल जाती हैं वे
छिन जाते हैं सभी सहारे।
यदि तुमको मुसकान मिली तो
थामो सबको हाथ बढ़ाकर।
झाँको अपने मन-दर्पण में
प्रतिबिंबित सबका आनन है।
(i) कवि दो क्षण के लिए मिली खुशी पर हँसने के लिए क्यों कह रहा है?
उत्तर: जीवन में बहुत आपदाएँ हैं। अत: जब भी हँसी के क्षण मिल जाएँ तो उन क्षणों में हँस लेना चाहिए। इसलिए कवि कहता है कि जब अवसर मिले हँस लेना चाहिए। खुशी मनानी चाहिए।
(ii) कविता में संसार की किस वास्तविकता को प्रस्तुत किया गया है?
उत्तर: कविता में बताया गया है कि संसार में सब कुछ नश्वर है।
(iii) धरती का कण-कण कौन-सी गाथा सुनाता रहा है?
उत्तर: धरती का कण-कण गाथा सुनाता आ रहा है कि आसमान को छूने वाली ऊँची-ऊँची दीवारें एक दिन मिट्टी में मिल जाती हैं। सभी सहारे दूर हो जाते हैं। अत: यदि समय है तो सबके साथ मुस्कराओ और यदि सामर्थ्य है तो सबको सहारा दो।
(iv) भाव स्पष्ट कीजिए-
झाँको अपने मन दर्पण में
प्रतिबिंबित सबका आनन है।
उत्तर: यहाँ कवि का अभिप्राय है कि यदि अपने मन-दर्पण में झाँककर देखोगे तो सभी के एक समान चेहरे नजर आएँगे अर्थात् सभी ईश्वर के ही रूप दिखाई देंगे।
(v) उगता डलता रहता सूरज के माध्यम से कवि ने क्या कहना चाहा है?
उत्तर: 'उगता-ढलता रहता सूरज' के माध्यम से कवि ने कहना चाहा है कि जीवन में समय एक सा नहीं रहता है। अच्छे बुरे समय के साथ-साथ सुख-दुख आते-जाते रहते हैं।
2. निम्नलिखित काव्यांश तथा उन पर आधारित प्रश्नोत्तर ध्यानपूर्वक पढ़िए।
क्या रोकेंगे प्रलय मेघ ये, क्या विद्युत-धन के नर्तन,
मुझे न साथी रोक सकेंगे, सागर के गर्जन-तर्जन।
मैं अविराम पथिक अलबेला रुके न मेरे कभी चरण,
शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने मित्र चयन।
मैं विपदाओं में मुसकाता नव आशा के दीप लिए
फिर मुझको क्या रोक सकेंगे जीवन के उत्थान-पतन,
मैं अटका कब, कब विचलित में, सतत डगर मेरी संबल
रोक सकी पगले कब मुझको यह युग की प्राचीर निबल
आँधी हो, ओले-वर्षा हों, राह सुपरिचित है मेरी,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे ये जग के खंडन-मंडन।
मुझे डरा पाए कब अंधड़, ज्वालामुखियों के कंपन,
मुझे पथिक कब रोक सके हैं अग्निशिखाओं के नर्तन।
मैं बढ़ता अविराम निरंतर तन-मन में उन्माद लिए,
फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल-विद्युत नर्तन।
(i) उपर्युक्त काव्यांश के आधार पर कवि के स्वभाव की किन्हीं दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: कवि के स्वभाव की निम्नलिखित दो विशेषताएँ हैं:
- गतिशीलता
- साहस व संघर्षशीलता
(ii) कविता में आए मेघ, विदयुत, सागर की गर्जना और ज्वालामुखी किनके प्रतीक हैं? कवि ने उनका संयोजन यहाँ क्यों किया है?
उत्तर: मेघ, विद्युत, सागर की गर्जना व ज्वालामुखी जीवनपथ में आई बाधाओं के परिचायक है। कवि इनका संयोजन इसलिए करता है ताकि अपनी संघर्षशीलता व साहस को दर्शा सके।
(iii) शूलों के बदले फूलों का किया न मैंने कभी चयन-पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इसका अर्थ है कि कवि ने हमेशा चुनौतियों से पूर्ण कठिन मार्ग चुना है। वह सुख-सुविधा पूर्ण जीवन नहीं जीना चाहता।
(iv) 'युग की प्राचीर' से क्या तात्पर्य है? उसे कमजोर क्यों बताया गया है?
उत्तर: इसका अर्थ है. समय की बाधाएँ। कवि कहता है कि संकल्पवान व्यक्ति बाधाओं व संकटों से घबराता नहीं है। वह उनसे मुकाबला कर उन पर विजय पा लेता है।
(v) किन पंक्तियों का आशय है कि तन मन में दृढनिश्चय का नशा हो तो जीवन मार्ग में बढ़ते रहने से कोई नहीं रोक सकता?
उत्तर: ये पंक्तियाँ हैं:
मैं बढ़ता अविराम निरंतर तन-मन में उन्माद लिए, फिर मुझको क्या डरा सकेंगे, ये बादल-विद्युत नर्तन।
3. निम्नलिखित काव्यांश तथा उन पर आधारित प्रश्नोत्तर ध्यानपूर्वक पढ़िए।
यह मजदूर, जो जेठ मास के इस निर्धूम अनल में
कर्ममग्न है अविकल दग्ध हुआ पल-पल में,
यह मजूर, जिसके अंर्गों पर लिपटी एक लँगोटी,
यह मजूर, जर्जर कुटिया में जिसकी वसुधा छोटी,
किस तप में तल्लीन यहाँ है भूख-प्यास को जीते,
किस कठोर साधन में इसके युग के युग हैं बीते।
कितने महा महाधिप आए. हुए विलीन क्षितिज में,
नहीं दृष्टि तक डाली इसने, निर्विकार यह निज में।
यह अविकंप न जाने कितने घुट पिए हैं विष के,
आज इसे देखा जब मैंने बात नहीं की इससे।
अब ऐसा लगता है, इसके तप से विश्व विकल है,
नया इंद्रपद इसके हित ही निश्चित है निस्संशय।
(i) जेठ के महीने में अपने काम में लगा हुआ मजदूर क्या अनुभव कर रहा है?
उत्तर: जेठ के महीने में अपने काम में लगा हुआ मजदूर अपने काम में मग्न है। गरम मौसम भी उसके कार्य को बाधित नहीं कर रहा है।
(ii) उसकी दीन-हीन दशा को कवि ने किस तरह प्रस्तुत किया है?
उत्तर: कवि बताता है कि मजदूर की दशा खराब है। वह सिर्फ एक लैंगोटी पहने हुए है। उसकी कुटिया टूटी-फूटी है। वह पेट भरने भर भी नहीं कमा पाता है।
(iii) उसका पूरा जीवन कैसे बीता है? उसने बड़े से बड़े लोगों को भी अपना कष्ट क्यों नहीं बताया?
उत्तर: मजदूर का पूरा जीवन तंगहाली में बीतता है। उसने बड़े-से बड़े लोगों को भी अपना कष्ट नहीं बताया, क्योंकि वह अपने काम में तल्लीन रहता था।
(iv) उसने जीवन को कैसे जिया है? उसकी दशा को देखकर कवि को किस बात का आभास होने लगा है?
उत्तर: मजदूर ने सारा जीवन विष का घूंट पीकर जिया। वह सदा अभावों से ग्रस्त रहा। उसकी दशा देखकर कवि को लगता है कि मजदूर की तपस्या से सारा संसार विकल है।
(v) आशय स्पष्ट कीजिए 'नया इंद्रपद इसके हित ही निश्चित है निस्संशय।
उत्तर: इसका अर्थ है कि मजदूर के कठोर तप से यह लगता है कि उसे नया इंद्रपद मिलेगा अर्थात् कवि को लगता है कि अब उसकी हालत में सुधार होगा।
4. निम्नलिखित काव्यांश तथा उन पर आधारित प्रश्नोत्तर ध्यानपूर्वक पढ़िए।
नीलांबर परिधान हरित पट पर सुंदर हैं,
सूर्य चंद्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर हैं,
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडल है,
बंदीजन खग-वृद, शेषफन सिंहासन है
परमहंस सम बाल्यकाल में सब, सुख पाए,
जिसके कारण धूल भरे हीरे कहलाए,
हम खेले कूदे हर्षयुत, जिसकी प्यारी गोद में
हे मातृभूमि तुझको निरख, मग्न क्यों न हो मोद में
निर्मल तेरा नीर अमृत के सम उत्तम है,
शीतल मंद सुगंध पवन हर लेता श्रम है,
षट्ऋतुओं का विविध दृश्य युत अद्भुत क्रम है,
हरियाली का फर्स नहीं मखमल से कम है,
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की,
जिसकी रज में लोट लोटकर बड़े हुए हैं,
घुटनों के बल सरक सरक कर खड़े हुए हैं.
शुचि-सुधा सींचता रात में तुझ पर चंद्रप्रकाश है
हे मातृभूमि! दिन में तरणि करता तम का नाश है
जिस पृथ्वी में मिले हमारे पूर्वज प्यारे,
उससे हे भगवान कभी हम रहें न न्यारे,
लोट-लोट कर वहीं हृदय को शांत करेंगे
उसमें मिलते समय मृत्यु से नहीं डरेंगे,
उस मातृभूमि की धूल में, जब पूरे सन जाएँगे
होकर भव बंधन मुक्त हम, आत्मरूप बन जाएँगे।
(i) प्रस्तुत काव्यांश में हरित पट किसे कहा गया है।
उत्तर: यहाँ हरित पट शस्य श्यामला धरती के लिए कहा है, जिस पर चारों ओर फैली हरियाली मखमल से कम सुंदर नहीं लगती है।
(ii) कवि अपने देश पर क्यों बलिहारी जाता है?
उत्तर: कवि अपनी सुंदर मातृभूमि से प्रेम करता है जिसकी प्राकृतिक छटा मनोहारी है, जो सर्वथा ईश्वर की साक्षात् प्रतिमूर्ति के रूप में विद्यमान दिखाई देती है।
(iii) कवि अपनी मातृभूमि के जल और वायु की क्या क्या विशेषता बताता है?
उत्तर: कवि अपनी मातृभूमि के जल को अमृत के समान उत्तम, शीतल, निर्मल बताते हैं और वायु को शीतल, सुगंधित और श्रम की थकान को हर लेने वाली बताते हैं।
(iv) मातृभूमि को ईश्वर का साकार रूप किस आधार पर बताया गया है?
उत्तर: मातृभूमि को कवि ने ईश्वर का साकार रूप बताया है. क्योंकि ईश्वर की तरह ही मातृभूमि का मुकुट सूर्य और चंद्र के समान है. शेषनाग का फन सिंहासन के समान है। बादल निरंतर जिसका अभिषेक करते हैं। पक्षी प्रात: चहचहाकर गुणगान करते हैं। तारे इसके लिए फूलों के समान हैं। इस तरह मातृभूमि ईश्वर का साकार रूप है।
(v) प्रस्तुत कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: मूलभाव है कि हमारी मातृभूमि अनुपम है, ईश्वर की साक्षात् प्रतिमूर्ति है। ऐसी मातृभूमि पर हम बलिहारी होते हैं।
5. निम्नलिखित काव्यांश तथा उन पर आधारित प्रश्नोत्तर ध्यानपूर्वक पढ़िए।
मुक्त करो नारी को, मानव।
चिर बदिनि नारी को,
युग-युग की बर्बर कारा से
जननि, सखी, प्यारी को!
छिन्न करो सब स्वर्ण-पाश
उसके कोमल तन-मन के
वे आभूषण नहीं, दाम
उसके बंदी जीवन के
उसे मानवी का गौरव दे
पूर्ण सत्व दो नूतन,उसका मुख जग का प्रकाश हो,
उठे अंध अवगुंठन।
मुक्त करो जीवन-संगिनि को,
जननि देवि को आदूत
जगजीवन में मानव के संग,
हो मानवी प्रतिष्ठित!
प्रेम स्वर्ग हो धरा, मधुर
नारी महिमा से मंडित.
नारी-मुख की नव किरणों से
युग-प्रभाव हो ज्योतित!
(i) कवि नारी के आभूषणों को उसके अलंकरण के साधन न मानकर उन्हें किन रूपों में देख रहा है।
उत्तर: कवि नारी के आभूषणों को उसके अलंकरण के साधन न मानकर उन्हें जीवन का बंधन मानता हैं।
(ii) वह नारी को किन दो गरिमाओं से मंडित करा रहा है और क्या कामना कर रहा है?
उत्तर: कवि नारी को मानवी तथा मातृत्व की गरिमाओं से मंडित कर रहा है। वह कामना करता है कि उसे पुरुष के समान दर्जा मिले।
(iii) वह मुक्त नारी को किन-किन रूपों में प्रतिष्ठित करना चाहता है?
उत्तर: कवि मुक्त नारी को मानवी, युग को प्रकाश देने वाली आदि रूपों में प्रतिष्ठित करना चाहता है।
(iv) आशय स्पष्ट कीजिए-
नारी मुख की नव किरणों से
युग प्रभात हो ज्योतितः
उत्तर: इसका अर्थ है कि नारी के नए रूप से नए युग का प्रभात प्रकाशित हो तथा वह अपने कार्यों से समाज को दिशा दे।
6. निम्नलिखित काव्यांश तथा उन पर आधारित प्रश्नोत्तर ध्यानपूर्वक पढ़िए।
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाए,
एक हिलोर इधर से आए एक हिलोर उधर से आए।
प्राणों के लाले पड़ जाएँ, त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाए,
नाश और सत्यानाशों का धुआँधार जग में छा जाए।
बरसे आग जलद जल जाए, भस्मसात भूधर हो जाए,
पाप-पुण्य सदसद्भावों की धूल उड़े उठ दाएँ-बाएँ।
नभ का वक्षस्थल फंट जाए, तारे टूक-टूक हो जाएँ।
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए।
(i) कवि की कविता क्रांति लाने में कैसे सहायक हो सकती है?
उत्तर: कवि लोगों में जागरूकता पैदा करता है। वह अपने संदेशों से जनता को कुशासन समाप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
(ii) कवि ने किस प्रकार के उथल-पुथल की कल्पना की है?
उत्तर: कवि से ऐसी उथल-पुथल की चाह की गई है, जिससे समाज में बुरी ताकत पूर्णतया नष्ट हो जाए।
(iii) आपके विचार से नाश और सत्यानाश में क्या अंतर हो सकता है? कवि उनकी कमना क्यों करता है?
उत्तर: हमारे विचार में, 'नाश से सिर्फ बुरी ताकतें समाप्त हो सकती हैं, परंतु 'सत्यानाश से सब कुछ नष्ट हो जाता है। इसमें अच्छी ताकतें भी समाप्त हो जाती हैं।
(iv) किसी समाज में फैली जड़ता और रूढ़िवादिता केवल क्रांति से ही दूर हो सकती है। पक्ष या विपक्ष में दो तर्क दीजिए।
उत्तर: यह बात बिलकुल सही है कि समाज में फैली जड़ता व रूढ़िवादिता केवल क्रांति से ही दूर हो सकती है। क्रांति से वर्तमान में चल रही व्यवस्था नष्ट हो जाती है तथा नए विचारों को अपनाने का अवसर मिलता है।
(v) काव्यांश से दो मुहावरे चुनकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर: लाले पड़ना-महँगाई के कारण गरीबों को रोटी के लाले पड़ने लगे हैं।
छा जाना-बिजेंद्र ओलंपिक में पदक जीतकर देश पर छा गया।
7. निम्नलिखित काव्यांश तथा उन पर आधारित प्रश्नोत्तर ध्यानपूर्वक पढ़िए।
यदि फूल नहीं बो सकते तो काँटे कम-से-कम मत बोओ!
है अगम चेतना की घाटी, कमजोर बड़ा मानव का मन
ममता की शीतल छाया में होता। कटुता का स्वयं शमन।
ज्वालाएँ जन्म घुल जाती हैं, खुल-खुल जाते हैं मूंदे नयन।
होकर निर्मलता में प्रशांत, बहता प्राणों का क्षुब्ध पवन।
संकट में यदि मुसका न सको, भय से कातर हो मत रोओ।
यदि फूल नहीं बो सकते तो काँटे कम-से-कम मत बोओ।
(i) 'फूल बोने और काँटे बोने का प्रतीकार्थ क्या है?
उत्तर: इनका अर्थ है अच्छे कार्य करना व बुरे कर्म करना।
(ii) मन किन स्थितियों में अशांत होता है और कैसी स्थितियाँ उसे शांत कर देती हैं।
उत्तर: मन में विरोध की भावना के उदय के कारण अशांति का उदय होता है। माता की शीतल छाया उसे शांत कर देती है।
(iii) संकट आ पड़ने पर मनुष्य का व्यवहार कैसा होना चाहिए और क्यों?
उत्तर: संकट आ पड़ने पर मनुष्य को भयभीत नहीं होना चाहिए। उसे मन को मजबूत करना चाहिए। उसे मुस्कराना चाहिए।
(iv) मन में कटुता कैसे आती है और यह कैसे दूर हो जाती है?
उत्तर: मन में कटुता तब आती है जब उसे सफलता नहीं मिलती। वह भटकता रहता है। स्नेह से यह दूर हो जाता है।
(v) काव्यांश से दो मुहावरे चुनकर वाक्य-प्रयोग कीजिए।
उत्तर: काँटे बोना-हमें दूसरों के लिए काँटे नहीं बोने चाहिए।
घुल जाना-विदेश में गए पुत्र की खोज खबर न मिलने से विक्रम घुल गया है।
8. निम्नलिखित काव्यांश तथा उन पर आधारित प्रश्नोत्तर ध्यानपूर्वक पढ़िए।
पाकर तुझसे सभी सुों को हमने भोगा,
तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा?
तेरी ही यह देह तुझी से बनी हुई है,
बस तेरे ही सुरस सार से सनी हुई है,
फिर अंत समय तूही इसे अचल देख अपनाएगी।
हे मातृभूमि! यह अंत में तुझमें ही मिल जाएगी।
(i) यह काव्यांश किसे संबोधित है? उससे हम क्या पाते हैं?
उत्तर: यह काव्यांश मातृभूमि को संबोधित है। मातृभूमि से हम जीवन के लिए आवश्यक सभी वस्तुएँ पाते हैं।
(ii) प्रत्युपकार' किसे कहते हैं? देश का प्रत्युपकार क्यों नहीं हो सकता?
उत्तर: किसी से वस्तु प्राप्त करने के बदले में कुछ देना प्रत्युपकार कहलाता है। देश का प्रत्युपकार नहीं हो सकता, क्योंकि मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक हमेशा कुछ-न-कुछ इससे प्राप्त करता रहता है।
(iii) शरीर-निर्माण में मातृभूमि का क्या योगदान है?
उत्तर: मातृभूमि से ही मनुष्य का शरीर बना है। जल, हवा, आग, भूमि व आकाश मातृभूमि में ही मिलते हैं।
(iv) अचल विशेषण किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और क्यों?
उत्तर: अचल विशेषण मानव के मृत शरीर के लिए प्रयुक्त हुआ है, क्योंकि मृत शरीर गतिहीन होता है तथा मातृभूमि ही इसे ग्रहण करती है।
(v) यह कैसे कह सकते हैं कि देश से हमारा संबंध मृत्यु पर्यन्त रहता है?
उत्तर: मनुष्य का जन्म देश में होता है। यहाँ के संसाधनों से वह बड़ा होता है तथा अंत में उसी में मिल जाता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि देश से हमारा संबंध मृत्यु पर्यन्त रहता है।
9. निम्नलिखित काव्यांश तथा उन पर आधारित प्रश्नोत्तर ध्यानपूर्वक पढ़िए।
चिड़िया को लाख समझाओ
कि पिंजड़े के बाहर
धरती बड़ी है, निर्मम है.
वहाँ हवा में उसे
बाहर दाने का टोटा है
यहाँ चुग्गा मोटा है।
बाहर बहेलिए का डर है
यहाँ निद्रवर कंठ-स्वर है।
फिर भी चिड़िया मुक्ति का गाना गाएगी,
अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी।?
यूँ तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहाँ कटोरी में भरा जल गटकना है।
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी
पिंजड़े से जितना अंग निकल सकेगा निकालेगी,
हर सू जोर लगाएगी
और पिंजड़ा टूट जाने या खुल जाने पर उड़ जाएगी।
(i) पिंजड़े के बाहर का संसार निर्मम कैसे है?
उत्तर: पिंजड़े के बाहर संसार हमेशा कमजोर को सताने की कोशिश में रहता है। यहाँ सदैव संघर्ष रहता है। इस कारण वह निर्मम है।
(ii) पिंजड़े के भीतर चिड़िया को क्या-क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं?
उत्तर: पिंजड़े के भीतर चिड़िया को पानी, अनाज, आवास तथा सुरक्षा उपलब्ध है।
(iii) कवि चिड़िया को स्वतंत्र जगत् की किन वास्तविकताओं से अवगत कराना चाहता है?
उत्तर: कवि बताना चाहता है कि बाहर जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। भोजन, आवास व सुरक्षा के लिए हर समय मेहनत करनी होती है।
(iv) बाहर सुखों का अभाव और प्राणों का संकट होने पर भी चिड़िया मुक्ति ही क्यों चाहती है?
उत्तर: बाहर सुखों का अभाव व प्राणों का संकट होने पर भी चिड़िया मुक्ति चाहती है, क्योंकि वह आजाद जीवन जीना पसंद करती है।
(v) कविता का संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस कविता में कवि ने स्वाधीनता के महत्व को समझाया है। मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास आजाद परिवेश में हो सकता है।
10. निम्नलिखित काव्यांश तथा उन पर आधारित प्रश्नोत्तर ध्यानपूर्वक पढ़िए।
ले चल माँझी मझधार मुझे, दे-दे बस अब पतवार मुझे।
इन लहरों के टकराने पर आता रह-रह कर प्यार मुझे।
मत रोक मुझे भयभीत न कर, मैं सदा टीली राह चला।
पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।
फिर कहाँ डरा पाएगा यह पगले जर्जर संसार मुझे।
इन लहरों के टकराने पर, आता रह-रह कर प्यार मुझे।
मैं हूँ अपने मन का राजा, इस पार रहूँ उस पार चलूँ
मैं मस्त खिलाड़ी हूँ ऐसा जी चाहे जीतें हार चलूँ।
मैं हूँ अबाध, अविराम, अथक, बंधन मुझको स्वीकार नहीं।
मैं नहीं अरे ऐसा राही, जो बेबस-सा मन मार चलूँ।
कब रोक सकी मुझको चितवन, मदमाते कजरारे घन की,
कब लुभा सकी मुझको बरबस, मथु-मस्त फुहारें सावन की।
जो मचल उठे अनजाने ही अरमान नहीं मेरे ऐसे-
राहों को समझा लेता हूँ सब बात सदा अपने मन की
इन उठती-गिरती लहरों का कर लेने दो श्रृंगार मुझे,
इन लहरों के टकराने पर आता रह-रह कर प्यार मुझे।
(i) अपने मन का राजा' होने के दो लक्षण कविता से चुनकर लिखिए।
उत्तर: अपने मन का राजा' होने के दो लक्षण निम्नलिखित हैं:
- कहीं भी रहने के लिए स्वतंत्र हूँ।
मुझे किसी प्रकार का बंधन स्वीकार नहीं है। मैं बंधनमुक्त रहना चाहता ।
(ii) किस पंक्ति में कवि पतझड़ को भी बसंत मान लेता है?
उत्तर: ये पंक्ति हैं- पथ-पथ मेरे पतझारों में नव सुरभि भरा मधुमास पला।
(iii) कविता का केंद्रीय भाव दो-तीन वाक्यों में लिखिए।
उत्तर: इस कविता में कवि जीवनपथ पर चलते हुए भयभीत न होने की सीख देता है। वह विपरीत परिस्थितियों में मार्ग बनाने। आत्मनिर्भर बनने तथा किसी भी रुकावट से न रुकने के लिए कहता है।
(iv) कविता के आधार पर कवि-स्वभाव की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: कवि का स्वभाव निर्भीक, स्वाभिमानी तथा विपरीत दशाओं को अनुकूल बनाने वाला है।
(v) आशय स्पष्ट कीजिए-कब रोक सकी मुज्कोम चितवन, मदमाते कजरारे घन की।
उत्तर: इसका अर्थ है कि किसी सुंदरी का आकर्षण भी पथिक के निश्चय को नहीं डिगा सका।
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