बोलते समय हमारे मुँह से ध्वनियाँ निकलती हैं। इन ध्वनियों के छोटे से छोटे टुकड़े को वर्ण कहा जाता है। इन्हीं वर्गों के सार्थक मेल से शब्द बनते हैं। वर्णों का सार्थक एवं व्यवस्थित मेल शब्द कहलाता है।
उदाहरण: आ + ग् + अ + म् + अ + न् + अ = आगमन
प् + उ + स् + त् + अ + क् + अ = पुस्तक
प् + र् + आ + च् + ई + न् + अ = प्राचीन
क् + ष् + अ + त् + र् + इ + य् + अ = क्षत्रिय
शब्द की विशेषताएँ
शब्द कोश में रहते हैं तथा एक निश्चित अर्थ का बोध कराते हैं; जैसे: लड़का, आम, खा। पद-शब्दों के साथ जब विभक्ति चिह्नों या परसर्गों का प्रयोग करके तथा व्याकरणिक नियमों में बाँधकर वाक्य में प्रयोग किया जाता है, तब वही शब्द पद बन जाते हैं;
जैसे:
पद में दो प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया जाता है:
पदबंध
जब कई पद मिलकर एक व्याकरणिक इकाई का कार्य करते हैं तो उसे पदबंध कहते हैं;
जैसे:
इन वाक्यों के रेखांकित अंश क्रमशः संज्ञा, विशेषण और सर्वनाम पदबंध हैं।
हिंदी में जिन शब्दों का प्रयोग हो रहा है उनके स्रोत भिन्न-भिन्न हैं। संस्कृत, उर्दू, अंग्रेज़ी आदि से आये शब्दों के कारण रूप बदल गया है।
शब्दों के भेद निम्नलिखित आधार पर किए जाते हैं:
1. उत्पत्ति के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण
इस आधार पर शब्दों को चार वर्गों में बाँटा जा सकता है:
(i) तत्सम शब्द: जो शब्द अपरिवर्तित रूप में संस्कृत भाषा से लिए गए हैं या जिन्हें संस्कृत के मूल शब्दों से संस्कृत के ही प्रत्यय लगाकर नवनिर्मित किया गया है, वे तत्सम शब्द कहलाते हैं।
तत्सम शब्द दो शब्दों से बना है, ‘तत्’ और ‘सम’ जिसका अर्थ है उसके अनुसार अर्थात् संस्कृत के अनुसार।
तत्सम शब्दों के कुछ उदाहरण: प्रौद्योगिकी, आकाशवाणी, आयुक्त, स्वप्न, कूप, उलूक, चूर्ण, चौर, यथावत, कर्म, कच्छप, कृषक, कोकिल, अक्षि, तैल, तीर्थ, चैत्र, तपस्वी, तृण, त्रयोदश, कन्दुक, उच्च, दश, दीपक, धूलि, नासिका आदि।
(ii) तद्भव शब्द: जो शब्द संस्कृत भाषा से उत्पन्न तो हुए हैं, पर उन्हें ज्यों का त्यों हिंदी में प्रयोग नहीं किया जाता है। इनके रूप में परिवर्तन आ जाता है। इनको तद्भव शब्द कहते हैं।
तद्भव शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है; जैसे: ‘तद्’ और ‘भव’। जिसका अर्थ है-उसी से उत्पन्न।
तद्भव शब्दों के कुछ उदाहरण: काजर, सूरज, रतन, परीच्छा, किशन, अँधेरा, अनाड़ी, ईख, कुम्हार, ताँबा, जोति, जीभ, ग्वाल, करतब, कान, साँवला, साँप, सावन, भाप, लोहा, मारग, मक्खी , भीषण, पूरब, पाहन, बहरा, बिस आदि।
(iii) देशज शब्द: वे शब्द जिनका स्रोत संस्कृत नहीं है किंतु वे भारत में ग्राम्य क्षेत्रों अथवा जनजातियों में बोली जाने वाली तथा संस्कृत से भिन्न भाषा परिवारों के हैं। देशज शब्द कहलाते हैं। ये शब्द क्षेत्रीय प्रभाव के कारण हिंदी में प्रयुक्त होते हैं।
देशज शब्दों के कुछ उदाहरण: कपास, अंगोछा, खिड़की, ठेठ, टाँग, झोला, रोटी, लकड़ी, लागू, खटिया, डिबिया, तेंतुआ, थैला, पड़ोसी, खोट, पगिया, घरौंदा, चूड़ी, जूता, दाल, ठेस, ठक-ठक, झाड़ आदि।
(iv) आगत या विदेशी शब्द: विदेशी भाषाओं से संपर्क के कारण अनेक शब्द हिंदी में प्रयोग होने लगे हैं। ये शब्द ही आगत या विदेशी शब्द कहलाते हैं।
हिंदी में प्रयुक्त विदेशी शब्द निम्नलिखित हैं:
2. बनावट या रचना के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण
बनावट की भिन्नता के आधार पर शब्दों को तीन वर्गों में बाँटा गया है:
(i) रूढ़ शब्द: जिन शब्दों के सार्थक खंड न किए जा सकें तथा जो शब्द लंबे समय से किसी विशेष अर्थ के लिए प्रयोग हो रहे हैं, उन्हें रूढ़ शब्द कहते हैं।
रूढ़ शब्द के कुछ उदाहरण: ऊपर (ऊ + प + र), नीचे (नी + चे), पैर (पै + र), कच्चा (क + च् + चा), कमल (क + म + ल), फूल (फू + ल), वृक्ष (वृ + क्ष), रथ (र + थ), पत्ता (प + त् + ता) आदि।
(ii) यौगिक शब्द: दो या दो से अधिक शब्दों या शब्दांशों द्वारा निर्मित शब्दों को यौगिक शब्द कहते हैं।
यौगिक शब्दों के कुछ उदाहरण:
(iii) योगरूढ़ शब्द-जो यौगिक शब्द किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं, उन्हें योगरूढ़ शब्द कहते हैं।
योगरूढ़ शब्दों के उदाहरण:
3. प्रयोग के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण
प्रयोग के आधार पर शब्द तीन प्रकार के होते हैं:
(i) सामान्य शब्द-जिन शब्दों का प्रयोग दिन-प्रतिदिन के कार्य-व्यवहार में होता है, उन्हें सामान्य शब्द कहते हैं।
उदाहरण: रोटी, पुस्तक, कलम, साइकिल, शिशु, मेज़, लड़का आदि।
(ii) अर्ध तकनीकी शब्द: जो शब्द दिन-प्रतिदिन के कार्य-व्यवहार में भी प्रयोग में लाए जाते हैं तथा किसी विशेष उद्देश्य के लिए ही इनका प्रयोग किया जाता है, उन्हें अर्ध तकनीकी शब्द कहते हैं।
उदाहरण: दावा, आदेश, रस।
(iii) तकनीकी शब्द: किसी क्षेत्र विशेष में प्रयोग की जाने वाली शब्दावली के शब्दों को तकनीकी शब्द कहते हैं।
उदाहरण: विधि (कानून) के क्षेत्र में प्रयोग किए जाने वाले शब्द – विधि, विधेयक, संविधान, प्रविधि आदि।
इसी प्रकार–प्रशासन, बैंक, चिकित्सा, विज्ञान, अर्थशास्त्र के क्षेत्रों से संबंधित शब्द हैं-महानिदेशक, आयोग, समिति, कार्यवृत्त, सीमा शुल्क, सूचकांक, पदोन्नति, शेयर, कार्यशाला, आरक्षण आदि।
साहित्य में भी ऐसे शब्दों का प्रयोग होता है – संधि, समास, उपसर्ग, रूपक, दोहा, रस आदि।
4. अर्थ के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण
अर्थ के आधार पर शब्दों के दो भेद किए गए हैं:
(i) निरर्थक शब्द-जो शब्द अर्थहीन होते हैं, निरर्थक शब्द कहलाते हैं। ये शब्द सार्थक शब्दों के पीछे लग उनका अर्थ-विस्तार करते हैं।
उदाहरण:
(ii) सार्थक शब्द-जिन शब्दों का कुछ न कुछ अर्थ होता है, उन्हें सार्थक शब्द कहते हैं।
उदाहरण: कोयल, पशु, विचित्र, कर्तव्य, संसार आदि।
सार्थक शब्द अनेक प्रकार के है:
(क) एकार्थी शब्द: जिन शब्दों का केवल एक निश्चित अर्थ होता है, वे एकार्थी शब्द कहलाते हैं।
उदाहरण: हाथी, ईश्वर, पति, पुस्तक, शत्रु, मित्र, कमरा आदि।
(ख) अनेकार्थी शब्द: जिन शब्दों के एक से अधिक अर्थ होते हैं, उन्हें अनेकार्थी शब्द कहते हैं।
उदाहरण:
(ग) समानार्थी या पर्यायवाची शब्द: जो शब्द एक समान (लगभग एक सा ही) अर्थ का बोध कराते हैं, उन्हें पर्यायवाची शब्द कहते हैं। पर्याय का अर्थ है दूसरा अर्थात् उसी प्रयोजन या वस्तु के लिए दूसरा शब्द। इनका अर्थ लगभग एक समान होता है पर पूर्ण रूप से समान नहीं।
उदाहरण:
(घ) विपरीतार्थक शब्द-हिंदी भाषा के प्रचलित शब्दों के विपरीत अर्थ देने वाले शब्दों को विपरीतार्थक शब्द कहते हैं।
उदाहरण:
वाक्यों में प्रयुक्त शब्दों अर्थात् पदों को पाँच भेदों में बाँटा जाता है
1. संज्ञा: जिन शब्दों से किसी प्राणी, व्यक्ति, स्थान, वस्तु अथवा भाव के नाम का बोध होता है, उन्हें संज्ञा कहते हैं।
उदाहरण: सचिन, हरिद्वार, क्रिकेट, उड़ान, गरमी, बचपन, शेर आदि।
संज्ञा के तीन भेद होते हैं:
(i) व्यक्तिवाचक संज्ञा-जिन संज्ञा शब्दों से किसी विशेष व्यक्ति, स्थान एवं वस्तु का बोध हो, उन्हें व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं।
उदाहरण: भगत सिंह, ताजमहल, कुरान, रामायण, भारत, लाल किला, कुतुबमीनार आदि। शब्द एवं पद में अंतर
(ii) जातिवाचक संज्ञा: जो संज्ञा शब्द किसी एक ही जाति के प्राणियों, वस्तुओं एवं स्थानों का बोध करवाते हैं, उन्हें जातिवाचक संज्ञा कहते हैं।
उदाहरण: लड़का, पर्वत, ग्रह, खिलाड़ी, पशु, पक्षी, मित्र, भवन, शहर, इमारत आदि।
जातिवाचक संज्ञा के दो उपभेद हैं:
(iii) भाववाचक संज्ञा: जो संज्ञा शब्द, गुण, कर्म, दशा, अवस्था आदि भावों का बोध करवाते हैं, उन्हें भाववाचक संज्ञा कहते हैं।
उदाहरण: सुंदरता, लंबाई, बचपन, भूख, चोरी, घृणा, क्रोध, ममता, चुनाव, लालिमा आदि।
2. सर्वनाम: जो शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त किए जाते हैं, वे सर्वनाम कहलाते हैं।
उदाहरण: वे, उसका, वह, आप, मैं, उनके, तुम आदि।
सर्वनाम के निम्नलिखित छह भेद माने जाते हैं:
(i) पुरुषवाचक सर्वनाम: वक्ता स्वयं अपने लिए, श्रोता के लिए अथवा किसी अन्य व्यक्ति के लिए जिन सर्वनामों का प्रयोग करता है, उन्हें पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण: हम, तुम, ये, तू, मैं, वे आदि।
पुरुषवाचक सर्वनाम के निम्नलिखित तीन उपभेद हैं:
(ii) निश्चयवाचक सर्वनाम – जिस सर्वनाम से पास या दूर स्थित वस्तुओं या प्राणियों का बोध हो, उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण:
(iii) अनिश्चयवाचक सर्वनाम-जिन सर्वनामों से निश्चित व्यक्ति या वस्तु का बोध ना हों, उन्हें अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण:
(iv) संबंधवाचक सर्वनाम: जो सर्वनाम शब्द किसी अन्य (प्रायः अपने उपवाक्य से पूर्व) उपवाक्य में प्रयुक्त संज्ञा व सर्वनाम से संबंध बताते हैं, उन्हें संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण:
(v) प्रश्नवाचक सर्वनाम: जिन सर्वनाम शब्दों का प्रयोग प्रश्न पूछने के लिए जाता है, उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण:
(vi) निजवाचक सर्वनाम: जो शब्द वाक्य में कर्ता के साथ आकर अपनेपन का बोध कराते हैं, उन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते हैं।
उदाहरण:
3. विशेषण: जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, उन्हें विशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
विशेष्य: विशेषण जिन संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की विशेषता बताते हैं, उस संज्ञा या सर्वनाम को विशेष्य कहते हैं।
उदाहरण: धरती, बालक, पुस्तक, छात्र, फूल, आम आदि उपर्युक्त उदाहरणों में विशेष्य हैं।
प्रविशेषण: विशेषणों की विशेषता बताने वाले विशेषण को प्रविशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
मुख्य रूप से विशेषण के चार भेद होते हैं:
(i) गुणवाचक विशेषण: जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम के गुण-दोष (भाव, रंग, आकार, प्रकार, स्वाद, गंध, देश काल, स्पर्श एवं दशा आदि) का बोध करवाते हैं, उन्हें गुणवाचक विशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
(ii) संख्यावाचक विशेषण: जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की संख्या-संबंधी विशेषता का बोध कराते हैं, उन्हें संख्यावाचक विशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
संख्यावाचक विशेषण के दो उपभेद हैं:
(iii) परिमाणवाचक विशेषण-जिन विशेषण शब्दों से उनके विशेष्य की माप-तौल (मात्रा) का बोध हो, उन्हें परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
परिमाणवाचक विशेषण के दो उपभेद हैं:
(iv) संकेतवाचक विशेषण: जब सर्वनाम शब्द संज्ञा शब्दों से पहले लगकर विशेषण शब्दों का कार्य करते हैं या उसकी ओर संकेत करते हैं, तो उन्हें संकेतवाचक अथवा सार्वनामिक विशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
4. क्रिया: जिन शब्दों से किसी कार्य के करने या होने का अथवा किसी वस्तु या व्यक्ति की अवस्था या स्थिति का बोध होता है, उन्हें क्रिया कहते हैं।
उदाहरण:
कर्म के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं:
(i) अकर्मक क्रिया: जिन क्रियाओं में कर्म की अपेक्षा नहीं रहती, वे अकर्मक क्रियाएँ कहलाती हैं।
उदाहरण:
(ii) सकर्मक क्रिया: जिन क्रियाओं में कर्म की अपेक्षा रहती है, उन्हें सकर्मक क्रियाएँ कहते हैं।
उदाहरण:
सकर्मक क्रिया के दो उपभेद हैं:
रचना अथवा बनावट के आधार पर क्रिया के भेद:
(i) सरल क्रिया: रूढ़ अर्थों में वाक्य में प्रयोग की जाने वाली साधारण क्रिया को सरल क्रिया कहते हैं।
उदाहरण:
(ii) संयुक्त क्रिया: जब दो या दो से अधिक क्रिया शब्द मिलकर पूर्ण क्रिया का बोध कराएँ, तो वह क्रिया संयुक्त क्रिया कहलाती है।
उदाहरण:
(iii) प्रेरणार्थक क्रिया: जिन क्रियाओं द्वारा कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी अन्य को कार्य करने के लिए प्रेरित करे, उन्हें प्रेरणार्थक क्रियाएँ कहते हैं।
उदाहरण:
(iv) नामधातु क्रिया: जो क्रियाएँ संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण शब्दों से बनाई जाती हैं, उन्हें नामधातु क्रियाएँ कहते हैं।
उदाहरण:
(v) पूर्वकालिक क्रिया: वाक्य में मुख्य क्रिया से पूर्व प्रयुक्त संपन्न होने वाली क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं।
उदाहरण:
(vi) मुख्य क्रिया: जो क्रियाएँ वाक्य में मुख्य कार्य करने का बोध कराती हैं, उन्हें मुख्य क्रिया कहते हैं।
उदाहरण:
5. अव्यय: अव्यय वे शब्द हैं जिन पर विकारक तत्वों अर्थात् लिंग, वचन एवं कारक का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
उदाहरण:
अव्यय के पाँच भेद हैं:
(i) क्रियाविशेषण: जो अव्यय क्रिया की विशेषता का बोध कराते हैं, उन्हें क्रियाविशेषण कहते हैं।
उदाहरण:
क्रियाविशेषण के चार भेद होते हैं:
(ii) संबंधबोधक: संबंधबोधक वे अव्यय या अविकारी शब्द हैं जो संज्ञा या सर्वनाम शब्दों के साथ आकर उनका संबंध वाक्य के अन्य शब्दों के साथ बताते हैं।
उदाहरण:
(iii) समुच्चयबोधक: जो अव्यय शब्द दो शब्दों, दो वाक्यों को जोड़ने का कार्य करते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक कहते हैं।
उदाहरण:
(iv) विस्मयादिबोधक: जो अव्यय आश्चर्य, घृणा, हर्ष, लज्जा, ग्लानि, पीड़ा, दुख आदि मनोभावों का बोध कराते हैं, उन्हें विस्मयादिबोधक कहते हैं।
उदाहरण:
(v) निपात: जो अव्यय वाक्य में किसी शब्द के बाद लगकर उसके अर्थ पर विशेष प्रकार का बल देते हैं, उन्हें निपात शब्द कहते हैं।
उदाहरण:
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1. शब्द और पदशब्द में क्या अंतर है? |
2. शब्द का अर्थ क्या है? |
3. पदशब्द का उपयोग कैसे किया जाता है? |
4. एक वाक्य में कितने पद हो सकते हैं? |
5. शब्दों का विभाजन कैसे होता है? |
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