मायाजाल से सोने का हिरण बने मारीच को मारने के बाद राम संदेह से भरे कुटिया की ओर भागे चले जा रहे थे कि कहीं लक्ष्मण सीता को कुटिया में अकेला छोड़कर न आ जाए। उन्हें पगडंडी से लक्ष्मण आते दिखे| वे लक्ष्मण से गुस्सा थे। लक्ष्मण ने उन्हें कहा कि मुझे पता था कि आप सकुशल होंगे परंतु देवी सीता के कटु वचन और उलाहना सुनकर मुझे कुटिया छोड़कर आना पड़ा है। राम को लक्ष्मण का उनकी आज्ञा का उल्लंघन करना उचित नहीं लगा|
दोनों जल्दी कुटिया की ओर चल पड़े| जब कुटिया दिखाई पड़ने लगी तो राम ने सीता को पुकारा कि वह कहाँ है? आवाज़ नहीं आई| सीता कुटिया में नहीं थीं| राम ने सीता को हर सम्भव स्थान पर ढूंढा और पूछताछ की| लक्ष्मण राम के निकट गए और बोले कि आप आदर्श पुरुष हैं। आप को धैर्य रखना चाहिए। तब राम शांत हुए। ;इसी बीच हिरणों का झुंड राम-लक्ष्मण के निकट आ गया। राम ने हिरणों से सीता के बारे में पूछा। हिरणों ने सिर उठाकर आसमान की ओर देखा और दक्षिण की ओर भाग गये। राम ने इसे संकेत मान सीता की खोज में दक्षिण की ओर बढ़े|
दक्षिण दिशा में आगे बढ़ने पर उन्हें गिद्धराज जटायु घायल हालत में मिले और अपनी अंतिम साँसें ले रहे थे| उन्होंने राम को बताया कि रावण सीता को उठा कर दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर ले गया है। उन्होंने संघर्ष करके उसे रोकना चाहा परंतु रोक न सके। इतना कहकर जटायु ने अपने प्राण त्याग दिए। राम जटायु का अन्तिम संस्कार कर आगे बढ़े तब उन्हें कबंध राक्षस मिला। उसके द्वारा आक्रमण करने पर राम-लक्ष्मण ने तलवार का वार करके उसके हाथ काट दिए। तब उसने राम-लक्ष्मण के बारे में जानकर अपनी इच्छा प्रकट की कि राम उसका अन्तिम संस्कार करें। कबंध ने उन्हें बताया कि ऋष्यमूक पर्वत पर वानरराज सुग्रीव रहता है। वह वहाँ निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहा है। उसने यह भी बताया कि सुग्रीव के पास वानरों की सेना है। वे अवश्य सीता को खोज निकालेंगे। उसने उन्हें वहाँ जाने से पहले मतंग ऋषि के आश्रम में रहने वाली शबरी से मिलने के लिए भी कहा। उसने प्राण त्याग दिया और राम ने वचनुसार उसका अंतिम संस्कार खुद किया| वहाँ से वे दोनों शबरी से जाकर मिले। शबरी ने भी उन्हें सुग्रीव की सहायता से सीता की खोज करने के लिए कहा। शबरी से मिलकर वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर चल पड़े।
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