भीम का शारीरिक बल और अर्जुन की युद्ध-कला से दुर्योधन को बहुत जलन थी। उसने अपने मामा शकुनि और कर्ण से विमर्श कर पांडवों के नाश की योजना बनाई। युधिष्ठिर की लोकप्रियता बढ़ रही थी। लोग उन्हें राजा के रूप में देखना चाहते थे। इस कारण दुर्योधन और भी चिंतित था।
दुर्योधन ने पिता धृतराष्ट्र को कहा कि वह किसी तरीके से पांडवों को वरणावत के मेले में भेज दें। दुर्योधन ने कुछ कूटनीतिज्ञों द्वारा भी अपने पिता पर दबाव डाला। दुर्योधन के अन्य सहयोगियों ने भी पांडवों को वारणावत की सुंदरता और खूबियों के बारे में बताकर ललचाया। उन्होंने पांडवों को वारणावत के मेले के बारे में भी बताया।
धृतराष्ट्र के अनुमति लेकर पांडव कुंती के साथ ख़ुशी से वारणावत के लिए चल पड़े। दुर्योधन को जब यह बात पता चली तो वह पांडवों और कुंती को खत्म करने की योजना बनाने लगा। उसने अपने मंत्री पुरोचन को वारणावत को अपनी योजना को पूरा करने के लिए भेजा।
पुरोचन पांडवों से पहले वारणावत पहुँचकर पांडवों के लिए सन, घी, मोम, तेल, लाख, चरबी आदि जल्दी आग पकड़ने वाली चीजों से एक सुन्दर भवन तैयार किया। पांडवों के जल्दी पहुँचने के स्थिति में एक और भवन तैयार किया ताकि वे कुछ समय तक उसमे ठहर सके। दुर्योधन की योजनानुसार पांडवों को पहले कुछ दिन तक भवन में आराम से रहने दिया जाना था और बाद में भवन में आग लगाना था। ताकि वे उसमें जल जाएँ और किसी को कौरवों पर शक भी नहीं हो।
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