जब पांडव एकचक्रा नगरी में ब्राह्मणों के वेश में रह रहे थे, उन्हीं दिनों पांचाल नरेश द्रुपद की कन्या द्रौपदी के स्वयंवर की तैयारियाँ भी हो रही थीं। पाण्डव भी माता कुंती के साथ पांचाल देश में पहुँचकर एक कुम्हार की झोंपड़ी में ब्राह्मण वेश में रहने लगे। इस वेश में कोई उनको पहचान नहीं पाता था। स्वयंवर-मंडप में दूर-दूर से अनेक वीर आए थे। धृतराष्ट्र के सभी पुत्र, कर्ण, श्रीकृष्ण, शिशुपाल, जरासंध, शल्य जैसे प्रसिद्ध वीर उपस्थित थे। पाँचों पांडव भी ब्राह्मणों के मध्य जाकर बैठ गए।
स्वयंवर स्थल पर एक बहुत बड़ा धनुष रखा हुआ था तथा ऊपर काफ़ी ऊँचाई पर सोने की एक मछली टॅगी हुई थी। उसके नीचे एक चमकदार यंत्र तेज़ी से घूम रहा था। राजा द्रुपद ने घोषणा की कि जो राजकुमार वहाँ रखे धनुष से तीर चलाकर मछली की आँख भेद देगा उसे ही द्रौपदी वरमाला पहनाएगी।
स्वयंवर-मंडप में अपने भाई धृष्टद्युम्न के साथ द्रौपदी ने प्रवेश किया| इसके बाद एक-एक करके राजकुमार उठते और धनुष पर डोरी चढ़ाते, हारते और अपमानित होकर लौट जाते। कर्ण ने धनुष उठाकर खड़ा कर दिया और तानकर प्रत्यंचा भी चढ़ानी शुरू कर दी। डोरी के चढ़ाने में अभी थोड़ी सी कसर रह गई थी कि इतने में धनुष का डंडा उसके हाथ से छूट गया तथा उछलकर उसके मुंह पर लगा। अपनी चोट सहलाते हुए कर्ण अपनी जगह पर जा बैठे। तभी ब्राह्मण वेशधारी अर्जुन ने धनुष पर तीर चढ़ाया और पाँच बाण उस घूमते हुए चक्र में मारे जिससे कि निशाना टूट कर नीचे आ गिरा। द्रौपदी ने ब्राह्मण वेशधारी अर्जुन को वरमाला पहना दी।
युधिष्ठिर, नकुल, सहदेव समाचार देने माँ के पास चले गए। भीम जानबूझकर रुका रहा। कुछ राजकुमारों ने शोर-शराबा किया। श्रीकृष्ण और बलराम के समझाने पर सब शांत हो गए। भीम और अर्जुन द्रौपदी के साथ कुम्हार की कुटिया की ओर चल दिए।
जब अर्जुन और भीम द्रौपदी को लेकर चले तो धृष्टद्युम्न ने उनका पीछा किया। वहाँ से लौटकर उसने पिता को बताया कि ये पांडव हैं और माता कुंती कुम्हार की झोंपड़ी में बैठी हैं। तब राजा द्रुपद ने उन्हें बुलावा भेजा और इनके वहाँ आने पर उसने पाँचों पांडवों के साथ द्रौपदी का विवाह कर दिया।
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