दुर्योधन यह सुन कर और भी अधिक दुःखी हो गया कि पांडव लाख के घर की भीषण आग से बचकर द्रुपद के दामाद भी बन गए हैं। उसने दुःशासन के साथ जाकर मामा शकुनि को अपना दुखड़ा सुनाया। उन्हें बताया की द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न और शिखंडी भी पांडवों के साथी बन गए हैं। कर्ण और दुर्योधन ने जाकर धृतराष्ट्र को कोई ऐसा उपाय ढूँढ़ने के लिए कहा जिससे वे पांडवों की ओर से सदा के लिए निश्चिंत हो सकें।
दुर्योधन पांडवों को हस्तिनापुर आने नहीं देना चाहता है। कर्ण ने सुझाव दिया कि पांडवों की ताकत बढ़ने से पहले उन पर हमला कर दिया जाए। पितामह भीष्म पांडवों से संधि करने की सलाह देते हैं और आधा राज्य उन्हें दे देना उचित बताते हैं। आचार्य द्रोण ने भी यही सलाह दी।
कर्ण को द्रोणाचार्य की यह सलाह बिलकुल अच्छी न लगी। वह धृतराष्ट्र से आचार्य द्रोण जैसी कुमंत्रणा पर ध्यान देने को कहते हैं| विदुर भीष्म और द्रोणाचार्य की सलाह को ठीक मानते हैं। धृतराष्ट्र पांडवों को आधा राज्य देने पर सहमत हो जाते हैं।
विदुर को पांडवों, द्रौपदी तथा कुंती को लाने द्रुपद नरेश के राज्य पांचाल भेजा जाता है। विदुर से धृतराष्ट्र का संदेश सुनकर द्रुपद तथा कुंती को संदेह होता है कि कहीं इसमें भी तो कोई चाल नहीं है। विदुर कुंती को समझाते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होगा। विदुर पांडव, द्रौपदी और कुंती को लेकर हस्तिनापुर के लिए चल पड़ते हैं।
हस्तिनापुर में युधिष्ठिर का यथाविधि राज्याभिषेक होता है और आधा राज्य पांडवों को दे दिया जाता है| धृतराष्ट्र युधिष्ठिर को सलाह देते हुए कहते हैं कि मेरे अपने बेटे बड़े दुरात्मा हैं इसलिए एक साथ रहने से तुमलोगों में वैर बढ़ेगा| तुम खांडवप्रस्थ को अपनी राजधानी बना लेना और वहीं से राज्य करो। खांडवप्रस्थ हमारे प्रतापी पूर्वजों की राजधानी रही है। हमारे वंश की पुरानी राजधानी खांडवप्रस्थ को फिर से बसाने का यश और श्रेय तुम्हीं को प्राप्त भी हो जाएगा| पांडव उनका कहना मानकर खांडवप्रस्थ के टूटे-फूटे निर्जन वन क्षेत्र को सुंदर नगर में बदल देते हैं और इसका नाम इंद्रप्रस्थ रखते हैं। पांडवों ने अपनी राजधानी में तेईस वर्ष सुखपूर्वक राज्य किया|
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