एक दिन सुहावने मौसम में द्रौपदी अपने आश्रम के बाहर खड़ी थी कि एक सुंदर फूल हवा में उड़ता हुआ उसके पास आकर गिरा। द्रौपदी ने वह फूल उठा लिया और भीम को दिखाकर ऐसे कुछ और फूल लाने के लिए कहा।द्रौपदी की इच्छा पूरी करने के लिए भीम फूल की तलाश में एक पहाड़ की घाटी में जा पहुँचे। वहाँ केले के बगीचे में रास्ता रोके हुए एक विशाल बंदर पड़ा था।
भीम द्वारा जगाए जाने पर उसने भीम को डाँटा। बंदर ने भीम की ओर देखकर कहा कि मैं अस्वस्थ हूँ। तुमने जगाकर मेरी नींद क्यों खराब कर दी। भीम को बंदर के इस प्रकार कहने पर बहुत क्रोध आया और स्वयं को कुरुवंश का वीर कुंती पुत्र भीम कहकर उसे रास्ते से हटने के लिए कहा। बंदर ने स्वयं को बूढ़ा और अस्वस्थ बताकर उठने-बैठने में असमर्थ बताया तथा उसे कहा कि वह उसे लाँघकर चले जाए। भीम ने कहा कि वह जानवर को लाँघना सही नहीं मानता इसीलिए रुका हुआ है|
बंदर ने भीम से हनुमान के विषय में पूछा| भीम ने गरजते हुए बंदर से कहा कि तुम हनुमान को कैसे नहीं जानते और रास्ता देने के लिए कहा। बंदर ने भीम को उसकी पूँछ हटाकर निकल जाने के लिए कहा। भीम कोशिश करके भी पूँछ को हटाना तो दूर हिला भी न सका और लज्जित हो गया। उसका गर्व चूर-चूर हो गया। उसने विनम्र भाव से उस बंदर से पूछा कि आप कौन हैं? बंदर ने बताया कि वह ही हनुमान है। यह जानकर भीम ने उन्हें प्रणाम किया।
हनुमान ने उसे आशीर्वाद दिया और बताया कि युद्ध के समय वह अर्जुन के रथ पर उड़ने वाली ध्वजा पर विद्यमान रहेंगे। इसके बाद हनुमान ने भीमसेन को पास के झरने में खिले हुए सुगन्धित फूल दिखाए। फूलों को देखते ही भीमसेन को द्रौपदी की याद आई। भीम जल्दी से फूल तोड़कर आश्रम लौट गया।
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