रथ पर अर्जुन के होने की बात से आचार्य द्रोण की शंका और घबराहट दुर्योधन और कर्ण को अच्छी नहीं लगी।कर्ण ने कहा कि अज्ञातवास की अवधि अभी समाप्त नहीं हुई है। पांडवों को फिर से बारह वर्ष के लिए जाना होगा। आश्चर्य है कि सेना भय से काँप रही है। मैं अकेला ही मुकाबला करूँगा और दुर्योधन को जो वचन दिया था, उसे आज पूरा करके दिखाऊँगा। कर्ण को इस तरह से बात करता देख कृपाचार्य बोले कि मूर्खों जैसी बातें ना करो| हम सबको एक साथ मिलकर अर्जुन का मुकाबला करना होगा।
यह सुनकर कर्ण को गुस्सा आ गया। वह बोला कि अर्जुन की शक्ति को बढ़ा-चढ़ाकर बताने की आचार्य को आदत-सी पड़ गई है। आज मैं अकेला ही अर्जुन का सामना करूँगा। यह सुनकर अश्वत्थामा ने कहा कि तुमने अभी तक किया कुछ नहीं है और केवल कोरी डींगें मारने में समय गँवा रहे हो। यह देख भीष्म ने समझाया कि आपस में झगड़ा करने के स्थान पर हमें मिलकर शत्रु का मुकाबला करना चाहिए। तब सभी शांत हुए।
भीष्म ने दुर्योधन को बताया कि पांडवों के अज्ञातवास का वर्ष कल ही पूरा हो चुका है। तुम लोगों से गणना में भूल हुई है। प्रत्येक वर्ष में एक जैसे महीने नहीं होते हैं। जब अर्जन ने गांडीव की टंकार की तभी मैं समझ गया था कि पांडवों की अवधि पूरी हो गई है। इसलिए युद्ध करने से अच्छा तो यही है कि पांडवों के साथ संधि कर ली जाए। यह सुनकर दुर्योधन ने उनसे कहा कि मैं कभी भी पाण्डवों के साथ संधि नहीं करूँगा। राज्य तो देना दूर रहा, मैं तो एक गाँव तक पांडवों को देने के लिए तैयार नहीं हूँ।
द्रोणाचार्य ने कौरव सेना की व्यूह रचना कर आक्रमण की तैयारी की। अर्जुन ने उत्तर को दुर्योधन की तरफ़ रथ हाँकने को कहा| उसने दो-दो बाण आचार्य द्रोण और भीष्म पितामह के चरणों में वंदना करते हुए मारे। अर्जुन ने कर्ण को घायल कर दिया, अश्वत्थामा को हरा दिया, द्रोणाचार्य को निकल जाने दिया, दुर्योधन को मैदान से भगा दिया। भीष्म ने सेना लौटाने की सलाह दी। सारी सेना हस्तिनापुर लौट गई।
युद्ध से नगर की ओर लौटते समय अर्जुन ने फिर से बृहन्नला का वेश धारण कर सारथी का स्थान वापस ले लिया और दूतों द्वारा राजकुमार उत्तर के विजयी होने की सूचना नगर में भिजवा दी।
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