जब युधिष्ठिर को जीवित बंदी नहीं बनाया जा सका तो कौरवों ने निश्चय किया कि अर्जुन को युद्ध के लिए ललकार कर युधिष्ठिर से कहीं दूर ले जाया जाए। इसलिए अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारा गया और लड़ते-लड़ते युधिष्ठिर से दूर ले जाया गया। आचार्य द्रोण ने युधिष्ठिर को जीवित पकड़ने की कई बार कोशिश की परन्तु वे असफल रहे। भगदत्त के हाथी ने भीम को मार दिया - युद्ध-क्षेत्र में यह शोर सुनकर युधिष्ठिर को लगा कि भीम मारा गया है इसलिए उसने अपने वीरों को भगदत्त पर आक्रमण करने का आदेश दिया।
उस समय अर्जुन संशप्तकों से लड़ रहा था। वहाँ से आकर जैसे ही अर्जुन वहाँ पहुँचे तो पांडव सेना नए उत्साह से भगदत्त से लड़ने लगी। अर्जुन के बाणों से भगदत्त का धनुष टूट गया और अर्जुन ने उसके मर्म-स्थानों पर बाण चलाकर उन्हें छेद डाला। फिर अर्जुन के तेज बाणों से भगदत्त की आँखों के ऊपर बँधी हुई रेशम की पट्टी कट गई, जो उसकी आँखों के ऊपर लटक आने वाली चमड़ी को ऊपर उठाए रखती थी। इससे उसकी आँखें बंद हो गईं। कुछ ही देर बाद अर्जुन ने बाण से उसकी छाती छेद डाली। उसके गिरते ही कौरव-सेना भागने लगी
उसी समय शकुनि के भाई वृषक और अचक ने अर्जुन पर बाणों की बौछार कर दी। अर्जुन ने उन दोनों के रथों के पहिए तहस-नहस कर दिए और दोनों को मार गिराया| तब शकुनि ने अर्जुन पर प्रहार करने शुरू कर दिए और अर्जुन के बाण से घायल होकर उसे युद्ध-क्षेत्र से हटना पड़ा। इसके बाद पांडवों की सेना द्रोणाचार्य की सेना पर टूट पड़ी जिसमें असंख्य वीर मारे गए। थोड़ी देर बाद सूर्यास्त हुआ और युद्ध समाप्त कर दोनों पक्षों की सेनाएँ अपने-अपने शिविर में लौट आईं। इस प्रकार बारहवें दिन का युद्ध समाप्त हुआ।
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