जब अर्जुन जयद्रथ से युद्ध करते हुए उसका वध करने का अवसर तलाश कर रहा था तब भूरिश्रवा ने सात्यकि को उठाकर ज़मीन पर पटक दिया और कौरव-सेना चिल्ला उठी कि सात्यकि मारा गया। अर्जुन ने मैदान में मृत से पड़े सात्यकि को देखकर कृष्ण से पूछा कि भूरिश्रवा उससे लड़ नहीं रहा तो वह उस पर कैसे बाण चलाए? उधर जयद्रथ ने भी अर्जुन पर बाणों की बरसा कर दी जिसका जवाब अर्जुन ने बात करते हुए दिया| उसी समय भूरिश्रवा ने अपने पाँव से सात्यकि का शरीर दबाकर तलवार से उस पर वार करना चाहा तो अर्जुन ने बाण चलाकर उसके तलवार वाले हाथ को ही काट दिया।
भूरिश्रवा ने श्रीकृष्ण व अर्जुन की निंदा की। भूरिश्रवा युद्ध के मैदान में शरों को फैलाकर और आसन जमाकर बैठ गया उसने वहीं आमरण अनशन शुरू कर दिया। तब अर्जुन ने उससे पूछा कि घायल, निहत्थे और अचेत सात्यकि पर वार करते हुए और निहत्थे बालक अभिमन्यु पर आक्रमण करते हुए उनलोगों ने कौन-सा धर्म के अनुसार युद्ध किया था।
इसी बीच उठकर सात्यकि ने भूरिश्रवा का सिर धड़ से अलग कर दिया। सात्यकि के इस कार्य की भी सबने निंदा की।
अर्जुन कौरव-सेना को चीरता हुआ जयद्रथ के निकट पहुँच गया। दोनों में भीषण युद्ध होने लगा। तभी सूर्यास्त के समय आकाश में लालिमा छा गई जिसे देखकर जयद्रथ को लगा कि वह बच गया है। जैसे ही जयद्रथ ने पश्चिम की ओर देखा श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि जयद्रथ सूर्य की तरफ़ देखने में लगा है। सूर्य अभी अस्त नहीं हुआ है। तुम अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह भी चेतावनी दी थी कि जयद्रथ का सिर ज़मीन पर नहीं गिरना चाहिए। अर्जुन के बाण से जयद्रथ का सिर कटकर उसके पिता वृद्धक्षत्र की गोद में जा गिरा। जब वे उठे और जयद्रथ का कटा सिर जमीन पर गिर पड़ा तो उनके सिर के सौ टुकड़े हो गए।
युधिष्ठिर को जब जयद्रथ के वध का समाचार मिला तो वे दुगुने उत्साह के साथ सेना लेकर द्रोणाचार्य पर टूट पड़े।चौदहवें दिन युद्ध रात तक चलता रहा| भीम के पुत्र घटोत्कच का कर्ण से भयंकर युद्ध हुआ। कर्ण ने इंद्र के द्वारा दी गई शक्ति जिसका प्रयोग वह अर्जुन पर करना चाहता था से घटोत्कच का वध कर दिया। पांडवों में मातम छा गया| उधर द्रोणाचार्य पांडव-सेना के असंख्य वीरों को मार रहे थे।
श्रीकृष्ण ने कोई कुचक्र रचकर द्रोण को मारने की बात कही| उन्होंने आचार्य तक यह समाचार पहुँचाना चाहा कि अश्वत्थामा मारा गया। इस व्यवस्था के अनुसार भीम ने गदा-प्रहार से अश्वत्थामा नाम के एक भारी लड़ाके हाथी को मार डाला। फिर द्रोण की सेना के पास जाकर ज़ोर से चिल्लाने लगा कि मैंने अश्वत्थामा को मार डाला है। द्रोणाचार्य ने जब सच्चाई जानने के लिए युधिष्ठिर से पूछा| उन्होंने ज़ोर से कहा, 'हाँ, अश्वत्थामा मारा गया और धीमे स्वर में कहा, "मनुष्य नहीं, हाथी।" इसके साथ ही भीम आदि ने शंखनाद और सिंहनाद कर दिया, जिसमें युधिष्ठिर के अंतिम शब्द सुनाई ही नहीं दिए। इसी बीच धृष्टद्युम्न ने आचार्य की गरदन पर तलवार से जोर का वार किया और उनका सिर तत्काल ही धड़ से अलग होकर गिर पड़ा।
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