दुर्योधन घायल अवस्था में जलाशय के तट पर पड़ा था। अश्वत्थामा दुर्योधन की यह दुर्दशा देखकर व्याकुल हो गया| उसे अपने पिता द्रोण की हत्या के लिए रचा गया कुचक्र भी याद था। उसने दुर्योधन के पास जाकर पांडवों के विनाश की प्रतिज्ञा की। सर्यास्त के बाद अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा एक बरगद के पड़े के नीचे रात बिताने की इच्छा से ठहरे थे। कृपाचार्य व कृतवर्मा सो गए। अश्वत्थामा जाग रहा था उसने सोचा-इन पांडवों को सोते समय रात में ही क्यों न मार दिया जाए। उसने कृपाचार्य को जगाकर अपना निश्चय सुनाया। उन्होंने इस कार्य को धर्म के विरुद्ध बताया तो भी वह अपनी बात कहकर पांडवों के शिविर की ओर चल पड़ा। कृपाचार्य और कृतवर्मा भी उसके साथ चल पड़े।
पांडव-शिविर में पहुँचकर अश्वत्थामा ने सोते हुए धृष्टद्युम्न व द्रौपदी के पाँच पुत्रों को पैरों से कुचलकर मार दिया। इसके बाद इन तीनों ने पांडव शिविर में आग लगा दी। भयभीत सैनिक इधर-उधर भागे जिनको अश्वत्थामा ने मार डाला। अश्वत्थामा ने दुर्योधन को जाकर बताया कि उसने पांडवों, पांचालों, उनकी सेना सबको मार दिया है। पांडवों के पक्ष में अब केवल सात ही व्यक्ति जीवित बच गए हैं। हमारे पक्ष में कृपाचार्य, कृतवर्मा और मैं तीन ही रह गए हैं।यह सुनकर दुर्योधन प्रसन्न हुआ और अपने प्राण त्याग दिए।
द्रौपदी अपने भाई व पुत्रों की मृत्यु पर विलाप करती हुई बोली कि पापी अश्वत्थामा से बदला लिया जाए। पांडवों ने गंगातट पर अश्वत्थामा को खोज लिया। अश्वत्थामा और भीम में युद्ध हुआ परन्तु अंत में अश्वत्थामा हार गया|
पांडव-वंश भी नष्ट हो गया होता किंतु उत्तरा के गर्भ में अभिमन्यु का अंश था। समय पर उत्तरा ने परीक्षित को जन्म दिया जिससे पांडव-वंश आगे चला। युद्ध तो समाप्त हो गया किन्तु अनाथ बच्चों व स्त्रियों का विलाप चारों ओर था। धृतराष्ट्र ने बीती बातों को याद कर बहुत विलाप किया।
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