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Revision Notes: भाषा बोध में प्रवीणता | Hindi Language & Pedagogy - CTET & State TET PDF Download

प्रवीणता का मूल्यांकन

  • मूल्यांकन पठन-पाठन प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा है। 
  • कई अध्ययनों ( हारविट्ज, हारविट्ज और कोप 1986; स्टेनबर्ग और हारविट्ज़ 1986, अब्दुल हमीद 2005) से भी यह बात खुलकर सामने आई है कि परीक्षाओं के भय से उत्पन्न तनाव, उनके प्रदर्शन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इसलिए आकलन विधियों को ऊबाऊ व भय पैदा करने के स्थान पर ज्यादा-से-ज्यादा चुनौतीपूर्ण व मजेदार बनाने के लिए विशेष प्रयासों की जरूरत है। 
  • बोल-चाल से लेकर अन्य कई भाषिक कौशलों ( पढ़ना, लिखना, बोलना, सुनना) पर अनेक अध्ययन व शोध आदि हुए हैं और हम उनका लाभ उठा सकते हैं। जैसा कि ये अध्ययन बताते हैं, मूल्याकंन एक सतत् चलने वाली प्रक्रिया है और इसका उद्देश्य है सीखने वाले की भाषा की संरचना और एकरूपता की समझ का आकलन, इसे विभिन्न सन्दर्भों में उपयोग करने की क्षमता और इसके सौन्दर्यपरक को परख सकने की क्षमता का भी आकलन। इससे हमें पहलू सीखने वाले की वास्तविक स्थिति का पता चलता है और उसकी स्थिति / स्तर को बेहतर बनाने के लिए समय पर उचित हस्तक्षेप करने के लिए आवश्यक पहल करने का भी इशारा मिलता है।
  • सीखने वाले का मूल्यांकन भाषिक ज्ञान और सम्प्रेषणात्मक कौशलों दोनों के स्तरों पर होना चाहिए। सीखने वाले का मूल्यांकन खुद उसके सन्दर्भ में ओर उसके साथियों के साथ रखकर किया जाना चाहिए जिसके लिए कई तरह की जाँच की जा सकती है। खुले या बन्द प्रश्न, बहुवैकल्पिक किस्म के प्रश्न या यूँ ही मनचाहे सबक । समूह कार्य और प्रोजेक्ट आदि के आधार पर भी विद्यार्थी की प्रगति मूल्यांकन के नये तरीके शुरू किए जा सकते हैं।

परीक्षणों का अर्थ एवं परीक्षणों के प्रकार 

  • परीक्षणों का अर्थ है ज्ञान, क्षमता व प्रदर्शन का किसी भी विधि से मापन । भाषा-शिक्षण के मामले में जाँच को कक्षा कार्य के ही विस्तार के रूप में देखा जाना चाहिए, जो सीखने वाले व सिखाने वाले दोनों के लिए उपयोगी सूचनाएँ प्रदान करने में सहायक हों और जिनका उपयोग पढ़ाने के तरीके और सामग्री को विकसित करने हेतु किया जा सके।

 अभिरुचि परीक्षण 

  • विद्यार्थी में द्वितीय / विदेशी भाषा सीखने की क्षमता है या नहीं अथवा इस प्रकार की कोई सम्भावना है या नहीं इसकी जाँच इस परीक्षण के द्वारा की जाती है। इससे वे विद्यार्थी चुनकर सामने लाए जा सकते हैं जो उक्त भाषा सीखने के काबिल हों।

कसौटी - सन्दर्भित परीक्षण 

  • इस परीक्षण का उद्देश्य निश्चित होता है। अर्थात् खास विषय-वस्तु से सम्बन्धित होता है। निदानात्मक और उपलब्धिपरक जाँच इस श्रेणी में आते हैं। निदानात्मक जाँच से पता चलता है कि पाठ्यक्रम के किसी विशिष्ट पहलू के ज्ञान में विद्यार्थी की क्या स्थिति है?
  • उसने कितना सीखा है? यह कोर्स की किसी इकाई की समाप्ति के उपरान्त लिया जाता है। उपलब्धिपरक जाँच में विद्यार्थी की अन्य विद्यार्थियों की तुलना में जो स्थिति होती है उसकी जाँच की जाती है। इस जाँच का उद्देश्य यह जानना होता है कि जो लक्ष्य घोषित किए गए थे, उन्हें कहाँ तक प्राप्त किया जा सका।

मानक सन्दर्भित परीक्षण

  • यह परीक्षण ग्लोबल भाषा योग्यता की जाँच है। अधिकांश रोजगार और दक्षता सम्बन्धी जाँच इसी तरह की होती हैं। इसका उद्देश्य है विद्यार्थी ने जो कुछ सीखा उसे वह कहाँ तक वास्तविक स्थिति में कार्यान्वित करने के काबिल है और क्या वह विशिष्ट योग्यताओं के सन्दर्भ में एक मानक स्तर तक पहुँच सका। ये परीक्षण वस्तुनिष्ठ या वर्णनात्मक हो सकते हैं। 
  • वस्तुनिष्ठ परीक्षण में अंकन यान्त्रिक ढंग से किया जा सकता है। उनमें बहु-वैकल्पिक, रूपान्तरण पर आधारित, अधूरे वाक्यों को पूरा करने, सही/गलत, जोड़े मिलाने आदि जैसे प्रश्न आते हैं। वर्णनात्मक परीक्षण के मामले में परीक्षक के निजी फैसले का महत्त्व होता है और अंकन ज्यादा कठिन व समय लेने वाला होता है यदि परीक्षार्थियों की संख्या ज्यादा हो तो इस तरह की जाँच सम्भव नहीं है।

परीक्षण तैयार करना 

कोई भी परीक्षण तैयार करने की प्रक्रिया, यहाँ तक कि कक्षा के भीतर की भी, मुख्यतः तीन चरणों में सम्पादित होती है

  • अभिकल्प, 
  • संचालन 
  • परीक्षण का प्रशासन।

1. अभिकल्प तैयार करने की अवस्था में प्रश्नों का विवरण, पहचान और चुनाव शामिल होता है। संचालन (ऑपरेशन) की अवस्था में परीक्षण में प्रयुक्त किए जाने वाले विविध कार्यों के विशेष विवरण तैयार किए जाते हैं, साथ ही एक खाका भी तैयार किया जाता है जो, कि यह बताता है कि वास्तविक परीक्षण का रूप देने के लिए जाँच कैसे की जाएगी। इसमें वास्तविक परीक्षा सम्बन्धी कार्य, लिखित अनुदेश और अंकन की क्रियाविधियाँ भी शामिल होती हैं।
2. कार्यान्वयन की अवस्था में परीक्षण लिया जाता है, सूचनाएँ एकत्र की जाती हैं तथा अंकों का विश्लेषण किया जाता है।
3. परीक्षण का विकास शिक्षक को परीक्षण की उपयोगिता को गौर से देखने / पड़ताल करने का अवसर प्रदान करता है। विकास की यह प्रक्रिया अनुक्रियात्मक होनी चाहिए। यह बाद में जाँच-प्रश्नों के पुनर्विचार और उन्हें दोहराने में सहायक सिद्ध होती है। साथ ही अंकन की पद्धति को भी निर्मित व विकसित करने में यह मददगार साबित होती है।

परीक्षण के लिए दिए जाने वाले कार्य 

  • परीक्षण कार्य कई तरह के हो सकते हैं जैसे-अनुत्पादक परीक्षण कार्य (क्लोज परीक्षण करना, श्रुतलेखन, अनुवाद, नोट लेना, संयोजन आदि), उ मिलाना, बहु-वैकल्पिक, क्रमबद्ध करना आदि) से लेकर पोर्टफोलियो - आकलन (एक खास अवधि में विद्यार्थी द्वारा किए गए सृजनात्मक कार्य ) तक।
  • भाषा का पार्टफोलियों प्रपत्रों का संगठित व क्रमबद्ध संग्रह हो सकता है जिसे विद्यार्थी ने खास समय के दरम्यान में किया हो, और उसे व्यवस्थित ढंग से प्रदर्शित किया जा सकता है। इसे मानक परीक्षण-पद्धतियों के विकल्प के रूप में देखा जाता है। इससे विद्यार्थी में सीखने को प्रति दायित्वबोध पनपता है।
  • भाषिक मूल्यांकन के आधुनिक तरीके यह सुझाते हैं कि विविक्त बिन्दुओं और समाकलनात्मक परीक्षणों का सन्तुलित समूह बनाना उपयोगी हो सकता है। समाकलनात्मक परीक्षण जैसी बन्द प्रक्रिया (क्लोज्ड प्रोसिड्योर) जो गेस्टाल्ट (समग्राकृति) मनोविज्ञान पर आधारित हो, सभी स्तरों पर विविध रूपों में सृजनात्मक ढंग से ढाला जा सकता है। इसी प्रकार से, विशेषकर बहुभाषी कक्षा में, अनुवाद को विभिन्न प्रकार से प्रयुक्त किया जा सकता है।

मूल्यांकन की विशेषताएँ 

  • यथार्थता
    • पर बल दिया गया है उन्हीं का परीक्षण होना चाहिए अर्थात् शिक्षण के माध्यम से विद्यार्थियों को जो सिखाया पढ़ाया गया है मूल्यांकन उसी पर आधारित होना चाहिए। मूल्यांकन यथार्थवादी होना आवश्यक है।
  • विश्वसनीयता
    • मूल्यांकन में विश्वसनीयता अत्यन्त आवश्यक है। किसी शिक्षक द्वारा समय  अन्तराल से उसी विद्यार्थी का मूल्यांकन किया जाता है तो विद्यार्थी का स्थान वही होना चाहिए जो पूर्व में मापन एवं मूल्यांकन द्वारा प्राप्त हुआ था। प्राप्तांको में भी असमानता न हो। 
  • जाँच में सुगमता
    • मूल्यांकन पद्धति इतनी सुगम होनी चाहिए जिससे विद्यार्थियों की क्षमताओं योग्यताओं तथा शैक्षणिक कुशलताओं की जाँच सुगमता से की जा सके तथा उनकी कमियों और योग्यता को बताया जा सके।
  • वस्तुनिष्ठता
    • प्रश्न ऐसा बनाना चाहिए जिसका उत्तर एक ही हो । वस्तुनिष्ठता होने से मूल्यांकन में किसी प्रकार की मनमानी नहीं हो सकती इससे मूल्यांकन सच्चा होता है। व्यावहारिकता मूल्यांकन व्यावहारिक होना चाहिए ताकि उसे व्यवहार में लाया जा सके।
  • वैज्ञानिकता
    • मूल्यांकन सत्यता, यथार्थता, वैधता, व्यावहारिकता और वस्तुनिष्ठता के गुण और के लक्षणों के अनुकूल होने पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ओतप्रोत हो सकता है। प्रश्नों के निर्माण में भी वैज्ञानिकता होनी चाहिए। 
  • तार्किकता
    • पाठ्यक्रम की समस्त इकाइयों से प्रश्न पूछे जाते हैं इससे विद्यार्थियों की चयन प्रवृत्ति समाप्त हो जाती है और वह सम्पूर्ण अध्ययन हेतु तत्पर होता है। अनेक प्रश्न तार्किक प्रश्न स्तर पर तैयार किए जाते हैं जिससे वैज्ञानिकता की विशेषता के साथ तार्किकता का गुण भी आ जाता है। 
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