है जन्म लेते जगह में एक ही
एक ही पौधा उन्हें है पालता
रात में उन पर चमकता चाँद भी
एक ही-सी चाँदनी है डालता
छेद कर काँटा किसी की अंगुलियाँ
फाड़ देता है किसी का वर वसन।
प्यार डूबी तितलियों के पर कतर
भौंर का है बेध देता श्याम तन
फूल लेकर तितलियों को गोद में
भौंर को अपना अनूठा रस पिला
निज सुगन्धों का निराले ढंग से
है सदा देता कली का जी खिला।
है खटकता एक सबकी आँख में
दूसरा है सोहता सुर-सीस पर।
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर।
एक दिवस
प्रेम, विज्ञान ने
आपस में बातें की।
ऊँचा कर शीश
और तान निज वक्ष तनिक
विज्ञान बोला यों
सुन रे ओ प्रेम
वायु में उड़ाया
गहरे पानी पठाया
ऊँचे शिखरों पर चढ़ाया
मैंने ही मानव को।
मैंने ही मोड़ डाला
अनगिन सरि-धारों को
मरुथल-पहाड़ों को
मेरा सहारा ले
मानव पदों ने
चप्पा-चप्पा भी रौंद डाला।
सुन रे, ओ प्रेम
मैंने मौसम बदल डाला।
ग्रीष्म में शीत और
शीत में ग्रीष्म कर
पहुँचाया कितना है
सुख मैंने मानव को।
वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक मुटी भर दाने को ... भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते
और दाहिना दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए।
भूख से सूख ओंठ जब जाते
दाता-भाग्य-विधाता से क्या पाते?
घुट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए।
हारा हूँ सौ बार
गुनाहों से लड़लड़कर
लेकिन बारम्बार लड़ा हूँ
मैं उठ-उठ कर
इससे मेरा हर गुनाह भी मुझसे हारा
मैंने अपने जीवन को इस तरह उबारा
डूबा हूँ हर रोज
किनारे तक आ-आकर
लेकिन मैं हर रोज उगा हूँ जैसे दिनकर
इससे मेरी असफलता भी मुझसे हारी
मैंने अपनी सुन्दरता इस तरह सँवारी।
आँसू से भाग्य पसीजा, हे मित्र, कहाँ इस जग में।
नित यहाँ शक्ति के आगे, दीपक जलते मग-मग में।
कुछ तनिक ध्यान से सोचो, धरती किसकी हो पाई?
बोलो युग-युग तक किसने, किसकी विरुदावलि गाई?
मधुमास मधुर रुचिकर है, पर पतझर भी आता है
जग रंगमंच का अभिनय, जो आता सो जाता है।
सचमुच वह ही जीवित है, जिसमें कुछ बल-विक्रम है
पल-पल घुड़दौड़ यहाँ है, बल-पौरुष का संगम है।
दुर्बल को सहज मिटाकर, चुपचाप समय खा जाता
वीरों के ही गीतों को, इतिहास सदा दोहराता।
फिर क्या विषाद, भय, चिन्ता जो होगा सब सह लेंगे
परिवर्तन की लहरों में, जैसे होगा बह लेंगे।
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