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भारत परिषद अधिनियम 1861

भारत परिषद अधिनियम 1861 (Indian Councils Act 1861): भारतीय परिषद अधिनियम 1861 को ब्रिटिश संसद द्वारा 1 अगस्त 1861 को पारित किया गया। 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार ने महसूस किया कि भारत में शासन चलाने के लिए भारतीयों का सहयोग आवश्यक है। इस सहयोग की नीति के लिए ब्रिटिश संसद ने 1861 में भारत परिषद अधिनियम पारित किया।
इस अधिनियम के मुख्य बिंदु निम्नवत हैं –

  • इसके द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई।
  • इस अधिनियम द्वारा वायसराय की परिषद में पांचवा सदस्य विधिवेत्ता के रूप में जोड़ा गया ।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार वायसराय की परिषद का विस्तार किया गया। कानून निर्माण हेतु अतिरिक्त सदस्यों को जोड़ा गया जिनकी संख्या न्यूनतम 6 और अधिकतम 12 तक हो सकती थी। इन सदस्यों का कार्यकाल 2 वर्ष का था। इस तरह वायसराय की परिषद में सदस्यों की कुल संख्या बढ़कर 17 हो गयी।
  • नामांकित सदस्यों में से आधे सदस्यों का गैर-सरकारी होना अनिवार्य था। वायसराय कुछ भारतीयों को विस्तारित परिषद में गैर-सरकारी सदस्यों के रूप में नामांकित कर सकता था।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार वायसराय की विस्तारित परिषद के सदस्यों का भारतीय होने की कोई अनिवार्यता नहीं थी । परन्तु व्यवहारिक्ता में संभ्रांत भारतीय को इसमें जोड़ा गया, 1862 में लॉर्ड कैनिंग ने तीन भारतीय- बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया।
  • इस अधिनियम ने मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसियों को विधायी शक्तियां पुनः देकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत की।
  • इस प्रकार इस अधिनियम ने रेगुलेटिंग एक्ट 1773 द्वारा शुरू हुई केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति को उलट दिया।
  • इस विधायी विकास नीति के कारण 1937 तक प्रांतों को संपूर्ण आंतरिक स्वायत्तता हासिल हो गई।
  • बंगाल-1862, उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त-1866 और पंजाब-1867 में विधान परिषद का गठन हुआ।
  • इसने वायसराय को परिषद में कार्य संचालन के लिए अधिक नियम और आदेश बनाने की शक्तियां प्रदान की।
  • इसने वायसराय को आपात काल में बिना काउंसिल की संस्तुति के अध्यादेश जारी करने के लिए अधिकृत किया। ऐसे अध्यादेश की अवधि मात्र छह माह होती थी।
  • इस अधिनियम के अनुसार वायसराय अब प्रशासनिक एवं विधायी कार्यों हेतु नये प्रांतों का गठन और उसके लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर की नियुक्ति कर सकता था।
  • लॉर्ड कैनिंग के द्वारा 1859 में प्रारम्भ की गयी पोर्टफोलियो प्रणाली को भी मान्यता दी।
    • पोर्टफोलियो प्रणाली- इसके अंतर्गत वायसराय की परिषद का एक सदस्य, एक या अधिक सरकारी विभागों का प्रभारी बनाया जा सकता था तथा उसे इस विभाग में काउंसिल की तरफ से अंतिम आदेश पारित करने का अधिकार था।
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