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Short Notes: Delhi Sultanate – Mughal Empire (मुग़ल साम्राज्य 1526-1707 ई०) | General Awareness/सामान्य जागरूकता - Police SI Exams PDF Download

मुग़ल साम्राज्य (1526-1707)

पानीपत के मैदान में 21 अप्रैल, 1526 को इब्राहिम लोदी और चुगताई तुर्क जलालुद्दीन बाबर के बीच युद्ध लड़ा गया, जिसमें लोदी वंश के अंतिम शासक इब्राहिम लोदी को पराजित कर खानाबदोश बाबर ने तीन शताब्दियों से सत्तारूढ़ तुर्क अफगानी-सुल्तानों की दिल्ली सल्तनत का तख्ता पलट कर दिया और मुग़ल साम्राज्य और मुग़ल सल्तनत की नींव रखी। गुप्त वंश के पश्चात मध्य भारत में केवल मुग़ल साम्राज्य ही ऐसा साम्राज्य था, जिसका एकाधिकार हुआ था।

बाबर – (1526-1530 ई०)

  • बाबर का जन्म छोटी सी रियासत ‘फरगना‘ में 1483 ई० में हुआ था। बाबर अपने पिता की मृत्यु के पश्चात मात्र 11 वर्ष की आयु में ही फरगना का शासक बन गया था। बाबर को भारत आने का निमंत्रण पंजाब के सूबेदार दौलत खाँ लोदी और इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खाँ लोदी ने भेजा था।
  • पानीपत का प्रथम युद्ध बाबर का भारत पर उसके द्वारा किया गया पांचवा आक्रमण था, जिसमें उसने इब्राहिम लोदी को हराकर विजय प्राप्त की थी और मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की थी। उसकी विजय का मुख्य कारण उसका तोपखाना और कुशल सेना प्रतिनिधित्व था। भारत में तोप का सर्वप्रथम प्रयोग बाबर ने ही किया था। पानीपत के इस प्रथम युद्ध में बाबर ने उज्बेकों की ‘तुलगमा युद्ध पद्धति‘ तथा तोपों को सजाने के लिये ‘उस्मानी विधि‘ जिसे ‘रूमी विधि‘ भी कहा जाता है, का प्रयोग किया था। पानीपत के युद्ध में विजय की खुशी में बाबर ने काबुल के प्रत्येक निवासी को एक चाँदी का सिक्का दान में दिया था। अपनी इसी उदारता के कारण बाबर को ‘कलन्दर‘ भी कहा जाता था।
  • बाबर ने दिल्ली सल्तनत के पतन के पश्चात उनके शासकों (दिल्ली शासकों) को ‘सुल्तान‘ कहे जाने की परम्परा को तोड़कर अपने आपको ‘बादशाह‘ कहलवाना शुरू किया।
  • पानीपत के युद्ध के बाद बाबर का दूसरा महत्वपूर्ण युद्ध राणा सांगा के विरुद्ध 17 मार्च, 1527 ई० में आगरा से 40 किमी दूर खानवा नामक स्थान पर हुआ था। जिसमें विजय प्राप्त करने के पश्चात बाबर ने गाज़ी की उपाधि धारण की थी। इस युद्ध के लिये अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिये बाबर ने ‘जिहाद‘ का नारा दिया था। साथ ही मुसलमानों पर लगने वाले कर ‘तमगा‘ की समाप्ति की घोषणा की थी, यह एक प्रकार का व्यापारिक कर था। राजपूतों के विरुद्ध इस ‘खानवा के युद्ध‘ का प्रमुख कारण बाबर द्वारा भारत में ही रुकने का निश्चय था।
  • 29 जनवरी, 1528 को बाबर ने चंदेरी के शासक मेदिनी राय पर आक्रमण कर उसे पराजित किया था। यह विजय बाबर को मालवा जितने में सहायक रही थी। इसके बाद बाबर ने 06 मई, 1529 में ‘घाघरा का युद्ध‘ लड़ा था। जिसमें बाबर ने बंगाल और बिहार की संयुक्त अफगान सेना को हराया था।
  • बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा‘ का निर्माण किया था, जिसे तुर्की में ‘तुजुके बाबरी‘ कहा जाता है। जिसे बाबर ने अपनी मातृभाषा चागताई तुर्की में लिखा है। इसमें बाबर ने तत्कालीन भारतीय दशा का विवरण दिया है। जिसका फारसी अनुवाद अब्दुर्रहीम खानखाना ने किया है और अंग्रेजी अनुवाद श्रीमती बेबरिज द्वारा किया गया है।
  • बाबर ने अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ में कृष्णदेव राय तत्कालीन विजयनगर के शासक को समकालीन भारत का शक्तिशाली राजा कहा है। साथ ही पांच मुस्लिम और दो हिन्दू राजाओं मेवाड़ और विजयनगर का ही जिक्र किया है।
  • बाबर ने ‘रिसाल-ए-उसज‘ की रचना की थी, जिसे ‘खत-ए-बाबरी‘ भी कहा जाता है। बाबर ने एक तुर्की काव्य संग्रह ‘दिवान‘ का संकलन भी करवाया था। बाबर ने ‘मुबइयान‘ नामक पद्य शैली का विकास भी किया था।
  • बाबर ने संभल और पानीपत में मस्जिद का निर्माण भी करवाया था। साथ ही बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में मंदिरों के बीच 1528 से 1529 के मध्य एक बड़ी मस्जिद का निर्माण करवाया था, जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना गया।
  • बाबर ने आगरा में एक बाग का निर्माण करवाया था, जिसे ‘नूर-ए-अफगान‘ कहा जाता था, जिसे वर्तमान में ‘आराम-बाग‘ के नाम से जाना जाता है। इसमें चारबाग शैली का प्रयोग किया गया है। यहीं पर 26 दिसम्बर, 1530 को बाबर की मृत्यु के बाद उसको दफनाया गया था। परन्तु कुछ समय बाद बाबर के शव को उसके द्वारा ही चुने गए स्थान काबुल में दफनाया गया था।
  • बाबर के चार पुत्र हिन्दाल, कामरान, अस्करी और हुमायूँ थे। जिनमें हुमायूँ सबसे बड़ा था फलस्वरूप बाबर की मृत्यु के पश्चात उसका सबसे बड़ा पुत्र हुमायूँ अगला मुग़ल शासक बना।
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