इस सभ्यता के लोग शिव की पूजा किरात (शिकारी), नर्तक, धनुर्धर और नागधारी के स्वरूप में करते थे। मातृदेवी (देवी के सौम्य एवं रौद्र रूप की पूजा)। पृथ्वी (एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से पौधा निकलता दिखाया गया है जोकि अवश्य ही पृथ्वी का स्वरूप है)। प्रजनन शक्ति (लिंग) की पूजा। वृक्ष (पीपल और बबुल), पशु (कूबड़ वाला सांड और वृषभ), नाग तथा अग्नि की पूजा भी करते थे।
लोथल में हाथी दांत से बना एक पैमाना प्राप्त हुआ है, मोहनजोदड़ो से सेलखड़ी तथा सीप का बना बाट आदि माप-तोल के यंत्र प्राप्त हुये हैं, जिससे माना जाता है कि सिंधु सभ्यता (हड्डपा सभ्यता) के लोग माप-तोल की इकाई से चित-परिचित थे।
इस सभ्यता के लोग तांबा, सोना, चाँदी, सीसा, टिन आदि धातुओं का प्रयोग करते थे। कुछ पुरातत्वविदों द्वारा माना जाता है की पहली बार चाँदी का प्रयोग सिंधु सभ्यता में ही किया गया था। सबसे अधिक ताँबे का प्रयोग किया जाता था।
प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता के लोगों द्वारा परिवहन के लिये बैलगाड़ी और नाव का प्रयोग किया जाता था। हड़प्पा और चाँहूदड़ो से काँसे की बैलगाड़ी प्राप्त हुई है तथा बनवाली में सड़कों पर बने बैलगाड़ी के पहियों के निशान प्राप्त हुये हैं, जिससे यह माना जा सकता है कि इस सभ्यता के लोग आवागमन के लिये बैलगाड़ी का प्रयोग करते होंगे। लोथल से पक्की मिट्टी की नाव तथा मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहरों में नाव के प्रयोग से यह प्रमाणित होता है कि जल मार्ग पर नाव या जहाज का प्रयोग किया जाता था, जिसका प्रमाण नदियों के किनारे बसे लोथल, रंगपुर, बालाकोट, सुत्काकोह आदि प्रमुख बंदरगाह नगर भी हैं।
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