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कल्याणी के चालुक्य (पश्चिमी चालुक्य)

कल्याणी के चालुक्य (पश्चिमी चालुक्य): कल्याणी के चालुक्यों को पश्चिमी चालुक्य भी कहा जाता हैं। कल्याणी के चालुक्य का उदय राष्ट्रकूट वंश के पतन के बाद उसी स्थान पर हुआ था। कल्याणी के चालुक्यों का मूल स्थान कन्नड़ प्रदेश (वर्तमान केरल) है।

  • कल्याणी के चालुक्य का राज्य चिन्ह वराह था।
  • कल्याणी के चालुक्य वंश की स्थापना तैलप द्वितीय द्वारा की गई थी। इससे पूर्व भी कीर्तिवर्मा तृतीय, तैलप प्रथम, विक्रमादित्य तृतीय, भीमराज, अय्यण प्रथम तथा विक्रमादित्य चतुर्थ के भी नामों का उल्लेख मिलता है परन्तु ये सभी स्वतंत्र शासक नहीं थे बल्कि राष्ट्रकूटों के समांत के रूप में कार्य कर रहे थे।
  • इन सभी शासकों का शासन बीजापुर तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र में था।

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कल्याणी का चालुक्य (पश्चिमी चालुक्य) राजवंश


तैलप द्वितीय (973-997 ई०)

  • निलगुंड अभिलेख के अनुसार अय्यण प्रथम ने राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय की पुत्री से विवाहकर अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत किया। इसी की भाँति इसके पुत्र विक्रमादित्य चतुर्थ ने भी कलचुरि राज्यवंश के राजा लक्ष्णसेन की पुत्री बोन्थादेवी से विवाह किया। इसी विक्रमादित्य चतुर्थ और कलचुरि राजवंश की बोन्थादेवी का पुत्र था तैलप द्वितीय।
  • तैलप द्वितीय ही कल्याणी के चालुक्य वंश का संस्थापक था। इसके समकालीन राष्ट्रकूट वंश के शासक कृष्ण तृतीय के उत्तराधिकारी खोट्टिग एवं कर्क द्वितीय दोनो ही निर्बल और अयोग्य शासक थे। इसी स्थिति का फायदा उठाकर तैलप द्वितीय ने कर्क द्वितीय की हत्याकर अपनी सत्ता स्थापित कर ली।
  • तैलप द्वितीय ने अपनी राजधानी मान्यखेत ही बनायी, जो पहले राष्ट्रकूट वंश की भी राजधानी थी।
  • इसने “अश्वमाल” की उपाधी धारण की।
  • मेरूतुंग नामक कवि इनके दरबार में थे।
  • अपने जीवन काल में तैलप द्वितीय ने कई युद्धों में विजय प्राप्त की। परन्तु मुंज राज्य के साथ हुए  6 संघर्षों में तैलप द्वितीय को हार का सामना करना पड़ा, इस जानकारी का विवरण मेरूतंग रचित “प्रबन्ध चिन्तामणि” पुस्तक में मिलता है।

सत्याश्रय (997-1006 ई०)

  • सत्याश्रय अपने पिता तैलप द्वितीय की मृत्यु के बाद 997 ई० में शासक बना।
  • इसी समय उत्तर भारत पर महमूद गजनवी का आक्रमण हुआ था।
  • सत्याश्रय ने कोंकण के शीलाहर वंशी शासक अपराजित एवं गुर्जरनरेश चामुंड राज को पराजित किया।
  • सत्याश्रय ने 1006 ई० में वेंगी पर आक्रमण कर अपनी अधीनता स्वीकार करायी।

विक्रमादित्य पंचम (1006-1015 ई०)

  • सत्याश्रय को कोई पुत्र न होने के कारण उसने अपने उत्तराधिकारी के रूप में अपने भाई दशवर्मा (दासवर्मन) के पुत्र विक्रमादित्य पंचम को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जो उसकी मृत्यु के उपरान्त 1006 ई० में शासक बना।
  • कैथोम लेख में उसे यशस्वी तथा दानशील शासक के रूप में सम्बोधित किया गया है।

जयसिंह द्वितीय (1015-1043 ई०)

  • जयसिंह द्वितीय अपने भाई विक्रमादित्य पंचम की मृत्यु उपरान्त शासक बना।
  • वर्ष 1020 ई० में पवांर शासक राजाभोज ने इस पर आक्रमण कर चालुक्य वंश के राज्यक्षेत्र में से लाट और कोंकण पर अधिकार कर लिया। जिसे बाद में जयसिंह ने युद्ध कर पुनः प्राप्त किया।
  • 1019 ई० में वेंगी के शासक विमलादित्य की मृत्यु के बाद उसके दो पुत्रों में उत्ताराधिकार के लिए विवाद शुरू हो गया। विमलादित्य और चोल राजकुमारी कुंदवैदेवी का पुत्र “राजराज” और उसका सौतेला भाई “विष्णुवर्धन विजयादित्य सप्तम” दोनो ही राजगद्दी पर अधिकार चाहते थे।
  • जयसिंह द्वितीय ने विष्णुवर्धन विजयादित्य सप्तम की सहायता हेतु अपनी सेना भेजी, वैसे ही चोल शासक राजेन्द्र प्रथम ने अपने राजवंश की कुंदवैदेवी के पुत्र की सहायता हेतु आगे आये। दोनों शासकों में युद्ध हुआ और मस्की के निकट राजेन्द्र चोल ने जयसिंह को पराजित कर दिया, और राजराज को वेंगी के चालुक्यों का शासक बना दिया।

सोमेश्वर प्रथम (1043-1068 ई०)

  • सोमेश्वर प्रथम अपने पिता जयसिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद 1043 ई० में शासक बना।
  • सोमेश्वर प्रथम ने अपनी राजधानी मान्यखेत से स्थानांतरित कर कल्याणी बनाई।
  • नान्देड लेख के अनुसार इसने मगध, कलिंक और अंग के शासकों को हरा कर अपने अधीन करा।
  • पवांर वंश के शासक राजाभोज को भी युद्ध में आत्मसमर्पण करने के लिए विवश किया।
  • अपने जीवन काल में केवल चोलों पर विजय हासिल नहीं कर पाया। चोल नरेश वीर राजेन्द्र से हारकर और एक घातक बीमारी से पीड़ित होने के कारण सोमेश्वर प्रथम ने करूवती के पास तुंगभद्रा नदी में डूबकर आत्महत्या कर ली।

सोमेश्वर द्वितीय (1068-1076 ई०)

  • सोमेश्वर द्वितीय अपने पिता सोमेश्वर प्रथम द्वारा आत्महत्या करने के उपरान्त 1068 ई० में शासक बना।
  • इसके राज्य पर चोल शासक वीर राजेन्द्र (1063-1067 ई०) ने आक्रमण किया और एक संधि के उपरान्त सोमेश्वर द्वितीय के भाई विक्रमादित्य षष्ठ का विवाह अपनी पुत्री से संपन्न किया।
  • इसके बाद से चोल वंश ने सोमेश्वर के राज्य में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया और दबाव बनाकर अपने सम्बन्धी(दामाद) विक्रमादित्य षष्ठ को चालुक्य वंश के दक्षिणी भाग का युवराज घोषित करा दिया।
  • वर्ष 1076 ई० में सोमेश्वर द्वितीय ने कुलोतुंग नाम के राजा से संधि कर विक्रमादित्य पर आक्रमण कर युद्ध छेड़ दिया। परन्तु चोलों की  सहायता से विक्रमादित्य विजयी रहा और सोमेश्वर द्वितीय को आजीवन बंदी बना लिया गया।

विक्रमादित्य षष्ठ (1076-1126 ई०)

  • विक्रमादित्य षष्ठ अपने भाई सोमेश्वर द्वितीय को युद्ध में पराजित करने के बाद 1076 ई० में शासक बना।
  • विक्रमादित्य षष्ठ कल्याणी के चालुक्यों में सबसे प्रतापी शासक था।
  • इसने 1076 ई० में चालुक्य विक्रम संवत चलाया था।
  • विक्रमादित्य षष्ठ और चोल राज्य के मध्य वैवाहिक सम्बन्ध होने के कारण इसके राज्यकाल में चालुक्य-चोल संघर्ष शान्त हो गया और शासनकाल सामान्यतः शान्तिपूर्ण ही रहा।
  • इसने कला और साहित्य के उत्थान पर खासा ध्यान दिया। “विक्रमपुर” नामक एक नगर की स्थापना की और वहां पर भगवान विष्णु का एक भव्य मंदिर और विशाल झील का निर्माण करवाया।
  • मिताक्षरा और विक्रमादेवचरित्रम के लेखक विज्ञानेश्वर इसी के दरबार में थे।
  • विक्रमादित्य षष्ठ कल्याणी के चालुक्य वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक था। इसकी मृत्यु के उपरान्त कल्याणी के चालुक्यों की अवनति शुरू हो गई।

सोमेश्वर तृतीय (1126-1138 ई०)

  • सोमेश्वर तृतीय अपने पिता विक्रमादित्य षष्ठ की मृत्यु के उपरान्त 1126 ई० में शासक बना।
  • इसने भूलोकमल्ल तथा त्रिभुवनमल्ल की उपाधी धारण की।
  • विक्रमादित्य षष्ठ की मृत्यु उपरान्त चोलों ने संघर्ष पुनः शुरू कर दिया और 1133 ई० में गोदावरी नदी के तट पर हुए एक युद्ध में सोमेश्वर तृतीय को बुरी तरह पराजित किया।

जगेदक मल्ल द्वितीय (1138-1155 ई०)

  • सोमेश्वर तृतीय की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जगेदक मल्ल द्वितीय शासक बना।
  • जगेदक मल्ल द्वितीय एक अयोग्य शासक था। यह अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित राज्य को आगे बढ़ाने में असमर्थ रहा।

तैलप तृतीय (1155-1163)

  • जगेदक मल्ल द्वितीय के बाद उसका भाई तैलप तृतीय शासक बना।
  • तैलप तृतीय भी एक अयोग्य और कमजोर शासक था।
  • इस स्थिति का फायदा उठाकर आस-पास के राज्यों में से होयसल, कलचुरि, यादवों ने अपने स्वतंत्र राज्य की घोषणा कर दी।

जगेदकमल्ल तृतीय (1163-1183 ई०)

  • तैलत तृतीय की मृत्यु के उपरान्त उसके भाई जगेदकमल्ल तृतीय ने 1163 ई० ने राज्य को संभाला। जगेदकमल्ल तृतीय का कोई भी उत्तराधिकारी नहीं था।

सोमेश्वर चतुर्थ (1184-1200)

  • 1184 ई० में तैलप तृतीय के पुत्र सोमेश्वर चतुर्थ ने वापस अपने पिता की गद्दी संभाली। यही कल्याणी के चालुक्य वंश का अंतिम शासक था।
  • इस समय तक चालुक्य वंश काफी संकुचित हो चुका था। इसने चालुक्यों की खोई हुई प्रतिष्ठा वापस लाने का प्रयास किया एवं होयसल और कलचुरियों से युद्ध प्रारम्भ किया। युद्ध उपरान्त कलचुरियों का पूर्णतया उन्मूलन हो गया।
  • इसी विजय के बाद इसने “कलचूर्यकुल निर्मूलता” की उपाधी धारण की।
  • सोमेश्वर चतुर्थ अपने अथक प्रयासों के बाद भी राज्य में बढ़ रहे विद्रोहों को दबा नहीं पाया और निकटवर्ती राज्यों ने पुनः स्वंय को स्वतंत्र घोषित करना शुरू कर दिया, और धीरे-धीरे कल्याणी के चालुक्य वंश का अंत हो गया। 
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