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भारत की प्राकृतिक वनस्पति का परिचय

भारत में वन वर्षा का अनुसरण करते हैं। भारत एक मानसूनी जलवायु वाला क्षेत्र होने के कारण यहां पर अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वन पाये जाते हैं। भारत में मुख्य रूप से पांच प्रकार के वन पाये जाते हैं –

  • ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वन
  • पर्णपाती वन
  • कटीले वन
  • पर्वतीय वन
  • मैंग्रोव वन

इनका विस्तृत विवरण अग्रलिखित है-

1. ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वन

  • इनको सदाबहार वन भी कहा जाता है। ये वनों की विशेषता यह है कि ये वन सालभर अपनी पत्तियां नहीं गिरते हैं।
  • भारत में वर्षा वन उन क्षेत्रों में पाये जाते हैं जहां वर्षा की मात्रा 250 cm तक होती है।
  • इन वनों के प्रमुख क्षेत्र हैं-
    • पश्चिमी घाट में महाराष्ट्र से केरल तक।
    • पूर्वोत्तर भारत का शिलांग पठार।
    • पश्चिम बंगाल तथा ओड़िशा का तटील भाग।
    • तमिलनाडु का कोरामण्डल तट।
    • अंडमान और निकोबार।
    • हिमालय का तराई क्षेत्र।
  • इन वनों की प्रमुख विशेषताएँ-
    • ये वन बहुत घने एवं लम्बे होते हैं। जिस कारण सूर्य का प्रकाश धरती तक नहीं पहुँच पाता है।
    • इनकी पत्तियां काफी चौड़ी होती है। जिससे ये धरती के जल का वाष्पोत्सर्जन करते हैं।
    • इन वनों में जीवों तथा वनस्पतियों की विविधता पायी जाती है।
    • इन वनों में कठोर लकड़ी वाले वृक्ष पाये जाते हैं। अतः इन वृक्षों की लकड़ी का आर्थिक / इमारती उपयोग नहीं हो पाता है।
  • इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं-
    • आबनूस, एबोनी, महोगनी, रोजवुड।
    • नारियल, ताड़, बांस(लम्बे-लम्बे वृक्ष)।
    • रबड़, सिनकोना।
  • पश्चिमी घाट को सहयाद्रि भी कहा जाता है। उत्तरी सहयाद्रि यानी ऊपरी पश्चिमी घाट में वर्षा वनों को शोला नाम से जाना जाता है।

2. पतझड़ वन या पर्णपाती वन या मानसूनी वन

  • इन्हें पतझड़ या पर्णपाती वन भी कहा जाता है।
  • ये वन वहां पाये जाते है जहां वार्षिक वर्षा 100cm से 250cm तक होती है।
  • देश के सर्वाधिक क्षेत्रफल में यही मानसूनी वन पाए जाते हैं।
  • हिमालय के तराई क्षेत्र अर्थात मध्य प्रदेश से लेकर झारखंड तक उत्तर प्रदेश से तमिलनाडु तक (बीच के कटीले वन वाले भाग को छोड़कर) जहां वर्षा मानसूनी होती है ये वन पाये जाते हैं।
  • मानसूनी वर्षा होने के कारण यहां पर साल भर वर्षा नहीं प्राप्त होती इस कारण यहां पाये जाने वाले वृक्ष सर्दियां बीत जाने के बाद या गर्मी आने से पहले पानी को बचाने के लिए अपनी पत्तियां गिरा देते है।
  • विशेषताएँ- मुलायम एवं मजबूत लकड़ी।
  • प्रमुख वृक्ष शीशम, साल, सागौन, साखू, आम, आंवला, चंदन।
  • इन वृक्षों का इमारती प्रयोग सर्वाधिक होता है। अतः आर्थिक उपयोगिता सबसे अच्छी है।
  • चंदन मुख्य रूप से कर्नाटक तथा नीलगिरी पहाड़ी क्षेत्र में पाया जाता है।

3. कटीले वन तथा झाड़ियां

  • ये वन कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जहां वार्षिक वर्षा 70cm से कम होती है पाये जाते हैं।
  • प्रमुख रूप से दो क्षेत्र में पाये जाते है-
    • पश्चिमी भारत में- राजस्थान, पंजाब, गुजरात, पश्चिमी उत्तर प्रदेश
    • वृष्टि छाया प्रदेश- मध्य प्रदेश के इंदौर से आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले तक एक अर्ध चंद्राकार पेटी में पाये जाते है।
  • पत्तों की जगह काटों ने ले ली है, जिसके दो प्रमुख कारण हैं।
    • वाष्पीकरण कम करने पानी की बचत करने में सहायक।
    • जानवरों से सुरक्षा।
  • प्रमुख वृक्ष- बबूल, खजूर, नागफनी, खेजड़ा, बेल।

4. पर्वतीय वन

  • पर्वतों पर पाये जाने वाले वन वर्षा का अनुसरण न करके ढ़ाल का अनुसरण करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान में तेज गिरावट आती है।
  • ऊंचाई के साथ तापमान में तेज गिरावट के कारण सीमित क्षेत्र में ही जलवायु में परिवर्तन दिखाई पड़ता है।
  • ऊंचाई जलवायु में संशोधन ला सकती है। इसी कारण पर्वत जलवायु में संशोधन कर देते है।
  • क्षेत्र- भारत में दो जगह पाये जाते है –
    • हिमालय पर पर्वतीय वन
      (i) 1500मी0 तक- सदाबहार तथा पतझड़ वन
      (ii) 1500मी0 से 2500मी0 तक- शीतोष्ण चौड़ी पत्ती वाले वन- देवदार, ओक, बर्च, मैपिल।
      (iii) 2500मी0 से 4500मी0 तक – कोणधारी वन- चीड़, स्प्रूस, फर, सनोवर, ब्लूपाइन
      (iv) 4500मी0 से 4800मी0 तक- टुण्ड्रा वनस्पति- काई, घास, लिचेन।
      (v) 4800मी0 से ऊपर- कोई वनस्पति नहीं पायी जाती।
    • दक्षिण भारत में पाये जाने वाले पर्वतीय वन
      (i) नीलगिरी पर्वत, अन्नामलाई तथा पालनी पहाड़ियों में पाये जाते है।
      (ii) इन तीनों पहाड़ियों के कुछ-कुछ क्षेत्रों में शीतोष्ण वन पाये जाते हैं जिन्हें दक्षिण भारत में शोलास कहते है।
      (iii) शोलास वनों के मुख्य वृक्ष है- लारेल एवं मौगनोलिया।
      (iv) दक्षिण भारत की ये पहाड़यां हिमालय पर्वत की पहाड़ियों जीतनी ऊंची नहीं है। अतः यहां कोणधारी वन नहीं पाये जाते।

5. ज्वारीय वन या मैंग्रोव वन

  • भारत में तटीय क्षेत्रों में जहां नदियों ने अपना डेल्टा बनाया है वहां ये वृक्ष पाये जाते है।
  • क्षेत्र- गंगा नदी का डेल्टा, महानदी का डेल्टा, ब्रह्मपुत्र नदी का डेल्टा, गोदावरी का डेल्टा, कृष्णा का डेल्टा, कावेरी का डेल्टा तथा गुजरात में कुछ भाग में पाये जाते हैं।
  • क्योकिं गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा का अधिकांश भाग बांग्लादेश के अधीन आता है अतः भारत में मैग्रोंव वनों की सबसे अधिक मात्रा गुजरात में पायी जाती है। उसके बाद आंध्र प्रदेश में गोदावरी तथा कृष्णा नदी के डेल्टा में ।
  • अधिकतर पूर्वी तट पर पाये जाते है। कुछ मैंग्रोव वन गुजरात में भी पाये जाते है परन्तु यहां ये नदी डेल्टा पर नहीं बल्कि ज्वारीय क्षेत्र में पाये जाते है अतः यहां इन्हें ज्वारीय वन कहा जाता है।
  • इन वनों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत हैं-
    • ये वन समुद्र के खारे पानी में डूबे रहते है।
    • इन वनों की जड़े पानी के बाहर दिखाई देती है।
    • लकड़ी कठोर होती है तथा छाल क्षारीय होती है।
  • वनस्पति- मैंग्रोवा, सुंदरी, कैसूरीना, फॉनिकस
  • गंगा-ब्रह्मपुत्र के डेल्टा में सुंदरी नामक वृक्ष पाया जाता है। इसी वन में बंगाल टाइगर पाया जाता है।
  • मैंग्रोव वनों का महत्व
    • मैंग्रोव वन सुनामी और चक्रवात से तटों की सुरक्षा करता है।
    • जलीय जीवों की प्रारंभिक नर्सरी का कार्य करता है।
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