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Short Notes: South West Monsoon (दक्षिण पश्चिम मानसून) | General Awareness/सामान्य जागरूकता - Police SI Exams PDF Download

दक्षिण पश्चिम मानसून

21 मार्च को सूर्य विषुवत रेखा पर लम्बवत चमकता है। उसके बाद धीरे-धीरे उत्तरायण होने लगता है तथा 21 जून तक कर्क रेखा के ऊपर पहुंच जाता है। इसके साथ साथ ITCZ (Inter Tropical Conversion Zone, अंतः उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र) भी उत्तर की तरफ खिसकने लगता है, जिससे उत्तरी गोलार्ध में गर्मी बढ़ने लगती है।

  • जून के पहले सप्ताह तक पश्चिमोत्तर भारत में विकसित ITCZ जब अत्यधिक शक्तिशाली होता है तब ये दक्षिणी गोलार्ध में से दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।
  • फेरल के नियमानुसार जब ये व्यापारिक पवनें उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करती है तब अपने दाईं तरफ मुड जाती है। तथा भारत में दक्षिण-पश्चिम दिशा से प्रवेश करती है।
  • सबसे पहले दक्षिण पश्चिमी मानसून 1 जून को केरल के मालाबार तट पर वर्षा करता है। तथा 15 जुलाई तक पूरा भारतीय उपमहाद्वीप इसके प्रभाव में आ जाता है। 15 सितंबर तक ये वर्षा इसी प्रकार चलती रहती है।
  • दक्षिण पश्चिमी मानसून भारत में 2 शाखाओं में प्रवेश करता है –
    • दक्षिण पश्चिम मानसून की अरब सागर शाखा।
    • दक्षिण पश्चिम मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा।

1. दक्षिण-पश्चिम मानसून की अरब सागर शाखा

  • सबसे पहले केरल के मालाबार तट पर वर्षा होती है। इस शाखा से गुजरात से लेकर कन्याकुमारी तक पूरे पश्चिमी घाट पर वर्षा होती है।
  • जब 1 जून को केरल के मालाबार तट पर वर्षा होती है तब इसे मानसून प्रस्फोट या मानसून विस्फोट कहा जाता है। 1 जून से 15 सितंबर तक पूरे पश्चिमी तट में 250 सी0मी0 वर्षा होती है।
  • भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून द्वारा होने वाली वर्षा स्थलाकृति (ऊंचे पहाडों) द्वारा निर्धारित होती है। जब पवनें पहाड़ी से टकराकर ऊपर उठती है तब इन पवनों के तापमान में कमी आती है जिसे एडियाबेटिक ताप ह्रास कहा जाता है। तापमान में आयी कमी से आद्रता संघनित होकर जल बूंदों के रूप में वर्षा होती है। इसे पर्वतीय वर्षा भी कहा जाता है।
  • अरब सागर शाखा से होने वाली वर्षा दक्षिण से उत्तर की ओर घटती चली जाती है, क्योकि दक्षिण की तरफ चोटियां अधिक ऊंची है। अतः पश्चिमी घाट के दक्षिणी भाग में अधिक वर्षा होती है।
  • इसके पश्चात अरब सागर शाखा नर्मदा एवं तापी नदी की घाटी से प्रवाहित होते हुए अमरकंटक में वर्षा करती है।
  • इसके बाद ये गुजरात में सैराष्ट्र वाले क्षेत्र में गिर और माण्डव पहाड़ियों से टकराकर वर्षा करती है जिसके कारण गुजरात का बाकी हिस्सा वृष्टि छाया क्षेत्र या वर्षा छाया क्षेत्र में आ जाता है, अतः अधिकतर भाग सूखा रह जाता है।
  • इसके पश्चात ये राजस्थान में प्रवेश करती है तथा अरवाली श्रेणी की सबसे ऊँची चोटी गुरूशिखर से टकराकर माउण्ट आबू में पर्याप्त वर्षा करती है। पर ये पूरे अरावली श्रेणी पर वर्षा नहीं कर पाती क्योंकि अरावली श्रेणी का विस्तार इन पवनों की दिशा के समानांतर है। जिस कारण इन पवनों का इससे टकराव नहीं हो पाता।

2. दक्षिण-पश्चिम मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा

  • बंगाल की खाड़ी शाखा भारत में दक्षिण-पूर्व दिशा से प्रवेश करने के कारण पूर्वी घाट के समानांतर प्रवाहित होती है जिस कारण ये पूर्वी घाट के पर्वतों से नहीं टकरा पाता है। अतः वहां वर्षा नहीं कर पाता है।
  • बंगाल की खाड़ी शाखा पूर्वी घाट के समानांतर प्रवाहित होते हुए सबसे पहले शिलांग के पठार(मेघालय-पूर्वोत्तर भारत) से टकराती है तथा वहां खासी पहाड़ियों पर वर्षा करती है। यहीं पर मासनराम स्थित है यहां पर 1080 सी0मी0 वर्षा होती है।
  • इसके बाद बंगाल की खाड़ी शाखा असम की सूरमा घाटी में प्रवेश करती है तथा वहां ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी में प्रवेश करती है तथा यहां पर्याप्त वर्षा करती है।
  • दक्षिण-पश्चिम मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा की एक शाखा पश्चिम बंगाल में प्रवेश करती है तथा वहां से ये कोलकाता से होते हुए उत्तर भारत के मैदान में प्रवेश करती है तथा पटना, इलाहाबाद, कानपुर होते हुए दिल्ली तक जाती है। ये शाखा से होने वाली वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम की तरफ यानी कोलकाता से दिल्ली की तरफ घटती है। दिल्ली से और पश्चिम की तरफ में ये शाखा वर्षा नहीं कर पाती ।
  • जब इस द0प0 मानसून की शाखा की पवनें राजस्थान में प्रवेश करती है तब इन्हें अरावली पर्वत से टकराकर वर्षा करनी चाहिए परन्तु वर्षा नहीं हो पाती है। इसके दो प्रमुख कारण हैं-
    • यहां तक पहुँचते-पहुँचते पवनों में नमी की मात्रा काफी कम हो जाती है।
    • राजस्थान ITCZ का क्षेत्र है जिस कारण यहां की भूमि काफी गरम होती है अतः जब पहने यहां पहुँचती है तब उनमे सापेक्षिक आद्रता बढ़ जाती है। जिस कारण उनके जल ग्रहण करने की क्षमता में वृद्धि हो जाती है।
      अतः राजस्थान में दक्षिण पश्चिम मानसून की न तो अरब सागर शाखा वर्षा कर पाती है और न ही बंगाल की खाड़ी शाखा । वास्तव में बंगाल की खाड़ी शाखा कुछ वर्षा करती है जोकि पवनों में नमी की मात्रा पर निर्भर करता है।
  • दक्षिण-पश्चिम मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा की पवनें जब कोलकाता से उत्तर भारत के मैदान में जब प्रवेश करती है तब फेरल के नियम के अनुसार कोरियालिस बल के कारण ये पवनें अपने मार्ग से दाहिनी ओर मुड़ जाती है यानी हिमालय की शिवालिक श्रेणियों की तरफ । जिस कारण शिवालिक श्रेणियों की दक्षिणी ढ़ालों पर अच्छी-खासी वर्षा प्राप्त होती है। इसी कारण से प्रायद्वीप भारत के पठार के उत्तरी भाग पर वर्षा प्राप्त नहीं हो पाती । इसी कारण से उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में फैला हुआ बुंदेलखण्ड का क्षेत्र सूखा ग्रस्त क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
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