उदाहरण के लिए: “राजा का महल” कहने के स्थान पर “राजमहल” कहना अधिक उपयुक्त है। इससे स्पष्ट है कि दो या दो से अधिक शब्दों के मिलने पर ही सामासिक शब्द का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में दो या दो से अधिक पद साथ आ जाते हैं।
समास-रचना में प्रायः दो पद होते हैं। पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं। समास से बने पद को समस्तपद कहते हैं। समस्तपद के अंगों को अलग-अलग करने की प्रक्रिया को समास विग्रह कहते हैं। कुछ समास ऐसे भी होते हैं, जिनमें किसी भी पद की प्रधानता न होकर किसी अन्य पद की प्रधानता होती है।
बिना संदेह पुनरुक्ति से बनने वाले समस्तपद भी अव्ययीभाव समास होते हैं, जैसे- घर-घर, गली-गली आदि।
तत्पुरुष का शाब्दिक अर्थ है- “उसका आदमी” जैसे राजकुमार (राजा का कुमार)। यहाँ “कुमार” प्रधान है। इस समास में दूसरा शब्द प्रधान होता है। इसकी बनावट में दो शब्दों के मध्य के कारक चिह्न “का / के / को / के / लिए / की / से/ में/पर” का लोप हो जाता है। इसके निम्नलिखित छह भेद होते हैं-
1. कर्म तत्पुरुष: इसमें कर्म की विभक्ति “को” का लोप हो जाता है।
जैसे:
2. करण तत्पुरुष: इसमें करण कारक की विभक्ति “से” का लोप हो जाता है।
जैसे:
3. संप्रदान तत्पुरुष: इसमें संप्रदान कारक की विभक्ति “के लिए” का लोप हो जाता है।
जैसे:
4. अपादान तत्पुरुष: इसमें अपादान कारक की विभक्ति “से” का लोप हो जाता है।
जैसे:
5. संबंध तत्पुरुष: इसमें संबंध कारक की विभक्ति “का/ के / की” का लोप हो जाता है।
जैसे:
6. अधिकरण तत्पुरुष: इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति “में / पर” का लोप हो जाता है।
जैसे:
विशेषण – विशेषण बताने वाले पद। “सद्गुण” में “सद्” शब्द विशेषण है।
विशेष्य – जिसकी विशेषता बताई जाए। सद्गुण में “गुण” विशेष्य है।
उपमान – जिससे किसी की उपमा / तुलना की जाए। कमल नयन (कमल सरीखे नयन) में “कमल” उपमान है।
उपमेय – जिसकी उपमा / तुलना की जाए / कमलनयन (कमल सरीखे नयन) में “नयन” उपमेय है। कर्मधारय में पहला पद विशेषण या उपमावाचक होता है।
जैसे:
1. विशेषणवाचक
2. उपमावाचक
जैसे- त्रिभुवन। इसमें पहला पद संख्यावाचक और दूसरा पद प्रधान है, अतः यहाँ द्विगु समास है।
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