उपर्युक्त पंक्तियों में शब्दों को सुंदर ढंग से बुना गया है ताकि भाषा में चमत्कार उत्पन्न हो। पहली पंक्ति में “त” वर्ण की आवृत्ति बार-बार हुई है। दूसरी पंक्ति में मन की तुलना पीपल के पत्ते से की गई है। तीसरी पंक्ति में “उरबसी” शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है; परंतु दोनों के अर्थ अलग-अलग हैं। और चौथी पंक्ति में हृदय की तुलना ‘नील गगन’ से की गई है। इस प्रकार के प्रयोगों से काव्य की सुंदरता बढ़ जाती है। अतः ये काव्य के आभूषण या अलंकार हैं।
1. अनुप्रास अलंकार: जहाँ एक ही वर्ण की आवृत्ति एक से अधिक बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
जैसे: “चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही थीं जल थल में।”
यहाँ “च” वर्ण की आवृत्ति बार-बार हुई है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
2. यमक अलंकार: जहाँ एक शब्द की एक से अधिक बार आवृत्ति हो, परंतु उसके अर्थ अलग-अलग हों, वहाँ यमक अलंकार होता है।
जैसे: “काली घटा का घमंड घटा।”
यहाँ, ‘घटा’ शब्द की आवृत्ति दो बार हुई है और दोनों जगह वह अलग-अलग अर्थ प्रदान कर रही है। पहले “घटा” का अर्थ है: “काले बादल” जबकि दूसरे स्थान पर “घटा” का अर्थ है- “घटना या कम होना”।
3. श्लेष अलंकार: जहाँ एक शब्द का प्रयोग एक ही बार हो, परंतु उसके अर्थ एक से अधिक हों, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
जैसे: जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय। बारे उजियारो करै, बढ़े अंधेरो होय ॥
इस दोहे में “बारे” तथा “बढ़े” इन दो शब्दों का एक ही बार प्रयोग हुआ है, परंतु इनके दो-दो अर्थ निकलते हैं:
“बारे” (1) जलाने से और (2) छोटा होने पर। इसी प्रकार, बढ़े- (1) बुझने पर और (2) बढ़ा होने पर। अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
1. उपमा अलंकार: जहाँ किसी एक व्यक्ति या वस्तु के समान गुणधर्म को लेकर तुलना की जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
जैसे: “काजल की रेखा सी कतार है खजूर की।“
यहाँ “खजूर की कतार” को “काजल की रेखा” के समान बताया गया है। अतः यहाँ उपमा अलंकार है।
2. रूपक अलंकार: जहाँ एक वस्तु की तुलना दूसरी वस्तु से न करके उसे दूसरी वस्तु का रूप दे दिया जाए वहाँ रूपक अलंकार होता है।
जैसे: “चरण-कमल वन्दौं हरिराई”
यहाँ भगवान के चरण और कमल को एक कर दिया गया है। यहाँ यह अभेद बना हुआ है कि किसकी तुलना किससे की गई है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।
3. उत्प्रेक्षा अलंकार: जहाँ एक वस्तु में दूसरी वस्तु की संभावना या कल्पना की जाए, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। उत्प्रेक्षा अलंकार में मनों, मानो, मनु, जानो, जनु आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
जैसे: “उस काल मारे-क्रोध के, तन काँपने उसका लगा। मानो हवा के वेग से, सोता हुआ सागर जगा॥”
यहाँ अभिमन्यु की मृत्यु के बाद अर्जुन के क्रोध की संभावना समुद्र के उफानों से गई है। साथ ही “मानो” शब्द का भी प्रयोग हुआ है। अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
4. अतिशयोक्ति अलंकार: जहाँ किसी वस्तु या बात का वर्णन बहुत बढ़ा-चढ़ाकर किया जाता है, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
जैसे: “हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग। लंका सिगरी जल गई, गए निशाचर भाग॥”
यहाँ हनुमान की पूँछ में आग लगने व लंका के जलने तथा राक्षसों के भागने का वर्णन बढ़ा-चढ़ाकर किया गया है। अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है
5. मानवीकरण: जब किसी निर्जीव वस्तु का वर्णन सजीव वस्तुओं से किया जाता है तो उसे मानवीकरण अलंकार कहते हैं।
जैसे: फूल हँसे कलियाँ मुसकाई।
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