जैसे: अ, उ, ए, ग, झ, ढ, प, व आदि।
विशेष
देवनागरी वर्णमाला में अं, अः को स्वरों के साथ लिखा जाता है, पर वास्तव में अं अनुस्वार () और अः विसर्ग (:) व्यंजन हैं। स्वर उच्चारण के बाद ही इनका उच्चारण संभव होता है। जैसे- संस्कार, इंगित, अतः, प्रात: आदि। विसर्ग का प्रयोग हिंदी में प्रचलित संस्कृत शब्दों में ही होता है।
1. हृस्व स्वर: इन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है। इनकी संख्या चार है- अ, इ, उ, ऋ
2. दीर्घ स्वर: इन स्वरों के उच्चारण में हृस्व स्वर से दुगुना समय लगता है। इनकी संख्या सात है- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
दीर्घ स्वर से भी लंबा प्लुत् स्वर होता है, जैसे- आ ऽऽ, ई ऽऽ! नाटकों के संवाद में इसका प्रयोग अनुनासिक और अनुस्वार होता है।
अनुनासिक
जब स्वर मुख और नाक से बोला जाता है तब वह अनुनासिक स्वर कहलाता है।
जैसे: आँख, मुँह, दाँत, आँगन आदि।
अनुस्वार
जिस स्वर के उच्चारण में हवा केवल नाक से निकलती है उसे अनुस्वार कहते हैं।
जैसे: संत, गंगा, कंस आदि।
विसर्ग
विसर्ग का उच्चारण “ह्” ध्वनि के समान होता है। इसका चिह्न है (:)
जैसे: अतः, प्रातः, स्वतः आदि।
व्यंजनों के भेद
व्यंजनों के मुख्य रूप से तीन भेद हैं-
1. स्पर्शः व्यंजन: इनका उच्चारण करते समय जीभ मुख से विभिन्न स्थानों का स्पर्श करती है। इनकी संख्या 25 है
2. अंतस्थ व्यंजन: इनका उच्चारण स्वर और व्यंजन के मध्य का सा लगता है, अतः इन्हें अंतस्थ कहते हैं। इनकी संख्या चार है- य, र, ल, व।
3. उष्म व्यंजन: इनके उच्चारण में वायु के रगड़ खाने से एक प्रकार की उष्मा (गरमी) सी पैदा होती है, अतः इन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या चार है- श ष स ह।
विशेष: जब किसी व्यंजन में “अ” की ध्वनि नहीं मिली होती, तो उसके नीचे एक तिरछी रेखा खींच दी जाती है, जिसे हल या हलंत कहते हैं, जैसे- क्, म् आदि।
ड़, ढ़ का प्रयोग
“ड़” और “ढ़” वर्ण शब्द के आदि में नहीं आते लेकिन मध्य और अंत में इनका प्रयोग होता है,
जैसे:
(i) पड़ना – पढ़ना
(ii) पीड़ा – पीढ़ा
(iii) बड़ा – बढ़ा
स्मरणीय तथ्य
वह छोटी से छोटी ध्वनि या मुँह से निकली आवाज, जिसके और टुकड़े न किए जा सकें, वर्ण कहलाती है। वर्गों के समूह को वर्णमाला कहते हैं। जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से किया जाता है, उन्हें स्वर कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- 1. हृस्व स्वर, 2. दीर्घ स्वर जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता के बिना नहीं किया जा सकता, उन्हें व्यंजन कहते हैं। व्यंजनों के तीन भेद हैं- स्पर्श, अंतस्थ और ऊष्म।
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