निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
1. भारत में हरित क्रांति का मुख्य उद्देश्य देश को खाद्यान्न मामले में आत्मनिर्भर बनाना था, लेकिन इस बात की आशंका किसी को नहीं थी कि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल न सिर्फ खेतों में, बल्कि खेतों से बाहर मंडियों तक में होने लगेगा। विशेषज्ञों के मुताबिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग खाद्यान्न की गुणवत्ता के लिए सही नहीं है, लेकिन जिस रफ़्तार से देश की आबादी बढ़ रही है, उसके मद्देनज़र फ़सलों की अधिक पैदावार ज़रूरी थी। समस्या सिर्फ रासायनिक खादों के प्रयोग की ही नहीं है। देश के ज़्यादातर किसान परंपरागत कृषि से दूर होते जा रहे हैं।
दो दशक पहले तक हर किसान के यहाँ गाय, बैल और भैंस खूटों से बँधे मिलते थे। अब इन मवेशियों की जगह ट्रैक्टर-ट्राली ने ले ली है। परिणामस्वरूप गोबर और घूरे की राख से बनी कंपोस्ट खाद खेतों में गिरनी बंद हो गई। पहले चैत-बैसाख में गेहूँ की फ़सल कटने के बाद किसान अपने खेतों में गोबर, राख और पत्तों से बनी जैविक खाद डालते थे। इससे न सिर्फ खेतों की उर्वरा-शक्ति बरकरार रहती थी, बल्कि इससे किसानों को आर्थिक लाभ के अलावा बेहतर गुणवत्ता वाली फसल मिलती थी।
प्रश्न: 1. हमारे देश में हरित क्रांति का उद्देश्य क्या था?
उत्तर: हमारे देश में हरित क्रांति का मुख्य उद्देश्य था – देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाना।
प्रश्न: 2. खाद्यान्नों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए किनका प्रयोग सही नहीं था?
उत्तर: खाद्यान्नों की गुणवत्ता बनाए रखने हेतु रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यक नहीं था।
प्रश्न: 3. विशेषज्ञ हरित क्रांति की सफलता के लिए क्या आवश्यक मानने लगे और क्यों?
उत्तर: विशेषज्ञ हरित क्रांति की सफलता हेतु रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यक मानते थे क्योंकि देश की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही थी। इसका पेट भरने के लिए फ़सल के भरपूर उत्पादन की आवश्यकता थी।
प्रश्न: 4. हरित क्रांति ने किसानों को परंपरागत कृषि से किस तरह दूर कर दिया?
उत्तर: हरित क्रांति के कारण किसान खेती के पुराने तरीके से दूर होते गए। वे खेती में हल-बैलों की जगह ट्रैक्टर की मदद से कृषि कार्य करने लगे। इससे बैल एवं अन्य जानवर अनुपयोगी होते गए।
प्रश्न: 5. हरित क्रांति का मिट्टी की उर्वरा शक्ति पर क्या असर हुआ? इसे समाप्त करने के लिए क्या-क्या उपाय करना चाहिए?
उत्तर: हरित क्रांति की सफलता के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से ज़मीन प्रदूषित होती गई, जिससे वह अपनी उपजाऊ क्षमता खो बैठी। इसे समाप्त करने के लिए खेतों में घूरे की राख और कंपोस्ट की खाद के अलावा जैविक खाद का प्रयोग भी करना चाहिए।
2. ताजमहल, महात्मा गांधी और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र-इन तीन बातों से दुनिया में हमारे देश की ऊँची पहचान है। ताजमहल भारत की अंतरात्मा की, उसकी बहुलता की एक धवल धरोहर है। यह सांकेतिक ताज आज खतरे में है। उसको बचाए रखना बहुत ज़रूरी है।
मजहबी दर्द को गांधी दूर करता गया। दुनिया जानती है, गांधीवादी नहीं जानते हैं। गांधीवादी उस गांधी को चाहते हैं जो कि सुविधाजनक है। राजनीतिज्ञ उस गांधी को चाहते हैं जो कि और भी अधिक सुविधाजनक है। आज इस असुविधाजनक गांधी का पुनः आविष्कार करना चाहिए, जो कि कड़वे सच बताए, खुद को भी औरों को भी।
अंत में तीसरी बात लोकतंत्र की। हमारी जो पीड़ा है, वह शोषण से पैदा हुई है, लेकिन आज विडंबना यह है कि उस शोषण से उत्पन्न पीड़ा का भी शोषण हो रहा है। यह है हमारा ज़माना, लेकिन अगर हम अपने पर विश्वास रखें और अपने पर स्वराज लाएँ तो हमारा ज़माना बदलेगा। खुद पर स्वराज तो हम अपने अनेक प्रयोगों से पा भी सकते हैं, लेकिन उसके लिए अपनी भूलें स्वीकार करना, खुद को सुधारना बहुत आवश्यक होगा
प्रश्न: 1. संसार में भारत की प्रसिद्धि का कारण क्या है?
उत्तर: संसार में भारत की प्रसिद्धि के तीन कारण हैं-ताजमहल, महात्मा गांधी और लोकतांत्रिक प्रणाली।
प्रश्न: 2. गांधीवादी आज किस तरह के गांधी को चाहते हैं ?
उत्तर: गांधीवादी आज उस गांधी को चाहते हैं जो सुविधाजनक है।
प्रश्न: 3. हमारे देश के लिए ताजमहल का क्या महत्त्व है? आज इसे किस स्थिति से गुजरना पड़ रहा है?
उत्तर: हमारे देश के लिए ताजमहल का विशेष महत्त्व है। यह हमारे देश की अंतरात्मा की उसकी बहुलता की धरोहर है। आज प्रदूषण के कारण यह खतरे की स्थिति से गुजर रहा है। इसकी रक्षा करना आवश्यक हो गया है।
प्रश्न: 4. राजनीतिज्ञ किस गांधी की आकांक्षा रखते हैं ? वास्तव में आज कैसे गांधी की ज़रूरत है?
उत्तर: राजनीतिज्ञ उस गांधी की आकांक्षा रखते हैं जो और भी सुविधाजनक हो। वास्तव में आज ऐसे गांधी की आवश्यकता है जो खुद को भी कड़वा सच बताए और दूसरों को भी बताए।
प्रश्न: 5. ज़माना बदलने के लिए क्या आवश्यक है ? इसके लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर: ज़माना बदलने के लिए हमें स्वयं पर स्वराज लाना होगा। इसे पाने के लिए हमें अपने पर अनेक प्रयोग करने होंगे, अपनी भूलें स्वीकारनी होंगी तथा खुद को सुधारना होगा।
3. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययनों और संयुक्त राष्ट्र की मानव-विकास रिपोर्टों ने भारत के बच्चों में कुपोषण की व्यापकता के साथ-साथ बाल मृत्यु-दर और मातृ मृत्यु दर का ग्राफ़ काफ़ी ऊँचा रहने के तथ्य भी बार-बार जाहिर किए हैं। यूनिसेफ़ की रिपोर्ट बताती है कि लड़कियों की दशा और भी खराब है।
पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान के बाद, बालिग होने से पहले लड़कियों को ब्याह देने के मामले दक्षिण एशिया में सबसे ज़्यादा भारत में होते हैं। मातृ-मृत्यु दर और शिशु मृत्यु-दर का एक प्रमुख कारण यह भी है। यह रिपोर्ट ऐसे समय जारी हुई है जब बच्चों के अधिकारों से संबंधित वैश्विक घोषणा-पत्र के पच्चीस साल पूरे हो रहे हैं। इस घोषणा-पत्र पर भारत और दक्षिण एशिया के अन्य देशों ने भी हस्ताक्षर किए थे। इसका यह असर ज़रूर हुआ कि बच्चों की सेहत, शिक्षा, सुरक्षा से संबंधित नए कानून बने, मंत्रालय या विभाग गठित हुए, संस्थाएँ और आयोग बने।
घोषणा-पत्र से पहले की तुलना में कुछ सुधार भी दर्ज हआ है। पर इसके बावजूद बहुत सारी बातें विचलित करने वाली हैं। मसलन, देश में हर साल लाखों बच्चे गुम हो जाते हैं। लाखों बच्चे अब भी स्कूलों से बाहर हैं। श्रम-शोषण के लिए विवश बच्चों की तादाद इससे भी अधिक है वे स्कूल में पिटाई और घरेलू हिंसा के शिकार होते रहते हैं।
परिवार के स्तर पर देखें तो संतान का मोह काफ़ी प्रबल दिखाई देगा, मगर दूसरी ओर बच्चों के प्रति सामाजिक संवेदनशीलता बहुत क्षीण है। कमज़ोर तबकों के बच्चों के प्रति तो बाकी समाज का रवैया अमूमन असहिष्णुता का ही रहता है। क्या ये स्वस्थ समाज के लक्षण हैं? (All India 2015)
प्रश्न: 1. यूनिसेफ की रिपोर्ट में किस बात पर चिंता व्यक्त की गई है ?
उत्तर: यूनिसेफ की रिपोर्ट में नवजात बच्चों और माताओं की ऊँची मृत्युदर पर चिंता व्यक्त की गई है।
प्रश्न: 2. घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने का उद्देश्य क्या था?
उत्तर: घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने का उद्देश्य था बच्चों एवं माताओं की मृत्युदर में कमी लाकर उनकी दशा सुधारने का प्रयास करना।
प्रश्न: 3. भारत-पाकिस्तान किस समस्या से जूझ रहे हैं? इसका मुख्य कारण क्या है?
उत्तर: भारत और पाकिस्तान दोनों ही नवजात बच्चों एवं माताओं की ऊची मृत्युदर की समस्या से जूझ रहे हैं। इसका मुख्य कारण वयस्क होने से पहले ही लड़कियों का विवाह कर देना है। इस अवस्था में लड़कियाँ गर्भधारण के योग्य नहीं होती हैं।
प्रश्न: 4. बच्चों के अधिकारों से संबंधित घोषणापत्र जारी होने के बाद क्या सुधार हुआ और ऐसी कौन-सी बातें हैं जो हमें दुखी करती हैं?
उत्तर: बच्चों के अधिकारों से संबंधित घोषणापत्र जारी होने के बाद बच्चों की सेहत, शिक्षा सुरक्षा आदि से जुड़े कानून बने पर प्रतिवर्ष लाखों बच्चों का गुम होना, लाखों बच्चों का स्कूल न जाना, बाल श्रमिक बनने को विवश होना तथा पिटाई एवं हिंसा का शिकार होना आदि हमें दुखी करती है।
प्रश्न: 5. क्या ये स्वस्थ समाज के लक्षण हैं ? ऐसा किस स्थिति को देखकर कहा गया है और क्यों?
उत्तर: गरीब वर्ग के बच्चों के प्रति समाज का रवैया अच्छा न होना, उनके प्रति असहिष्णुता की भावना रखना आदि स्थिति को देखकर ऐसा कहा गया है क्योंकि एक ओर परिवार में संतान के प्रति काफ़ी मोह दिखाई देता है तो सामाजिक स्तर पर लोग संवेदनहीन बन गए हैं।
4. चंपारण सत्याग्रह के बीच जो लोग गांधी जी के संपर्क में आए वे आगे चलकर देश के निर्माताओं में गिने गए। चंपारण में गांधी जी न सिर्फ सत्य और अहिंसा का सार्वजनिक हितों में प्रयोग कर रहे थे बल्कि हलुवा बनाने से लेकर सिल पर मसाला पीसने और चक्की चलाकर गेहूँ का आटा बनाने की कला भी उन बड़े वकीलों को सिखा रहे थे, जिन्हें गरीबों की अगुवाई की जिम्मेदारी सौंपी जानी थी। अपने इन आध्यात्मिक प्रयोगों के माध्यम से वे देश की गरीब जनता की सेवा करने और उनकी तकदीर बदलने के साथ देश को आजाद कराने के लिए समर्पित व्यक्तियों की एक ऐसी जमात तैयार करना चाह रहे थे जो सत्याग्रह की भट्ठी में उसी तरह तपकर निखरे, जिस तरह भट्ठी में सोना तपकर निखरता और कीमती बनता है।
गांधी जी की मान्यता थी कि एक प्रतिष्ठित वकील और हज़ामत बनाने वाले हज़्ज़ाम में पेशे के लिहाज़ से कोई फ़र्क नहीं, दोनों की हैसियत एक ही हैं। उन्होंने पसीने की कमाई को सबसे अच्छी कमाई माना और शारीरिक श्रम को अहमियत देते हुए उसे उचित प्रतिष्ठा व सम्मान दिया था। कोई काम बड़ा नहीं, कोई काम छोटा नहीं, इस मान्यता को उन्होंने प्राथमिकता दी ताकि साधन शुद्धता की बुनियाद पर एक ठीक समाज खड़ा हो सके। आज़ाद हिंदुस्तान आत्मनिर्भर, स्वावलंबी और आत्म-सम्मानित देश के रूप में विश्व-बिरादरी के बीच अपनी एक खास पहचान बनाए और फिर उसे बरकरार भी रखे।
प्रश्न: 1. किसी काम या पेशे के बारे में गांधी जी की मान्यता क्या थी?
उत्तर: किसी काम या पेशे के बारे में गांधी जी की मान्यता यह थी कि एक प्रसिद्ध वकील और हज्जाम के पेशे में कोई अंतर नहीं है।
प्रश्न: 2. गांधी जी सबसे अच्छी कमाई किसे मानते थे?
उत्तर: गांधी जी पसीने की कमाई को सबसे अच्छी कमाई मानते थे।
प्रश्न: 3. चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधी जी आध्यात्मिक प्रयोग क्यों कर रहे थे?
उत्तर: चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधी जी आध्यात्मिक प्रयोग इसलिए कर रहे थे ताकि देश की गरीब जनता की सेवा करने तथा देश को आजाद कराने के लिए ऐसे लोगों की फ़ौज तैयार की जा सके जो उद्देश्य के प्रति समर्पित रहें।
प्रश्न: 4. गांधी जी लोगों को शारीरिक श्रम का महत्त्व किस तरह समझा रहे थे?
उत्तर: गांधी जी लोगों को शारीरिक श्रम समझाने के लिए उच्चशिक्षित लोगों को हलुवा बनाने और सिल पर मसाला पीसने जैसे काम सिखा रहे थे ताकि लोग शारीरिक श्रम में रुचि लें।
प्रश्न: 5. शारीरिक श्रम को महत्त्व देने और हर काम को समान समझने के पीछे गांधी जी की दूरदर्शिता क्या थी?
उत्तर: शारीरिक श्रम को महत्त्व देने और हर काम को समान समझने के पीछे गांधी जी की दूरदर्शिता यह थी कि इससे एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके जिससे देश हमारा आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनकर दुनिया में एक अलग पहचान बनाए।
5. आज की नारी संचार प्रौद्योगिकी, सेना, वायुसेना, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, विज्ञान वगैरह के क्षेत्र में न जाने किन-किन भूमिकाओं में कामयाबी के शिखर छू रही है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहाँ आज की महिलाओं ने अपनी छाप न छोड़ी हो। कह सकते हैं कि आधी नहीं, पूरी दुनिया उनकी है। सारा आकाश हमारा है। पर क्या सही मायनों में इस आज़ादी की आँच हमारे सुदूर गाँवों, कस्बों या दूरदराज के छोटे-छोटे कस्बों में भी उतनी ही धमक से पहुँच पा रही है? क्या एक आज़ाद, स्वायत्त मनुष्य की तरह अपना फैसला खुद लेकर मज़बूती से आगे बढ़ने की हिम्मत है उसमें?
बेशक समाज बदल रहा है मगर यथार्थ की परतें कितनी बहुआयामी और जटिल हैं जिन्हें भेदकर अंदरूनी सच्चाई तक पहुँच पाना आसान नहीं। आज के इस रंगीन समय में नई बढ़ती चुनौतियों से टकराती स्त्री की क्रांतिकारी आवाजें हम सबको सुनाई दे रही हैं, मगर यही कमाऊ स्त्री जब समान अधिकार और परिवार में लोकतंत्र की अनिवार्यता पर बहस करती या सही मायनों में लोकतंत्र लाना चाहती है तो वहाँ इसकी राह में तमाम धर्म, भारतीय संस्कृति, समर्पण, सहनशीलता, नैतिकता जैसे सामंती मूल्यों की पगबाधाएँ खड़ी की जाती हैं। नारी की सच्ची स्वाधीनता का अहसास तभी हो पाएगा जब वह आज़ाद मनुष्य की तरह भीतरी आज़ादी को महसूस करने की स्थितियों में होगी।
प्रश्न: 1. नारी की वास्तविक आज़ादी कब होगी?
उत्तर: नारी की वास्तविक आज़ादी तब होगी जब वह आज़ाद मनुष्य की तरह मन से आज़ादी महसूस कर सकेगी।
प्रश्न: 2. कामयाबी, नैतिकता शब्दों से प्रत्यय अलग करके मूलशब्द भी लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न: 3. कैसे कहा जा सकता है कि आधी दुनिया नहीं बल्कि पूरी दुनिया महिलाओं की है?
उत्तर: वर्तमान समय में नारी प्रौदयोगिकी, सेना, वायुसेना, विज्ञान आदि क्षेत्र में तरह-तरह के रूपों में सफलता के झंडे गाड़ रही है। उसने हर क्षेत्र में अपनी पहचान छोड़ी है। इस तरह कहा जा सकता है कि आधी दुनिया नहीं, बल्कि पूरी दुनिया महिलाओं की हैं।
प्रश्न: 4. दूरदराज़ के क्षेत्रों में लेखक को महिलाओं की आज़ादी पर संदेह क्यों लगता है ?
उत्तर: दूरदराज के क्षेत्रों एवं ग्रामीण अंचलों में महिलाओं की आज़ादी के बारे में लेखक को इसलिए संदेह लगता है क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में महिलाएँ स्वतंत्र मनुष्य की भाँति अपना फैसला स्वयं लेकर मज़बूती से आगे बढ़ने का साहस नहीं कर पा रही हैं।
प्रश्न: 5. नारी जब परिवार में लोकतंत्र लाना चाहती है तो वह कमज़ोर क्यों पड़ जाती है?
उत्तर: नारी जब परिवार में लोकतंत्र लाना चाहती है तो इसलिए कमज़ोर पड़ जाती है क्योंकि तब इसकी राह में धर्म, भारतीय संस्कृति, समर्पण, सहनशीलता, नैतिकता की बात सामने आ जाती है और परिवार की स्थिरता के लिए उसे समर्पण भाव अपनाना पड़ता हैं।
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