इस कविता में सुभद्रा कुमारी चौहान ने एक मौसम का वर्णन किया है जब घने बादल आते हैं, बिजली चमकती है और बारिश होती है। इस कविता में एक माँ और बेटी के बीच संवाद हो रहा है। छोटी बच्ची पूछती है कि पहले तो सूरज शान्त था, फिर कौन ने बादल को उत्तेजित किया जिससे बारिश होने लगी।
बच्ची पूछती है कि सूरज ने अपने घर का दरवाजा क्यों बंद कर दिया। ऐसा लगता है कि सूरज की माँ ने उसे घर बुला लिया है।
बादल काका जोर-जोर से गरज रहे हैं। लगता है किसी बच्चे ने अपनी माँ की बात नहीं मानी है।
बच्ची पूछती है कि बिजली के आँगन में इतनी तलवारें क्यों चल रही हैं। बच्ची को आश्चर्य हो रहा है कि इतनी तलवारें चल रही हैं फिर भी उनके लक्ष्य खाली क्यों जा रहे हैं।
लगता है कि बिजली के बच्चे अभी तक तलवार चलाना नहीं सीखे हैं। इसलिए वे आज अभ्यास के लिए आसमान पर हैं।
बच्ची कहती है कि माँ उसे बिजली के घर जाने की अनुमति दे ताकि वह बिजली के बच्चों को तलवार चलाना सिखा सके।
बच्ची को यह आशा है कि बिजली खुश होकर उसे चमकती तलवार दे देगी। उसके बाद बच्ची और उसके परिवार कोई अत्याचार नहीं करेगा।
जब बच्ची को तलवार मिलेगी तो पुलिस उसके काका को पकड़ने नहीं आएगी क्योंकि तलवार देखकर वे डर जाएंगे।
बच्ची कहती है कि यदि माँ चाहती है कि काका कभी जेल न जाएं तो वह उसे जल्दी से बिजली के घर ले जाए।
माँ कहती है कि वह उसे तलवार जरूर दिलाएंगी ताकि काका फिर से जेल न जाएं। लेकिन माँ बच्ची से कहती है कि उसे बिजली के घर जाने का विचार अपने दिमाग से निकाल दे।
इस तरह से इस सरल कविता के माध्यम से सुभद्रा कुमारी चौहान ने हमें वो दौर दिखाया है जब भारत पर अंग्रेजों का राज था। उस समय अंग्रेजी सरकार यहां के लोगों पर बहुत अत्याचार करती थी। कई बच्चों का मन भी क्रांतिकारी भावनाओं से भर जाता था।
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