बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: सपनो के से दिन के लेखक कौन हैं ?
(क) मिथिलेश्वर
(ख) रही मासूम
(ग) गुरदयाल सिंह
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (ग)
प्रश्न 2: स्कूल के पी.टी. सर का क्या नाम था ?
(क) मास्टर प्रीतमचंद
(ख) हरीश चंद
(ग) मुकुंद लाल
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (क)
प्रश्न 3: मास्टर प्रीतमचंद कतारों के पीछे खड़े खड़े क्या देखते थे ?
(क) लड़कों को
(ख) कौन सा लड़का कतार में ठीक से नहीं खड़ा
(ग) कोई नहीं
(घ) कता
उत्तर: B
प्रश्न 4: लड़के किसके डर से कतार खड़े रहते ?
(क) मास्टर प्रेमचंद की घुड़की के डर से
(ख) मार के डर से
(ग) कोई नहीं
(घ) घुड़की के डर से
उत्तर: (क)
प्रश्न 5: पी. टी सर कौन से मुहावरे को प्रत्यक्ष कर दिखाते थे ?
(क) खाल खींचने
(ख) खाल झाड़ने
(ग) कान मरोड़ने
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (क)
प्रश्न 6: पी. टी सर खाल खींचने के मुहावरे को कब प्रत्यक्ष दिखाते थे ?
(क) जब कोई लड़का अपना सिर हिलाता
(ख) जब कोई लड़का पिंडली खुजलाता
(ग) कोई नहीं
(घ) दोनों
उत्तर: (घ)
प्रश्न 7: अब किस दंड पर पूरी तरह प्रतिबंध है ?
(क) मानसिक
(ख) कोई भी दंड
(ग) शारीरिक दंड
(घ) कोई नहीं
उत्तर: C
प्रश्न 8: इस पाठ के माध्यम से लेखक ने किन दिनों का वर्णन किया है ?
(क) आजादी के दिनों का
(ख) अंग्रेजो के दिनों का
(ग) अपने स्कूल के दिनों का
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (ग)
प्रश्न 9: बच्चों को स्कूल में अपनी पढ़ाई से अधिक क्या अच्छा लगता है ?
(क) कंप्यूटर क्लास
(ख) जिम
(ग) अपने साथियों के साथ खेलना
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (ग)
प्रश्न 10: हेडमास्टर लड़के की किताबे लाकर क्यों देते थे ?
(क) उसे पढ़ने का शौंक था
(ख) किताबें इकठी करने का शौंक था
(ग) लेखक के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (ग)
प्रश्न 11: लेखक किसकी मदद से अपनी पढ़ाई जारी रख सका ?
(क) अपने घर वालों की मदद से
(ख) दोस्तों की मदद से
(ग) हेडमास्टर साहब की मदद से
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (ग)
प्रश्न 12: लेखक के समय में अभिभावक बच्चो को स्कूल भेजने में दिलचस्पी क्यों नहीं लेते थे ?
(क) बच्चो को अपने साथ काम में लगा लेते थे
(ख) उनको लगता था इन्होने कौन सा है तहसीलदार बनना है
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (ग)
प्रश्न 13: बचपन में घास अधिक हरी और फूलों की सुगंध अधिक मनमोहक लगती है इस कथन से क्या भाव है ?
(क) बच्चे अपनी दुनिया में मस्त होते है
(ख) बच्चे अल्हड़ होते हैं
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (ग)
प्रश्न 14: हेडमास्टर साहिब का विद्यार्थियों के साथ कैसा व्यवहार था ?
(क) कड़क
(ख) कठोर बहुत ही मृदुल था ,
(ग) वे बच्चों को बिलकुल डांटते नहीं थे
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (ग)
प्रश्न 15: लेखक के समय शिक्षा का क्या महत्व था ?
(क) बहुत ही गहरा
(ख) शिक्षा बहुत मायने रखती थी
(ग) लोग शिक्षा के महत्व से पूरी तरह अनजान थे
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (ग)
प्रश्न 16: सपनो के से दिन पाठ पाठक को कैसा अनुभव करवाता है ?
(क) लेखक ने हमारे बचपन की बात लिख दी
(ख) अच्छा
(ग) बुरा
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (क)
प्रश्न 17: बच्चे पिटाई होने पर भी खेलने क्यों जाते हैं ?
(क) बच्चो को खेल प्यारा होता है
(ख) उनको पिटाई जैसी ही लगती है
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (ग)
प्रश्न 18: बच्चे “रेल बम्बा” किसको कहते थे ?
(क) अपने नेता ओमा के सर की टक्कर को
(ख) रेल की सीटी को
(ग) रेल इंजन को
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (क)
प्रश्न 19: ओमा कैसा बच्चा था ?
(क) निडर और बहादुर
(ख) शरारती
(ग) तेज तर्रार
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (क)
प्रश्न 20: लेखक को बचपन में स्कूल जाते हुए किन चीजों की महक आज भी याद है ?
(क) नीम के पत्तों की
(ख) फूलो की तेज गंध
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं
उत्तर: (ग)
Extra Questions: 25 to 30 Words
प्रश्न 1: ‘बच्चों को खेल सबसे अच्छा लगता है और वे मिलजुल कर खेलते हैं।’ “सपनों के-से दिन” पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए
उत्तर: ‘सपनों के-से दिन’ पाठ से ज्ञात होता है कि लेखक और उसके बचपन के साथी मिल-जुलकर खेलते थे और सभी की हालत एक सी होती थी। जब खेल-खेल में लकड़ी के ढेर से निचे उतरते हुए भागते, तो बहुत से बच्चे अपने-आपको चोट लगा देते थे और कई जगह चोट खाए हुए खून के ऊपर जमी हुई रेत-मिट्टी से लथपथ पिंडलियाँ ले कर अपने-अपने घर जाते तो सभी की माँ-बहनें उन पर तरस नहीं खाती बल्कि उल्टा और ज्यादा पीट देतीं।कई बच्चों के पिता तो इतने गुस्से वाले होते कि जब बच्चे को पीटना शुरू करते तो यह भी ध्यान नहीं रखते कि छोटे बच्चे के नाक-मुँह से लहू बहने लगा है और ये भी नहीं पूछते कि उसे चोट कहाँ लगी है। परन्तु इतनी बुरी पिटाई होने पर भी दूसरे दिन सभी बच्चे फिर से खेलने के लिए चले आते।
प्रश्न 2: लेखक के गाँव के बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: अपने बचपन के दिनों में लेखक जिन बच्चों के साथ खेलता था, उनमें से ज्यादातर साथी उसी के परिवार की तरह के थे। उन परिवारों में से बहुत के बच्चे तो स्कूल ही नहीं जाते थे और जो कभी गए भी, पढाई में रूचि न होने के कारण किसी दिन बस्ता तालाब में फेंक आए और फिर स्कूल गए ही नहीं और उनके माँ-बाप ने भी उनको स्कूल भेजने के लिए कोई जबरदस्ती नहीं की। उनका सारा ध्यान खेलने में रहता था। इससे स्पष्ट है कि लेखक के गाँव के बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।
प्रश्न 3: “सपनों के से दिन” पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि जो बच्चे बचपन में नहीं पढ़ पाए उसके लिए उनके माता-पिता किस तरह जिम्मेदार थे?
उत्तर: जो बच्चे पढाई में रूचि न होने के कारण बस्ता तालाब में फेंक आते थे और फिर कभी स्कूल नहीं गए, उनके माँ-बाप ने भी उनको दोबारा कभी स्कूल भेजने के लिए कोई जबरदस्ती नहीं की। यहाँ तक की राशन की दुकान वाला और जो किसानों की फसलों को खरीदते और बेचते हैं वे भी अपने बच्चों को स्कूल भेजना जरुरी नहीं समझते थे। अगर कभी कोई स्कूल का अध्यापक उन्हें समझाने की कोशिश करता तो वे अध्यापक को यह कह कर चुप करवा देते कि उन्हें अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर कोई तहसीलदार तो बनाना नहीं है।
जब उनका बच्चा थोड़ा बड़ा हो जायगा तो पंडित घनश्याम दास से हिसाब-किताब लिखने की पंजाबी प्राचीन लिपि पढ़वाकर सीखा देंगे और दूकान पर खाता लिखवाने लगा देंगे। स्कूल में अभी तक यह कुछ भी नहीं सीख पाया है। इससे स्पष्ट है कि बच्चों की पढ़ाई न हो पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे।
प्रश्न 4: “सपनों के से दिन” पाठ में लेखक ने अपने स्कूल का वर्णन किस प्रकार से किया है?
उत्तर: लेखक ने अपने स्कूल का वर्णन करते हुए बताया है कि स्कूल के अंदर जाने वाले रास्ते के दोनों ओर गली की तरह के लम्बे सीधे रास्ते में बड़े ढंग से कटे-छाँटे झाड़ उगे थे जिन्हें लेखक और उनके साथी डंडियाँ कहा करते थे। उनसे नीम के पत्तों की तरह महक आती थी, जो आज भी लेखक अपनी आँखों को बंद करके महसूस कर सकता है। उस समय स्कूल की छोटी क्यारियों में फूल भी कई तरह के उगाए जाते थे जिनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध-सी सफ़ेद कलियाँ भी हुआ करतीं थीं। लेखक के स्कूल में केवल छोटे-छोटे नौ कमरे थे, जो अंग्रेजी के अक्षर एच (H) की तरह बने हुए थे।
प्रश्न 5: स्कूल की छोटी क्यारियों में उगाए गए कई तरह के फूलों का लेखक और उनके साथी क्या करते थे?
उत्तर: लेखक के स्कूल की छोटी क्यारियों में कई तरह के फूल उगाए जाते थे जिनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध-सी सफ़ेद कलियाँ भी हुआ करतीं थीं। ये कलियाँ इतनी सूंदर और खुशबूदार होती थीं कि लेखक और उनके साथी चपरासी से छुप-छुपा कर कभी-कभी कुछ फूल तोड़ लिया करते थे। उनकी बहुत तेज़ सुगंध लेखक आज भी महसूस कर सकता है। परन्तु लेखक को अब यह याद नहीं कि उन फूलों को तोड़कर, कुछ देर सूँघकर फिर उन फूलों का वे क्या करते थे। शायद वे उन फूलों को या तो जेब में डाल लेते होंगे और माँ उसे धोने के समय निकालकर बाहर फेंक देती होगी या लेखक और उनके साथी खुद ही, स्कूल से बाहर आते समय उन्हें बकरी के मेमनों की तरह खा या ‘चर’ जाया करते होगें।
प्रश्न 6: लेखक ने छुटियों के पहले और आखरी दिनों के फर्क का अंतर किस तरह स्पष्ट किया है?
उत्तर: लेखक के समय में स्कूलों में, साल के शुरू में एक-डेढ़ महीना ही पढ़ाई हुआ करती थी, फिर डेढ़-दो महीने की छुटियाँ शुरू हो जाती थी। लेखक को छुटियों के पहले और आखरी दिनों का फर्क याद है। पहले के दो तीन सप्ताह तो खूब खेल कूद में बीतते थे। हर साल ही छुटियों में लेखक अपनी माँ के साथ अपनी नानी के घर चले जाता था। जैसे-जैसे उनकी छुट्टियों के दिन ख़त्म होने लगते तो वे लोग दिन गिनने शुरू कर देते थे। एक-एक दिन गिनते-गिनते खेलकूद में दस दिन और बीत जाते। काम न किया होने के कारण स्कूल में होने वाली पिटाई का डर अब और ज्यादा बढ़ने लगता।
जैसे-जैसे दिन ‘छोटे’ होने लगते अर्थात छुट्टियाँ ख़त्म होने लगती डर और ज्यादा बढ़ने लगता। छुट्टियों के आखिरी पंद्रह-बीस दिनों में अध्यापकों द्वारा दिए गए कार्य को पूरा करने का हिसाब लगाते थे और कार्य पूरा करने की योजना बनाते हुए उन छुट्टियों को भी खेलकूद में बिता देते थे।
Extra Questions: 60 से 70 शब्दों में
प्रश्न 1: जिस साल लेखक नानी के घर नहीं जा पाता था, उस साल लेखक अपने घर से दूर जो तालाब था, वहाँ जाया करता था। उस तालाब में लेखक और उसके साथी किस तरह खेलते थे अपने शब्दों में वर्णन कीजिए?
उत्तर: लेखक और उसके साथी कपड़े उतार कर पानी में कूद जाया करते थे, थोड़े समय बाद पानी से निकलकर भागते हुए एक रेतीले टीले पर जाकर रेत के ऊपर लोटने लगते थे। गीले शरीर को गर्म रेत से खूब लथपथ करके फिर उसी तरह भागते थे। किसी ऊँची जगह जाकर वहाँ से तालाब में छलाँग लगा देते थे। जैसे ही उनके शरीर से लिपटी रेत तालाब के उस गंदे पानी से साफ़ हो जाती, वे फिर से उसी टीले की ओर भागते। कई बार तालाब में कूदकर ऐसे हाथ-पाँव हिलाने लगते जैसे उन्हें बहुत अच्छे से तैरना आता हो।
परन्तु एक-दो को छोड़, लेखक के किसी साथी को तैरना नहीं आता था। कुछ तो हाथ-पाँव हिलाते हुए गहरे पानी में चले जाते तो दूसरे उन्हें बाहर आने के लिए सलाह देते कि ऐसा मानो जैसे किसी भैंस के सींग या पूँछ पकड़ रखी हो। उनका हौसला बढ़ाते। कूदते समय मुँह में गंदला पानी भर जाता तो बुरी तरह खाँस कर उसे बाहर निकालने का प्रयास करते थे। कई बार ऐसा लगता कि साँस रुकने वाली है परन्तु हाय-हाय करके किसी न किसी तरह तालाब के किनारे तक पहुँच ही जाते थे।
प्रश्न 2: मास्टर प्रीतम चंद जो स्कूल के ‘पीटी’ थे, उनसे सब क्यों डरते थे और लेखक और उनके साथियों को क्या ध्यान रखना पड़ता था?
उत्तर: मास्टर प्रीतम चंद जो स्कूल के ‘पीटी’ थे, उनसे सब डरते थे। वे लड़कों की पंक्तियों के पीछे खड़े-खड़े यह देखते रहते थे कि कौन सा लड़का पंक्ति में ठीक से नहीं खड़ा है। उनकी धमकी भरी डाँट तथा लात-घुस्से के डर से लेखक और लेखक के साथी पंक्ति के पहले और आखरी लड़के का ध्यान रखते, सीधी पंक्ति में बने रहने की पूरी कोशिश करते थे। सीधी पंक्ति के साथ-साथ लेखक और लेखक के साथियों को यह भी ध्यान रखना पड़ता था कि आगे पीछे खड़े लड़कों के बीच की दुरी भी एक समान होनी चाहिए।
सभी लड़के उस ‘पीटी’ से बहुत डरते थे क्योंकि उन जितना सख्त अध्यापक न कभी किसी ने देखा था और न सुना था। यदि कोई लड़का अपना सिर भी इधर-उधर हिला लेता या पाँव से दूसरे पाँव की पिंडली खुजलाने लगता तो वह उसकी ओर बाघ की तरह झपट पड़ते और ‘खाल खींचने’ (कड़ा दंड देना, बहुत अधिक मारना-पीटना) के मुहावरे को सामने करके दिखा देते।
प्रश्न 3: बचपन में बच्चों को स्कूल जाना पसंद नहीं होता किन्तु कुछ परिस्थितियों में बच्चे स्कुल जाना पसंद करते हैं। पाठ के आधार पर उन परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: लेखक के अनुसार उनके बचपन में भी स्कूल सभी के लिए ऐसी जगह नहीं थी जहाँ ख़ुशी से भाग कर जाया जाए। पहली कच्ची कक्षा से लेकर चौथी कक्षा तक, केवल पाँच-सात लड़के ही थे जो ख़ुशी-ख़ुशी स्कूल जाते होंगे बाकि सभी रोते चिल्लाते ही स्कूल जाया करते थे। फिर भी कभी-कभी कुछ ऐसी स्थितियाँ भी होती थी जहाँ बच्चों को स्कूल अच्छा भी लगने लगता था। वह स्थितियाँ बनती थी जब स्कूल में स्काउटिंग का अभ्यास करवाते समय पीटी साहब सभी बच्चो के हाथों में नीली-पीली झंडियाँ पकड़ा कर वन टू थ्री कहते और बच्चे भी झंडियाँ ऊपर-निचे, दाएँ-बाएँ हिलाते जिससे झंडियाँ हवा में लहराती और फड़फड़ाती। झंडियों के साथ खाकी वर्दियों तथा गले में दो रंग के रुमाल लटकाए सभी बच्चे बहुत ख़ुशी से अभ्यास किया करते थे। कभी-कभी लेखक और उसके साथियों को ऐसा भी लगता था कि कई साल की सख्त मेहनत से जो पढ़ाई उन्होंने प्राप्त की थी, पीटी साहब के अनुशासन में रह कर प्राप्त की ‘गुडविल’ का रॉब या घमंड उससे बहुत बड़ा था। यह ऐसा भी था कि आपको रोज डाँटने वाला कोई ‘अपना’ यदि साल भर के बाद एक बार ‘शाबाश’ कह दें तो यह किसी चमत्कार-से कम नहीं लगता है।
प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: लेखक गुरदयाल सिंह अपने छात्र जीवन में छुट्टियों के काम को पूरा करने के लिए योजनाएँ तैयार करते थे। क्या आप की योजनाएँ लेखक की योजनाओं से मेल खाती हैं? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए। (CBSE 2021-22)
उतर: लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए तरह-तरह की योजनाएँ बनाया करते थे। जैसे- हिसाब के मास्टर जी द्वारा दिए गए दो सौ सवालों को पूरा करने के लिए रोज़ दस सवाल निकाले जाने पर बीस दिन में पूरे हो जाएँगे, लेकिन खेल-कूद में छुट्टियों भागने लगती, तो मास्टर जी की पिटाई का डर सताने लगता फिर लेखक रोज़ के पंद्रह सवाल पूरे करने की योजना बनाते, तब उसे छुट्टियां भी बहुत कम लगने लगती और दिन बहुत छोटे लगने लगते तथा स्कूल का भय भी बढ़ने लगता। ऐसे में लेखक पिटाई से डरने के बावजूद उन लोगों की भाँति बहादुर बनने की कल्पना करने लगते थे, जो छुट्टियों का काम पूरा करने की बजाय मास्टर जी से पिटाई खाना ही अधिक बेहतर समझते थे।
प्रश्न 2: स्कुल किस प्रकार की स्थिति में अच्छा लगने लगता है और क्यों ? (CBSE 2019-20)
उत्तर: मास्टर जी जब परेड करवाते तो सभी विद्यार्थी अपने छोटे-छोटे जूतों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ या एकदम पीछे मुड़कर जूतों की ठक-ठक करते जैसे वे सभी विद्यार्थी न हो कर, कोई बहुत महत्वपूर्ण ‘आदमी’ हों । स्काउटिंग पड़े और स्काउटिंग और पिकनिक जैसे कार्यक्रम हों।करते हुए कोई भी विद्यार्थी कोई गलती न करता तो पीटी साहब अपनी चमकीली आँखें हलके से झपकाते और सभी को शाबाश कहते। तो लेखक और उसके दोस्तों को बहुत अच्छा लगता था। स्काउटिंग के दिनों में स्कूल उन्हें बेहद अच्छा लगने लगता था। अतः स्कूल जाना उसी स्थिति में अच्छा लगता है, जब पढ़ाई न करनी पड़े और स्काउटिंग और पिकनिक जैसे कार्यक्रम हों।
प्रश्न 3. विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ ‘सपनों के-से दिन’ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में विचार प्रकट कीजिए । (CBSE 2018-19)
उत्तर: पाठ ‘सपनों के से दिन’ में विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए उन्हें कई प्रकार के शारीरिक दंड दिए जाते थे। पिटाई भी इतनी अधिक की चमड़ी उधेड़ने वाली कहावत चरितार्थ, दंड ऐसा कि बच्चे चक्कर खा जाए, बच्चों का कोमल मन ऐसे बर्बरता पूर्ण व्यवहार से अधिक उदंड या फिर दब्बू बना देता है, पढ़ाई: लिखाई में अरुचि आ सकती है इन्हीं कारणों को समझकर मनोचिकित्सकों के अनुसार शारीरिक दंड उचित नहीं है । आज की शिक्षा प्रणाली में प्यार, समझ, सूझ: बुझ व समस्या की जड़ पर पहुँच कर उसका निदान करने में विश्वास होना चाहिए । शारीरिक दंड का आज की शिक्षा नीति में कोई स्थान नहीं है।
प्रश्न 4: सपनों के से दिन पाठ के आधार पर आजकल स्कूली शिक्षा प्रणाली में क्या परिवर्तन आए हैं? (CBSE 2016-17)
उत्तर: आज की स्कूली शिक्षा प्रणाली शारीरिक दंड या किसी भी प्रकार के दंड का विरोध करती है, छात्रों की मनोदशा पर विशेष ध्यान दिया जाता है अब छात्रों को मारना या पीटना कानूनी अपराध है। आजकल बच्चों को सुधारने के लिए मनोवैज्ञानिक तरीके अपनाए जाते हैं। इस प्रकार उनमें अनुशासन, सम्मान, सहयोग, परस्पर प्रेम, निष्ठा आदि गुणों का विकास होता है। जब बच्चे स्कूल में अच्छा करते हैं, तो उन्हें उपहारों से पुरस्कृत किया जाता है, जैसे ट्रॉफी या प्रमाण पत्र। जो अपने आप में शिक्षा के क्षेत्र में उठाया गया एक बहुत बड़ा कदम है। यूँ भी मारने-पीटने से बच्चों के मन में शिक्षा के प्रति अरुचि ही पैदा होती है। तनाव मुक्त एवं शांत मित्रवत वातावरण में प्रदान की जाने वाली शिक्षा जीवन के लिए अधिक लाभदायक सिद्ध होगी।
प्रश्न 5. सपनों के से दिन पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि बचपन का समय सबसे अच्छा होता है। (CBSE 2015-16)
उत्तर: ‘सपनों के से दिन’ पाठ में लेखक के बचपन की मस्ती के दिन बड़े निराले थे। लेखक कहता है कि पूरे साल में केवल वे लोग दो महीने ही पढ़ाई करते थे और बाकी समय मौज मस्ती ही करते थे। पढ़ाई से सबको डर लगता था। लेखक और उसके साथी अक्सर स्कूल जाने में आनाकानी करते थे। लेकिन उन्हें पीटी सर की स्काउट क्लास पसंद थी क्योंकि उन्हें खाकी वर्दी पहनने और कुछ फील्ड स्टंट करने का मौका मिलता था। हालांकि पीटी सर काफी सख्त थे, लेकिन स्कूल के प्रधानाचार्य बहुत दयालु थे।
छुट्टियों में जो भी गृह कार्य मिलता, उसे कल पर टालते रहते और सारी छुट्टियां खेलने-कूदने में ही निकाल देते थे। बाद में जब छुट्टियां खत्म होने का समय आता तो जैसे-तैसे या तो गृह कार्य पूरा कर लेते या फिर गृहकार्य पूरा न कर पाने के कारण शिक्षक की पिटाई को एक सस्ता-सौदा समझकर गृह कार्य को यूँ ही छोड़ देते थे।
लेखक छुट्टियों में गाँव में अपनी नानी के घर जाता और वहाँ पर खूब मौज मस्ती करता। लेखक की नानी उसे खूब लाड प्यार दुलार करती और घी-मक्खन-दूध पिलाती। लेखक पूरे गाँव में मौज मस्ती करता, तालाब में नहाता, रेत के टीलों पर लौटता और खेत-खलिहानों में अपने साथियों के साथ भटकता रहता था। इस तरह ‘सपनों के से दिन’ पाठ में लेखक के बचपन के दिन सबसे अच्छे थे।
प्रश्न 6: छात्रों के नेता ओमा के सिर की क्या विशेषता थी? “सपनों के से दिन” के आधार पर बताइए।
उत्तर: ओमा लेखक के बचपन का मित्र था। वे दोनों एक ही क्लास में पढ़ते थे। ओमा बहुत शरारती और अनुशासनहीन छात्र था। ओमा की बातें, गालियाँ और उसकी मार-पिटाई का ढंग सभी से बहुत अलग था। वह देखने में भी सभी से बहुत अलग था। उसका मटके के जितना बड़ा सिर था, जो उसके ढाई फुट के छोटे कद के शरीर पर ऐसा लगता था जैसे बिल्ली के बच्चे के माथे पर तरबूज रखा हो। बड़े सिर पर नारियल जैसी आँखों वाला उसका चेहरा बंदरिया के बच्चे जैसा और भी अजीब लगता था।। वह लड़ाई में ‘सिर” से ही वार करता था इसलिए बच्चे “ओमा’ को ‘रेल-बंबा’ कहकर पुकारते थे।
प्रश्न 7: हेडमास्टर शर्मा जी का छात्रों के साथ कैसा व्यवहार था?
उत्तर: हेडमास्टर शर्मा जी अनुशासन प्रिय होने के साथ-साथ बहुत ही दयालु और विनम्र व्यक्ति थे। वह बच्चों की पिटाई में विश्वास नहीं करते थे, बल्कि वह उन्हें प्यार से पढ़ाते थे। जब उन्हें बहुत गुस्सा आता था तो वे छात्रों के गाल पर हल्के से थप्पड़ मारकर उन्हें सुधार देते थे। वे क्रूरता से कोसों दूर थे, इसलिए मास्टर प्रीतमचंद की क्रूरता को बर्दाश्त नहीं कर सके। और उन्हे तुरंत स्कूल से निकलवा दिया। वे एक अच्छे प्रशासक, शिक्षक और बहुत उदार व्यक्ति थे।
प्रश्न 8: गरीब घरों के लड़कों का स्कूल जाना क्यों कठिन था? ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर: गरीब घरों के लड़कों का स्कूल जाना इसलिए कठिन था क्योंकि एक तो गरीबी ही सबसे बड़ी बाधा थी। शुल्क देने, पेन: पेंसिल, किताबें आदि खरीदने के लिए ऐसे परिवार पैसे खर्च नहीं करते थे। दूसरी बात बच्चों को ही पढाई में रूचि न होने के कारण किसी दिन बस्ता तालाब में फेंक आए और उनके माँ-बाप ने भी उनको स्कूल भेजने के लिए कोई जबरदस्ती नहीं की। बच्चा थोड़ा बड़ा होने पर उन्हें किसी पारिवारिक व्यवसाय या हिसाब-किताब लिखने आदि में झोंक दिया जाता था।
प्रश्न 9: “सपनों के से दिन” पाठ के आधार पर लिखिए कि लेखक छात्र-जीवन में छुट्टियों के लिए मिले काम को कैसे पूरा करता या।
उत्तर: लेखक छुट्टियों में मिले गृह कार्य को पूरा करने के लिए तरह-तरह की योजनाएँ बनाता था, परंतु छुट्टियों में काम पूरा नहीं कर पाता था। विद्यालय से मिले काम के अनुसार वह समय-सारणी भी बनाता था, परंतु उस काम को पूरा नहीं कर पाने की स्थिति में स्कूल में होने वाली पिटाई का डर अब और ज्यादा सताने लगता। फिर से अपना डर भगाने के लिए सोचते कि दस या पंद्रह सवाल भी आसानी से एक दिन में किए जा सकते हैं। जब ऐसा सोचने तो दिन बहुत छोटे लगने लगते थे। लेखक उस स्थिति में अपने मित्र “ओमा’, की तरह बहादुर बनने की कल्पना करता था। ओमा काम करने की अपेक्षा शिक्षकों द्वारा की गई पिटाई को सस्ता सौदा समझता था।
प्रश्न 10: ‘फ़ारसी की घंटी बजते ही बच्चे डर से क्यों कांप उठते थे? “सपनों के से दिन” पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर: चौथी श्रेणी में मास्टर प्रीतमचंद बच्चों को फ़ारसी पढ़ाते थे। वे काफी सख्त शिक्षक थे। अगर बच्चे उनके सामने शरारत करे तो वे बच्चों को बहुत डांटते फटकारते थे। बच्चों के मन में डर इतना था कि फ़ारसी की घंटी बजते ही बच्चे काँप उठते थे। एक बार मास्टर प्रीतमचंद ने फ़ारसी का शब्द-रूप याद करने को दिया था और न याद करने पर बच्चों की बुरी तरह पिटाई की, यह सब देखकर हेडमास्टर शर्मा जी सहन नहीं कर सके और उन्हें स्कूल से निलंबित कर दिया, फिर भी बच्चों के मन से डर नही गया वे सोचते थे कि निलंबित होने के बाद भी कहीं मास्टर प्रीतमचंद उन्हें पढ़ाने के लिए न आ जाएँ। राम जी मास्टर या प्रधानाध्यापक जी के कक्षा में आ जाने पर ही उनका यह डर समाप्त होता था।
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