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Long Question Answer: मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय | Hindi Class 9 (Sparsh and Sanchayan) PDF Download

प्रश्न 1: लेखक को किताबें इकट्ठी करने की सनक क्यों सवार हुई ?
उत्तर:
लेखक को किताबें इकट्ठी करने की सनक के पीछे बचपन का एक अनुभव है। इलाहाबाद भारत के प्रख्यात शिक्षा-केंद्रों में एक रहा है। ईस्ट इंडिया द्वारा स्थापित पब्लिक लाइब्रेरी से लेकर महामना मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित भारती भवन तक विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी तथा अनेक कॉलेजों की लाइब्रेरियाँ तो हैं ही, लगभग हर मुहल्ले में एक अलग लाइब्रेरी वहाँ हाईकोर्ट है, अतः वकीलों की निजी लाइब्रेरियाँ भी हैं। अध्यापकों की निजी लाइब्रेरियाँ हैं। अपनी लाइब्रेरी वैसी कभी होगी, यह तो स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था, पर उसके मुहल्ले में एक लाइब्रेरी थी 'हरि भवन' स्कूल से छुट्टी मिली कि मैं उसमें जाकर जम जाता था। पिता दिवंगत हो चुके थे, लाइब्रेरी का चंदा चुकाने का पैसा नहीं था, अतः वहीं बैठकर किताबें निकलवाकर पढ़ता रहता था। उन दिनों हिंदी उपन्यासों के खूब अनुवाद हो रहे थे। उन अनूदित उपन्यासों को पढ़कर बड़ा सुख मिलता था। अपने छोटे से 'हरि भवन' में खूब उपन्यास थे। वहीं बकिमचंद्र चटोपाध्याय की 'दुर्गेशनोंदिनी', 'कपाल कुंडला' और 'आनंदमठ' से टॉलस्टॉय की 'अन्ना करेनिना', विक्टर ह्यूगो का 'पेरिस का कुबड़ा ', हचबैक ऑफ नात्रोदायद्ध, गोर्की की ‘मदर', अलेक्जेंडर कुप्रिन का 'गाड़ीवालों का कटरा', (यामा द पिटद्ध) और सबसे मनोरंजक सर्वा-रीश का 'विचित्र वीर' यानी डॉन क्विक्शोटद्ध हिंदी के ही माध्यम से सारी दुनिया के कथा-पात्रों से मुलाकात करना कितना आकर्षक था। लाइब्रेरी खुलते ही पहुँच जाता और जब शुक्ल जी लाइब्रेरियन कहते कि बच्चा, अब उठो, पुस्तकालय बंद करना है, तब बड़ी अनच्छिा से उठता। जिस दिन कोई उपन्यास अधूरा छूट जाता, उस दिन मन में कसक होती कि काश इतने पैसे होते कि सदस्य बनकर किताब इश्यू करा लाता या काश! इस किताब को खरीद पाता तो घर में रखता, एक बार पढ़ता, दो बार पढ़ता, बार-बार पढ़ता, पर जानता था कि यह सपना ही रहेगा, भला कैसे पूरा हो पाएगा।

प्रश्न 2: लेखक की प्रिय पुस्तक कौन-सी थी और क्यों?
उत्तर: 
लेखक की प्रिय पुस्तक श्री स्वामी दयानंद की एक जीवनी रोचक शैली में लिखी हुई, अनेक चित्रों से सुसज्जित। वे तत्कालीन पाखंडों के विरुद्ध अदम्य साहस दिखाने वाले अद्भुत व्यक्तित्व थे। उनके जीवन की कितनी ही रोमांचक घटनाएँ थीं, जो बहुत प्रभावित करती थीं। चूहे को भगवान का भोग खाते देखकर मान लेना कि प्रतिमाएँ भगवान नहीं होतीं, घर छोड़कर भाग जाना, तमाम तीर्थों, जंगलों, गुफाओं, हिमशिखरों पर साधुओं के बीच घूमना और हर जगह इसकी तलाश करना कि भगवान क्या है? सत्य क्या है? जो भी समाज-विरोधी, मनुष्य-विरोधी मूल्य हैं, रूढ़ियाँ हैं, उनका खंडन करना और अंत में अपने से हारे को क्षमा कर उसे सहारा देना। यह सब बालमन को बहुत रोमांचित करता।

प्रश्न 3: पुस्तकें इकट्ठी करना तथा उन्हें क्रमबद्ध रूप में अलमारी में सजाकर रखना मानव की आदत में है। अपने विवेक के आधार पर बताइए कि क्या पुस्तकों को इकट्ठा करना या उन्हें सजाकर रखना ही उनका सही प्रयोग है या उनके अंदर के ज्ञान को आत्मसात् करना उसका प्रयोग है?
उत्तर:
हाँ, यह अक्सर देखा जाता है कि बहुत से लोग किताबे खरीदते हैं। उन्हें अलमारी में सजाकर रखते हैं किंतु पुस्तक के अंदर के ज्ञान को समझ नहीं पाते। वे ऐसे लोग होते हैं जो पुस्तकें इकट्ठी करने के तो शौकीन होते हैं किंतु उन्हें पढ़कर उनके ज्ञान को आत्मसात् नहीं करना चाहते। आज समाज के अधिकतर लोग दिखावे और प्रदर्शनी हेतु पुस्तकों का संचय करते हैं। पुस्तकें धूल चाटती रहती हैं किंतु उनके पास उन्हें पढ़ने का समय नहीं होता। वे उस ज्ञान से वंचित हो जाते हैं जिसे वे अपने साथ पुस्तक के रूप में घर तो ले आए किंतु उन्हें पढ़कर आत्मसात् नहीं कर पाए।
सच्चा ज्ञान पुस्तक के अंदर निहित उस शब्दावली में है जो मानव को कल्याणकारी बनाने का संदेश देती है, उसे सन्मार्ग पर आने के लिए प्रेरित करती है, उसकी इच्छा-शक्ति तथा आत्मविश्वास को बढ़ाने का काम करती है। अतः स्पष्ट है कि पुस्तकों को इकट्ठा करना इतना आवश्यक नहीं जितना आवश्यक पुस्तकों में निहित ज्ञान को आत्मसात् करना है।

प्रश्न 4: ‘मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय’ पाठ के आलोक में अपने विद्यालय के पुस्तकालय का वर्णन कीजिए।
उत्तर: 
हमारे विद्यालय का पुस्तकालय विद्यालय के प्रथम तल पर एक बहुत बड़े सभा भवन में स्थित है। इसमें विभिन्न विषयों की पुस्तकों और संदर्भ ग्रंथों से अलमारियाँ भरी हुई हैं। बीच में समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ आदि पढ़ने के लिए मेज़ – कुर्सियाँ लगी हुई हैं। प्रवेश-द्वार के पास पुस्तकालयाध्यक्ष अपने सहयोगियों के साथ बैठते हैं। यहाँ विभिन्न भाषाओं के समाचार-पत्र तथा अनेक विषयों से संबंधित पत्रिकाएँ आती हैं, जिनसे हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है तथा मनोरंजन भी होता है। हमें घर पर पढ़ने के लिए पंद्रह दिनों के लिए दो पुस्तकें भी मिलती हैं। हमें हमारे पुस्तकालय से ज्ञान – प्राप्ति में बहुत सहायता मिलती है।

प्रश्न 5: पुस्तकालय अपने आपमें ज्ञान का संचित कोष होता है। वहाँ अथाह पुस्तकों का भंडार होता है। अपने विवेक के आधार पर बताइए कि पुस्तकालय का मानव जीवन में क्या स्थान है?
उत्तर:
पुस्तकालय आज जीवन का एक आवश्यक अंग बन गए हैं। इनमें अपार ज्ञान का कोष है। आज के आधुनिक तथा प्रतिस्पर्धा-युक्त वातावरण में इसका और भी अधिक महत्व है। व्यक्ति पुस्तकालय में जाकर उसमें रखी पुस्तकों का अध्ययन करता है। एक व्यक्ति इतनी अधिक मात्रा एवं संख्या में पुस्तकों को न खरीद सकता है और संजोकर रख सकता है। यह विद्यार्थियों तथा आम जन मानस के लिए शिक्षक, थियेटर, आदर्श तथा उत्प्रेरक है।
यह परामर्शदाता तथा उनका साथी भी है। सही अर्थों में पुस्तकालय जनता तथा विद्यार्थियों को विवेकशील तथा ज्ञानवान बनाने का काम करता है तथा कर रहा है। इनमें लेखकों के लेख, नेताओं के भाषण, व्यापार और मेलों की सूचनाएँ, स्त्रियों और बच्चों के उपयोग की अनेक पत्र-पत्रिकाएँ, नाटक, कहानी, उपन्यास हास्य व्यंग्यात्मक लेख आदि विशेष सामग्री रहती हैं। अतः इनके प्रयोग से व्यक्ति ज्ञानवान बनता है। यदि यह कहा जाए कि पुस्तकालय आज सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में बड़ा सहायक है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति न होगी।

प्रश्न 6: ‘मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय’ में लेखक फ़िल्म न देखकर पुस्तक क्यों खरीदता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: 
लेखक को किताबें पढ़ने और इकट्ठा करने का बहुत शौक था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह किताबें खरीद नहीं पाता था। एक बार वह शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के ‘देवदास’ उपन्यास पर आधारित फ़िल्म का गीत गुनगुना रहा था। लेखक की माँ ने उसे फ़िल्म देखने की स्वीकृति दे दी। लेखक सिनेमाघर में फ़िल्म देखने चला गया। पहला शो छूटने में समय बाकी था, इसलिए वह आस-पास टहलने लगा।
वहीं उसके एक परिचित की पुस्तकों की दुकान थी। उसने उसके काउंटर पर शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित ‘देवदास’ उपन्यास पड़ा देखा। लेखक के पास दो रुपये थे। दुकानदार उसे उस पुस्तक को दस आने में देने के लिए तैयार हो गया। फ़िल्म देखने में डेढ़ रुपया लगता था। तब लेखक ने दस आने में ‘देवदास’ उपन्यास खरीदने का निर्णय लिया। यह उसके द्वारा अपने पैसों से खरीदी गई पहली पुस्तक थी। इस प्रकार वह पैसों की बचत कर लेता है और देवदास फ़िल्म जिस पुस्तक पर आधारित थी, वह भी उसे प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 7: आपको कौन-सी पुस्तक अच्छी लगती अच्छी लगती है और क्यों ?
उत्तर: 
मेरी प्रिय पुस्तक तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस है क्योंकि उसमें केवल राम की कथा ही नहीं है बल्कि अनेक आदर्शों की स्थापना भी की गई है, जिनसे हमें अपना जीवन सँवारने की प्रेरणा मिलती है। हनुमान जैसा सेवक – धर्म, भरत लक्ष्मण का भाई के प्रति प्रेम, राम का मर्यादित स्वरूप, सुग्रीव – राम की मित्रता, शबरी के प्रति राम की भावनाएँ तथा राम-राज्य की परिकल्पना, रावण के वध द्वारा बुराई पर अच्छाई की विजय आदि सभी इन सब घटनाओं से जीवन को सद्आचरण से युक्त बनाने की प्रेरणा मिलती है तथा इनका अनुपालन करके देश और समाज को आदर्श बनाया जा सकता है।

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