प्रश्न 1: लेखक की दृष्टि प्रेमचंद के जूते पर क्यों अटक गई?
उत्तर: लेखक ने देखा कि प्रेमचंद ने जिस जूते को पहनकर फ़ोटो खिंचाया है, उसमें बड़ा-सा छेद हो गया है। इसमें से प्रेमचंद की अँगुली बाहर निकल आई है। प्रेमचंद ने इस फटे जूते को ढंकने का प्रयास भी नहीं किया।
प्रश्न 2: फ़ोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी? के आधार पर प्रेमचंद की वेश-भूषा के बारे में लिखिए।
उत्तर: प्रेमचंद ने मोटे कपड़े का कुरता-धोती पहन रखा था। उनके सिर पर वैसी ही टोपी थी। उनके फटे जूते से अँगुली दिख रही थी। ऐसी ही अत्यंत साधारण वेश-भूषा में उन्होंने फ़ोटो खिंचा रखा था।
प्रश्न 3: प्रेमचंद ने अपने फटे जूते को ढंकने का प्रयास क्यों नहीं किया होगा?
उत्तर: प्रेमचंद दिखावा एवं आडंबर से दूर रहने वाले व्यक्ति थे। उन्हें सादगीपूर्ण जीवन पसंद था। वे जैसा वास्तव में थे, वैसा ही दिखना चाहते थे, इसलिए प्रेमचंद ने अपने फटे जूते को छिपाने का प्रयास नहीं किया गया।
प्रश्न 4: प्रेमचंद के चेहरे पर कैसी मुसकान थी और क्यों?
उत्तर: प्रेमचंद के चेहरे पर अधूरी मुसकान थी। इसका कारण यह था कि प्रेमचंद महान साहित्यकार होकर भी अभावग्रस्त जिंदगी जी रहे थे। अभावों से उनकी मुसकान खो सी गई थी। फ़ोटोग्राफ़र के कहने पर भी वे ठीक से जल्दी से मुसकरा न पाए और मुसकान अधूरी रह गई।
प्रश्न 5: ‘मगर यह कितनी बड़ी ट्रेजडी है’, लेखिका ने ऐसा किस संदर्भ में कहा है?
उत्तर: लेखक ने देखा कि ‘युग प्रवर्तक’, ‘उपन्यास सम्राट’ जैसे भारी भरकम विशेषणों से विभूषित साहित्यकार के पास फ़ोटो खिंचाने के लिए भी अच्छे जूते नहीं होने को बड़ी ‘ट्रेजडी’ कहा है। उसने महान साहित्यकार की अभावग्रस्तता के संदर्भ में ऐसा कहा है।
प्रश्न 6: ‘जूता हमेशा कीमती रहा है’-ऐसा कहकर लेखक ने समाज की किस विसंगति पर प्रकाश डाला है?
उत्तर: जूता ‘धन और बल’ का प्रतीक है। जूता समाज में सदा से ही आदर पाता आया है। अर्थात् गुणवान व्यक्तियों को भी धनवानों के सामने कमतर आंका गया है। धनवानों ने ज्ञानी व्यक्तियों को भी झुकने पर विवश किया है। यह समाज की विसंगति ही है।
प्रश्न 7: लेखक अपने जूते को अच्छा नहीं मानता वह अच्छा दिखता है, क्यों?
उत्तर: लेखक का जूता ऊपर से अच्छा दिखता है पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। उसका अँगूठा जमीन से रगड़ खाता है। और पैनी मिट्टी से रगड़कर लहूलुहान हो जाता है। ऐसे तो एक दिन पंजा ही छिल जाएगा इसलिए वह अपने जूते को अच्छा नहीं मानता है।
प्रश्न 8: प्रेमचंद का जूता फटने के प्रति लेखक ने क्या-क्या आशंका प्रकट की है?
उत्तर: प्रेमचंद का जूता फटने के प्रति लेखक ने दो आशंकाएँ प्रकट की हैं-
प्रश्न 9: लेखक द्वारा कुंभनदास का उदाहरण किस संदर्भ में दिया गया है?
उत्तर: लेखक का मानना है कि चक्कर लगाने से जूता फटता नहीं, घिस जाता है। इसकी पुष्टि के लिए ही उन्होंने कुंभ दास का उदाहरण दिया है। कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी आते-जाते घिस गया था।
प्रश्न 10: प्रेमचंद ऐसी वेष-भूषा में फ़ोटो खिंचाने को क्यों तैयार हो गए होंगे? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर: प्रेमचंद मोटे कपड़े का कुरता-धोती और टोपी पहने फ़ोटो खिंचाने को इसलिए तैयार हो गए होंगे, शायद उनकी पत्नी ने आग्रह किया होगा जिसे वे टाल न पाए होंगे और ‘अच्छा, चल भई’ कहकर पत्नी के साथ फोटो खिंचाने बैठ गए होंगे।
प्रश्न 11: यदि अन्य लोगों की तरह प्रेमचंद भी फ़ोटो का महत्त्व समझते तो क्या करते?
उत्तर: यदि औरों की तरह प्रेमचंद भी फ़ोटो का महत्त्व समझते तो वे इस तरह के अत्यंत साधारण कपड़े और फटा जूता पहनकर फ़ोटो न खिंचाते। वे भी दूसरों की तरह फ़ोटो खिंचाने के लिए औरों से कपड़े-जूते आदि उधार माँग लेते।
प्रश्न 12: लेखक ने सदियों से परत-दर-परत’ कहकर किस ओर इशारा किया है?
उत्तर: लेखक ने ‘सदियों से जमी परत पर परत’ कहकर समाज में फैली उन कुरीतियों, रूढ़ियों और बुराइयों की ओर संकेत किया है जो समाज में पुराने समय से चली आ रही हैं और लोग बिना सोचे-समझे इन्हें अपनाए हुए हैं। इनकी जड़े समाज में इतनी गहराई से जम चुकी हैं कि ये सरलता से दूर नहीं की जा सकती।
प्रश्न 13: ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के आधार पर प्रेमचंद की वेशभूषा एवं उनकी स्वाभाविक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ से पता चलता है कि उच्च कोटि को साहित्यकार होने के बाद भी प्रेमचंद साधारण-सा जीवन “: “बिता रहे थे। वे मोटे कपड़े का कुरता-धोती और टोपी पहनते थे। उनके जूतों के बंद बेतरतीब बँधे रहते थे। इसके बाद भी प्रेमचंद को दिखावा एवं आडंबर से परहेज था। वे जिस हाल में थे, उसी में खुश थे और उसी रूप में दिखने में उन्हें कोई शर्म नहीं आती थी। वे अपनी कमियों और कमजोरियों को छिपाना नहीं जानते थे।
प्रश्न 14: लेखक ने प्रेमचंद को जनता के लेखक’ कहकर उनकी किस विशेषता को बताना चाहा है?
उत्तर: प्रेमचंद अपने युग के महान कथाकार और उपन्यासकार थे। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी न होने से उन्होंने खुद गरीबी एवं दुख को अत्यंत निकट से देखा था। इसके अलावा प्रेमचंद पराधीन भारत में भारतीय किसानों और मजदूरों के प्रति अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचार को देखा था। वे समाज में व्याप्त रूढ़ियों, कुरीतियों और धार्मिक बुराइयों में फंसे लोगों को देख रहे थे। इन्हीं बातों को उन्होंने अपनी कृतियों का विषय बनाया है। पूस की रात’ में हलकू की समस्या, ‘गोदान’ .. में होरी की दुर्दशा, ‘मंत्र’ में डाक्टर चट्ढा की खेलप्रियता से सुजानभगत के बेटे की मृत्यु आदि का सजीव चित्रण करके जन सामान्य के दुख को मुखरित किया है। लेखक ने ‘जनता का लेखक’ कहकर जनसाधारण के प्रति उनके लगाव को बताना चाहा है।
प्रश्न 15: लेखक ने प्रेमचंद की दशा का वर्णन करते-करते अपने बारे में भी कुछ कहकर लेखकों की स्थिति पर प्रकाश डाला है। ‘प्रेमचंद’ और लेखक ‘परसाई’ में आपको क्या-क्या समानता-विषमता दिखाई देती है? लिखिए।
उत्तर: लेखक परसाई द्वारा लिखित पाठ ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ में प्रेमचंद जैसे महान साहित्यकार, जिसे ‘युग प्रवर्तक’, ‘महान कथाकार’, ‘उपन्यास सम्राट’ आदि के रूप में जाना जाता है, की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी न थी। उनकी फटे जुते से अँगुली बाहर निकल आई थी। कुछ ऐसी समान स्थिति लेखक परसाई के जूते की भी थी। उनके जूते का अँगूठे के नीचे का तला फटा था, जिससे अँगूठा जमीन में रगड़कर घायल हो जाता था। इस स्थिति में उसके जूते का तला निकलकर उसके पूरे पंजे को घायल कर देता था।
प्रेमचंद और लेखक में अंतर यह था कि इस हाल में भी जहाँ प्रेमचंद मुसकराते हुए फ़ोटो खिंचा लिए, लेखक ऐसा कभी न कर पाता।
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