प्रश्न 1: कबीर ने सच्चा संत किसे कहा है? उसकी पहचान बताइए।
उत्तर: कबीर ने सच्चा संत उसे कहा है जो हिंदू-मुसलमान के पक्ष-विपक्ष में न पड़कर इनसे दूर रहता है और दोनों को समान दृष्टि से देखता है, वही सच्चा संत है। उसकी पहचान यह है कि किसी धर्म/संप्रदाय के प्रति कट्टर नहीं होता है और प्रभुभक्ति में लीन रहता है।
प्रश्न 2: हंस किसके प्रतीक हैं? वे मानसरोवर छोड़कर अन्यत्र क्यों नहीं जाना चाहते हैं?
उत्तर: हंस जीवात्मा के प्रतीक हैं। वे मानसरोवर अर्थात् मेन रूपी सरोवर को छोड़कर अन्यत्र इसलिए जाना चाहते हैं क्योंकि उसे प्रभु भक्ति का आनंद रूपी मोती चुगने को मिल रहे हैं। ऐसा आनंद उसे अन्यत्र दुर्लभ है।
प्रश्न 3: कबीर ने ‘जीवित’ किसे कहा है?
उत्तर: कबीर ने उस व्यक्ति को जीवित कहा है जो राम और रहीम के चक्कर में नहीं पड़ता है। इनके चक्कर में पड़े व्यक्ति राम-राम या खुदा-खुदा करते रह जाते हैं पर उनके हाथ कुछ नहीं लगता है। इन दोनों से दूर रहकर प्रभु की सच्ची भक्ति करने वालों को ही कबीर ने ‘जीवित’ कहा है।
प्रश्न 4: ‘मोट चून मैदा भया’ के माध्यम से कबीर क्या कहना चाहते हैं?
उत्तर: मोट चून मैदा भया के माध्यम से कबीर कहना चाहते हैं कि हिंदू और मुसलमान दोनों धर्मों की बुराइयाँ समाप्त हो गई और वे अच्छाइयों में बदल गईं। अब मनुष्य इन्हें अपनाकर जीवन सँवार सकता है।
प्रश्न 5: कबीर ‘सुबरन कलश’ की निंदा क्यों करते हैं?
उत्तर: कबीर ‘सुबरन कलश’ की निंदा इसलिए करते हैं क्योंकि कलश तो बहुत महँगा है परंतु उसमें रखी सुरा व्यक्ति के लिए हर तरह से हानिकारक है। सुरा के साथ होने के कारण सोने का पात्र निंदनीय बन गया है।
प्रश्न 6: ‘सुबरन कलश’ किसका प्रतीक है? मनुष्य को इससे क्या शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए?
उत्तर: ‘सुबरन कलश’ अच्छे और प्रतिष्ठित कुल का प्रतीक है जिसमें जन्म लेकर व्यक्ति अपने-आप को महान समझने लगता है। व्यक्ति तभी महान बनता है जब उसके कर्म भी महान हैं। इससे व्यक्ति को अच्छे कर्म करने की शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।
प्रश्न 7: कबीर मनुष्य के लिए क्रिया-कर्म और योग-वैराग्य को कितना महत्त्वपूर्ण मानते हैं?
उत्तर: कबीर मनुष्य के लिए क्रिया-कर्म और योग-वैराग्य को महत्त्वपूर्ण नहीं मानते हैं क्योंकि मनुष्य इन क्रियाओं के माध्यम से ईश्वर को पाने का प्रयास करता है, जबकि कबीर के अनुसार ईश्वर को इन क्रियाओं के माध्यम से नहीं पाया जा सकता है।
प्रश्न 8: मनुष्य ईश्वर को क्यों नहीं खोज पाता है?
उत्तर: मनुष्य ईश्वर को इसलिए नहीं खोज पाता है क्योंकि वह ईश्वर का वास मंदिर-मस्जिद जैसे धर्मस्थलों और काबा-काशी जैसी पवित्र मानी जाने वाली जगहों पर मानता है। वह इन्हीं स्थानों पर ईश्वर को खोजता-फिरता है। वह ईश्वर को अपने भीतर नहीं खोजता है।
प्रश्न 9: कबीर ने संसार को किसके समान कहा है और क्यों?
उत्तर: कबीर ने संसार को श्वान रूपी कहा है क्योंकि जिस तरह हाथी को जाता हुआ देखकर कुत्ते अकारण भौंकते हैं उसी तरह ज्ञान पाने की साधना में लगे लोगों को देखकर सांसारिकता में फँसे लोग तरह-तरह की बातें बनाने लगते हैं। वे ज्ञान के साधक को लक्ष्य से भटकाना चाहते हैं।
प्रश्न 10: कबीर ने ‘भान’ किसे कहा है? उसके प्रकट होने पर भक्त पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर: कबीर ने ‘भान’ (सूर्य) ज्ञान को कहा है। ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त होने पर मनुष्य के मन का अंधकार दूर हो जाता है। इस अंधकार के दूर होने से मनुष्य के मन से कुविचार हट जाते हैं। वह प्रभु की सच्ची भक्ति करता है और उस आनंद में डूब जाता है।
प्रश्न 11: स्पष्ट कीजिए कि कबीर खरी-खरी कहने वाले सच्चे समाज सुधारक थे।
उत्तर: कबीर ने तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराइयों को अत्यंत निकट से देखा था। उन्होंने महसूस किया कि सांप्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता, भक्ति का आडंबर, मूर्तिपूजा, ऊँच-नीच की भावना आदि प्रभु-भक्ति के मार्ग में बाधक हैं। उन्होंने ईश्वर की वाणी को जन-जन तक पहुँचाते हुए कहामोको केही ढूँढे बंदे मैं तो तेरे पास में। इसके अलावा ऊँचे कुल में जन्म लेकर महान कहलाने वालों के अभिमान पर चोट करते हुए कहा-‘सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोय’। इससे स्पष्ट होता है कि कबीर खरी-खरी कहने वाले सच्चे समाज-सुधारक थे।
प्रश्न 12: ज्ञान की आँधी आने से पहले मनुष्य की स्थिति क्या थी? बाद में उसकी दशा में क्या-क्या बदलाव आया? पठित ‘सबद’ के आधार पर लिखिए।
उत्तर: ज्ञान की आँधी आने से पहले मनुष्य का मन मोह-माया, अज्ञान तृष्णा, लोभ-लालच और अन्य दुर्विचारों से भरा था। वह सांसारिकता में लीन था, इससे वह प्रभु की सच्ची भक्ति न करके भक्ति का आडंबर करता था। ज्ञान की आँधी आने के बाद मनुष्य के मन से अज्ञान का अंधकार और कुविचार दूर हो गए। उसके मन में प्रभु-ज्ञान का प्रकाश फैल गया। वह प्रभु की सच्ची भक्ति में डूबकर उसके आनंद में सराबोर हो गया।
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