प्रश्न 1: “….उन जंजीरों को तोड़ने का जिनमें वे जकड़े हुए हैं, कोई-न-कोई तरीका लोग निकाल ही लेते हैं….”
आपके विचार से ‘जंजीरों’ द्वारा किन समस्याओं की ओर इशारा कर रहा है?
उत्तर: ‘जंजीरों’ द्वारा समाज में फैली हुई रूढ़ियों और संकीर्णता की ओर संकेत कर रहे हैं। हमारे पुरुष प्रधान समाज में नारी को हमेशा से दबना पड़ा है। पर जब वह दमित नारी कुछ करने की ठानती है तो ये जंजीरे कटने लगती हैं। जैसे- स्त्री की आज़ादी और साक्षरता।
प्रश्न 2: क्या आप लेखक की इस बात से सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण भी बताइए।
उत्तर: हम लेखक की बात से पूर्ण सहमत हैं क्योंकि जब-जब किसी पर जंजीरे कसी जाती है तो वह इन रूढ़ियों के बंधनों को तोड़ डालती है। समय के साथ-साथ विचारधाराओं में भी परिवर्तन होता रहता है जब ये परिवर्तन होने प्रारम्भ होते हैं तो समाज में एक जबरदस्त बदलाव आता है जो उसकी सोचने-समझने की धारा को ही बदल देता है। मनुष्य आजाद स्वभाव का प्राणी है।
वह रूढ़ियों के बंधन को बर्दाश्त नहीं करता और उसे तोड़ देता है। जैसे तमिलनाडु के पुडुकोट्टई गाँव में हुआ है। महिलाओं ने साइकिल चलाना आरम्भ किया और समाज में एक नई मिसाल रखी।
प्रश्न 3: ‘साइकिल आंदोलन’ से पुडुकोट्टई की महिलाओं के जीवन में कौन-कौन से बदलाव आए हैं?
उत्तर: साइकिल आंदोलन से पुडुकोट्टई की महिलाओं के जीवन में कई बदलाव आए हैं-
(i) साइकिल आंदोलन से महिलाएँ छोटे-मोटे बाहर के काम स्वयं करने लगी।
(ii) साइकिल आंदोलन से वे अपने उत्पाद कई गाँव में ले जाकर बेचने लगी।
(iii) साइकिल आंदोलन से उनकी आर्थिक स्थिति सुधरी है।
(iv) साइकिल आंदोलन से समय और श्रम की बचत हुई है।
(v) साइकिल आंदोलन ने उन्हें आत्मनिर्भर बनाया।
प्रश्न 4: शुरुआत में पुरुषों ने इस आंदोलन का विरोध किया परंतु आर साइकिल्स के मालिक ने इसका समर्थन किया, क्यों?
उत्तर: शुरुआत में पुरुषों ने इस आंदोलन का विरोध किया परंतु आर-साइकिल्स के मालिक ने इसका समर्थन किया, क्योंकि आर-साइकिल्स के मालिक की आय में वृद्धि हो रही थी। यहाँ तक की लेडीज़ साइकिल कम होने से महिलाऐ जेंट्स साइकिल भी खरीद रही थी। आर-साइकिल्स के मालिक ने आंदोलन का समर्थन स्वार्थवश किया।
प्रश्न 5: प्रारंभ में इस आंदोलन को चलाने में कौन-कौन सी बाधा आई?
उत्तर: प्रारम्भ में साइकिल आंदोलन चलाने में कुछ मुश्किलें आयीं जैसे-
(i) सर्वप्रथम गाँव के लोग बहुत ही रूढ़िवादी थे। उन्होंने महिलाओँ के उत्साह को तोड़ने का प्रयास किया।
(ii) महिलाओँ के साइकिल चलाने पर उन पर फ़ब्तियाँ कसी।
(iii) महिलाओँ के पास साइकिल शिक्षक का अभाव था, जिसके लिए उन्होंने स्वयं साइकिल सिखाना आरम्भ किया और आंदोलन की गति पर कोई असर नहीं पड़ने दिया।
प्रश्न 6: आपके विचार से लेखक ने इस पाठ का नाम जहाँ पहिया है? क्यों रखा होगा?
उत्तर: पहिया गति का प्रतीक है। लेखक ने इस पाठ का नाम ‘जहाँ पहिया है’ तमिलनाडु के पुडुकोट्टई गाँव के साइकिल आंदोलन के कारण ही रखा होगा। उस जिले की महिलाओं ने साइकिल चलाना शुरू किया, तब से उनकी परिस्थिति में सुधार आया तथा उनके विकास को गति मिली। इसलिए लेखक कहते है कि ये बात उस जिले की है ‘जहाँ पहिया है’।
प्रश्न 7: अपने मन से इस पाठ का कोई दूसरा शीर्षक सुझाइए। अपने दिए हुए शीर्षक के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर: इस पाठ के लिए उपयुक्त नाम साइकिल आंदोलन भी हो सकता था। साइकिल आंदोलन इस पाठ की केंद्रीय घटना है तथा पूरे पाठ में आंदोलन की चर्चा है, इसलिए ये शीर्षक उपयुक्त है।
प्रश्न 8: “पुडुकोट्टई पहुँचने से पहले मैंने इस विनम्र सवारी के बारे में इस तरह सोचा ही नही था।”
साइकिल को विनम्र सवारी क्यों कहा गया है?
उत्तर: लेखक पुडुकोट्टई पहुँचने से पहले इस विनम्र सवारी के बारे में कभी इस तरह सोचा ही नहीं था कि कैसे एक साइकिल से स्त्रियों को आजादी और उनके जीवन में खुशहाली मिल सकती है । लेखक ने कभी भी साइकिल को आज़ादी का प्रतीक नहीं समझा था। लेकिन पुडुकोट्टई की औरतों ने लेखक के सोच को बदल दिया। पुडुकोट्टई की औरतों ने अपनी आजादी और आत्मनिर्भर बनने के लिए साइकिल चलाना आरंभ किया
साइकिल को विनम्र सवारी इसलिए कहा गया है क्योंकि साइकिल बिना ईंधन के तथा बिना शोरगुल के चलती है। और न ही इससे पर्यावरण दूषित होता है। रास्ता कैसा भी हो यह चलने के लिए तैयार रहती है। इन्हीं कारणों से साइकिल को विनम्र सवारी कहा गया है।
प्रश्न 9: फातिमा ने कहा,”…मैं किराए पर साइकिल लेती हूँ ताकि मैं आज़ादी और खुशहाली का अनुभव कर सकूँ।” साइकिल चलाने से फातिमा और पुडुकोट्टई की महिलाओं को ‘आज़ादी’ का अनुभव क्यों होता होगा?
उत्तर: हमारे समाज में आज भी महिलाओं को पुरुषों से कम समझा जाता है। महिलाओ को घर से बाहर निकलने की, कोई काम करने की मनाही होती है। इसका सबसे बड़ा कारण गाँव की पुरानी रूढ़िवादी परम्पराएँ हैं जहाँ औरतों का साइकिल चलाना उचित नहीं माना जाता था। उनके विरोध में खड़े होकर अपने को पुरुषों की बराबरी का दर्जा देकर स्वयं को आत्मनिर्भर बनाकर फातिमा ने जो कदम उठाया उससे उसने स्वयं को, अपने जैसी अन्य महिलाओं को सम्मान दिया है। उससे आज़ादी का अनुभव करना लाज़मी है। ऐसे में साइकिल चलाकर फातिमा और पुडुकोट्टई की महिलाओं को अपनी ‘आज़ादी का अनुभव हुआ।
51 videos|311 docs|59 tests
|
|
Explore Courses for Class 8 exam
|