कृष्णमूर्ति तथा श्रीकण्ठ दो मित्र थे। श्रीकण्ठ का पिता समृद्ध था। उसके घर में सब प्रकार के सुख साधन थे। उसके विशाल भवन में चालीस खम्बे थे। अठारह कमरों में पचास खिड़कियाँ थीं। कृष्णमूर्ति के माता-पिता साधारण कृषक थे। उनका घर आडम्बर शून्य तथा अत्यधिक साधारण था। एक बार श्रीकण्ठ उसके घर आया। उसके घर में नौकर को न देखकर श्रीकण्ठ ने कहा–’तुम्हारे घर में एक भी नौकर नहीं है। मेरे यहाँ तो अनेक नौकर हैं।’
स्वावलम्बी कृष्णमूर्ति कहने लगा-‘मेरे आठ नौकर हैं। यथा-दो पैर, दो हाथ, दो आँख तथा दो कान। ये प्रतिपल मेरे अधीन रहते हैं। परन्तु तुम्हारे नौकर दिन-रात कार्य नहीं कर सकते।’ अतः तुम नौकरों के अधीन हो। अपना कार्य स्वयं करने से सुख ही प्राप्त होता है। यह सुनकर श्रीकण्ठ अत्यधिक प्रसन्न हुआ और कहने लगा’आज से मैं भी अपना कार्य स्वयं करूँगा।’
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
(ख) एकदा श्रीकण्ठः तेन सह प्रात: नववादने तस्य गृहम् अगच्छत्। तत्र कृष्णमूर्तिः तस्य
माता पिता च स्वशक्त्या श्रीकण्ठस्य आतिथ्यम् अकुर्वन्। एतत् दृष्ट्वा श्रीकण्ठः
अकथयत्-
“मित्र! अहं भवतां सत्कारेण सन्तुष्टोऽस्मि। केवलम् इदमेव मम दुःखं यत् तव गृहे एकोऽपि भृत्यः नास्ति। मम सत्काराय भवतां बहु कष्टं जातम्। मम गृहे तु बहवः कर्मकराः सन्ति।”
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
(ग) तदा कृष्णमूर्तिः अवदत्-“मित्र! ममापि अष्टौ कर्मकराः सन्ति। ते च द्वौ पादौ, द्वौ हस्तौ, द्वे नेत्रे, द्वे श्रोत्रे इति। एते प्रतिक्षणं मम सहायकाः। किन्तु तव भृत्याः सदैव सर्वत्र च उपस्थिताः भवितुं न शक्नुवन्ति। त्वं तु स्वकार्याय भृत्याधीनः। यदा यदा ते अनुपस्थिताः, तदा तदा त्वं कष्टम् अनुभवसि। स्वावलम्बने तु सर्वदा सुखमेव, न कदापि कष्टं भवति।”
शब्दार्थाः ( Word Meanings):
सरलार्थ :
तब कृष्णमूर्ति बोला- “मित्र! मेरे भी आठ नौकर हैं। और वे दो पैर, दो हाथ, दो आँखें और दो कान हैं। ये हर पल मेरे सहायक हैं। परन्तु तुम्हारे नौकर सदा सब जगह उपस्थित नहीं हो सकते। तुम तो अपने कार्य के लिए अपने सेवकों के अधीन हो। जब-जब वे अनुपस्थित होते हैं, तब-तब तुम कष्ट का अनुभव करते हो। स्वावलम्बन में तो हमेशा सुख ही है, कभी कष्ट नहीं होता है।”
(घ) श्रीकण्ठः अवदत्-“मित्र! तव वचनानि श्रुत्वा मम मनसि महती प्रसन्नता जाता। अधुना अहमपि स्वकार्याणि स्वयमेव कर्तुम् इच्छामि।” भवतु, सार्धद्वादशवादनमिदम्। साम्प्रतं गृह चलामि।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
सरलार्थ :
श्रीकण्ठ बोला-“मित्र! तुम्हारे वचनों को सुनकर मेरे मन में बहुत प्रसन्नता हुई। अब मैं भी अपना काम स्वयं ही करूँगा।” ठीक है। अब साढ़े बारह बजे हैं। मैं अब घर चलता हूँ।
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