प्रस्तुत पाठ में हास्य बालकवियों के सम्मेलन को प्रस्तुत किया गया है। इसमें अनेक हास्य कविताओं को सम्मिलित किया गया है। पाठ में अव्ययों का प्रयोग हुआ है। जो शब्द तीनों लिंगों में, तीनों वचनों में तथा सभी विभक्तियों में सदा एक ही रूप में प्रयोग होते हैं वे ‘अव्यय’ कहलाते हैं।
एक श्लोक में वैद्य को यमराज का सहोदर बताया गया है। यमराज तो केवल प्राणों का ही हरण करता है, परन्तु वैद्य प्राणों के साथ धन का भी हरण करता है।दूसरे श्लोक में भी वैद्य के विषय में व्यंग्य किया गया है कि चिता में जलते हुए शव को देखकर वैद्य को आश्चर्य हुआ। वहं सोचने लगा कि यह किसकी कलाकारी है?
तीसरे श्लोक में कहा है कि पराए माल पर जहाँ तक सम्भव हो हाथ फेर देना चाहिए। इस संसार में पराया अन्न मुश्किल से प्राप्त होता है। चौथे श्लोक में गजाधर कवि, खाने के लोभी तुन्दिल, यमराज, वैद्य इत्यादि पर व्यंग्य किया गया है।
(विविध-वेशभूषाधारिणः चत्वारः बालकवयः मञ्चस्य उपरि उपविष्टाः सन्ति। अधः श्रोतारः हास्यकविताश्रवणाय उत्सुकाः सन्ति कोलाहलं च कुर्वन्ति।)
सरलार्थ :
(विभिन्न वेशभूषा वाले चार बालकवि मञ्च के ऊपर बैठे हुए हैं। नीचे श्रोता हास्य कविता सुनने के लिए उत्सुक हैं और शोर मचा रहे हैं।)
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
(क) सञ्चालक:-अलं कोलाहलेन। अद्य परं हर्षस्य अवसरः यत् अस्मिन् कविसम्मेलने काव्यहन्तारः कालयापकाश्च भारतस्य हास्यकविधुरन्धराः समागताः सन्ति। एहि, करतलध्वनिना वयम् एतेषां स्वागतम् कुर्मः।
सरलार्थ :
सञ्चालक-शोर करने से बस करो (शोर मत करो)। आज बहुत प्रसन्नता का अवसर है कि इस कवि सम्मेलन में काव्यहन्ता (काव्य को नष्ट करनेवाले) और कालयापक (समय बर्बाद करनेवाले) भारत के श्रेष्ठ हास्य कवि आए हुए हैं। आओ! हम सब तालियों से इन सबका स्वागत करें।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
(ख) गजाधरः-सर्वेभ्योऽरसिकेभ्यो नमो नमः। प्रथमं तावद् अहम् आधुनिक वैद्यम् उद्दिश्य स्वकीयं काव्यं श्रावयामि वैद्यराज! नमस्तुभ्यं यमराजसहोदरः। यमस्तु हरति प्राणान् वैद्यः प्राणान् धनानि च॥ (सर्वे उच्चैः हसन्ति)
सरलार्थः
गजाधर-सब नीरस जनों को नमस्कार। तब तक पहले मैं आधुनिक वैद्यों को लक्ष्य करके अपनी कविता सुनाता हूँ हे वैद्यराज! यमराज के भाई, आपको नमस्कार है। यमराज तो प्राणों को ले जाता है, वैद्य प्राणों को और धन को ले जाता है। (सब जोर से हँसते हैं)
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
(ग) कालान्तकः-अरे! वैद्यास्तु सर्वत्र परन्तु न ते मादृशाः कुशलाः जनसंख्यानिवारणे। ममापि काव्यम् इदं शृण्वन्तु भवन्तः चितां प्रज्वलितां दृष्ट्वा वैद्यो विस्मयमागतः। नाहं गतो न मे भ्राता कस्येदं हस्तलाघवम्॥ (सर्वे पुनः हसन्ति)
सरलार्थ :
कालान्तक-अरे ! वैद्य तो सब जगह हैं, परन्तु वे जनसंख्या कम करने में मेरे जैसे निपुण नहीं हैं। आप सब मेरे भी इस काव्य को सुनिए। चिता को जलती हुई देखकर वैद्य ने आश्चर्य किया कि न मैं गया, न मेरा भाई, यह किसके हाथ की सफाई है। (सब फिर हँसते हैं)
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
(घ) तुन्दिल:-(तुन्दस्य उपरि हस्तम् आवर्तयन्) तुन्दिलोऽहं भोः! ममापि इदं काव्यं श्रूयताम्, जीवने धार्यतां च परान्नं प्राप्य दुर्बुद्धे! मा शरीरे दयां कुरु! परान्नं दुर्लभं लोके शरीराणि पुनः पुनः॥ (सर्वे पुनः अट्टहासं कुर्वन्ति)
सरलार्थ : –
तुन्दिल-(तोंद के ऊपर हाथ फेरते हुए) मैं तुन्दिल हूँ। अरे ! मेरी भी इस कविता को सुनो और जीवन में अपनाओ-दुष्टबुद्धिवाले! दूसरे का अन्न प्राप्त करके शरीर पर दया मत कर। संसार में दूसरे का अन्न दुर्लभ है। शरीर बार-बार मिलता रहता है। (सब फिर जोर से हँसते हैं)
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
(ङ) चार्वाकः- आम्, आम् शरीरस्य पोषणं सर्वथा उचितमेव। यदि धनं नास्ति, तदा ऋणं कृत्वापि पौष्टिकः पदार्थः एव भोक्तव्यः। तथा कथयति चार्वाककविः यावज्जीवेत् सुखं जीवेद् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्। श्रोतार:-तर्हि ऋणस्य प्रत्यर्पणं कथम्? चार्वाकः-श्रूयतां मम अवशिष्टं काव्यम् घृतं पीत्वा श्रमं कृत्वा ऋणं प्रत्यर्पयेत् जनः॥ (काव्यपाठश्रवणेन उत्प्रेरितः एकः बालकोऽपि आशुकवितां रचयति, हासपूर्वकं च श्रावयति)
बालकः- श्रूयताम् श्रूयतां भोः! ममापि काव्यम्
गजाधरं कविं चैव तुन्दिलं भोज्यलोलुपम्।
कालान्तकं तथा वैद्यं चार्वाकं च नमाम्यहम्॥
(काव्यं श्रावयित्वा ‘हा हा हा’ इति कृत्वा हसति। अन्ये चाऽपि हसन्ति सर्वे गृहं गच्छन्ति।)
सरलार्थ :
चार्वाक- हाँ, हाँ। शरीर का पोषण हमेशा ही ठीक रहता है। अगर धन नहीं है (व्यक्ति के पास) तब कर्ज लेकर भी पौष्टिक (शरीर को बलवान बनाने वाले) पदार्थों का ही उपभोग करना चाहिए। और चार्वाक कवि कहते हैं जब तक जियो सुख से जियो (जीना चाहिए), कर्ज (उधार) लेकर भी घी पियो (पीना चाहिए)। श्रोतागण- तो कर्ज को कैसे चुकाया जाए? चार्वाक- मेरी बची हुई कविता भी सुनिए घी पीकर, परिश्रम करके लोगों को कर्ज वापस कर देना चाहिए। (काव्य पाठ से प्रेरित होकर एक बालक भी तुरंत कविता की रचना करता है और हँसते हुए सुनाता है-) बालक- अरे सुनिए, सुनिए! मेरी भी
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
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