प्रस्तुत पाठ में संस्कृत-भाषा के महत्त्व का वर्णन है। यह भाषा संसार की भाषाओं में प्राचीनतम और अधिकतर भाषाओं की जननी है। यह परिमार्जित और वैज्ञानिक भाषा है। इसका साहित्य संस्कृति का ज्ञान प्रदान करता है। अतः संस्कृति, आचरण और श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त करने के लिए संस्कृत अवश्य पढ़नी चाहिए।पाठ से ‘इकारान्त स्त्रीलिंग’ शब्दों का ज्ञान प्राप्त होगा।
संसार की सभी भाषाओं में संस्कृत प्राचीनतम भाषा है। यह प्रायः सभी भारतीय प्रादेशिक भाषाओं की मूल स्वीकार की गई है। इसमें ज्ञान और विज्ञान का खजाना सुरक्षित है। संस्कृत भाषा कम्प्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा है। इसका साहित्य अत्यधिक समृद्ध है। इसमें वेदों, शास्त्रों, पुराणों तथा अन्य आधुनिक शास्त्रों की रचना हुई है। संस्कृत भाषा के कालिदास जैसे कवि विश्व में प्रसिद्ध हैं। संस्कृत भाषा में अनेक शास्त्रों की रचना हुई। अनेक आचार्यों ने उल्लेखनीय कार्य किया है। आचार्य भास्कर, महर्षि चरक और महर्षि सुश्रुत का नाम आज भी आदर के साथ लिया जाता है।
संस्कृत की विशेषता सर्वतोमुखी है। इसका नीतिशास्त्र विश्व प्रसिद्ध है। नीतिशास्त्र में नीतिविषयक वचनों का संग्रह प्राप्त है। ये वचन मनुष्य को जीवनोपयोगी व समाजोपयोगी व्यवहार सिखाते हैं। संस्कृत के कारण ही भारत विश्व का गुरु कहलाता है। इसके सर्वातिशायी गुणों के कारण ही यह भाषा अजर-अमर है।
(क) विश्वस्य उपलब्धासु भाषासु संस्कृतभाषा प्राचीनतमा भाषास्ति। भाषेयं अनेकाषां
भाषाणां जननी मता। प्राचीनयोः ज्ञानविज्ञानयोः निधिः अस्यां सुरक्षितः। संस्कृतस्य
महत्त्वविषये केनापि कथितम्- ‘भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा’।
सरलार्थ :
संसार की सभी उपलब्ध भाषाओं में संस्कृत भाषा सबसे अधिक प्राचीन है। यह भाषा अनेक भाषाओं की माता मानी गई है। प्राचीन ज्ञान विज्ञान का खज़ाना इसमें सुरक्षित है। संस्कृत के महत्त्व के विषय में किसी के द्वारा कहा गया है- भारत की दो प्रतिष्ठाएँ हैं- संस्कृत और (देश की) संस्कृति।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
उपलब्धासु- उपलब्ध (भाषाओं) में (among available (languages)), प्राचीनतमा-सबसे पुरानी (oldest), भाषेयम् (भाषा+इयम् )-यह भाषा (this language), जननी-माता (mother), मता-मानी गई है (is considered), निधिः-खजाना (treasure), प्रतिष्ठे-दो प्रतिष्ठाएँ/सम्मानप्रद तत्त्व (two matters of honour).
(ख) इयं भाषां अतीव वैज्ञानिकी। केचन कथयन्ति यत् संस्कृतमेव सङ्गणकस्य कृते सर्वोत्तमा भाषा। अस्याः वाङ्मयं वेदैः, पुराणैः, नीतिशास्त्रैः चिकित्साशास्त्रादिभिश्च समृद्धमस्ति। कालिदासादीनां विश्वकवीनां काव्यसौन्दर्यम् अनुपमम्।कौटिल्यरचितम् अर्थशास्त्रं जगति प्रसिद्धमस्ति। गणितशास्त्रे शून्यस्य प्रतिपादनं सर्वप्रथमम् आर्यभट: अकरोत्। चिकित्साशास्त्रे चरकसुश्रुतयो: योगदानं विश्वप्रसिद्धम्। संस्कृते यानि अन्यानि शास्त्राणि विद्यन्ते तेषु वास्तुशास्त्रं, रसायनशास्त्रं, खगोलविज्ञानं, ज्योतिषशास्त्रं, विमानशास्त्रं इत्यादीनि उल्लेखनीयानि।
सरलार्थ :
यह भाषा बहुत वैज्ञानिकी है। कुछ लोग कहते हैं कि संस्कृत ही कम्प्यूटर के लिए सर्वश्रेष्ठ (सर्वोत्तम) भाषा है। इसका साहित्य वेदों से, पुराणों से, नीतिशास्त्रों से और चिकित्साशास्त्र आदि को से सम्पन्न (परिपूर्ण) है। कालिदास आदि विश्वकवियों का काव्य-सौन्दर्य अतुलनीय है। चाणक्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र संसार में प्रसिद्ध है। गणितशास्त्र में शून्य का प्रयोग सबसे पहले आर्यभट्ट ने किया था। चिकित्साशास्त्र में चरक और सुश्रुत का योगदान विश्वविख्यात है। संस्कृत में जो दूसरे शास्त्र हैं, उनमें वास्तुशास्त्र, रसायनशास्त्र, अन्तरिक्ष विज्ञान, ज्योतिषशास्त्र और विमानशास्त्र इत्यादि उल्लेखनीय हैं।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
(ग) संस्कृते विद्यमानाः सूक्तयः अभ्युदयाय प्रेरयन्ति। यथा-सत्यमेव जयते, वसुधैव कुटुम्बकम्, विद्ययाऽमृतमश्नुते, योगः कर्मसु कौशलम् इत्यादयः। सर्वभूतेषु आत्मवत् व्यवहारं कर्तुं संस्कृतभाषा सम्यक् शिक्षयति।
सरलार्थ :
संस्कृत (साहित्य) में विद्यमान सूक्तियाँ भौतिक उन्नति के लिए प्रेरित करती हैं। जैसे- ‘सत्य की ही सदा विजय होती है’ ‘सारी पृथ्वी ही एक छोटा सा परिवार है’, ‘विद्या द्वारा अमरत्व की प्राप्ति होती है (अर्थात् विद्या द्वारा मनुष्य अमर हो जाता है)’ ‘कर्मों में कौशल/निपुणता ही योग है’ इत्यादि। सब के प्रति अपने जैसा व्यवहार करने के लिए संस्कृत भाषा अच्छी तरह से शिक्षा देती है।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
(घ) केचन कथयन्ति यत् संस्कृतभाषायां केवलं धार्मिकं साहित्यम् वर्तते-एषा धारणा समीचीना नास्ति।
संस्कृतग्रन्थेषु मानवजीवनाय विविधाः विषयाः समाविष्टाः सन्ति।
महापुरुषाणां मतिः, उत्तमजनानां धृतिः सामान्यजनानां जीवनपद्धतिः च वर्णिताः सन्ति।
अतः अस्माभिः संस्कृतम् अवश्यमेव पठनीयम्। तेन मनुष्यस्य समाजस्य च परिष्कारः भवेत्।
उक्तञ्च —
अमृतं संस्कृतं मित्र!
सरसं सरलं वचः। भाषासु महनीयं यद्
ज्ञानविज्ञानपोषकम्॥
सरलार्थ :
कुछ लोग कहते हैं कि संस्कृत भाषा में केवल धार्मिक साहित्य है-यह सोच (धारणा) उचित नहीं है। संस्कृत ग्रन्थों में मानव जीवन के लिए विभिन्न विषयों का समावेश (समाए हुए) है। महापुरुषों की बुद्धि, सज्जनों का धैर्य और सामान्य मनुष्यों की जीवन प्रणाली (पद्धति) वर्णित की गई है। इसलिए हमारे द्वारा संस्कृत अवश्य ही पढ़ने योग्य है अर्थात् हमें संस्कृत अवश्य पढ़नी चाहिए। जिससे मानव की और समाज की शुद्धि हो। और कहा गया है मित्र संस्कृत अमृत है। सरस और सरल वाणी है। भाषाओं में जो सम्मान के योग्य है और ज्ञान एवं विज्ञान की पोषक (पोषण करने वाली) है।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
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